ये कच्चे धागे – डा विजय लक्ष्मी : Moral Stories in Hindi

बस अड्डे के कोने में बैठी एक किन्नर चुपचाप आकाश की ओर देख रही थी। नाम था उसका— शिवाली। हाथों में चमकीली चूड़ियाँ, माथे पर सिंदूरी बिंदी और होंठों पर एक फीकी सी मुस्कान। लोग आते-जाते रहते, कुछ हँसते, कुछ ताने कसते, कुछ नजरें फेर लेते… लेकिन उसे अब इस सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था ये सब उसकी रोज की जिंदगी में शामिल हो गया था ।

आज रक्षाबंधन था सुबह से उसे घर-परिवार की याद आ रही थी । किन्नरों में सबसे वयोवृद्ध जिसको सभी कोमला माई बुलाते थे। उन्हें खुद भी नहीं याद वह उस चौखट पर कब कैसे आई थी। शिवाली को कितना समझाती ईश्वर ने ही हमारी कोई भूल पर ऐसा बनाया होगा ,क्यों दुखी होती है हम सब एक-दूसरे के लिए हैं न।

शिवाली बहुत ही संवेदी व भावुक थी माई  बचपन से जितना उसे समझाती उतना ही उसे अपने छोटे भाई की याद आती जो उससे मात्र 2 साल का छोटा था। शिवाली जिसका नाम शिवम् था उसे लड़कियों की तरह कपड़े पहनना सजना अच्छा लगता। आवाज भी लड़कियों जैसी सुरीली थी। एक दिन घर में बड़ी बुआसास आईं थीं उन्होंने अपनी आधी-अधूरी जानकारी के बल पर उसे किन्नर करार दे उनके समूह में डालने की हिदायत दे दी।

शिवाली के पास एक पुराना डिब्बा रखा था, जिसमें एक पीली राखी और कुछ सूखे फूल रखे थे। हर साल की तरह आज भी वह उसी जगह बैठी थी—शहर के उसी चौक के किनारे, जहाँ एक दिन उसे उसके ही घरवालों ने माई के पास छोड़ दिया था और वह दिन रक्षाबंधन का था।

दादी और पिता को उसकी हरकतें पहले ही नहीं भातीं थीं । अब तो लोग क्या कहेंगे पर बात आ गयी। माँ को भी उसके लिए ऐसे बोलना अच्छा न लगता पर विवश थी पिता व दादी के सामने रो भी नहीं सकती थी। अकेले में गोद में बिठाकर गले लगा बहुत रोती वह तो बस यही कहती माँ क्यों रो रही? मुझे कोई बीमारी है क्या?

सिर्फ एक था… आरव, उसका छोटा भाई। चुपचाप हाथ पकड़कर कहता—”मेरे लिए तू जैसा भी है, मेरा भाई नहीं, मेरी बहन है…कोई बात नहीं शिवम भैया से मेरी शिवाली दीदी उसी ने ये नाम दिया था और खुश होते हुए बोला था अब से मैं आपसे राखी बंधवाऊंगा।” लेकिन परिवार के डर से वह कुछ बोल नहीं पाता।

वक्त बीता। शिवम्, शिवाली बन गया। और आरव… किसी और शहर में नौकरी करने चला गया।

उसके बाद न कोई चिट्ठी, न कोई खबर।

पर आज, इतने सालों बाद, शिवाली को यकीन नहीं था कि वही आरव, सामने खड़ा है। नीली शर्ट, कंधे पर बैग, और हाथ में वही पीली राखी लिए, जो उन दोनों ने कभी बचपन में एक दूसरे के बाँधी थी।

“शिवाली दीदी?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।

शिवाली के हाथ काँपने लगे। उसकी आँखें भर आईं। “आरव…? मेरा भाई… तुम मुझे पहचानते हो?”

आरव ने राखी उसके हाथ में रख दी। “पहचानता हूँ दीदी, बचपन से। पर हिम्मत नहीं थी कि सामने आकर कह सकूँ… कि तुम मेरे लिए अब भी वही हो।पर अब मैं सक्षम हूँ वह घर भी छोड़ आया हूँ एक बहन… जो समाज की नजरों में कुछ भी हो, मेरी नजरों में सबसे खास है।” मेरी दीदी इसमें आपका क्या दोष ? आपकी जगह मैं भी हो सकता था।

वे दोनों फुटपाथ पर बैठ गए।

शिवाली ने कांपते हाथों से राखी बाँधी, और आरव ने उसका माथा चूमा।दोनों की आँखों से आँसू बहते जा रहे थे।

लोग रुककर देख रहे थे – एक ट्रांसजेंडर को कोई भाई राखी पर गले लगा रहा था!

“आरव,” वह बोली, “ये राखी हर साल बाँधती थी, पर कभी तुम्हें भेज नहीं पाई।”

आरव ने उसका हाथ थामा, “क्योंकि ये बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नहीं… आत्मा का होता है। अब हर साल राखी मैं आपसे ही बंधवाऊँगा, दीदी।” और मैंने आपके केस के लिए अपने सीनियर डॉक्टर की अपॉइंटमेंट ली है “।

नहीं भाई अब तो मुझे इस सब की आदत हो गयी है।

“दीदी प्लीज इस राखी का हक अदा करने के लिए एक बार। आपकी बीमारी बचपन में नहीं समझ सका पर इसी से मैं हमेशा डाक्टर बनने की सोचता। “

डाक्टर रमन ने साल भर के इलाज के बाद कहा, “डा० आरव अब मिस शिवाली सही मायने में एक सम्पूर्ण महिला की तरह जीवन की हकदार हैं। “

शिवांगी की दुनिया जैसे फिर से सजीव हो उठी। माई उससे मिलने उसके घर आती रहती थी वह भी बहुत खुश थी उसने ही शिवाली को 12 वीं तक हौसला दे दे पढ़ाया था अब आरव से कहकर उसने नर्सिंग की ट्रेनिंग करनी शुरू कर दी थी जिससे भाई पर बोझ न रहे।

और आज चौक के कोने पर कोई एक ताली नहीं बजा रहा था, कोई बद्दुआ नहीं दे रहा था — वहाँ एक बंधा हुआ रिश्ता खुलकर मुस्कुरा रहा था और सभी तालियाँ बजाकर बधाइयाँ दे रहे थे। शिवाली और फारमेसिस्ट मधुकर अपने जुड़वां बच्चे होने की खुशी में चौक की उसी जगह सबको पार्टी बच्चों के मामा डा० आरव दे रहे थे ।

#ये बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नहीं है।

समाज की पहचान से परे, दिलों की पहचान सबसे गहरी होती है , रिश्ते लिंग, नाम या पहचान से नहीं, प्रेम और अपनत्व से टिके होते हैं।
                    स्वरचित और मौलिक
                          डा० विजय लक्ष्मी
                                  अनाम अपराजिता

Leave a Comment

error: Content is protected !!