यह सिर्फ़ कच्चे धागों का बंधन नहीं है – मीनाक्षी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

सुबह के सात बज रहे थे. शादी के मंडप में गेंदे और गुलाब की भीनी ख़ुशबू तैर रही थी. अर्जुन और प्रिया एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करने के लिए बैठे थे. अर्जुन की पहली पत्नी की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जिसके बाद वह अपने बेटे नमन के साथ अकेला रह गया था. वहीं, प्रिया ने अपने हिंसक पति से तलाक़ ले लिया था और वह अपनी बेटी तारा के साथ एक नई शुरुआत करने की कोशिश कर रही थी.

अर्जुन के चेहरे पर एक गंभीर शांति थी, जबकि प्रिया की आँखों में उम्मीद की एक झिलमिलाहट थी. मंडप से थोड़ी दूरी पर, अर्जुन का सात साल का बेटा नमन अपनी दादी की गोद में सिमटा बैठा था, उसकी छोटी उँगलियाँ दादी की साड़ी का पल्लू कसकर पकड़े हुए थीं. उसकी नज़रें कभी अर्जुन पर जातीं, कभी आसपास के लोगों पर. वहीं, प्रिया की पाँच साल की बेटी तारा अपनी माँ की साड़ी का कोना थामे हुए थी, उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में एक अजीब सी शर्म और घबराहट थी.

शादी की रस्में पूरी हुईं और प्रिया, तारा के साथ अर्जुन के घर में दाखिल हुई. अर्जुन के माता-पिता ने प्रिया का गर्मजोशी से स्वागत किया, लेकिन जैसे ही उनकी नज़रें तारा पर पड़ीं, उनके चेहरे के भाव थोड़े बदल गए. एक हल्की सी उदासीनता उनकी आँखों में तैर गई. उन्होंने बस एक औपचारिक मुस्कान के साथ तारा के सिर पर हाथ रखा, और फिर तुरंत नमन की ओर मुड़ गए, उसे प्यार से गले लगा लिया.

अगले कुछ हफ़्तों में, घर का माहौल धीरे-धीरे सामने आने लगा. दादा-दादी का सारा लाड़-प्यार नमन के लिए था. जब भी रसोई में कोई ख़ास पकवान बनता, तो दादी तुरंत नमन की पसंद पूछती, “आज आलू के पराठे बना दूँ, मेरे लाल?” अगर नमन कहीं घूमने जाने की इच्छा ज़ाहिर करता, तो उसकी बात तुरंत मान ली जाती थी. उसके लिए हमेशा नए कपड़े और खिलौने आते, जिन्हें देखकर नमन की आँखें चमक उठतीं. दादी उसे अपनी पास बिठातीं, उसके बाल सहलातीं और ढेर सारा प्यार करती थीं.

वहीं, तारा को ये सब देखकर अजीब सा लगता था. उसकी पसंद का खाना शायद ही कभी बनता था. अगर वह कहीं जाने की इच्छा ज़ाहिर करती, तो कभी उसकी बात मान ली जाती, कभी अनसुनी कर दी जाती. नए कपड़ों और खिलौनों की बजाय, उसे अक्सर नमन के पुराने खिलौने ही मिलते थे, जिन्हें वह चुपचाप रख लेती थी. दादी उसे कभी अपनी गोद में नहीं बिठाती थीं, न ही उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरती थीं. तारा ने धीरे-धीरे समझ लिया था कि इस घर में उसकी जगह क्या है. वह ज़्यादा बोलती नहीं थी, बस अपनी माँ प्रिया के इर्द-गिर्द घूमती रहती थी.

अर्जुन भी नमन को ज़्यादा पसंद करता था. जब वह घर आता, तो सबसे पहले नमन को गोद में उठाता, उसके लिए कोई नया खिलौना या चॉकलेट लेकर आता. तारा अगर कभी पास आती, तो वह बस उसके सर पर हल्का सा हाथ रख देता या मुस्कुरा देता. अगर तारा कुछ माँगती, तो वह प्रिया को पैसे पकड़ा देता और कहता, “जो भी माँग रही है, दिला देना.” नफ़रत तो नहीं थी, पर अपने बेटे के प्रति उसकी प्राथमिकता स्पष्ट दिखती थी, जिससे तारा को अक्सर अनदेखा महसूस होता था.

नमन और तारा दोनों का एक ही स्कूल में दाख़िला हो गया. नमन तारा से दो क्लास ऊपर था. शुरुआती दिनों में, नमन अभी भी तारा के साथ सहज नहीं था, क्योंकि उसके दादा-दादी उसे तारा के साथ ज़्यादा घुलने-मिलने नहीं देते थे. लेकिन कभी-कभी स्कूल बस में या स्कूल में, वे दोनों एक-दूसरे से हल्की-फुल्की बातें कर लेते थे.

एक साल बीत गया. राखी का त्योहार आया. प्रिया ने एक राखी ख़रीदी, जो तारा नमन को बाँध सके. उसने तारा को प्यार से समझाया, “आज तुम अपने भाई नमन को राखी बाँधोगी, ठीक है?” तारा ने संकोच से नमन की कलाई पर राखी बाँधी. नमन के चेहरे पर कोई ख़ास भाव नहीं आया, लेकिन वह चुपचाप बँधवा लेता है. प्रिया ने नमन को एक चॉकलेट दी और कहा कि वह उसे तारा को दे दे. नमन ने चॉकलेट तारा की ओर बढ़ा दी. अर्जुन के माता-पिता ने इस सब में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई. अर्जुन भी तारा की तरफ़ से तटस्थ ही रहा. उसने कुछ कहा नहीं, न ही तारा की तरफ ध्यान दिया. प्रिया को लगा कि अर्जुन भी अभी तक उसे या तारा को दिल से अपना नहीं पाया है.

प्रिया यह सब देखती थी और उसका दिल दुखता था. वह दोनों बच्चों को समान रूप से प्यार देती थी. नमन को भी उतना ही लाड़ करती थी जितना तारा को. लेकिन उसे महसूस होता था कि सास-ससुर और अर्जुन का यह भेदभाव तारा के मासूम मन को चोट पहुँचा रहा है. वह इस घर में संतुलन बनाए रखने की कोशिश करती, जिससे उसे भीतर ही भीतर अकेलापन और निराशा महसूस होती थी.

एक दिन प्रिया से सब्र नहीं हुआ और वह अपने मायके चली गई. अपने माता-पिता के सामने प्रिया का दर्द छलक उठा. उसने उन्हें घर के माहौल और तारा के प्रति होते भेदभाव के बारे में बताया. प्रिया ने हिम्मत जुटाकर कहा, “मैं सोचती हूँ कि क्यों न हम पहले की तरह आपके पास आ जाएँ, माँ? तारा और मैं यहीं रह लेंगे.”

प्रिया की माँ ने उसकी बात सुनी और उसे गले लगाया. “बेटा,” उसके माता पिता ने समझाया, “मुझे पता है तू एक माँ है, और तेरी ममता तुझे ऐसा सोचने पर मजबूर कर रही है. लेकिन तुझे अपने ससुराल में ही रहना चाहिए. समाज में एक अकेली औरत को लोग अच्छी नज़र से नहीं देखते. कब तक हम तुम्हें और तारा को हर बुरी नज़र से बचाएँगे? आज तारा छोटी है, कल को बड़ी होगी. उसकी सुरक्षा का क्या? कम से कम अभी उसके सर पर एक पिता का हाथ तो है, दादा-दादी का साया है और नमन जैसा भाई है. तुम्हें वहीं रहकर अपनी बेटी के लिए उस घर में जगह बनानी होगी. धीरे-धीरे ही सही, वे सब तारा को ज़रूर अपना लेंगे , और कुछ वक़्त के बाद जब तारा बड़ी होगी तो उसकी शादी हो जाएगी , उस वक्त एक परिवार की जरूरत पड़ेगी.” प्रिया जानती थी कि उसके माता-पिता भी सही कह रहे थे. उनके पास उन्हें सहारा देने के लिए कुछ नहीं था, और यह उसकी अपनी ही लड़ाई थी.

प्रिया मायके से लौटकर आई, तो उसका मन और भी भारी हो गया. वह अपने माता-पिता के कहने का असली अर्थ समझ रही थी – वे उसे कुछ दिनों के लिए सहारा दे सकते थे, पर हमेशा के लिए उसकी और तारा की ज़िम्मेदारी नहीं उठा सकते थे. उस रात वह सो नहीं सकी. उसकी आँखों के सामने कई सवाल तैर रहे थे.

उसने अर्जुन के बारे में सोचा. वह तारा से नफ़रत नहीं करता था, बस अपने फ़र्ज़ से अनजान था. क्या उसे छोड़ देना ही एकमात्र रास्ता था? शायद उसमें अब भी एक अच्छा जीवनसाथी और पिता बनने की उम्मीद बाक़ी थी. और नमन… वह बच्चा भी तो अब उसे माँ मानने लगा था. क्या एक माँ होने के नाते उसका दिल गवाही देता कि वह नमन को एक टूटे घर का दर्द देकर चली जाए?

फिर उसकी आँखों के सामने तारा का चेहरा घूम गया. अगर वह तारा को लेकर चली भी गई, तो उसे क्या देगी? दर-दर की ठोकरें और एक अनिश्चित भविष्य? यहाँ कम से कम उसकी पढ़ाई और बाकी ज़रूरतें तो पूरी हो रही थीं. एक अच्छी ज़िंदगी और एक अच्छी शिक्षा पर तारा का हक़ था, जिसे वह अपनी लड़ाई की भेंट नहीं चढ़ा सकती थी.

“नहीं,” उसने मन ही मन फ़ैसला किया. “मैं यह घर छोड़कर नहीं जाऊँगी. मैं यहीं रहकर लड़ूँगी, लेकिन इस लड़ाई की आँच अपनी बेटी पर नहीं आने दूँगी.” इसी सोच ने उसे एक मुश्किल, पर स्पष्ट रास्ता दिखाया. एक ऐसा रास्ता जो बलिदान माँगता था, पर शायद यही एकमात्र समाधान था.

पाँचवी कक्षा में आने तक, यह भेदभाव तारा को बहुत गहराई से चुभने लगा था. एक शाम, प्रिया ने उसे अपनी किताबों में मुँह छिपाकर रोते हुए पाया. तारा का गला रुँध गया, “माँ, मुझे लगता है कि इस घर में कोई मुझसे प्यार नहीं करता. मैं यहाँ ख़ुश नहीं हूँ.” प्रिया का दिल टूट गया, और उसने मन ही मन कड़ा फ़ैसला कर लिया. 

अगले दिन, उसने अर्जुन से बात की. “अर्जुन, मैं चाहती हूँ कि तारा बोर्डिंग स्कूल जाए. वह अपनी आगे की पढ़ाई वहीं से करेगी.” अर्जुन अचानक चौंक गया. “बोर्डिंग स्कूल? क्यों? क्या परेशानी है? घर में भी तो रह सकती है , यहां घर में रहने में क्या परेशानी है? हम कितने ही लोग हैं घर में?” 

प्रिया ने गहरी साँस ली और शांत भाव से बोली, “हमारे घर के माहौल के हिसाब से यही ठीक रहेगा कि तारा बाहर रहकर पढ़े. हॉस्टल में रहकर उसका मन यहाँ के भेदभाव से नहीं भटकेगा. यह उसके भविष्य के लिए सबसे अच्छा है.” प्रिया की इन बातों से अर्जुन को गहरा सदमा लगा. वह शर्मिंदा महसूस करने लगा. उसे एहसास हुआ कि प्रिया सब जानती है, उसके और उसके माता-पिता के भेदभाव को. उसका मन किया कि वह प्रिया को रोके, तारा को जाने न दे, कहे कि अब सब बदल जाएगा. लेकिन शब्द उसके गले में अटक गए. उसे याद आया कि उसने तारा से जुड़े किसी भी फ़ैसले में कभी दिलचस्पी नहीं ली थी. उसने कभी तारा को अपनी बेटी नहीं माना था. अपनी ग़लतियों का बोझ उसके कंधों पर पहाड़ जैसा महसूस हुआ. वह मौन होकर प्रिया के फ़ैसले पर सहमत हो गया.

कुछ ही दिनों में तारा के बोर्डिंग स्कूल जाने का दिन आ गया. घर में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा था. तारा अपना सामान लेकर तैयार खड़ी थी. उसने पहले प्रिया को गले लगाया, फिर संकोच से अर्जुन की ओर देखा. अर्जुन ने पहली बार उसे इतने प्यार से गले लगाया, “अपना ध्यान रखना, बेटा.” तारा को यह अजीब लगता है. फिर वह मुड़कर नमन की ओर देखती है, जो एक किनारे खड़ा है. नमन की आँखों में शायद दुख का भाव था. तारा उसकी ओर मुस्कुराई, और नमन ने भी हल्का सा मुस्कुरा दिया.

तारा के जाने के बाद, घर में एक ख़ालीपन छा गया. शुरुआत में दादा-दादी को थोड़ी राहत महसूस हुई. उन्हें लगा, ‘अच्छा हुआ, तारा घर से चली गई , अब हम केवल नमन पर ध्यान दे पाएँगे.’ लेकिन यह राहत ज़्यादा दिन नहीं टिकी. नमन अब बड़ा हो गया था और उसे दादा-दादी का प्यार भी पहले की तरह अच्छा नहीं लगता था. उसे दादी की कहानियों में पहले जैसा रस नहीं आता था. वह चिड़चिड़ा होने लगा था. उसे तारा की कमी खलने लगी थी. घर ख़ाली-ख़ाली लगने लगा था.

पहला राखी का त्योहार तारा के बिना आया. सुबह से ही घर में एक अजीब सा सूनापन था. सबको लगा कि आज के दिन तारा घर पर आएगी ,लेकिन वो नहीं आई। दादा-दादी किनारे बैठे थे, उनकी निगाहें नमन की सूनी कलाई पर थीं. दादी ने धीरे से दादा से कहा, “देखो जी, तारा तो इस बार आई ही नहीं. राखी का दिन है, और प्रिया भी कोई तैयारी नहीं कर रही है.” दादा ने उदास होकर जवाब दिया, “क्या करती? उसे तो हम लोगों ने कभी अपना ही नहीं माना. अब तो वह ख़ुश ही होगी वहाँ.” दोनों की बातों में पछतावा था. सभी तारा के जाने से दुखी थे लेकिन ये बात बोलना कोई नहीं चाहता था ।

धीरे-धीरे, यही सूनापन घर के हर कोने में बस गया. अर्जुन भी बेचैन था. उसे याद आया कि जबसे तारा हॉस्टल गई है, उसने कभी उसे फ़ोन नहीं किया, न ही उससे बातचीत की. अर्जुन मन ही मन सोचता था कि शायद तारा अब उससे नाराज़ है, और इस दूरी के लिए कहीं न कहीं वह ख़ुद ज़िम्मेदार है. नमन को भी तारा की कमी खलने लगी थी. नमन और तारा दोनों एक ही साथ स्कूल जाते थे , लेकिन अब उसका साथ देने वाला कोई नहीं था,उसे एहसास हुआ कि वह तारा को अपनी छोटी बहन मानता था और उससे प्यार करता था। 

सिर्फ़ प्रिया ही थी जो तारा से मिलने हॉस्टल जाती रहती थी. जब प्रिया वापस आती थी, तो घर के सभी सदस्य – अर्जुन, नमन, और दादा-दादी – बड़ी उम्मीद से उसे देखते थे. वे बहाने-बहाने से पूछते थे, “तारा कैसी है? छुट्टियाँ हो गईं क्या?” लेकिन प्रिया कुछ नहीं बताती थी. वह बस संक्षिप्त जवाब देती थी, “ठीक है,” या “पढ़ाई कर रही है.” उसकी चुप्पी उनके अपराधबोध को और बढ़ा रही थी.

 घर का सन्नाटा किसी को भी पसंद नहीं आ रहा था लेकिन कोई भी सदस्य खुलकर नहीं बोल पा रहा था। दादी दादा भी तारा का फोन आने पर आस पास रहते , वो सोचते शायद प्रिया तारा का फोन आने पर बात करवा दे लेकिन प्रिया खुद बात करके फोन रख दिया करती थी।

लगभग छह साल गुज़र गए. तारा अब 12वीं की परीक्षा देने वाली थी और इन सालों में एक बार भी छुट्टियों में घर नहीं लौटी थी. अगले साल फिर राखी का दिन आया. इस बार, नमन की बेचैनी चरम पर थी. वह अपनी सूनी कलाई को बार-बार देखता और उसे यह कमी बर्दाश्त नहीं हो रही थी. वह मन ही मन तारा के पास जाकर उससे मिलने के बारे में सोचता रहा. आख़िरकार, उसने हिम्मत करके अपने पिता अर्जुन से कहा, “पापा, मैं तारा से मिलने जाना चाहता हूँ। मुझे तारा की बोहोत याद आती है ।.” अर्जुन, जो वहीं  खड़ा था, नमन की बात सुनकर थोड़ा हैरान हुआ. उसकी आँखें नम हो गईं. “पता है बेटा, मैं भी यही सोच रहा था, पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. चल, हम चलते हैं.”

जब वे दोनों जाने की तैयारी कर रहे थे, तो दादा और दादी ने पूछा, “तुम दोनों कहाँ जा रहे हो?” अर्जुन ने उन्हें सारी बात बताई. यह सुनकर दादा-दादी की आँखों में भी पश्चाताप और दुख का भाव आ गया. दादी ने कहा, “हमें भी तारा की कमी बहुत खलती है. घर में उसके बिना रौनक नहीं रहती.” दादा ने कहा, “हाँ, हमें भी अपनी ग़लतियों का एहसास है. हम भी तुम्हारे साथ चलेंगे.” इस तरह, नमन, अर्जुन, दादा और दादी ने मिलकर तारा से मिलने जाने का फ़ैसला किया. उन्होंने प्रिया को इस बारे में कुछ नहीं बताया.

कुछ घंटों बाद, वे सब हॉस्टल के गेट पर खड़े थे. हॉस्टल की वार्डन ने तारा को बुला भेजा. तारा जब हॉल में आई, तो इतने सालों बाद अपने पूरे परिवार को एक साथ देखकर उसकी आँखें फटी रह गईं. उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा. वह कुछ देर वहीं खड़ी रही, जैसे उसे विश्वास ही न हो रहा हो. उसकी आँखों से आँसू बहने लगे. इतने सालों का अकेलापन और दर्द उन आँसुओं के साथ बह रहा था. नमन दौड़कर उसके पास गया. “मेरी प्यारी बहन … मुझे माफ़ कर दो! मुझे तुम्हारी बोहोत याद आती है। मैंने बहुत गलतियां की.” उसकी आवाज़ रुँध गई. “जबसे तुम गई हो, मेरी कलाई सूनी है. मैं हर राखी पर तुम्हें बहुत याद करता हूँ. प्लीज़, घर वापस आ जाओ.” तारा ने उसे गले लगा लिया और फूट-फूटकर रोने लगी. “नमन… मुझे भी तुम्हारी बहुत याद आती है.”

अर्जुन भी आगे बढ़ा. उसकी आँखों में भी नमी थी. उसने तारा के सिर पर प्यार से हाथ रखा और कहा, “मुझे भी माफ़ कर दे बेटा. मैंने अपनी ग़लती मान ली है. तू हमारी बेटी है, हमेशा से.” दादी ने भी उसे प्यार से पुचकारा, “घर में तेरे बिना रौनक नहीं लगती, बेटा.”

तारा अपने कमरे में भागी और एक छोटा सा बॉक्स ले आई. अंदर, करीने से कुछ राखियाँ रखी थीं – हर उस साल के लिए एक, जो उसने अकेले बिताया था. उसने बॉक्स नमन की ओर बढ़ाया, “मैंने हर साल तुम्हारे लिए राखी ख़रीदी थी, नमन. पर कोई था नहीं, जो मुझे घर ले जाए.” यह सुनकर सबकी आँखें भर आईं. तारा ने उस साल की राखी नमन की कलाई पर प्यार से बाँधी. इस बार नमन का चेहरा ख़ुशी और अपनेपन से दमक रहा था.

“अब घर चलें?” अर्जुन ने पूछा. तारा ने नम आँखों से मुस्कुराते हुए सिर हिलाया.

जब वे सब घर पहुँचे, तो प्रिया को यह सब देखकर बहुत आश्चर्य हुआ. उसका दिल एक पल के लिए रुक गया. उसकी आँखें ख़ुशी के आँसू से भर गईं. वह दौड़कर तारा से लिपट गई. पूरा परिवार एक हो गया था. अर्जुन, नमन, दादा और दादी, सब प्रिया के पास आए. अर्जुन ने नम आँखों से कहा, “प्रिया, हमें माफ़ कर दो. हम सबने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया .” दादा-दादी ने भी सिर झुकाकर माफ़ी माँगी. प्रिया ने उन्हें गले लगाया. आज उसकी लड़ाई जीत गई थी, और उसका परिवार पूरा हो गया था.

उस दिन के बाद, घर का माहौल पूरी तरह बदल गया. दादा-दादी अब तारा को भी उतना ही प्यार देते थे जितना नमन को. अर्जुन ने तारा को अपनी बेटी के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर लिया था. नमन और तारा अब सच्चे भाई-बहन थे, जो हर सुख-दुःख में एक-दूसरे के साथ खड़े थे. उन्हें समझ आ गया था कि यह रिश्ता सिर्फ़ कच्चे धागों का नहीं, बल्कि प्यार, पश्चाताप और अपनेपन से बुना एक अटूट बंधन था.

समाप्त 

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मीनाक्षी गुप्ता 

प्रतियोगिता के लिए कहानी– विषय– ये सिर्फ कच्चे धागों का बंधन नहीं है

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