कच्चे धागे, पक्के रिश्ते – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

    “ बेटा अभि, मुझे तुझसे कुछ बात करनी है, फरी है तो आ बैठ मेरे पास, कुछ देर के लिए”। हंसराज ने बिस्तर पर बैठे बैठे ही बेटे को आवाज दी।

       अभि ने सुना या नहीं, लेकिन रसोई में काम कर रही सोनिया के कान जरूर खड़े हो गए।

    “ अभी आया पिताजी, अभि ने कहा, वो शायद मोबाईल पर बात कर रहा था।

    हां, पापा कहिए, क्या कहना है, जरा जल्दी कहिए, फिर मुझे आफिस के लिए निकलना है, जरूरी नहीं तो शाम को बात करते है, अभि यानि अभिमन्यु ने अपना लैपटाप वगैरह बैग में रखते हुए कहा। 

    चलो शाम को ही तसल्ली से बात करते है, अभी तुम आफिस जाओ, यह कह कर हंसराज फिर से लेट गए।

    अभिमन्यु के पापा हंसराज की तबियत पिछले दो महीनों से ठीक नहीं थी। सांस की बीमारी थी, वैसे भी जब इन्सान सत्तर अस्सी की उम्र के बीच होता है तो यह सब होना एक आम सी बात है। किसी को कुछ तो किसी को कुछ, चलता ही रहता है। दवाईयां भी असर नहीं करती।

     अभि तो चला गया मगर सोनिया के दिल में हलचल मच गई कि आखिर ऐसी कौनसी बात है जो पापा अभि से करना चाहते है। हंसराज अच्छी सरकारी नौकरी से रिटायर हुए।पचास साठ हजार तो पैंशन मिलती ही होगी। रिटायर हुए काफी साल हो गए। बेटे अभि की शादी रिटायरमैंट के बाद हुई थी, बेटी सुरीली की पांच साल पहले हो गई थी। इस समय सुरीली की दो बेटियां थी जबकि अभि के एक बेटा और एक बेटी थी। सब बच्चे दस बारह साल की उम्र के बीच होगें।

      सुरीली अपने ससुराल में ठीक ठाक थी, लेकिन उसके आर्थिक हालात कुछ ठीक नहीं थे। उसके पति विजय चार भाई थे। विजय पिता के साथ बिजली के सामान की दुकान पर बैठता था जबकि बाकी तीनों धीरे धीरे नौकरी करने लगे। 

    बंटवारा हुआ तो विजय ने दुकान ली , उसे घर छोड़ना पड़ा, एक भाई दूसरे शहर में रहता था, पुराना घर दो परिवारों की जरूरते ही पूरी कर सकता था। विजय की दुकान पहले बहुत अच्छी चलती थी, लेकिन पास में ही दो बिजली के सामान की और दो बड़ी दुकानें खुल गई थी, तो काम कम हो गया।

    अब न तो उसकी दुकान इतनी बड़ी थी और न ही धन था कि काम बढ़ा सके। मकान का किराया भी देना पड़ रहा था। भाईयों का आपसी बंटवारा सही हुआ था, अब जितना था हिस्से तो उतना ही आना था।

     इधर सुरीली के मायके के हालात बहुत अच्छे थे। एक ही भाई, अच्छी नौकरी, अपना बढ़िया घर, पिताजी ने रिटायरमैंट के समय मिले पैसों से एक अच्छी कालोनी में प्लाट भी खरीद लिया था। दो साल पहले अभि की मां का देहांत हो गया था। हंसराज की तबियत भी कुछ ठीक नहीं रहती थी।

       बेटे की और से तो वो संतुष्ट थे लेकिन सुरीली की चिंता लगी रहती। पहले रहने को अपना घर तो था, अब वो भी नहीं रहा। दो दो  बेटियों का पालन पोषण, पढ़ाई लिखाई , सुरीली ने ग्रेजुएशन तो किया लेकिन नौकरी वगैरह का कभी सोचा ही नहीं।

      ससुराल में दूसरे नंबर पर थी, सब अच्छा चल रहा था, बेटियों के पालन पोषण में ही समय निकल जाता।हंस राज ने मन में कुछ निर्णय लिया था, इसी विषय में वो अभि से बात करना चाहते थे।

     रात को खाने के बाद बच्चें अपने कमरों में चले गए तो हंस राज ने अभि को वहीं रोक लिया। सोनिया बरतन रखने रसोई में चली गई थी परंतु उसके कान ससुर की बातों की और ही थे।

      हंस राज अभि से कह रहे थे कि उनहें सुरीली की बहुत चिंता रहती है, इसलिए वो प्लाट उसके नाम करना चाहते है। मकान अभि को मिल जाएगा।

“ लेकिन पापा जी, बेटियों को कौन इतनी प्रोपर्टी देता है। पढ़ाई, शादी में ही इतना खर्च हो जाता है”। सोनिया ने पास आ कर कुछ तल्खी से कहा।

   “ बहू, पहली बात तो ये कि पढ़ाई शादी में बेटी बेटे दोनों पर खर्च होता है, दूसरी बात सरकारी कानून अनुसार भी आजकल दोनों का बराबर का हिस्सा बनता है, वो बात अलग है कि अभी भी हमारे समाज में बहुत कम बेटिंया हिस्सा मांगती है।”

        बेटियां रिश्तों को ज्यादा अहमियत देती है, और यह ठीक भी है। लेकिन मेरे विचारानुसार अगर बेटी को जरूरत है और मायके वाले सक्षम है तो देनें में कोई हर्ज नहीं।

      अच्छा तो अभि को भी नहीं लगा लेकिन उसने सिर्फ इतना ही कहा” जैसी आपकी इच्छा पापा” और वो चला गया। 

    अगले हफ्ते राखी थी। सुरीली अपने परिवार सहित आई, चारों बच्चों ने खूब मजे किए लेकिन अभि और सोनिया कुछ खिंचे खिंचे से रहे। 

     बहन को नेग देकर वो चारों सोनिया के मायके चले गए जो कि उसी शहर में थे। हंस राज ने बेटी दामाद को प्लाट के कागज पकड़ाए तो दोनों ने मना कर दिया, लेकिन हंसराज की इच्छा के आगे उन्हें झुकना पड़ा। 

        अगले महीने ही हंसराज चल बसे। रीति रिवाज के अनुसार सब हुआ, लेकिन सोनिया और अभि ने इस दौरान बहन जीजा से बहुत कम बात की। आने वाले समय में भी सोनिया का कभी फोन नही आया।इसी बीच  अभि दीवाली से दो दिन पहले कुछ मिठाई फल देकर गया। 

      पहले पापा से मिलने सुरीली महीने में एक दो बार चली जाती थी, अब कैसे जाए। भाभी का रूख वो देख चुकी थी और सब समझती थी कि उनकी नाराजगी प्लाट की वजह से ही है। उसके पति ने तो कहा भी कि कागज वापिस कर दो लेकिन सुरीली ने मना कर दिया।भाई के पास अगर सब कुछ है तो उसे कुछ बुराई नहीं लगी। हां बुराई उसमें होती अगर भाई को तंगी होती। 

   पिता के देहांत के बाद पहली राखी आई , सुरीली ने भाई को फोन करके पूछना चाहा कि वो कितने बजे आए, तो उसने उत्तर दिया कि वो सब और सोनिया के दोनों भाई दो दिन के लिए कहीं बाहर जा रहें है, वो राखी भिजवा दे।

     पहली बार सुरीली के साथ ऐसा हुआ कि लोकल होते हुए भी वो भाई को राखी बांधने नहीं गई। भारी मन से उसने राखी कोरियर कर दी और गूगल से पैसे आ गए।

        इसी बीच सुरीली ने अपने कुछ गहने बेच कर और कुछ बैंक से लोन लेकर रहने योग्य मकान बना लिया, और क्योंकि अब बच्चे भी बड़े हो गए थे तो उसने आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना भी शुरू कर दिया था।

     गृहप्रवेश के समय भी अभि और सोनिया ने न आने का बहाना बना दिया था। पांच साल बीत गए। सुरीली अक्सर सोचती कि क्या भाई बहन का नाता इतना कच्चा है कि ऐसे टूट जाए। अगर वो लड़की न होकर लड़का होती तो भी तो जायदाद का बंटवारा होता। 

   अभी भी जितना भाई को मिला है, उसे तो उसका दसवां हिस्सा भी नहीं मिला होगा, फिर भी ऐसी नाराजगी। वो अभि की बड़ी बहन है, अपने बच्चों की तरह उसने उसे प्यार दिया है, कैसे बचपन में राखी के समय वो चार दिन पहले ही राखी की तैयारी करते और पंसद की राखी बंधवाता।

       दो दिन के बाद राखी थी। सुरीली ने राखी कोरियर कर दी थी। उसकी अपनी ननद नहीं थी। जेठ की बेटी ही उसके पति को राखी बांधती थी, परंतु उसने शाम को आना था। सुरीली उदास सी बैठी थी, तभी घंटी बजी तो मेड ने दरवाजा खोला।

    होगा कोई धोबी या सब्जी वाला, सुरीली ने सोचा,लेकिन ये क्या, अभि और सोनिया अपने दोनों बच्चों के साथ खड़े थे ।सुरीली को अपनी आंखों पर यकीनं न हुआ, वो तो जैसे पलके झपकाना भूल गई।

   “माफ कर दो दीदी, मुझसे बहुत गल्तियां हुई, राखी के जिन धागों को मैनें कच्चा समझा , वो कितने पक्के है, ये मेरी समझ में आ गया। भाई बहन का बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नहीं , वो तो दिलों का है, बचपन में जैसे मेरी गल्तियां माफ करती थी, वैसे ही कर दे मेरी मां समान बहना”

और अभि और सोनिया ने उसके पांव छू लिए। 

    चारों बच्चे जो कि अब बड़े हो चुके थे, इस मधुर मिलन को क्लिक कर रहे थे। सुरीली ने अभि को और तीनों बहनों ने भाई यानि कि अभि के बेटे को राखी बांधी तो पुरानी खुशियां लौट आई और सब बड़ो पर एक भेद और खुला और वो ये कि सब बच्चे तो अक्सर आपस में मिलते रहते थे। 

“ शैतान कहीं के”, अभि के मुंह से निकला।

सच में ही राखी, ये बंधन कच्चे धागों का नहीं, दिल से भाई बहन के पक्के रिश्तों का है ।

पाठकों, लड़कियों का मां बाप की जायदाद में हिस्सा लेना या न लेना एक मुद्दा बन रहा है। मेरे विचार से तो आज भी हमारे समाज में बहुत कम लड़किया हिस्सा लेती है। उनहें तो मायके से प्यार , सम्मान की चाहत ही रहती है। तीज त्यौहार पर मिलने वाले उपहारों में बचपन की यादें छुपी होती है। लेकिन दुर्भाग्यवश कभी किसी लड़की की मजबूरी हो तो उसको उसका हिस्सा देने में कोई बुराई नहीं, सरकारी कानून भी इसी लिए बना है। 

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

वाक्य- ये बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नहीं है।

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