“ये बंधन कच्चे धागों का नहीं है – समिता बढ़ियाल :

 Moral Stories in Hindi

माँ , इस बार आप राखी पर मामा के घर नहीं जाओगे , अभिषेक ने अपनी माँ सुशीला जी से कहा।  सुशीला जी बोलीं , बेटा अभि , ये रिश्ते बहुत नाज़ुक होते हैं , एक बार बिखर गए तो बिखर गए।  फिर जितना भी संभालो , नहीं संभलते।  अभिषेक माँ का हाथ पकड़ कर बोला : जानता हूँ माँ , पर जबरदस्ती का रिश्ता भी रिश्ता नहीं होता।  जहाँ जाने पर आपका अपमान हो , वहां नहीं जाना चाहिए , ये बात आपने ही सिखाई है।  वो लोग भी नहीं चाहते की आप वहां आएं।  आपको याद हे न पिछली बार क्या हुआ था ?  हाँ बेटा  याद है , सुशीला जी ने ठंडी आह छोड़ते हुए कहा। 

सुशीला जी, सुचित्रा और तिलक जी तीन भाई -बहन हैं। आर्थिक दृष्टि से सुचित्रा और तिलक जी बहुत बेहतर हैं , एक तरह से धनाढ्य हैं, वहीँ सुशीला जी की आर्थिक स्तिथि थोड़ी कमतर थी।  पति की आकस्मिक मृत्यु से परिवार को बड़ा झटका लगा था।  सुशीला जी ने बड़ी कठिनाई से बच्चों की परवरिश की थी।  अब तो कनिका की शादी हो गयी  थी , अभिषेक भी जॉब करने लगा था तो स्तिथि अब बेहतर होने लगी थी।  

पिछली बार सुशीला जी अभिषेक को लेकर राखी बांधने गयी थी।  चूँकि उनकी बेटी कनिका का ससुराल भी वहीँ था तो अभिषेक माँ  को मामा के घर छोड़ते हुए आगे चला गया। सुशीला के वहां पहुँचने पर बच्चों ने नमस्ते की और अपने -अपने कमरों में चले गए।  भाई -भाभी ने औपचारिकता निभाई।  तभी सुचित्रा की गाड़ी का हॉर्न बजा , तिलक जी के दोनों बच्चे दौड़कर बुआ का स्वागत

करने गए।  भाई -भाभी ने भी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। सुशीला जी सब महसूस कर रही थी पर कुछ बोली नहीं , जानती थी कि बच्चे इतने उत्साहित क्यों हैं , हों भी क्यों न सुचित्रा हर बार उनके लिए एक से बढ़कर एक उपहार लाती  थी।  सभी हॉल में बैठ गए।  पहले बच्चों ने राखी बाँधी , फिर

सुशीला जी ने भाई को राखी बाँधी।  सुशीला की  धागे वाली राखी देखते ही सबके मुँह टेढ़े हो गए।  सुशीला के राखी बांधने के बाद सुचित्रा जी ने अपनी राखी निकाली तो सारे देखते ही रह गए , चांदी का मोटा सा ब्रेसलेट था जिसके बीच में छोटा सा डायमंड भी लगा था। 

राखी को देखते ही तिलक जी बहुत खुश होगये।  देखा बुआ जी ये होती है राखी आप तो अभी भी सन सैंतालीस के धागे बांधती हो , कहकर ऋषभ (तिलक जी का बेटा ) ने सुशीला जी का मज़ाक उड़ाया।  तभी सुचित्रा ने उसे डांटा कि ऐसा नहीं कहते।  सुशीला जी की आँखों में आंसू आ गए , फिर भी खुद को संयमित करके बोली :बेटा , रक्षाबंधन प्यार व्यक्त करने का महज़ एक तरीका है।  और ये सिर्फ़ 

कच्चे धागे नहीं हैं बल्कि उसमें हमारा प्यार है , आशीर्वाद है, आत्मीयता है।  चांदी  की राखी से  प्यार ज्यादा प्रगाढ़ नहीं हो जायेगा और न ही कच्चे धागों से कम हो जाता है।  सुचित्रा ने भी सुशीला जी बातों का समर्थन किया।  थोड़ी देर बाद सुचित्रा खाना खाकर अपने घर चली गयी , वहीँ सुशीला अपने बेटे

अभिषेक का इंतज़ार करने लगी।  अभिषेक के आते ही वो भी अपने घर जाने के लिए तैयार हो गयीं।  गाड़ी में बैठते ही उन्हें याद आया कि भाई का दिया  उपहार तो हॉल  में ही रह गया।  उन्होंने अभिषेक को उसे लेने भेजा।  अभिषेक लेने गया तो हॉल से आती आवाजों ने उसके पैरों को वहीँ रोक दिया।  ऋषभ कह रह रहा था , बुआ इस बार भी सस्ती सी टी -शर्ट उठा के ले आयी , ऐसे कपड़े

कौन पहनता है? मुझे भी ऐसी साड़ी दे गए जैसी हम कामवालियों को दे देते हैं ; ये आवाज़ मामी की थी।  तिलक मामा जी बोले खुद तो एक दो हज़ार में काम ख़तम कर देती है , पर हमारे तो दस-बारह हज़ार का खर्चा हो जाता है।  इसके आगे सुनने की अभिषेक की हिम्मत नहीं हुई और ऐसे ही वापिस

लौट गया।  घर जाकर जब उसने सारी बात माँ को बताई तो उनका दिल ही टूट गया।  बहुत रोई।  

तभी इस बार अभिषेक ने उन्हें जाने से मना कर दिया।  सुशीला जी ने भी राखी कूरियर से भिजवा दी और फ़ोन करके ना आने का भी कह दिया।  दुःख तो इस बात का हुआ की भाई ने एक बार भी ना आने का कारण नहीं पूछा।  

राखी से एक दिन पहले उन्हें खबर मिली कि भाई हॉस्पिटल में एडमिट है।  सुशीला जी हॉस्पिटल पहुंची तो पता चला भाई की किडनी फेल हो गयी है। अब सबके टेस्ट हुए पर  ऋषभ और सुशीला जी के अलावा किसी की रिपोर्ट्स मैच नहीं हुई।  ऋषभ ने तो ये कहकर पल्ला झाड़ लिया की अभी तो मेरी जिंदगी शुरू हुई है ऐसे कैसे इतना बड़ा खतरा मोल लूँ।  

पर सुशीला जी से भाई की हालत देखि नहीं गयी , तो किडनी देने के लिए तैयार हो गयीं।  ऑपरेशन होने के बाद तिलक जी को तो कुछ घंटों में ही होश आ गया पर सुशीला जी को पूरे दस घंटे बाद होश आया।  

होश में आते ही तिलक अपने बिस्तर से उठकर धीरे -धीरे चलते हुए सुशीला जी के पास आया।  भाई को देखते ही सुशीला भावुक हो उठीं।  तभी तिलक ने अपनी कलाई आगे करी और कहा दीदी राखी बांधो ना। मैंने उस दिन अभिषेक को बातें सुनते देख लिया था फिर भी उसे जाने से नहीं रोका।  इस बार आपने आने से मना कर दिया तो भी मैंने आपको बुलाने की , मनाने की कोशिश नहीं की।  मुझे

माफ़ कर दो।  पैसों को रिश्ते से ज्यादा मूल्यवान समझ बैठा।   सुशीला जी ने प्यार से उसे राखी बाँधी , और बस इतना कहा इन सब बातों से मेरा प्यार तेरे लिए कम नहीं हो जाएगा।  ” ये बंधन कच्चे धागों का नहीं है पगले, बल्कि प्यार , विश्वास और त्याग का है। ” जिन आँखों में कभी सुशीला जी के लिए घृणा हुआ करती थी आज उनके त्याग से , उनके लिए सम्मान में भरी हुई और झुकी हुई थीं।  

  • लेखिका : समिता बढ़ियाल

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