“निया, क्या बात है? मम्मी रसोई में चाय बना रही हैं और तुम सो रही हो। क्या तबियत सही नहीं है।” मयंक ने पूछा।
“ठीक है।” निया ने जवाब दिया।
“फिर क्या बात है? अभी तक क्यों सो रही हो? सूरज ढलने के बाद सोना अच्छी बात नहीं है। घर भी बिखरा हुआ है। कई दिनों से मैं देख रहा हूँ, तुम उखड़ी-उखड़ी रहती हो। हर बात का उलटा जवाब देती हो। सोनू की पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं देती, जिससे वह पढ़ाई में पिछड़ रहा है। पहले तो तुम ऐसी न थी।”
“निया चुप रही। उसे चुप देख मयंक ने गुस्से से कहा, अब कुछ बोलोगी भी या नहीं। तंग आ गया मैं तुमसे। पता नहीं क्या हो गया है तुम्हें।”
“तंग तो मैं आ गई हूँ।”
“क्या कहना चाहती हो? क्या परेशानी है तुम्हें?”
“मेरी भी कुछ इच्छाएँ हैं। सब अधूरी रह गई। शादी के समय क्या थी, क्या हो गई हूँ। मेरी हालत तो दासी से भी बदतर है। श्रेया को देखो, कैसे महारानी की तरह जीवन बिता रही है।
जिस चीज़ पर वह हाथ रखती है, मिल जाती है। पता है, वो अपनी शादी की सालगिरह हो या जन्मदिन हमेशा विदेश में ही मनाती है। अभी पिछले महीने भी वह स्वीडन घूमने गई थी। उनका इकलौता बेटा कुणाल भारत के सबसे महँगे स्कूल में पढ़ रहा है। और तो और अपनी कोई भी ड्रेस वह दुबारा नहीं पहनती। एक मैं हूँ, जिसे शॉपिंग किए महीनों बीत जाते हैं। पिछले महीने हमारी भी शादी की सालगिरह थी। आप मुझे कहाँ ले गए थे याद है न! ईर्ष्या होती है, उससे, कैसी अच्छी किस्मत है उसकी।”
“अच्छा तो यह बात है। अपनी सहेली की शान-शौकत देखकर तुममें यह बदलाव आया है। निया, जितनी मेरी हैसियत है, उस हिसाब से मैं करता ही हूँ। वैसे भी हमेशा अपने नीचे वालों को देखना चाहिए न कि ऊपर वालों को। जितना हमारे पास है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। दूसरों की उन्नति देख ईर्ष्या करने से हम अपना ही नुकसान कर देते हैं। जितनी चादर होती है, उतने ही पैर पसारने चाहिए। अब जल्दी से उठो, साथ बैठकर चाय पीते हैं।”
“मुझे नहीं पीनी चाय वाय।”
“साथ बैठ तो सकती हो, मैं नीचे इंतजार कर रहा हूँ। मयंक ने कहा और नीचे चला गया।”
निया तैयार होकर नीचे तो चली गई पर उसके दिल दिमाग पर श्रेया और उसकी समृद्धि ही छाई हुई थी। इस कारण उसे अब घर के काम बोझ लगने लगे थे। इस कारण उसने घर के कामों के लिए किसी को पूरे समय के लिए रख लिया। अपना अधिकतर समय या तो मोबाइल पर या श्रेया के साथ शॉपिंग में बिताने लगी। इससे घर का बजट बिगड़ गया। जो घर पहले सबकी हँसी से गुलज़ार रहता था, उसमें उदासी छा गई। मयंक और निया के रिश्तों में भी दूरियाँ बढ़ने लगी।
खर्चे बढ़ने के कारण एक तरफ़ मयंक जहांँ ओवरटाइम करने के कारण देर से घर आने लगा उधर सोनू के पढ़ाई में पिछड़ने के कारण स्कूल से शिकायतें आने लगी।
तीन महीने बीत गए। श्रेया का जन्मदिन आया। उसे सरप्राइस देने के लिए निया उसके घर पहुँच गई। देखा, श्रेया रो रही है। उसके शरीर पर चोटों के निशान है। पूछने पर पता चला, “भले उसके पास पैसे की कोई कमी नहीं है। घर का काम करने के लिए नौकरों की लाइन है पर पति के दो मीठे बोल सुनने को तरस जाती है। उसके कई एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर भी हैं। ज़रा-ज़रा सी बात पर हाथ उठाना उसकी आदत है। आज तुमने देख तो लिया, उसने मेरे जन्मदिन पर क्या तोहफा दिया है।”
“इतना क्यों सहन कर रही हो, उसे छोड़ क्यों नहीं देती!” निया ने कहा।
“तलाकशुदा औरत के साथ लोग अच्छा व्यवहार नहीं करते। लोगों की अनर्गल बातें मैं नहीं सुन सकती। फिर बाहर के भेड़ियों से बचने का यही रास्ता है।”
“पर श्रेया कुणाल भी तो यह देखता होगा। उसके मन पर तो इसका बुरा असर पड़ेगा।”
“हांँ, इसी कारण मैंने फैसला लिया है, उसे पढ़ने के लिए बाहर भेज दूँ, ताकि घर की किच-किच से वह दूर रहे। तुम्हारी किस्मत कितनी अच्छी है। मयंक तुम्हारा कितना ध्यान रखते हैं। भले तुम्हारे पास मेरी जैसी सुविधाएँ नहीं है पर तुमसे दिल से प्यार करने वाला पति और सासू माँ तो है।”
यह सुन निया की आँखें भर आई कि नादानी में उसने क्या कर दिया। उसे अपनी नासमझी पर प्रायश्चित हो रहा था कि वह वैभव को सुख समझ बैठी थी।
अर्चना कोहली ‘अर्चि’ (नोएडा)