“तो मेरे लाख मना करने के बावजूद तुमने अनन्या को घर से निकालने का फैसला ले ही लिया। क्या मेरी और माँ की इच्छा की कोई अहमियत नहीं।” प्रशांत ने गुस्से से काव्या से कहा।
“मैं उसे घर से नहीं निकाल रही, सिर्फ छात्रावास भेज रही हूँ ताकि उसका भविष्य उज्ज्वल हो सके। बेकार की बातों में, टीवी में और सोशल मीडिया में वह अपना समय बरबाद न कर सके।” पैकिंग करते हुए काव्या ने शांति से कहा।
“मैं तुम्हें यह नहीं करने दूँगा। आखिर उसका पिता हूँ। मेरी फूल-सी बच्ची भला वहाँ कैसे रह पाएगी।”
“आप पिता हैं तो मैं भी उसकी माँ हूँ, कोई दुश्मन नहीं। आपके और माँजी के लाड़-प्यार का ही नतीजा है, जो आज वह गलत रास्ते में जा रही है। बड़े लोगों की जिम्मेदारी होती है, बच्चों को गलत रास्ते से जाने से बचाना न कि उसे बढ़ावा देना।”
“क्या गारंटी है, घर से बाहर जाकर वह सुधर जाएगी, बिगड़ भी तो सकती है। जिस बेटी को तुमने नौ महीने कोख में रखा, उसके लिए इतनी कठोरता।”
“कभी-कभी बच्चों की भलाई के लिए कठोर कदम उठाने पड़ते हैं, आप चिंता मत करें। सब अच्छा ही होगा। वैसे भी घर से बाहर जाकर बच्चे आत्मनिर्भर बन जाते हैं, किसी काम पर दूसरों पर निर्भर नहीं रहते।”
“पर काव्या•••
“पर वर कुछ नहीं, मेरा फैसला अटल है। वैसे भी उसकी उम्र पढ़ने-लिखने की है, क्लब जाने की, सोशल मीडिया पर रील बनाने की या बेकार में घूमने- फिरने की नहीं, पर आपके और माँजी की शह से वह मेरी बात एक कान से सुनती है, दूसरे से निकाल देती है।”
यह उम्र ही है मौज-मस्ती करने की। अधिक सख्ती करने से बच्चे डरकर सच बात नहीं बताते। झूठ बोलने लगते हैं। उनके साथ प्यार का व्यवहार करना चाहिए।”
“पर गलतियों पर परदा डालने से वह बिगड़ जाते हैं प्रशांत।”
“तुमसे तो बहस करना ही बेकार है। अभी उसका बचपना है। बेकार ही उसके पीछे पड़ी रहती हो।”
“मैं उसे गलत रास्ते पर जाते नहीं देख सकती।”
“कहना क्या चाहती हो काव्या?क्या हम अनन्या को गलत रास्ता दिखा रहे हैं। तुम ही सही रास्ता बता सकती हो।”
“कहना तो नहीं चाहती थी, पर बताना पड़ेगा। कुछ दिन पहले मुझे अनन्या के कमरे से सिगरेट के टुकड़े और अश्लील किताबें मिली। रात को देर तक पता नहीं किससे बातें करती है। मैंने उससे पूछा तो उसने उलटा जवाब दिया, इसलिए उसे सुधारने का यही तरीका सूझा। वैसे भी इस छात्रावास का बहुत नाम सुना है, यह अनुशासन और पढ़ाई के मामले में बहुत कड़ा है।”
“मेरी बेटी ऐसा नहीं कर सकती।”
“तो तुम्हीं पूछ लेना। मेरी बात पर तो आपको विश्वास नहीं होगा।”
“नहीं-नहीं, मेरे कहने का वो मतलब नहीं था। तुम झूठ क्यों कहोगी। मुझे माफ कर दो। बेटी के मोह में मैं सही-गलत नहीं सोच सका। तुम्हारे इस फैसले में मैं तुम्हारे साथ हूँ, पर मैं एक बार अनन्या से बात करना चाहता हूँ कहाँ है वो।”
“किसी सहेली की जन्मदिन पार्टी में जाने का माँजी को बता रही थी। आजकल मुझे तो कुछ बताती नहीं।”
“अभी बात करके बुलाता हूँ।”
“अनन्या किधर हो तुम!” प्रशांत ने फोन करके कहा।
“सहेली की जन्मदिन पार्टी में।”
“जल्दी से घर आओ। कुछ काम है।” कहकर प्रशांत ने फोन काट दिया।
कुछ देर बाद•••
“क्या हुआ पिता जी?”
“सुना है, आजकल तुम गंदी किताबें पढ़ने लगी हो? सिगरेट भी पीती हो। क्या यह सच है!”
“जी वो वो•••हकलाते हुए अनन्या ने कहा।
“मुझसे गलती हो गई, जो तुम्हारी हर गलती को बचपना कहा, इसलिए मैंने और तेरी माँ ने निर्णय किया है, तुझे होस्टल भेजने का।”
आप ऐसा कैसे कर सकते हैं पिता जी?
क्यों? क्या हर फैसला तुमसे पूछकर लेना होगा। आखिर हम तुम्हारे माता-पिता हैं।”
“दादी ओ दादी।” अनन्या ने चिल्लाते हुए कहा।
“क्या हुआ मेरी राजकुमारी? इतनी जल्दी पार्टी से आ गई! चिल्ला क्यों रही हो? किसी ने कुछ कहा क्या? जरूर तेरी माँ ने ही कहा होगा, वही तेरे पीछे पड़ी रहती है।” दादी शांति ने अंदर आते हुए कहा।
“मम्मी-पापा मुझे होस्टल भेज रहे हैं, आप ही समझाओ न। मैं नहीं जाऊँगी।”
“तो बेटा, तू भी बहू की बातों में आ गया। मैं अपनी पोती को नहीं जाने दूँगी।”
“अनन्या तो जाएगी,चाहे आपको अच्छा लगे या बुरा माँ। क्या पता है आपको, अनन्या सिगरेट पीती है, गंदी किताबें पढ़ती है।”
यह तू क्या कह रहा है प्रशांत। मुझे विश्वास नहीं। किसने बताया तुझे? बहू ने।
आपकी बहू, इसकी माँ भी लगती है। विश्वास नहीं तो अपनी पोती से ही पूछ लीजिए।”
“क्या प्रशांत सच कह रहा है, अनु बेटी।”
“दादी वो वो•••” हकलाते हुए
हमारे प्यार का तुमने यह फल दिया। अब जो प्रशांत और बहू का फैसला वही मेरा। बहू मुझे माफ कर दे। अनु को बिगाड़ने में मेरा भी हाथ है।”
“आप बड़ी हैं, माफी मत माँगिए। गलती तो इंसान से होती है।”
“तुम्हें जो ठीक लगे। मुझे लगता था, तुम अनन्या के साथ ज्यादा सख्ती कर रही हो। कब जाना है।”
“बस तैयार होकर निकलते हैं। और अनन्या तुम भी तैयार हो जाओ और फोन मुझे दो। मैं नहीं चाहती, तुम्हारी किसी भी सहेली को पता चले, तुम कहाँ जा रही हो।”
“मम्मा-पापा, मुझे नहीं जाना।”
“जाना तो पड़ेगा।” काव्या ने कहा।
“ठीक है। आप मुझसे प्यार ही नहीं करते, इसलिए मुझे घर से निकाल रहे हैं।”
जो समझना है समझो”। हमारा निर्णय अटल है, प्रशांत ने कहा।
सिर्फ एक मौका दे दो। मैं अच्छी बच्ची बनकर दिखाऊँगी। मुझे मत भेजो।”
प्रशांत क्या कहते हो? मौका देना चाहिए या नहीं।
“जो तुम्हें ठीक लगे। आखिर उसकी माँ हो।”
“माँजी आप क्या सोचती हैं, क्या मौका देना चाहिए।”
“यह फैसला तुम पर है, मौका देना है या नहीं।”
“ठीक है अनन्या, पर सिर्फ दो महीने। तुम्हें पढ़ाई पर ध्यान देना होगा। हर बुरी बात छोड़नी होगी। मंजूर है।
“सब मंजूर है।”
दो महीने बाद जैसा अनन्या ने वादा किया था, उसे निभाया। इस प्रकार एक कड़े कदम से अनन्या का भविष्य बन गया।
अर्चना कोहली ‘अर्चि’ (नोएडा)