कठोर कदम – मधु वशिष्ठ

अगर तुम चाहते हो तुम्हारा तलाक तो हो ही जाएगा परंतु उसके बाद में तुम लोगों के लिए केवल एक भटकाव का ही रास्ता बचेगा। हमारे पूरे खानदान में कभी ऐसा नहीं हुआ बाबूजी जोरों से चिल्ला रहे थे। गुस्साते हुए उन्होंने अम्मा को मान्यता को कमरे में ले जाने के लिए बोला।

   आइए आपको उनके परिवार से मिलाएं। रामप्रसाद जी गांव के गणमान्य व्यक्ति थे। उनके तीनों बेटे शहरों में अच्छे पदों पर कार्य करते थे और वहां ही रहने लगे थे। गांव की बहुत सी जमीन का तीनों बेटों को हिस्सा मिलने के बाद भी गांव में बाबूजी के पास बहुत बड़ी हवेली और आसपास की कुछ दुकानों का किराया आता था।

वह अम्मा और सेवक रामू के साथ अकेले ही गांव में रहते थे। अमन उनके बड़े बेटे रामेश्वर का बेटा और उनका पोता था। रामेश्वर की कुछ सालों पहले ही डेंगू के कारण अस्पताल में मृत्यु हो गई थी तो बाबूजी रामेश्वर के बेटे अमन को कुछ ज्यादा ही प्यार और सहयोग दिया करते थे।

कभी-कभी वह अपने बेटों से मिलने उनके शहरों में भी जाया करते थे परंतु दिल्ली में बेटे रामेश्वर जी के घर उनका जाना अधिक ही होता था। अमन की बहन स्मिता का विवाह भी रामप्रसाद जी ने बहुत अच्छे से संपन्न करवाया था।

अमन को भी विदेश में आगे पढ़ाने के लिए बाबूजी ने काफी पैसे दिए थे। उनके और बेटे बहुएं जो कि क्रमशः बैंगलोर और अहमदाबाद में रहते थे,वो भी बाबूजी का बहुत आदर करते थे। 

       अमन की बहुत अच्छे पैकेज के साथ मुंबई में नौकरी लग गई थी। दिल्ली में भी इनका घर बहुत बड़ा था और उसकी बहन स्मिता विवाह के पश्चात भी उनके घर की ही दूसरी मंजिल में रहती थी इससे अमन को मां की चिंता नहीं होती थी। 

         गांव के ही बाबूजी के दोस्त हरी प्रसाद जी की पोती मान्यता, जो कि पुणे में रहती थी, के साथ बाबूजी ने ही अमन का विवाह करवा दिया था। अमन क्योंकि विदेश से पढ़कर आया था और अब बहुत अच्छे पैकेज पर भी था तो  सीधी सादी ग्रेजुएट मान्यता  अमन को अपने अनुरूप नहीं लगती थी। मुंबई की रात की कॉरपोरेट

पार्टियों में जाना , दोस्ती यारी यही उसकी दुनिया थी। धीरे-धीरे मान्यता ने भी खुद को अमन के अनुकूल बनाने की चेष्टा करी और वह भी अमन के रंग में ही रंगती जा रही थी। पार्टी, यार ,दोस्त, गाड़ी,और थोड़ी-थोड़ी बीयर पीने से की गई शुरुआत अब मान्यता की आदत में तब्दील हो चुकी थी। पार्टियों की तो वह जान बन चुकी थी।

अमन भी मान्यता के बदले रूप को देखकर खुश था। गांव में तो छोड़ो अमन को अपनी मां के पास दिल्ली गए हुए ही जाने कितना समय बीत गया था।

     सब कुछ सही चलता रहता अगर एक दिन वह मनहूस मेल नहीं आती। रिसेशन के कारण कंपनी में हुई छंटनी से उसकी भी नौकरी चली गई। अब जब धरातल पर कदम रखे तो पाया कि उन्होंने बचत तो लगभग ना के ही बराबर की थी

इसके अतिरिक्त गाड़ी का और फ्लैट  का और भी कई लोन तो सिर पर ही चढ़े हुए थे।  हर महीने पार्टी के साथ जो कमेटी डाली हुई थी उनके पैसे तो देने जरूरी ही थे। अब जब धरातल पर आए तो पाया कि अमन अब एटीएम नहीं रह गया था और मान्यता महंगी ब्यूटी पार्लर और ब्यूटी ट्रीटमेंट की अभाव में अब वह मॉडल सी सुंदर नहीं रह गई थी। 

           फ्लैट बेचकर दिल्ली जाने के अतिरिक्त और कोई रास्ता भी तो नहीं बचा था। ऐसा ही किया गया बहुत कोशिश करने पर भी इस रिसेशन के टाइम में कोई नई नौकरी उस पैकेज की मिल नहीं रही थी और कम पर वह करना नहीं चाह रहा था। फ्लैट और कुछ सामान बेचकर जब वापस दिल्ली गए तो मां को तो बहुत अच्छा लगा। 

       दिल्ली में जाने पर उनके रहने सहने हर तरह के ढंग ही बदल चुके थे अवसाद दोनों पर हावी हो चुका था जो कि कभी भी गुस्से का रौद्र रूप ले लेता था। मां हैरान थी कि घर में शराब की लत तो किसी को भी नहीं थी। अपनी बहू को इस रूप में तो वह स्वीकार नहीं कर पा रही थी और एक दिन गुस्से में मान्यता घर छोड़कर चली गई थी।

उसके बाद  मां के कोशिश करने के बावजूद भी अमन अवसाद से निकल कर अपने जीवन को दोबारा से आरंभ करने के लिए तैयार नहीं था।ऊपर रहने वाली बहन स्मिता ने भी अमन को समझाने की बहुत कोशिश करी लेकिन जब वह सुनता ही नहीं था अभी कुछ दिन पहले ही अमन के पास मान्यता द्वारा तलाक का नोटिस आया। यह खबरें शायद बाबूजी को भी पता चल गई थी वह भी अम्मा के साथ दिल्ली आ गए थे ।

      दूसरे ही दिन हरी प्रसाद जी भी मान्यता को लेकर घर पर आ गए थे। इससे पहले कि मान्यता और अमन कुछ भी कहते बाबूजी ने हरि प्रसाद जी के सामने अपना निर्णय सुना दिया। उन्होंने अमन से कहा कि जीवन में सफलता और

असफलता दोनों ही आती है और उनमें सम रहना ही जीवन में आने का एकमात्र उद्देश्य है जो कि जीवन तुम्हें सिखाना चाहता है। पुरुष एटीएम नहीं होता और नारी केवल सुंदरता की प्रतिमूर्ति नहीं होती। घरों के अपने नियम होते हैं। हमारे घरों में सात जन्म का बंधन होता है इसलिए तलाक नहीं होते।

    हरिप्रसाद जी भी मान्यता को घर में छोड़ते हुए बोले मैं अपनी पोती के पूर्णतया साथ होता अगर मुझे पता लगता कि इस पर अत्याचार हुआ है। ऐसी लड़की जो मूल्य न समझे उसकी मेरे घर में कोई आवश्यकता नहीं है कुछ ऐसा ही कठोर कदम बाबूजी ने भी उठाने का निश्चय ले लिया था उन्होंने भी गुस्से में अमन से कहा कि तुम्हारी मां मेरी बहू है और अब यही मेरा बेटा भी है  तुमको मैं इन्हें तंग करने का हक नहीं देता।  अब तुम भी यहां नहीं रह सकते। 

        बाबूजी का कहना तो सभी मानते थे लेकिन अब के समझा बुझा कर बाबूजी दिल्ली से अमन और मान्यता को अपने साथ गांव ले गए। उसके पश्चात उन्होंने अपनी दुकानों में गांव में ही पहला आई.टी सेंटर खुलवाया और अमन और मान्यता की मेहनत से आज गांव में भी बहुत से बच्चे आईटी की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और अब वह दोनों परिवार और रिश्तो की अहमियत भी समझ चुके हैं ।

आज गांव मे सब उनका बहुत सम्मान करते हैं । रिसेशन के बाद अमन के पास फिर अच्छे पैकेज वाली नौकरी का ऑफर तो आया है लेकिन वे दोनों अब उस चकाचौंध की दुनिया में वापस  नहीं जाना चाहते। गांव में ही सब की सेवा कर उन्होंने सच्ची खुशी प्राप्त कर ली थी।

मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।

कठोर कदम शीर्षक की

 प्रतियोगिता के अंतर्गत लिखी कहानी

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