कठोर कदम – अर्चना झा

 लगभग आठ साल की लता खाने की थाली को गौर से देखी हुई बोली अरे मां इसमें दही कहां है ,मां ने कहा बेटा आज मौसम ठंडा है ना ,इसलिए शायद दही नहीं जमी, तुम अभी खा लो शाम को फिर से दही खा लेना, लता पाव पटकते हुए

दालान की तरफ चली गई जहां उसके पिताजी बैठे हुए थे वह पिताजी से जाकर बोली पिताजी आज खाने में दही नहीं है मैं खाना नहीं खाऊंगी पिताजी हंसने लगे, बोले ठीक है आओ मेरे पास बैठो , तुम्हारी मां कुछ ना कुछ इंतजाम कर ही लेगी तुम्हारे लिए,

इधर मां चाचा के यहां गई और बोली अरे चुन्नू की मां तुम्हारे पास थोड़ी दही होगी क्या ,लता तो खाना ही नहीं खाती है बिना दही के ,पता नहीं उसका ससुराल में क्या होगा ,चुन्नू की मां ने खुशी-खुशी एक कटोरी दही देते हुए कहा अरे दीदी तुम्हें तो पता ही है वह नहीं खाती बिना दही के तो उसको भेज

दिया करो ना अगर कभी दही खत्म हो जाए तो इधर लता अपने पिताजी से कह रही थी कि पिताजी आप कोलकाता क्यों चले जाते हैं आप यही क्यों नहीं रहते हमारे पास पिताजी ने कहा बेटा मेरी नौकरी वही है ना यह जो तुम्हें खाने में रोज दही चाहिए और यह सुंदर-सुंदर कपड़े यह कहां से आएंगे बोलो, लता बोली अरे पिताजी सुंदर कपड़ों से याद आया मेरी शादी होगी तो क्या मुझे भी सुंदर कपड़े

गहने मिलेंगे पिताजी ने कहा हां लता अच्छा यह बताओ तुम्हें कैसा लड़का चाहिए,उसे रास्ते पर एक आदमी चलता हुआ दिखाई दिया जो बहुत ही सुंदर था उसने उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा पिताजी मेरे लिए बिल्कुल ऐसा लड़का ढूंढ के लाना इतना ही सुंदर ,लता खुद भी बहुत सुंदर थी उसके

पिताजी ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा ,कि हां जरूर मैं तुम्हारे लिए इससे भी सुंदर लड़का लेकर आऊंगा।

पर होने को कुछ और ही मंजूर था उसके पिताजी की मृत्यु हो गई जब वो बस 9 साल की थी और 13वर्ष की होते होते उसके भाई ने जो कि स्वयं 16 वर्ष के थे अपनी बहन की शादी एक अच्छे परिवार में करवा दी लेकिन लड़का उतना सुंदर नहीं था जितना उसने सोचा था पर उसने कोई शिकायत नहीं की, 

13 साल की लति यहां आते ही एक बहू बन गई जिसे खाने में दही तो क्या दाल सब्जी भी बची हुई ही मिलती थी, वह एक बहुत बड़ा परिवार था जहां बहू को सबसे अंत में खाना दिया जाता था, छोटी मोटी दिक्कतों से जूझते हुए धीरे-धीरे जब वह 18

साल की हुई तब उसने एक बेटी को जन्म दिया एक बेटी उसके बाद दूसरी बेटी और फिर तीसरी बेटी जैसे बेटी नहीं उलनों का पहाड़ उसकी जिंदगी में आ गया हो दुनिया के ताने ससुराल वालों के ताने बेटा न जनने की , वो अपनी मां से बात करके अपना मन हल्का कर लेती थी पर उसकी मां भी 60 वर्ष की उम्र में कैंसर से ग्रसित हो कर संसार से विदा हो गयी।

पर चौथी बार उसने बेटे को जन्म दिया एक सुंदर प्यारा बेटा जिसे उसने सारा लाड प्यार दिया सबसे ज्यादा लाड प्यार अपनी तीनों बेटियों से भी ज्यादा प्यार कर उसे और उसको अच्छी शिक्षा दी उसे पढ़ा लिखा कर इंजीनियर बनाया वह अपने पैरों पर जब खड़ा हो गया तो उसके लिए एक सुंदर बहू लाकर उसकी शादी कराई, 

लता की बहू लता जैसी नहीं थी वह मिलनसार स्वभाव की नहीं थी वह नहीं चाहती थी कि उसकी सास उसकी ननद  उसके साथ रहे वह हमेशा अपने पति के कान भारती रहती थी अंत में लता ने तंग आकर गांव में रहने का फैसला किया और वह अपने पति के साथ और अपनी तीनों बेटियों के साथ गांव चली आई और वहीं पर रहने लगी अपनी

तीनों बेटियों की शादी अच्छे परिवार में करवाई बेटा और बहू कोलकाता में रहते थे धीरे-धीरे बेटे को शराब की लत लग गई और वह नौकरी छोड़कर घर में बैठ गया उसके बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्चा सब लता के पति ने उठाया पर जब उसके पति बीमार पड़े तब किसी ने उनकी मदद नहीं की,

उसकी बेटियों ने ही उनका इलाज कराया सारे खर्चे उठाए बेटा बहू ने अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं निभाई धीरे-धीरे उसकी पोता पोती भी अपने पैरों पर खड़े हो गए लता के पति ने सबको पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया की वह अपने पैरों पर खड़े हो सके आज लता के पति की तबीयत बहुत खराब है पर उसके बच्चे उसका बेटा जिसके लिए उसने इतनी मन्नते मांग कर उसे जन्म दिया

अब वह बस एक शराबी की तरह रहता है उसकी पत्नी ने भी उसे छोड़ दिया और उसकी मां-बाप के पास गांव भेज दिया गांव आते ही उसकी सनक और बढ़ गई वह अपने मां-बाप को ही गाली देने लगा गांव वालों से भी शराब पीकर गाली गलौज करता था अपने पिताजी को आए दिन जान से मारने की धमकी देता था वह चाहता था कि पिताजी मर जाए तो सारी संपत्ति उसके नाम हो जाएगी ऐसे में फिर

लता को एक बार फिर अपनी बेटियों का सहारा लेना पड़ा वह अपनी बेटी के पास आकर अपने पति का इलाज करती रही और इस बार उसने यह अंतिम निर्णय लिया कि इस बेटे के मुंह में जिसने अपनी बेटियों पर अच्छे से ध्यान नहीं दिया उनको अच्छी पढ़ाई लिखाई नहीं कराई उनके जल्दी शादी कर दी आज वही बेटियां अपने माता-पिता की देखभाल कर रही हैं तो ऐसे पुत्र का क्या फायदा जिसने घर

परिवार की जिम्मेदारियां भूल कर अपने मां-बाप पर बोझ बनकर बैठा है और ऊपर से गालियां भी देता है लता ने फैसला किया कि अब वह अपने बेटे से कोई संबंध नहीं रखेगी और वह अपनी सारी संपत्ति गांव सब छोड़कर अपनी बेटी के पास आ गई हमेशा के लिए।

आज लता 75 वर्ष की है और उसे लगता है कि क्यों हमेशा दूसरों के दिखाए रास्तों पर चलती रही , क्यों कभी अपने मन की नहीं की बेटे के मोह में क्यों इतनी अंधी हो गई कि बेटियों को दरकिनार कर दिया,आज वही उसका ख्याल रखती हैं, उसने अपनी सारी संपत्ति अपनी बेटियों के नाम करनी चाही तो सबने लेने से मना कर दिया,वो उनपर बोझ नहीं बनना चाहती थी, इसलिए उसने सारी संपत्ति एक वृद्धा आश्रम चलाने वाली संस्था को डोनेट कर दिया , और अपने पति के साथ किसी को बिना बताए हमेशा के लिए वहां रहने चली गई।।

अर्चना झा ✍🏻

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