मुझे पड़ोस में रहने वाली मिसेज शर्मा को पूजा करते हुए देखना बेहद अच्छा लगता था। वो अपने आंगन में बने हुए तुलसी चौरे के सामने बैठ कर घंटों पूजा करती थीं।
उनकी तुलसी भी बहुत घनी थी और उसने बड़ा गोल घेरा बना लिया था। गोरी चिट्ठी, गोल – मटोल ध्यानमग्न मिसेज शर्मा की वह छवि बड़ी ही मनमोहक होती थी। मेरा यह नियम सा हो गया था कि सुबह बालकनी में जाते ही एक नज़र उनके आंगन पर चली ही जाती।
दो बच्चे थे उनके जो पढ़ाई में बहुत ही होशियार थे। एक दिन वो बड़ी खुश थीं, मुझे देख कर बोलीं.. नवीन की जॉब लग गई है उसकी कंपनी वाले उसे यू एस ए भेज रहे हैं। उनकी आंखें खुशी से चमक रही थीं।
थोड़े दिन बाद उनकी बेटी भी आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चली गई अब सिर्फ वो दोनों पति – पत्नी ही रह गए थे। एक दिन रात के दो बजे उनका फोन आया वो बहुत घबराई हुई थीं। शर्मा जी को अटैक आया था और हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही उनकी सांसें रुक गई थीं।
प्यारी सी मिसेज शर्मा इस दुःख से एकदम कुम्हला सी गई थीं अब वह तुलसी चौरे के पास भी नहीं दिखती थीं। मुझे न जाने क्यों उनसे बहुत लगाव हो गया था। बच्चों के वापस जाने का समय हो गया था। वो उनको अकेले छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे। बड़े भारी मन से आंखों में आंसू भरे उस घर की मीठी यादों को आंचल में समेटे वो जब जाने लगीं तो बोलीं… मेरे घर का ध्यान रखना निधि… जाने कब इस घर का मुंह देख पाऊंगी अब..
धीरे – धीरे करके कई साल गुजर गए पर न वो ही आ पाईं और न ही कोई बच्चा आया।
तुलसी सूख गई थी और आंगन में खरपतवार ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे । जाने कहां से एक पीपल का पेड़ भी उग आया था और उस पर जंगली बेलें खूब फलने – फूलने लगीं। कुल मिलाकर उसका वीराना डराने वाला हो चुका था।
फिर एक दिन उस घर की छत पर कुछ लोग दिखाई दिए.. पूछने पर पता चला कि उस मकान को किसी ने खरीद लिया था। इस बात से सबसे ज्यादा खुशी मुझे ही हुई थी कि चलो एक बार फिर उस वीराने में बहार आ जायेगी, साफ – सफाई का काम जोरों पर था और उसके साथ ही मेरा इंतजार भी पूरा होने वाला था।
आखिर एक दिन एक ट्रक सामान ले कर आ ही गया मैं बालकनी में से उनको देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाई। मन यह जानने के लिए उत्सुक था कि उस परिवार में कितने सदस्य हैं और वो कैसे हैं लेकिन यह क्या??? सामान उतारने से पहले जब घर के सदस्यों ने घर में प्रवेश किया तो दो सदस्यों को व्हील चेयर पर लाया गया। एक युवक करीब अठारह साल का उनके साथ आ रहा था।
अरे ये अंकल- आंटी तो चलकर आ रहे हैं फिर ये कौन हैं जो व्हील चेयर पर आए हैं। ध्यान से देखा तो एक युवक था जिसकी उम्र पच्चीस साल के लगभग होगी और दूसरी युवती थी जो बीस – बाईस साल की होगी। उन्हें देखकर ख्याल आया कि शायद किसी दुर्घटना में वो चोटिल हो गए हों पर उनके बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ गई थी।
एक दिन मेड ने बताया कि उस घर में जो पड़ोसी आए हैं उनके तीन बच्चे हैं दोनों बड़े बच्चे जन्मजात दिव्यांग हैं। न तो उनका शरीर काम करता है और ना ही दिमाग।
मेरा मन उनके माता – पिता के लिए करुणा से भर उठा। वो बेचारे कैसे करते होंगे इतने बड़े बच्चों की देखभाल।
सर्दियों में कई बार वो उन्हें आंगन में धूप में लिटा देती थीं। मैंने मिसेज अग्रवाल को कभी परेशान नहीं देखा था। भले ही वे औरों के लिए बोझ हो सकते थे लेकिन उनके तो दिल का टुकड़ा थे वो। संतान कैसी भी हो लेकिन मां – बाप उसके लिए हर संभव कोशिश करते हैं कि उसे कोई तकलीफ न हो।
पर मैंने उनके छोटे बेटे आरव को कभी भी उनकी मदद करते नहीं देखा था। वह कभी उनके पास बैठता भी नहीं था। इसी तरह चार साल गुजर गए एक दिन पता चला कि एक एक्सीडेंट में मिस्टर और मिसेज अग्रवाल दोनों इस दुनियां को छोड़ गए। एक्सीडेंट इतना भयानक था कि उन्हें हॉस्पिटल ले जाने की भी मोहलत नहीं मिली।
मेरा मन उनके दुःख से ज्यादा उन बच्चों के लिए चिंतित था। तेरहवीं होते ही आरव के साथ दो – तीन अधिकारी आए। उसने पड़ोस के कुछ लोगों को भी बुला लिया था उनमें मैं और मेरे पति भी शामिल थे।
हम सबको संबोधित करते हुए वह बोला.. मैं अपने भाई – बहन का बोझ नहीं उठा सकता। उनकी सेवा करना मेरे बस की बात नहीं है इसीलिए मैंने शासन से मदद मांगी है कि वे उन्हें यहां से ले जाएं और जहां चाहें उनकी व्यवस्था करें.. बस मुझे इस आफत से छुटकारा चाहिए।
यह सुनकर सब सन्न रह गए कितना #कठोर कदम उठाया है इसने। कुछ लोगों ने कहा भी कि तुम उनके लिए नौकर रख सकते हो आखिर वह भी तो उनके वारिस हैं और इतनी संपत्ति तो वो छोड़ ही गए हैं कि इनकी देखभाल की जा सके इतने पत्थर दिल कैसे हो सकते हो तुम।
इस पर वह बेशर्मी से बोला.. अगर आपको ज्यादा हमदर्दी है तो आप अपने घर ले जाएं इन्हें पर मैं नहीं रखूंगा।
सुनकर सबने भारी मन से अपने घर की राह पकड़ ली और वे कर भी क्या सकते थे.. दूसरे के घर का मामला था।
जिस आंगन और तुलसी चौरे ने मेरे मन को बांध रखा था जिसे देख कर मेरी सुबह शुरू होती थी और दिल को सुकून मिलता था।आज वही आंगन मन को नफरत से भर देता है उसकी तरफ देखने का भी मन नहीं करता।
इंसान के विचार जगह को कितना पवित्र और कितना दूषित कर देते हैं यह फर्क स्पष्ट महसूस हो रहा था मुझे।
#कठोर कदम
कमलेश राणा
ग्वालियर