ऑंसू पीकर रह जाना – डाॅ संजु झा :

Moral Stories in Hindi

 अमिता बचपन से ही अपनी विमाता के दुर्व्यवहार के कारण मन-ही-मन ऑंसू पीकर रह जाती। सचमुच जिन बच्चों की माऍं बचपन में गुजर जाती हैं,उन बच्चों का मन बहुत कमजोर हो जाता है।वे छोटी-छोटी गलत बातों का भी विद्रोह नहीं कर पाते हैं,बस ऑंसू पीकर ही रह जाते हैं।अमिता के साथ

भी ऐसा ही हो रहा था।उसकी विमाता तो अपने बच्चों का विशेष ख्याल रखती थी, परन्तु अमिता के साथ उपेक्षित और सौतेला व्यवहार।यह सब देखकर उसके भीतर जज़्बातों का तूफान उमड़ता-घुमड़ता ऑंखों के रास्ते बरस पड़ता।वह किससे अपने दिल का हाल कहे,उसे कुछ समझ नहीं आता?पिता रात को दफ्तर से थके -मांदे आते,उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ती।नम ऑंखों से वह चारों तरफ अपने अस्तित्व तलाशती।

अमिता को अपनी जिंदगी लक्ष्यहीन और बेमक़सद प्रतीत होती।उसकी गहरी ऑंखों में अक्सर नीले आसमान -सा सूनापन दिखता,तो कभी नीली झील-सी गहरी खामोशी!एक दिन उसके पिता ने उसके अंतर्मन की पीड़ा को महसूस कर लिया।वे एक गहरी साॅंस भरकर सोच की मुद्रा में उसके करीब

आकर बैठ गए, फिर आहिस्ता से कहना शुरू किया -“बेटी!जीवन सदा एक सा नहीं रहता है।जीवन एक बहता दरिया है,इसे खुलकर बहने दो।अपनी सोच को नया आयाम दो। ज़िन्दगी में कष्ट देखकर हार मत मानो। ज़िन्दगी को सुनहरे भविष्य का ख्वाब दो और उसे पूरा करने का प्रयास करो।”

पिता की बातें सुनकर अमिता को एहसास हुआ कि मन में फैली हुई नकारात्मकता की धुॅंध धीरे-धीरे छॅंटकर उसकी जिंदगी को रोशन कर रही है।उसके दिल के कोने में आशाओं के दीप सहसा टिमटिमा उठे।उसकी ठहरी हुई ज़िन्दगी में रवानी आ गई।उसके सपनों के पंख लग गए। उसने मन-ही-मन में एक दृढ़ निर्णय लिया।उसने खुद को पढ़ाई में झोंक दिया, जिसके परिणामस्वरुप वह आज बैंक ऑफिसर बन गई है।पिता की  अचानक मृत्यु के बाद उसे खून के ऑंसू रुलानेवाली विमाता

अपने बच्चों के साथ आज उसी की आश्रिता बन गई है।बस अंतर इतना है कि अब वह ग़लत बातों पर ऑंसू पीकर नहीं रह जाती है, बल्कि अपना पक्ष दृढ़ता से सामने रखती है।एक डरी-सहमी लड़की के बदले इस रूप से उसकी विमाता अचंभित हैं! विमाता हर पल   अपने बच्चों के भविष्य की खातिर

अमिता की ओर टकटकी लगाए  आशा भरी नजरों से देखती रहती है।दोनों के मन में छाई कटुता की धुॅंध धीरे-धीरे छॅंटने लगी है। ज़िन्दगी में आए इस खुबसूरत बदलाव से अमिता खुद अचंभित हैं।वह एक अजीब कशमकश में हैं।उसकी शिथिल पड़ी हुई ज़िन्दगी अचानक से परिवार के लिए महत्त्वपूर्ण बन गई है।आज ऑंसू पीकर चुप रहने के बजाय ऑंसू खुशी के अतिरेक से बहे जा रहे थे।उसने आगे बढ़कर विमाता और दोनों भाई-बहन के हाथ कसकर पकड़ लिए।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

#ऑंसू पीकर रह जाना 

   (26जुलाई-01अगस्त)

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