कठोर कदम – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

आरोही ,एक आम मध्यमवर्गीय लड़की का रिश्ता जब गुड़गांव के एक नामी परिवार से आया तो घर में सब फूले नहीं समा रहे थे। एक तरफ जहां उसके रूप और गुणों की चर्चा शुरू से ही घर परिवार और रिश्तेदारी में थी, वहीं संस्कार और परिवार में भी कोई कमी न थी। सब देख समझ चट मंगनी फट ब्याह हो गया। घर में सास ससुर थे नहीं, दो जेठ जेठानी और उनके बच्चे थे जो अपने अपने घर परिवार के साथ अलग अलग शहरों में बसे थे। शादी के हफ्ते भर बाद ही सब अपने अपने घर के हो गए और बच गए केवल आरोही और राज। शुरू के दिन तो गुलाबी स्वप्न से थे, जिसमें आरोही खो सी गई थी, महीने भर बाद जब वह मायके लौटी तो इतनी खिल रही थी कि घरवाले उसकी तरफ से निश्चिंत हो गए।

कभी कभार राज शराब पीकर आता था, पर आरोही को कुछ कमी न होने देता तो वह ज़्यादा गौर न करती। और कुछ ही दिनों में उसके पेट से होने की खबर से घर में खुशियां कई गुणा बढ़ गई थी। परन्तु जब तब राज का कुछ अजीब सा व्यवहार, कभी बहुत खुश, कभी बहुत उदास और आक्रामक आरोही को परेशान करते। पर उसकी जेठानी उसे समझाती की उसे फिलहाल अपने और होने वाले बच्चे का ख़्याल करना चाहिए, राज बिजनेस की वजह से कभी कभार चिड़चिड़ा और दबाव में रहता है। जेठानी उसे सखी सी लगती, ख्याल भी रखती थी उसका, इस लिहाज से उनकी बात मानना उसे सही लगता। 

इसी तरह नौ महीने बीत गए और तय समय पर दर्द उठने पर उसे अस्पताल ले जाया गया। वहीं उसने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया। लेबर रूम से बाहर आते ही, आरोही की आँखें राज को टोहने लगी। वह उसे अस्पताल आने से पहले भी कई बार फोन कर चुकी थी, पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। वहां अपने मां पिताजी को देखकर उसने थोड़ी राहत की साँस तो ली, पर उसका जी तो राज में ही अटका था। राज के न होने की स्थिति में, ज़िंदगी की ये सबसे बड़ी खुशी आरोही को बेमानी लगने लगी थी।

 इसी दौरान आरोही ने अपने पिताजी को राज के अजीबोगरीब व्यवहार के बारे में बताया तो ख़बर करने पर पता चला कि राज शराब ही नहीं बल्कि अन्य भी बहुत प्रकार के नशों का आदी था। अब आरोही को राज के हाथ पर सुई के निशान, सिर दर्द की गोलियां और रात रात भर बाहर रहना सब समझ आ गया । इन अस्पताल के तीन दिनों में आरोही की जिंदगी जैसे एकदम पलट गई थी।सब जगह तलाशने और पुलिस को इत्तिला करने पर भी कोई ख़बर न मिलने पर, आरोही के बड़े जेठ जेठानी ने उसे अपने घर ले जाने की पेशकश की। पर सब देख समझ आरोही के पिता का कहना था कि जब वो दामाद ही अपना न था जिसके साथ उनने बेटी ब्याही थी, तो और किसी से कैसी उम्मीद और यही सोच वे बेटी और नवासे को अपने साथ घर ले आए। 

छह महीने पुलिस चौकी के चक्कर काट और सब जगह ढूंढने पर भी राज का कोई ख़बर नहीं मिली तो वे आरोही के पास जाकर बोले,” बेटा अब हमें राज के मिलने की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए़ और वो घर और बिज़नेस जो राज का था, सब उसके कर्जे के बदले बिक चुका है। अब तुम्हारे पास तुम्हारा बेटा है, तुम हो, पहाड़ सी ज़िंदगी और एक समय तक मेरा साथ है। और जितनी मेरी हैसियत और परिस्थिति है उस लिहाज़ से मैं सिर्फ तुझे पढ़ा ही सकता हूँ तो बहुत सोच समझकर मैने फैसला किया है कि तुम अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दो ताकि अपना और इस बच्चे का जीवन कम से कम थोड़ा सरल कर सको।

आरोही के पास भी आंसुओ और पिताजी की बात मानने के अलावा कोई चारा न था। उसने फिर से बी.ए. में एडमिशन लिया और जुट गई। आगे की पढ़ाई के लिए दिल पर पत्थर रखकर,उसे चार साल के बेटे को मां के पास छोड़ने का कठोर कदम उठाना पड़ा। इसी तरह एम.ए, एम. फिल, नौकरी की तैयारी की और आखिर उसे नवोदय विद्यालय में नौकरी भी मिल गई। अब वह अपने बेटे को लेकर वहीं चली गई। समय बीतता गया और उसका बेटा सातवीं कक्षा में हो गया।

पर पिताजी अब भी उसे घर के पास आने की जिद्द करते। इसी दौरान स्टेट गवर्नमेंट में भर्ती निकली और आरोही का चयन हो गया। आखिर उसे घर के पास ही सरकारी दफ्तर में नौकरी मिल गई।अब पिताजी को फिर से आरोही के ब्याह की चिंता हो गई। माँ पिताजी बार बार उसे कहते कि बेटे को वो रख लेंगे, तुम फिर से अपना जीवन शुरू कर लो, अभी बहुत लंबा जीवन है पर आरोही थी कि टस से मस न हुई। उसका कहना था कि वह अपने बेटे को किसी हालत में नहीं छोड़ेगी।

भाग्य से पिताजी को अपने मित्र का तलाकशुदा बेटा एक शादी में मिला, जो आरोही को उसके बेटे के साथ स्वीकारने को तैयार था। आरोही के पास अब न नुकूर की कोई गुंजाइश न थी। आरोही फिर से शादी कर ससुराल चली आई। अब भी कभी पास पड़ोस की तो कभी परिवार में आरोही को बेटे की जगह बनाने के लिए रोज की जद्दोजहद करनी पड़ती। सास अपने बेटे का वंश बढ़ाने की बात आरोही से करती। आरोही को लगता आसमान से टपकी खजूर में अटकी। इस सब के दौरान आरोही ने दूसरी शादी से भी एक बेटे को जन्म दे दिया। परन्तु घर परिवार, रिश्तेदारी में अपने बड़े बेटे को समुचित अधिकार एवं अपनत्व न मिलना उसे खटकता। जबकि बड़ा बेटा बहुत जिम्मेदार , सुलझा हुआ एवं होशियार था, उल्टा वह खुद ही आरोही को समझाता कि मम्मी मैं ठीक हूं, सब ठीक चल रहा है,आप नाहक मुझे लेकर परेशान होती हैं।

समय निरंतर अपनी गति से आगे बढ़ता गया और आरोही भी अपने घर परिवार और दोनों बच्चों में व्यस्त रहने लगी। इस घर में कुल मिलाकर कोई दिक्कत नहीं थी, पति सोहम में कोई ऐब न था और उसकी गाड़ी चल रही थी।

और आज आरोही के बेटे का चयन प्रशासनिक सेवा अधिकारी के रूप में हो गया। क्षेत्रीय अखबार के मुख्य पृष्ठ पर,उसकी तस्वीर और इंटरव्यू छपा था। वहीं गांव वालों को तांता उसे बधाई देने के लिए लगा था। उसके पति और सास भी आज बेटे की पीठ थपथपाते नहीं थक रहे थे, वहीं आरोही और उसके बड़े बेटे की आँखें ख़ुशी के आंसुओं से छलछला रही थी। आज आरोही को लग रहा था कि उसके इतने सालों की मेहनत का फल आखिर भगवान ने दे ही दिया जो बेटे की सफलता ने घर परिवार और समाज में स्वीकारोक्ति उसे एक साथ दे दी।

ऋतु यादव

रेवाड़ी, हरियाणा

साप्ताहिक कहानी: कठोर कदम

Leave a Comment

error: Content is protected !!