ट्रिन ट्रिन ट्रिन ट्रिन फोन की लगातार बजती आवाजें अमिता ने दौड़कर अपना सेल फोन उठाया, उधर से आवाज आई हैलो, हैलो भाभी आवाज पहचान कर अमिता ने इधर उधर अपना मुंह घुमाया साफ जाहिर हो रहा था नाखुश थी वो । फिर बोली हाँ नम्रता बोलो । नम्रता अमिता की ननद जो अमिता को फूटी आँख नहीं भाती थी।
नम्रता बोली भाभी नमस्ते कैसी है आप ? अमिता ने फराटें दार आवाज में झटके से जवाब दिया ठीक हूँ यह बताओ कैसे फोन किया नम्रता ? नम्रता बोली भाभी कल राखी का त्यौहार है मैंने एक हफ्ते पहले ही भईया के लिए राखी कुरियर से भेज दी थी पहुंच गई होगी इसलिए क्योंकि शायद मैं इस बार राखी पर न आ सकूं ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल रही काम बहुत ज्यादा है। राखी पहुंच गई क्या ? नहीं पहुंची तो मैं आ जाती हूँ ।
भाभी अमिता के पास राखी तो नहीं पहुँची थी उसने सोचा ऐसा न हो कल सुबह सुबह ही नम्रता आकर धमक जाये क्योंकि उसे तो अपने पति राकेश को साथ लेकर अपने मायके जाना था भाई को राखी बांधने इसलिए उसने झूठ में ही बोल दिया अच्छा नम्रता वो राखी अरे वो तो कब की मिल गई मैंने दे दी तुम्हारे भैया को । तुम परेशान मत होना कहा दौड़-भाग करती रहोगी आराम से अपना ऑफिस देखो…अच्छा अब मैं फोन रखती हूँ बहुत काम पड़े हैं घर में, फालतू तो हूँ नहीं मै, कहकर अमिता ने फोन एक तरफ पटक दिया।
भाभी की बात सुनकर नम्रता का दिल बैठ जाता है रिश्तों की खूबसूरती को बनाये रखने का बहाना एक भावभीना एहसास राखी…उसके कंठ सूखने से लगते हैं। एक पल को चेतना विलुप्त सी हो जाती है । वो अपने फोन को उठा कर आफ कर देती है ।
वास्तव में उसने कोई राखी भेजी ही नहीं थी। दो साल पहले माँ बाबा के रेल दुर्घटना में मारे जाने के बाद पिछले साल जब वो पहली बार गई थी भाई को राखी बाधने भाभी का बेरूखा पन उसको इग्नौर करना बात बात पर ताने मारना उसे महसूस हुआ भाभी नहीं चाहती मैं भाई से मिलने आऊं बहुत बुरा महसूस किया था उसने, इसलिए इस बार राखी भेजने की झूठी बात कहकर देखना चाहती थी भाभी कहेगी नहीं राखी तो नहीं मिली तुम आ जाओ, तभी वो जायेगी नहीं तो… ।
लेकिन भाभी ने तो झूठ ही कह दिया राखी मिल गई उसे परेशान होने की जरूरत नहीं है। इसका मतलब भाभी नहीं चाहती वो भाई के घर जाये नम्रता का दिल टूट जाता है। वो सोचती है आखिर भाभी ऐसा क्यों चाहती हैं ? भाभी पहले भी भाई से दूर करने,गलत फहमी पैदा करने की नाकाम कोशिशें कर चुकी हैं। वो कौन सा भाई भाभी से कुछ मांगने जाती है ।
या उनका कुछ बिगाडती है। राखी का त्यौहार है जो भाई बहन को स्नेह की डोर से बांधता है।उसको भी भाई के मस्तिष्क में टीका लगाना है रक्षा का बंधन बांधकर मंगल कामना करनी है। वो कुछ भला क्यों मांगेगी ? वो तो खुद समर्थ है कमाती है पति भी अच्छा कमाते ससुराल में भी सभी सम्पन्न प्रतिष्ठित है कोई कमी नहीं है फिर क्यों भाई भाभी से आस करेगी वो । भाभी भी तो किसी घर की बेटी है । वो क्यों नहीं एक बहन की व्यथा उसके प्रेम को नहीं समझ रहीं ।
भाभी चाहती ही नहीं मैं वहां जाऊं ठीक है मैं भी नहीं जाऊंगी कहकर नम्रता की आँखें आँसूओं से भीग गई.. लेकिन दूसरे ही पल माँ बाबा से किया वादा याद आ जाता है। माँ अक्सर कहा करती थी दोनों भाई बहन अपना प्यार बनाये रखना और बाबा जब दुर्घटना में भयंकर रूप से जख्मी अन्तिम समय में तो कैसे भाई के हाथ में मेरा हाथ देकर बोले इसका ख्याल रखना शादी हो गई इसका मतलब ये नहीं कि पराई हो गई बहन बराबर इसकी देखभाल करते रहना कभी हमारी कमी महसूस मत होने देना और फिर बाबा ने आंखेंं मूंद ली थी। नम्रता सोच में बैठी थी तभी उसका पति महेश आ जाता है। नम्रता को ऐसी हालत में उसने पहले कभी नहीं देखा था। वो घबरा जाता है पूछता है नम्रता क्या हुआ तुम इतनी परेशान क्यों हो ?
नम्रता पति को देखकर और भावुक हो जाती है और उसके कन्धे पर सर रख फूट-फूट कर रोने लगती है। सारी बातें बताती है कैसे भाभी नहीं चाहती वो भाई को राखी बांधने जाये। भाभी बुलायेगी तभी वो अब वहां जायेगी .. बिना बुलाए तो कहीं भी जाना अपनी बेइज्जती कराना ही है चाहे वो अपने भाई का घर ही क्यों न हो ? जब तक माँ बाबा थे तब तक आस थी कोई इन्तजार कर रहा है, अपना है । अब तो उनके जाने के बाद सब विरान सा हो गया न भाई पूछते न भाभी।
नम्रता की बात सुनकर पति महेश उसको समझाता है। देखो नम्रता भाई बहन का रिश्ता कोई खेल नहीं है न ही ऐसा बंधन तो तोड़ दिया जाये।
नम्रता कहती हैं तो भाई उसको फोन भी कर सकते थे कितने दिन से फोन भी नहीं किया।
पति उसको समझाते हैं देखो नम्रता तुमको पता है तुम्हारे भैया का काम कैसा है ? अरे फंस गये होंगे काम में समझा करो नादान मत बनो ।
ऐसा करो तुम सुबह भाई के घर जाओ और जल्दी ही शाम से पहले वापस आ जाना चलो ऐसा करते हैं दो तीन घन्टे का ही तो रास्ता है मैं अपनी गाड़ी से ले चलता हूँ तुमको, राखी बांध साथ साथ वापस आ जायेंगे वैसे भी मेरी अपनी बहन तो शाम तक ही आयेगी । और वो तो वैसे भी दो दिन यहीं रहने वाली है। नम्रता को पति की बात सही लगती है वो उसके समझाने पर सुबह जाने की तैयारी करने लगती है। सुबह जैसे ही वो निकलने लगते हैं ।
तभी अचानक उसके भाई राकेश का फोन आता है। नम्रता बहन तुम आ रही हो न मुझे राखी बांधने। मैं सुबह से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ । तुम्हारी भाभी तो अपने भाई को राखी बांधने गई है वो कह रही थी तुम इस बार नहीं आओगी राखी बांधने। इसलिए मुझे साथ चलने को कह रही थी मैंने कहा ऐसा कभी हो ही नहीं सकता मेरी छोटी बहन आज राखी के दिन मुझे राखी बांधने न आये पता है नम्रता वो शर्त लगा कर गई है कहकर गई है की करते रहना इंतजार देखना नहीं आयेगी तुम्हारी बहन ।
नम्रता आखिर बात क्या है ? यह तो मुझे नहीं पता मगर मेरा दिल यह मानने को कदापि तैयार नहीं की तुम नहीं आओगी। मैं कल से तुम्हारा फोन लगा रहा लग ही नहीं रहा उससे पहले मैं काम में बहुत व्यस्त रहा ।
नम्रता भाई की बात सुनकर रोने लगी कैसी बात करते हो भाई मै कैसे भूल सकती हूँ आपको, मैं आ रही हूँ भला रक्षाबंधन का शुभ दिन एक बहन कैसे भूल सकती है।
नम्रता भाई के घर पहुंच उससे लिपटकर रोने लगी भाई मै तो सोच रही आप मुझे भूल गये हो राकेश नम्रता के सर पर हाथ रखता है पगली एक भाई कभी अपनी बहन को कैसे भूल सकता है ? वो रूआंसा व भरे गले से बड़ी नम्रता के साथ कहता है –
“ भाई बहन का रिश्ता अनूठा गहरा बन्धन होता है।जो स्नेह, प्यार कभी कभी हल्की-फुल्की नोकझोक से भरा होता है ।बहन, एक ये ही ऐसा रिश्ता है जो बचपन से लेकर जीवन भर चलता है। अरे पगली हम दोनों भाई बहन ही नहीं बचपन से अच्छे दोस्त,रक्षक व साथी भी है। ये तुम कैसे भूल सकती हो “ ?
नम्रता अपने आँसूओं को पोंछती बैग में से राखी निकाल भाई को बांधती है और मंगल टीका लगा लम्बी आयु की कामना करती है। उसका पति महेश सबको मिठाई खिलाता है और कहता है ये रिश्ता ये राखी का रेशमी धागा रिश्ते की पवित्रता का प्रतीक है। नम्रता भाई से वादा करती हैं। जीवन के विभिन्न उतार चढ़ाव से गुजरते हुए भी एक बहुत गहरे अहसास के साथ हमारा ये रिश्ता ताउम्र जीवंत बना रहेगा ।
सभी खुशी खुशी खुशनुमा माहौल के मधुर अहसास में डूबे आनन्द, खुशी का अनुभव करते हैं।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया