सुबोध ने आज कठोर कदम उठाए थे अपनी मां के खिलाफ। ऐसा जो की करने से पहले एक बेटे को बार-बार सोचना पड़ता है। उसने घर छोड़ने का फैसला ले लिया था क्योंकि उसकी मां सरला जी का व्यवहार अपनी बहूओं के प्रति बहुत ही खराब था। सुबोध ने बहुत बार अनदेखा कर दिया था कि शायद मां के स्वभाव में वक्त के साथ परिवर्तन आ जाएगा। उन्होंने गीत जो उसकी पत्नी थी उसे इतना परेशान कर दिया था कि बेचारी को मजबूरन घर छोड़कर जाना पड़ा था, जबकि पति – पत्नी की बीच रिश्ता मधुर था लेकिन मां को यही बात खटकती थी। सुबोध चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया था ,जो बात उसको अंदर ही अंदर खोखला किए जा रही थी।
बड़ा बेटा होना भी एक सजा बन जाता है कभी-कभी।ये बात उसको टीसती थी, उसे लगता था कि मां को कैसे टोकूं क्यों कि उन्हें ऐसा ना लगे की वो अपनी पत्नी का पक्ष ले रहा है लेकिन आज पानी सिर के ऊपर हो गया था जब छोटे भाई समर की पत्नी के साथ वही सब कुछ चल रहा था।
कामिनी जो बहुत ही अच्छी लड़की थी लेकिन मां बिना बात के उसको दिनभर उलझाए रखती थी।काम करने के बाद आराम करने भी नहीं देती थी। कुछ ना कुछ बहाना बना कर उसको फंसा देती थी नए किसी काम में।
कामिनी की शादी के तीन वर्ष बीत गए थे पर वो मां नहीं बन पाई थी। इसीलिए और भी उस पर अत्याचार करने लगी थी मां।एक दिन तो हद्द ही हो गई जब वो समर की दूसरी शादी करने की योजना बना रहीं थीं।ये बात कामिनी ने सुबोध को बताई और बहुत रोई फूट – फूट कर। सुबोध जेठ कम बड़े भइया जैसा था। कामिनी के कोई भाई नहीं था तो वो सुबोध को अपने बड़े भाई जैसा सम्मान देती थी।
कई डाक्टर को दिखाया था कामिनी और समर ने सभी ने कहा था की सब कुछ ठीक है, किसी – किसी को वक्त लगता है और इतना समय भी नहीं गुजरा है। पहले तो समर कामिनी ही बच्चा नहीं चाहते थे और अब सोचा तो नहीं हो रहा था।अब सरला जी को ये बात कौन समझाए क्यों कि पुराने समय की महिला थीं।वही दकियानूसी सोच और किसी की ना तो सुनना ना समझना।
सुबोध ने मां से जाकर सीधे बात करने का निर्णय लिया और समय देख कर पूछ बैठा कि उनके मन में क्या चल रहा है। भड़क उठी उसके ऊपर की खुद की बीवी तो संभाली नहीं गई और चला है मुझे ज्ञान देने।
सुबोध ने तुरंत फैसला लिया की वो दूसरा घर लेगा और
गीत को मना कर लाएगा उसके साथ खुशी – खुशी जीवन व्यतीत करेगा। गीत बहुत चाहती थी सुबोध को उसने अभी तक विवाह नहीं किया था।बस नौकरी करने लगी थी, दोनों कभी कभी मिलते भी थे।
सुबोध ने समर और कामिनी को भी अलग घर ले कर रहने की सलाह दी।उसे लगने लगा था कि मां जल्दी ही इनकी गृहस्थी भी बर्बाद कर देंगी अगर समय पर सही फैसला नहीं लिया गया तो। उसको आज भी अफसोस था की उस समय ही मां को सही तरीके से समझना चाहिए था कि हम किसी की बेटी अपने घर लातें है तो वो भी हमारे घर का अहम हिस्सा होती है ना की कोई नौकरानी।जिसको सिर्फ काम करना है और उसके सुख – दुख से कोई भी लेना-देना नहीं है।
सुबोध ने समर को समझाया तो वो भी बोल पड़ा कि “भइया मैं और कामिनी बहुत परेशान हैं पर मां से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं। उन्होंने देवी जैसी बड़ी भाभी के साथ कितना अत्याचार किया और आप उनका विरोध नहीं कर पाए तो मैं कैसे करता।”
नहीं “समर अब मैं ये गलती नहीं दोहराऊंगा और जो कुछ भी गीत के साथ हुआ वो कामिनी के साथ हरगिज नहीं होने दूंगा। तुम घर ढूंढने की तैयारी शुरू कर दो और मैं भी अब यहां नहीं रहूंगा। गीत के साथ फिर से जिंदगी की शुरुआत करूंगा।”
सुबोध ने जब अपना निर्णय सुनाया कि दोनों भाई घर छोड़कर जा रहें हैं तो सरला जी के पांव के नीचे से जमीन खिसकने लगी थी। उन्होंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि सुबोध ऐसा कुछ कर सकता है।
अपने कमरे जा कर बिस्तर पर बेसुध होकर पड़ी थी कि ऐसा क्या हुआ,जो सुबोध और समर दोनों जा रहें हैं क्योंकि जो इंसान अपने आपको हमेशा सही समझता है वो अपने अंदर की कमी को कभी नहीं देखता है ।अब सब कुछ बिखर रहा था।इतना अच्छा परिवार टूटने की कगार पर खड़ा था। सरला जी के पास कोई तर्क ही नहीं था की अपने पक्ष में कुछ बोल सकें।
इतना बड़ा घर जैसे श्मशान सा लग रहा था जहां ना तो अपनों की चहक थी और ना ही किसी के प्रति प्यार।
समर और सुबोध घर छोड़कर चले गए थे क्योंकि उनके पास कोई चारा नहीं था।
गीत को सुबोध लिवा आया था और अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर लिया था दोनों ने।समर और कामिनी भी खुश थे। अच्छा माहौल होने की वजह से कामिनी मां बनने वाली थी। दोनों भाई शनिवार की शाम एक साथ बिताते थे और खुश थे।
इधर सरला जी अब पछताने लगी थी अपने व्यवहार पर लेकिन कहावत है ना कि ‘ अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ‘।
एक शाम को उन्होंने सुबोध और समर को घर बुलाया और दोनों से कहा कि,” बेटा मुझसे बहुत गलतियां हुईं हैं।हो सके तो माफ करके अपने घर लौट आओ।”
सुबोध बोला कि,” मां हमसे नहीं अपनी बहूओं से माफी मांगनी चाहिए आपको क्यों कि एक औरत होकर भी आपने उनके साथ इतना गलत किया।एक मां – बाप अपनी बेटी को हमारे भरोसे पर सौंपते हैं और हमारी जिम्मेदारी होती है कि हम उनको अपने घर का सदस्य समझें और उनको बराबर का सम्मान दें पर आपने तो उन्हें इंसान ही नहीं समझा।”
बेटा ” बहुत बड़ी ग़लती हुई। मुझे मोहल्ले की औरतें सिखाया करती थी की बहू पर लगाम रखनी चाहिए वरना घर तोड़ देती हैं। मैं भी उनकी बातों में आ गई।”
मां!” घर बहुओं ने नहीं आपने तोड़ा है। उन्होंने बहुत कोशिश की सब कुछ ठीक करने की और गलती हमारी भी थी जो आपको कभी टोका नहीं” सुबोध बोला।
मां” हम लोग तो घर वापस नहीं आएंगे। हां आप हम दोनों भाई के पास कभी भी आकर रह सकतीं हैं क्योंकि ये घर हमारा है। यहां पर आपके साथ कभी भी कोई भी दुर्व्यवहार नहीं होगा ये मेरी गारंटी है।”
सरला जी समझ चुकी थी कि उन्होंने सबकुछ खो दिया है। उनको समझ नहीं आ रहा था कि किस मुंह से जाकर रहें।
कुछ महीनों के बाद जब समर को बेटी हुई तो दादी बन कर अपने आपको रोक नहीं पाईं और जच्चा-बच्चा का खूब ख्याल रखा। इधर गीत भी मां बनने वाली थी।सब तरफ माहौल बदल गया था।नए मेहमान ने सभी रिश्तों के उलझे तार जोड़ दिए थे और परिवार में एकता और रौनक ने पुनः दस्तक दी थी।
प्रतिमा श्रीवास्तव नोएडा यूपी