पत्नी की चतुराई – शुभ्र मिश्रा : moral stories in nindi

आज दस दिन मायके मे रहकर नम्रता अपने घर लौट रही थी।गाड़ी अभी गंतव्य से एक स्टेशन पहले ही थी, तभी नम्रता नें अमर को फोन कर दिया था कि स्टेशन पर गाड़ी पहुंच रही है, तुम कहा हो? अमर नें कहा कि गाड़ी अभी तो एक स्टेशन दूर है। नम्रता को लगा कि वह नेट पर देखकर बोल रहा है इसलिए उसने कहा – नहीं, गाड़ी तो हमारे स्टेशन पर पहुंच रही है। तुम अभी तक घर से निकले नहीं हो तो रहने दो मै कैब से आ जाउंगी। निकला नहीं हूँ? मै स्टेशन पर ही हूँ। तुम अगर यह सोच

रही हो कि मै समय से नहीं पहुँचूगा तो तुम यह गलतफहमी अपनें दिमाग़ से निकाल दो। मै तुम्हारे बगैर भी सभी काम समय पर कर सकता हूँ।घर आओगी तब देखना तुम्हारी गैर हाजरी मे मैंने घर को कितने अच्छे से रखा है। तुमसे भी ज्यादा साफ सफाई से रखा है। हरेक सामान मैंने इतने करीने से सजा कर रखा है कि तुम एकदम आश्चर्य चकित हो जाओगी। तुमने मुझे समझ क्या रखा है, देखना

आके तब पता चलेगा कि मै चीज क्या हूँ। नम्रता मन ही मन सोच रही थी कि इतना बड़ा बड़ा फेक रहा है या सही मे इसने घर को ठीक से रखा है। नम्रता को उसकी बातो पर ज़रा भी विश्वास नहीं हो रहा था। कहाँ नहाकर तौलिया बिस्तर पर फेकने वाला अमर और कहाँ घर को करीने से सजाने वाली बात,कुछ हजम नहीं हो रही है। चलो अब तो चलकर देखना ही है। दस दिन पहले अमर के

लापरवाही वाले स्वभाव के कारण दोनों मे झगड़ा हो गया था। नम्रता नें कहा कि तुम्हारे लापरवाही वाली आदतों से मै बहुत परेशान हो गईं हूँ। अपनी किसी भी सामान को तुम सही जगह पर नहीं रखते हो और फिर नहीं मिलता है तो शोर मचाते हो। मै यदि एकदिन के लिए भी घर से कही चली जाऊ तो तुम तो इस घर को कबाड़खाना बना दोगे। यह बात सुनकर अमर को भी तैस आ गया और वह  बोला सुनो इतना क्या सुना रही हो? शादी के पहले भी मै जी ही रहा था। हाँ, वो तो समझ आ रहा है कैसे

रहते होंगे, जानवर की तरह, यह कहकर नम्रता  हँसने लगी। अमर नें गुस्साते हुए कहा यह बात है तो लगी शर्त, तुम दस दिन के लिए अपने मायके चली जाओ और फिर आकर देखना कि मै घर कैसे रखता हूँ। इसी के बाद नम्रता अपने मायके चली गईं और आज दस दिन बाद लौट रही थी। घर जाकर उसने देखा सही मे घर बहुत ही साफ सुथरा था, सामान भी सभी अपने सही जगह पर था। उसने 

हँसते हुए कहा हाँ यार मस्त रखे हो घर को, एकदम चकाचक,अब तो हम अपनी कामवाली बाई को भी हटा सकते है तुम तो उससे ज्यादा अच्छी तरह से साफ सफाई करते हो। चलो मै हारी तुम जीते।नम्रता नें यह सब कह तो दिया पर उसे इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था कि अमर  इतनी साफ सफाई कर सकता है। शाम को नम्रता  नें अपनी सास को फोन कर के शिकायती अंदाज़ मे कहा माँ, मै आपसे बहुत नाराज हूँ, आपनें यह ठीक नहीं किया, मै इतने दिनों से कह रही थी कि माँ, आइए,

आकर अपने बेटा बहू की गृहस्थी देखिए, कभी हमें सेवा का मौका दीजिए, तो आप मेरी बात नहीं मानी और आज जब मै अपने मायके गईं तो यहाँ आकर चली गईं, मुझसे मिलने के लिए भी नहीं रुकी।अरे, नहीं बहू, गुस्सा नहीं हो। तुम तो जानती ही हो तुम्हारे ससुर जी को शुगर है और वे खाने के भी शौकीन है,तो उनको एकदिन के लिए भी छोड़ना खतरे से खाली नहीं है। लगेंगे तला भुना और

मिठाई खाने। रिटायरमेंट के बाद तो तुम्ही लोगो के साथ रहना है। वो तो अमर नें फोन किया कि तुम्हारी भाभी को बच्चा होने वाला है तो तुम माँ की मदद के लिए मायके गईं हो और यहाँ अमर को तो कभी कुछ काम करने की आदत ही नहीं है वह तो इतना अस्त व्यस्त हो गया था कि समय पर ऑफिस भी नहीं जा पा रहा था फोन पर एकदम रोनी आवाज मे बोला तो मै ना नहीं कर पायी और

तुम्हारी बुआ को आठ दिन के लिए बुलाकर गईं थी। अमर नें कहा कि तुम्हारे आने मे अभी कुछ और दिन लगेंगे तो मै चली आई। मुझे पता होता कि तुम आज आ रही हो तो एकदिन और रुक जाती। तुमसे मिलकर आती। जाने दो बहू गुस्साओ नहीं फिर आ जाउंगी। अरे, ऐसा नहीं है माँ, मैनें सुना तो थोड़ा लगा कि मिल नहीं पाई और कुछ नहीं। अपनी और सास की सारी बातो को उसने मोबाईल मे रिकार्ड कर लिया था। जब उसने अमर को यह रिकार्डिंग सुनाई तो उसने अपना सर पिट लिया। उसका राज़ अब उसकी पत्नी के सामने खुल चूका था।

मुहावरा —-राज़ खोलना 

 शुभ्र मिश्रा

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