सीमा का पछतावा – रेनू अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

सीमा आज फूट-फूटकर रो रही थी। उसका दिल ग्लानि और पछतावे से भर गया था। उसे अपनी हर वह बात याद आ रही थी, जब उसने अपनों को ठेस पहुँचाई थी। उसका बेटा अमन और पति अक्सर समझाते थे कि जीवन में रिश्ते सबसे ज़्यादा कीमती होते हैं, लेकिन सीमा को तो अपने अहंकार का चश्मा चढ़ चुका था। उसे कुछ दिखाई ही नहीं देता था। आज जब घर बिखरने की कगार पर आ गया, तब उसकी आंखें खुलीं।

सीमा एक मध्यमवर्गीय परिवार की गृहिणी थी। उसका छोटा-सा परिवार था—पति, बेटा अमन और वह स्वयं। अमन पढ़ाई पूरी कर अपने पिता के बिज़नेस में शामिल हो गया। दोनों बाप-बेटे ने मेहनत की, और व्यापार खूब फलने-फूलने लगा। अब सीमा की समाज में “अमीरों” की गिनती में गिना जाने लगा।

लोग कहते, “तुम्हारा भाग्य कितना तेज़ है!” यह सब सुनकर सीमा फूले नहीं समाती थी। लेकिन धीरे-धीरे उसमें घमंड घर करने लगा। उसे लगने लगा कि इस वैभव और सम्मान का श्रेय केवल उसी को जाता है।

फिर समय आया अमन की शादी का। आजकल लड़कियाँ अधिकतर नौकरीपेशा लड़कों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे अमन के लिए उपयुक्त रिश्ता मिलना कठिन हो गया। अंततः एक पढ़ी-लिखी, संस्कारी मगर साधारण परिवार की लड़की से अमन की शादी कर दी गई। वह लड़की बेहद समझदार और शांत स्वभाव की थी। सीमा जो कहती, वह चुपचाप मान लेती।

लेकिन यही उसकी विनम्रता सीमा के घमंड को और हवा देने लगी। सीमा बहू को हर बात में नीचा दिखाने लगी। “तुम्हारे मायके में तो ये भी नहीं होता होगा,” जैसे ताने आम हो गए। कभी बहू के काम में कमी निकालती, कभी उसके पहनावे में। सीमा को यह तक शर्म नहीं थी कि वह मेहमानों के सामने भी बहू को अपमानित कर देती थी।

बहू सहती रही, मगर हर सहने की भी एक सीमा होती है। एक दिन सीमा ने फिर से उसे डांटा तो बहू ने संयम तोड़ते हुए कहा, “मम्मी, जितना हक़ आपका इस घर पर है, उतना ही मेरा भी है। लेकिन अब मैं इस माहौल में नहीं रह सकती। मैं अपना घर अलग बसाऊंगी।”

यह सुनकर सीमा के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसे लगा तब तो उसका बेटा भी उसे छोड़कर चला जाएगा। वह अकेली इतने बड़े घर में क्या करेगी ।आंखों में आँसू लिए वह बैठ गई। तब उसे अपने पति की कही एक बात याद आई—“घर दीवारों से नहीं, रिश्तों से बनता है।”

वह तुरंत उठी, बहू के पास गई, और सच्चे दिल से माफ़ी मांगी। बहू ने भी उसे माफ़ कर दिया और दोनों ने एक-दूसरे को गले लगा लिया।

उस दिन सीमा ने समझा, अहंकार रिश्तों को तोड़ता है, और माफी उन्हें जोड़ती है। जो प्यार दे, वही सच्चा वैभव है—बाकी सब तो क्षणिक है। घर तो आपसी प्यार से ही बनता है दीवार से नहीं।

( घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है)

रेनू अग्रवाल

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