निःसंतान – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

बारात वापस आ गई….. दुल्हन आ गई ….आओ आओ दुल्हन देखने ….आओ ….घर के बच्चे तो नाचने लगे…. आते साथ दरवाजे पर बम की लड़ी फोड़ दी गई…. ढोल वाले ने जोर-जोर से बजाना शुरू किया ….!

 कविता वो कविता… कहां हो ….? जल्दी आओ… बच्चे थके हैं …परछन और दुल्हन के प्रवेश की रस्में पूरी करो ……हां सिद्धार्थ बस एक मिनट …..साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए कविता ने लिपस्टिक निकाली….. प्यार से मुस्कुरा कर सिद्धार्थ ने कहा….. कर लो पूरा मेकअप कर लो ……अपने शौक.. अपने अरमान पूरे करने का समय आ गया है कविता….।

 तभी ताई जी ने आकर कविता के कान में कुछ कहना चाहा…. किनारे बुलाकर धीरे से कविता को समझाने के अंदाज में बोलीं…. देख बेटा …मैं जानती हूं रवि तेरा बेटा है ….मां से बढ़कर तूने उसके लिए किया है……पर ये भी सच्चाई है कि रवि को तूने जना नहीं है…. तेरी कोख से कोई औलाद पैदा नहीं हुई है….. इसलिए तू………. इसलिए क्या मैं ताई जी …..? …क्या…?? कविता ने आश्चर्य से ताई जी की ओर देखते हुए पूछा….

मैं तो तेरे और इस घर के भलाई के लिए……. बस ताई जी बस ….आप यही कहना चाहती है ना ….मैं निःसंतान हूं….

और मुझे शुभ कार्य में पहल नहीं करनी चाहिए…..

हां ताई जी मैं तो निःसंतान हूं ना …..मैं समझ गई …सब कुछ समझ गई …..बहू के कदम ससुराल में पहली दफे पड़े तो एक निःसंतान को सामने नहीं पड़ना चाहिए… यही ना ताई जी….!

 जाइए ताई जी आप ही सारी रस्में निभाकर बहू को अंदर ले आइए…..!

क्या भगवान आज फिर तूने अपनी कट्टी नहीं तोड़ी …आखिर कब तक नाराज रहकर दुश्मन बना रहेगा ….कभी तो दोस्ती कर ले भगवान …..कहकर कविता जोर जोर से रोने लगी …..! रोते-रोते सिसकियों के बीच कविता के मस्तिष्क में अतीत के पन्ने खुलते गए….

 तीस वर्ष पहले कविता की शादी हुई थी ….कितना प्यारा था सब कुछ… कविता दुल्हन बन जैसे ही घर में प्रवेश की ….चारों तरफ खुशी की लहर दौड़ गई …कितने दुखों के बाद तो घर में खुशी का माहौल आया था ….कविता के घर में प्रवेश के बाद उसके गोद में एक प्यारा सा का बच्चा (रवि ) दे दिया गया था ….कविता को समझते देर न लगी …ये बच्चा बड़े भैया भाभी ( जेठ जेठानी) का ही है…..जिनकी मृत्यु एक एक्सीडेंट में हो चुकी थी….।

 चूंकि कविता अभी नई नई दुल्हन थी ….रसोई मैं काम की शुरुआत वाली रस्म अभी नहीं हुई थी ….इसलिए रवि को ज्यादातर कविता के पास दे दिया जाता था ।

 ….कविता के पति सिद्धार्थ भी रवि की देखभाल बिल्कुल पिता की तरह ही करते थे …..धीरे-धीरे सारे मेहमान चले गए….रवि के देखभाल की सारी जिम्मेदारी कविता और सिद्धार्थ पर आ गई… जिम्मेदारी निभाते निभाते कविता और सिद्धार्थ कब रवि के मम्मी पापा बन गए …किसी को इसका एहसास ही नहीं हुआ….।

 समय बीतता गया …साल…दो साल …चार साल…

कानाफूसी शुरू हो गई ….भाई अब क्यों देर हो रही है …एक बच्चा अपना तो होना ही चाहिए …कुछ लोग सोचते रवि है शायद इसीलिए अपना बच्चा नहीं चाहिए होगा…. कुछ लोगों ने तो रवि के अकेलेपन को दूर करने के लिए ही एक और बच्चा पैदा करने की सलाह दे डाली…।

 सबने अपनी अपनी बातें अपने अपने ढंग से कह डालीं…. किसी ने भी कविता और सिद्धार्थ के मनःस्थिति को समझने की कोशिश नहीं की…!

 वो दोनों पति-पत्नी भी तो चाहते थे मम्मी पापा बनना…. धीरे-धीरे लोगों ने दुनिया भर के अनुभव बताकर डॉक्टर का पता बताना शुरू किया ….बड़े-बड़े शहर के नामी डॉक्टरों से संपर्क किया गया …डॉक्टर का कहना सब कुछ सामान्य है… दोनों पति-पत्नी में कोई कमी नहीं है….फिर….??

शायद भगवान ने कविता से कट्टी कर दुश्मनी कर ली है…

 आजकल जमाना इतना बदल गया है चिंता की कोई बात नहीं …..डॉक्टर के परामर्श पर टेस्ट ट्यूब बेबी की प्लानिंग की ….वो भी किस्मत में नहीं….!

 चारों तरफ से थक चुके सिद्धार्थ और कविता ने एक बच्चे को गोद लेने की सोची … तमाम दस्तावेज पूरी करने के बाद अगले दिन कविता की गोद में नन्ही कली खुशबू बिखेरने आने वाली थी ……निर्धारित जगह और नियत समय पर कविता आंचल फैलाए राह ताक रही थी

 ….नन्ही कली की जगह मनहूस पैगाम आया

 ….अचानक उस बच्ची को निमोनिया हो गया ….वो डॉक्टर के पास है…. और……

 शायद भगवान कविता से दोस्ती करना ही नहीं चाहते थे उन्होंने अभी भी कट्टी ही बनाए रखी…!

अब कविता को लगने लगा था ….शायद भगवान को यही मंजूर था …..मुझे ही रवि के मां के रूप में रखना चाहते हो…. तभी तो मेरी किस्मत में बच्चे का गोद लेना भी रास नहीं आया….! 

 तब से आज तक कभी याद नहीं रहा कि …रवि मेरे कोख से पैदा नहीं हुआ है …..कितने सपने कितने अरमान रवि को लेकर मैंने देखें….

और फिर आज मुझे रवि के होते हुए निःसंतान होने का एहसास कराया जा रहा है….!

मम्मी ओ मम्मी …रवि की आवाज में कविता की तंद्रा भंग की… अब देर क्यों हो रही है …? बहू उतारने की जल्दी नहीं है क्या…? हां बेटा ताई जी जा रही हैं ….ताई जी को लोटे में पानी और हाथ में थाली रखे देख रवि ने आश्चर्य से पूछा….. मम्मी आप अपनी बहू का परछन नहीं करेंगी …?

बेटा वो….. मम्मी… ये.. वो …कुछ नहीं.. मैंने सब कुछ सुन लिया है….. चलिए अपने शौक अपने कर्तव्य अपने अरमान पूरे करने का समय आ गया है…. मेरे होते हुए सब आपको निसंतान कह अवहेलना कैसे कर सकते हैं….. इन्होंने तो आपको निःसंतान कहा माँ निःसंतान…..!

 अरे …बोलने से पहले शब्दों की मर्यादाओं के ऊपर तो थोड़ा विचार कर लिया होता… दुखी होते हए

 रवि ने मां के कंधे पर अपना हाथ रखकर गले लगा लिया..!

निसंतान तो वो सब है जो यहां खड़े होकर एक औरत की.. बेबसी ..लाचारी ..को नजरअंदाज कर कुरीतियों को बढ़ावा दे रहे हैं…

 एक मां की तपस्या …उनका त्याग… उनका प्यार …उनका बेटा नहीं समझेगा तो क्या आप सब समझेंगे …? 

मम्मी आप हमेशा कहती थी ना …वो दिन मेरी जिंदगी का सबसे खुशनुमा दिन होगा …जब मेरी बहू आएगी और मैं उसे पूरे रीति-रिवाज से आरती उतारते हुए घर के अंदर प्रवेश कराऊंगी ……

  तो उनका इतना छोटा सा सपना सिर्फ इसलिए पूरा नहीं हो सकता क्योंकि मैंने उनकी कोख से जन्म नहीं लिया …..नहीं ताई जी… नहीं ….ऐसा नहीं होगा

 ….चलिए मम्मी बहू का गृह प्रवेश कराइए….।

 सभी माताओं को सम्मान पूर्वक बधाई जिन्होंने किसी न किसी रूप में सहयोग कर  किसी भी बच्चे की उज्जवल भविष्य बनाने में भरपूर योगदान दिया…।

साथियों कहानी को कहानी ही समझ कर पढ़ें …अन्यथा ना लें …मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है….।

(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

 संध्या त्रिपाठी 

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