छोटे खाँ नाई जहां जमीन पर कपड़ा बिछाकर लोगों की हजामत बनाया करता था उसी स्थान पर उसके लड़कों ने एक चक्कर दार कुर्सियों और बड़े बड़े शीशों वाली दुकान खड़ी कर ली थी। सामने एक खूबसूरत साइनबोर्ड लगा था जिस पर दिलीप कुमार के चित्र के ठीक नीचे सलीम हेयरड्रैसर लिखा था।
बड़े लड़के के अरब जाने और उस से छोटे के एक कार गैराज में काम करने के बाद छोटे खाँ के परिवार में कम से कम रोटियों की चिंता तो अब नहीं रही थी और रोटी मिलने के बाद कोई काम करना उनकी पुश्तैनी फितरत में नहीं था। सो छोटे खाँ दिन भर अपने बेटों की तरक्की के किस्से पूरे शहर को सुनाते
फिरते और सैलून पर कटिंग करने वाले उनके शेष दो पुत्र महीने के बीस दिन सीनेमा हौल में गुजरते थे। बाजार में तनिक सा भी झगड़ा फसाद हो जाए या कोई अफवाह भी हो तो छोटे खाँ के दोनों पुत्र अपने खानदानी हौसले के कारण और मुहल्ले में अकेले मुस्लिम दुकानदार होने के कारण तुरंत दुकान का शटर डाल कर खिसक जाया करते थे।
जहां छोटे खाँ की दुकान बाजार में नई चमक दमक की प्रतीक थी वहीं उनके ठीक सामने लाला कूड़ेमल तंबाकू वाले की दुकान कस्बयी शैली में तेल के कटे हुए कनश्तरों में, शीरे में सने हुए तीखी गंध वाले हुक्के के कड़ुए तंबाकू की ढेरियाँ सजाये हुए चल रही थी।
उनकी दुकान पर हर समय झुर्रियां पड़े हुए चेहरे वाले किसान और गांवों के छोटे दूकानदारों का जमघट लगा रहता था। जितना कडुआ, तीखा तंबाखू उतने ही अधिक दाम। कमाई की तुलना में लाला कूड़ेमल अपने पहनावे का हिसाब लगाने लगते तो अपव्यईता हो जाती इसलिए कुछ तो पक्का रंग और कुछ शीरे वाले तंबाकू में सने कपड़े, लाला जी स्वयं एक हुक्के के तंबाकू का पिंड नजर आते थे।
स्वाभावतः लाला कूड़ेमल एक अपने वर्ग के व्यापारियों की तरह शांत और धैर्यवांन व्यक्ति थे। खानदानी परंपरा के अनुसार दो टका सैकड़ा मुनाफा और नकद व्यापार के नुस्खे पर उनका जीवन निश्चिंतता और शांति के साथ गुजर रहा था।
सामने की लाइन में लगातार तीन दुकानें बर्तन बेचने वाले तीन पंजाबी भाइयों की थीं। तीनों सगे भाई धंधे को छोड़कर जिंदगी की कई विधाओं में एक दूसरे के साझीदार थे मसलन फुर्सत मिलते ही पपलू और रमी खेलना। सड़क पर जाती हुए सुंदरियों पर फब्तियाँ कसना और शाम को पत्ती डालकर खुश्क शाम को रंगीन बनाने का प्रयास करना।
खून और दोस्ती के रिश्ते उस समय और भी मुखर हो उठाते जब कोई ग्राहक खराब बर्तन को वापस करने या कोई शिकायत लेकर आता। ऐसी स्थिति में तीनों भाई ग्राहक से मल्लयुद्ध करने को तैयार रहते क्यूंकी खीसे में आया पैसा लौटना उनकी फितरत में नहीं था।
रामकिशन चाय वाले से अगली दुकान सुरेश वस्त्र भंडार की थी। उसके मालिक को लोग तोतले सुरेश के नाम से जानते थे। यूं तो सुरेश जी शान्तिप्रिय व्यापारी समाज से ताल्लुक रखते थे किन्तु उन्हे जासूसी उपन्यास पढ़ने का बहुत शौक था।
जासूसी उपन्यास के नायक की तरह कोई शौर्य का कार्य न कर पाने का क्षोभ उनके दिल में कांटे की तरह चुभता रहता।
कौने की दो तरफ से खुली हुई दुकान विक्की नाम के एक नौजवान की थी। ये फैशनेबल नौजवान सरकारी नौकरी में मोटी रिश्वत चाटे हुए बाप की इकलौती औलाद था और समय काटने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पर बैठकर सारा दिन वीडियो देखता रहता।
उसकी दुकान पर हर समय तेज संगीत बजता रहता था। कभी कभी उसके दोस्त आकार दुकान पर उसके साथ गप्पें मरते अन्यथा उसका मुहल्ले के किसी आदमी से कोई ताल्लुक नहीं था।
आसपास के गांवों का प्रमुख व्यापारिक केंद्र होने के कारण कस्बे के बाजार में बड़ी चहल पहल रहती थी। गांवों के किसान की जेब में जब फसल का पैसा आता तो व्यापारियों की पौ बारह हो जाती। पिछले
अनेक महीनों से एक एक पैसे को तरस रहे गाँव के चौधरी और लंबरदार फसल के चार पैसे जेब में पड़ते ही गहरे नील लगे सफ़ेद धोती कुर्ता पहन कर मूँछों पर ताव देते हुए ‘बाजार’ करने पहुँच जाते और धैर्य के साथ बगुले की तरह दाव लगाए बैठे बनिए की पैनी चौंच का शिकार होने लगते।
ऐसी ही एक ठंड की गुनगुनी सी दोपहर बाजार पुर रौनक था। बंजाबी बंधुओं की दुकान पर महिलाओं का एक झुंड पुराने टूटे फूटे तांबे पीतल के बर्तनों के बदले स्टील के चमचते कटोरी चम्मच खरीद रहा था। लाला कूड़ेमल की दुकान पर हमेशा की तरह ग्राहकों का मेला लगा था।
गाँव के बुजुर्गों के चेहरे पर अपना मन पसंद हुक्के का तंबाकू खरीदते वक्त ऐसे भाव आ रहे थे जैसे बिल्ली के हाथ दूध का कटोरा लग गया हो। रामकिशन चाय वाले का लौंडा चाय का छींका लिए इधर उधर भाग रहा था। विक्की की दुकान पर तेज आवाज में गाना बज रहा था “मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है।”
साइकिल और रिक्शे की घण्टियों की टनटन, अमरूद और केले वालों की लंबी टेर और बाजार की चहल पहल के बीच सुरेश तोतले की दुकान से ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी तो सभी का ध्यान उधर ही चला गया। सुरेश जी ने एक दुबले पतले से कुपोषण का शिकार हो गए बारह – तेरह साल के लड़के की गिरेबान थाम राखी थी।
लड़के ने एक फटी सी पतलून और चिथड़ा हो गया बनियान पहन रखा था। सुरेश जी चिल्ला चिल्लाकर भीड़ को संबोधित कर रहे थे “तोर है थाला तोर है। पैते चुलाता है। कोई पुलित को बुलाओ। तोर पकड़ लिया है।”
लड़का, सुरेश जी के कुछ कर गुजरने की पूरी हसरत का माध्यम बनकर उनकी पूरी ताकत से दो चार थप्पड़ खा चुका था और अधिक पिटने की आशंका में भयभीत आँखों से चारों ओर देख रहा था। वो बार बार गिड़गिड़ा रहा था “बाऊ साब, ये दो का सिक्का यहाँ दुकान के नीचे पड़ा था। मैंने उठा लिया। चोरी नहीं की।” मगर भीड़ बहरी होती है।
तभी किसी ने पीछे से फिल्मी स्टाइल में एक लात मारकर लड़के को नीचे गिराया और उस निर्बल कथित चोर को पीटने का सामाजिक दायित्व अपने हाथों में थाम लिया। ये बरतन वाले बंधु थे जिन्हे अपना पौरुष दिखाने का अवसर बड़े दिनों के बाद मिला था।
लड़का चीख रहा था और लोग उसके पेट में लातें मारे जा रहे थे। तब तक पूरा मुहल्ला ही नहीं एक अच्छी खासी भीड़ वहाँ जमा हो चुकी थी। मुहल्ले के हर आमो खास आदमी ने और कस्बे के जिम्मेदार नागरिकों ने लड़के पर अपने दो चार हाथ आजमाकर समाज सुधार के इस पावन यज्ञ में अपनी अपनी आहुति प्रदान की।
संगीत में खलल पड़ता देखकर विक्की ने पुलिस को फोन कर दिया था। पुलिस के दो जवान अर्धमूर्छित से हो गए लड़के को लगभग घसीटते हुए ले गए अन्यथा शान्तिप्रिय लोगों के मन में समाई हुई असुरक्षा की भावना की भेंट चढ़कर लड़का दम तोड़ देता।
उस दिन मुहल्ले में सारे दिन इस घटना की चर्चा रही। तोतले सुरेश की बहादुरी के काशीदे पढे गए और भविष्य में ऐसे चोर उचक्कों से और अधिक सावधान रहने की हिदायतें दी गईं। आज सुरेश जी की बड़े दिनों से शौर्य दिखाने की हसरत को भी तृप्ति मिली थी।
देश में जब गरम हवा चलती है तो इस कस्बे का ताप भी बढ़ने लगता है। लखनऊ या अलीगढ़ में दंगे होते हैं तो यहाँ भी लोग अपने घरों की छतों पर ईंट पत्थर और पेट्रोल की बोतलें भर भरकर रख लेते हैं।
प्रदेश में एक ऐसा दौर आया कि सारे गुंडे बदमाश और अपहरणकर्ता कुर्ता पायजामा पहनकर नेता हो गए और खद्दर की वर्दी को कवच की तरह स्तेमाल करते हुए कहीं जाति
की दबंगायी के नाम पर तो कहीं अपने गुंडे से परिवर्तित हो गए नेता के नाम पर अपहरण और फिरौती का धंधा करने लगे तो ये कस्बा भी भला इस संक्रमण से कहाँ अछूता रहने वाला था।
एक शाम मोटरसाइकिल पर सवार दो नौजवान लाला कूड़े माल की दुकान के सामने रुके। उनमें से एक लड़का पीछे की सीट पर से उतरा
और लाला को पेंसिल से लिखा हुआ तुड़ा मुड़ा सा पर्चा पकड़ाकर चला गया। पर्चे में लिखा था कि “मुहल्ले में रहना है तो बीस हजार का इंतजाम रखना वरना गोली मार दी जाएगी। हम तीन दिन बाद आएंगे।”
वीरता के आइकॉन, शौर्य की गाथाएँ सुनाने वाले और कुछ दिन पहले ही चोर को पकड़कर अपना पराक्रम दिखा चुके सुरेश जी की अध्यक्षता में मुहल्ले की एक मीटिंग बुलाई गई।
कस्बे में पहली बार हफ्ता वसूली का प्रयास और गोली मारने की धमकी पर न केवल गहन मंथन हुआ बल्कि एक व्यूह रचना की गई कि किस तरह बदमाशों का सामना करना है।
सब से पहले एक प्रतिनिधि मण्डल थाणे जाकर पुलिस को सूचना देगा। बदमाशों के वसूली करने से पहले सभी दुकानदार अपनी अपनी दुकानों पर लाठी, डंडा या कोई घातक हथियार लेकर तैयार रहेंगे। इधर उनके आते ही लाला जी एक छद्म इशारा करेंगे और सब लोग गुंडों पर टूट पड़ेंगे अन्यथा आज लाला जी कल कोई और।
इस रोग की जड़ पर ही प्रहार करना होगा।
अंत में लाला कूड़ेमल के सौजन्य ने चाय और समोसे उड़ाए गए। रंकिशन चाय वाले ने मुहल्ले की सुरक्षा सभा में अपना सहयोग देने के नाम पर आज चाय के पैसे किसी के खाते में नहीं लिखे थे। वो गरीब इतना ही कर सकता था। आज मुहल्ले में एक अजीब सी तूफान से पहले की शांति व्याप्त थी। सलीम हेयर ड्रेसर के संचालक कल से ही दुकान बंद करके गायब थे।
बर्तन वाले बंधु पिछले दो दिन से न जाने किन बड़ी तेज गतिविधियों में लगे थे। कभी कोई भाई गायब रहता तो कभी कोई नेता सा दिखने वाला उनकी दुकान पर चाय पी रहा होता। अचानक उनमें से दो भाइयों से पैंट बुशर्ट छोड़कर कुर्ता पाजामा पहन लिया था। उनके चेहरे के आश्वस्त भाव बता रहे थे
कि उन्होने अपने व्यक्तिगत सुरक्षा की व्यवस्था कर ली है। सुरेश जी की दुकान आज नौकर ही संभाल रहा था। बुरे वक्त को अपने परिवार के साथ ही गुजारने की बुजुर्गों की नसीहत पर अमल करते हुए
उन्होने कम से कम आज घर में ही दुबके रहने का निश्चय किया था। दोपहर होते होते एक दहशत का सा वातावरण पूरे मुहल्ले में अनुभव किया जा सकता था।
लाला कूड़ेमल अपनी दुकान में बार बार पहलू बदल रहे थे। वे उचक उचक कर गली के प्रवेश द्वार की ओर देख रहे थे। लालजी खानदानी और अनुभवी व्यक्ति थे। उन्होने मुहल्ले के लोगों से सहायता मांगने और पुलिस में रिपोर्ट करने के उपरांत भी एक अचूक व्यवस्था कर रखी थी।
रोज ही अखबारों में छपने वाली सनसनीखेज घटनाओं के मद्देनजर पोरा मुहल्ला सांस रोककर किसी अप्रत्याशित घटना की प्रतीक्षा कर रहा था कि तभी मोटी तोंद वाले दारोगाजी को लादे हुए मोटरसाइकिल ने प्रवेश किया। मोटरसाइकिल सीधे लालजी की दुकान के सामने आकार रुक गई।
“अरे क्या आफत आ गई लाला जी। जब फटती है तभी पुलिस याद आती है वरना मजाल है कि कभी एक कप चाय को भी पूछा है। अरे कोई आया क्या?” उन्होने बिना बाइक बंद किए तेज आवाज में पूछा।
“आप की कृपा है दरोगा जी अभी तक तो।” लाला जी ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
“बेकार पैनिक क्रिएट मत कीजिये। किसी ने आप के साथ मज़ाक किया होगा।” कहते कहते मोटरसाइकिल दूर चली गई।
शाम चार बजे थे। एक लाल मारुती कार ने मुहल्ले में प्रवेश किया। लाला जी की दुकान से चंद कदमों की दूरी पर गलती से एक रिक्शा वाला कार के सामने आ गया। कार से एक नौजवान उतरा और उसने रिक्शे वाले के नाक पर इतनी ज़ोर दे घूंसा मारा कि वहाँ खून झलकने लगा। रिक्शा वाला जमीन पर गिर पड़ा। लापरवाही से उसकी ओर देखे बिना लड़का लाला जी की दुकान की ओर बढ़ गया।
लाला कूड़ेमल की अनुभवी आँखें सारा मंजर समझ चुकी थीं। उन्होने बेबस सी कातर निगाहों से चारों तरफ देखा। पूरा बाजार एक बियाबान जंगल में बदल गया था। बर्तन वाले बंधु अनभिज्ञ से बनाकर दूसरी ओर देख रहे थे। विक्की की दुकान पर तेज संगीत बज रहा था और सुरेश का का नौकर शीशे पर कपड़ा मार रहा था।
लाला जी ने लुटिया से एक घूंट पानी पिया। तब तक लड़का उनके सामने पहुँच गया था। लड़के ने हाथ आगे बढ़ाया। लाला जी ने बिना एक शब्द बोले काँपते हाथों से अपनी दराज खोली और एक लिफाफा उसके हाथ में थमा दिया।
रवीन्द्र कान्त त्यागी