अनकहा दर्द – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

काम्या पार्क की बेंच पर बैठी आकाश में उड़ते पक्षियों को देख रही थी उसके आसपास कोई नहीं था थोड़ी दूरी पर कुछ लोग बैठे हुए थे कुछ टहल रहे थे शाम गहराने लगी थी धीरे-धीरे सभी पार्क से निकलने लगे पर काम्या वहीं बैठी रही वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी । वो अपने अजिस व्यक्ति के साथ उसने जिंदगी के दस साल बिताए उसके साथ जीवन के हर सुख-दुख को सहती हुई

जीवन की राह पर बढ़ती जा रही थी आज उसी व्यक्ति ने जीवन के इस मोड़ पर जब उसको सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत थी उसका हाथ छुड़ाकर उसकी ही बहन का हाथ पकड़ लिया।काम्या यह समझ ही नहीं पा रही थी कि उसके त्याग, बलिदान और प्यार में कहां कमी रह गई की उसके पति ने उसकी भावनाओं की भी परवाह नहीं की,यह भी नहीं सोचा कि, उसके दिल पर क्या बीतेगी

और कितनी आसानी से कह दिया कि,वह तलाक़ चाहते हैं क्योंकि मैंने उन्हें बाप बनने का सुख नहीं दिया और वह पिता बनना चाहते हैं वह भी अपने बच्चे का जबकि कभी उन्होंने ही कहा था कि हम बच्चा गोद ले लेंगे मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं तुमसे दूर रहकर जी नहीं सकता और आज उसी शख्स ने कितनी आसानी से दूध की मक्खी की तरह उसे अपनी जिंदगी से निकालकर फेंक दिया।

तभी किसी की आवाज सुनकर काम्या की तंद्रा भंग हुई उसने सिर उठाकर देखा तो उसकी पड़ोसन रेखा उसके सामने खड़ी हुई थी जो उससे कह रही थी क्या बात है किस ख़्याल में खोई हुई हो तुम्हें इसका अहसास भी नहीं है कि, सभी यहां से जा चुकें हैं और तुम अकेली पार्क में बैठी हो घर नहीं

जाना है क्या? चलना है पर अपने घर काम्या ने गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।  अपने घर से तुम्हारा क्या मतलब है तुम अपने ही घर जाओगी इसमें कहने की क्या बात है? रेखा ने आश्चर्यचकित होकर कहा।  नहीं रेखा जिस घर में मैं रहती थी वह घर अब मेरा नहीं है सिर्फ़ मेरे पति का है जहां आज तक मैं एक मेहमान की तरह थी मेहमान को एक न एक दिन अपने घर जाना ही पड़ता है

आज मैं भी अपने घर जा रही हूं बहुत दिनों तक किसी और के घर में मेहमान बनकर रही आज उसने मुझे अपने घर से जाने के लिए कह दिया मुझे बहुत पहले ही समझ जाना चाहिए था कि,वह घर अब मेरा नहीं रहा काम्या ने दर्द भरी आवाज में कहा।

  तुम क्या कह रही हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है साफ-साफ बताओ क्या बात है रेखा ने काम्या के बगल में बैठते हुए पूछा।  “रेखा मेरे पति ने मेरा विश्वास चकनाचूर कर दिया जिस विश्वास की डोर के सहारे मैं आज तक बंधी थी

वो खंड-खंड हो गई मेरे पति ने मेरे साथ विश्वासघात किया उन्होंने मेरी ही बहन से शादी कर ली है अब वो मुझसे तलाक चाहते हैं उनका कहना है , मैं अब उनके साथ नहीं रह सकती क्योंकि उनकी दूसरी पत्नी नहीं चाहती कि, मैं उस घर में रहूं वो घर जिसे मैंने अरमानों से सजाया संवारा था आज वो घर मेरा नहीं रहा मेरे पति ने एक ही झटके में प्यार के सारे बंधनों को तोड़ दिया

रेखा क्या मैं इतनी बेवकूफ थी कि, मुझे अपने पति और बहन का विश्वासघात दिखाई नहीं दिया या सब कुछ जानते हुए मैंने उसे अनदेखा किया”    इतना कहते-कहते काम्या की आवाज भर्रा गई और उसकी आंखों से गंगा-जमुना बह निकली 

 काम्या की बात सुनकर रेखा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा फिर कुछ सोचकर गहरी सांस लेकर उसने पूछा, “अब तुम क्या करोगी काम्या”??

” मैं कल ही यहां से बहुत दूर चली जाऊंगी ” काम्या ने जबाब दिया 

 काम्या की बात सुन रेखा ने गुस्से में कहा,” तुम क्यों अपना घर छोड़कर जाओगी तुमने एक बार मुझे बताया था वो घर तुम्हारे नाम है तो तुम क्यों यहां से जा रही हो तुम उसी घर में रहो और उन दोनों विश्वासघातियों को उस घर से निकालो”

रेखा की बात सुन काम्या ने चौंककर रेखा को देखा फिर अचानक उसके मुरझाए चेहरे पर मुस्कान तैर गई उसने कुछ सोचते हुए कहा,

” रेखा तुम्हारी बातों ने मेरी आंखें खो दी मैंने भी निर्णय ले लिया है अब मैं अपने घर को छोड़कर नहीं जाऊंगी  बल्कि उन दोनों को उस घर से बाहर निकालूंगी यही उन दोनों की सजा है अब मैं उसी घर में अकेली सम्मान के साथ रहूंगी वो घर मेरे नाम है” काम्या ने दृढ़ता से कहा। 

” बिल्कुल सही फैसला लिया है तुमने जब तुम्हारे पति और बहन ने तुम्हारी भावनाओं की परवाह नहीं की तो तुम्हें भी उदारता दिखाने की जरूरत नहीं है उस घर पर तुम्हारा अधिकार है तुम्हें कोई वहां से निकाल नहीं सकता अब हम औरतों को अपनी सोच बदलनी होगी

असहाय बनने से काम नहीं चलेगा अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी पड़ेगी तभी हम स्वाभिमान से जी सकेंगे अगर कमजोर बनकर हथियार डाल दिए

तो हमें और भी दबाया जाएगा उठो अपने घर चलो जिन्होंने जबरदस्ती तुम्हारे घर पर अधिकार किया हुआ है उसे बाहर निकालो एक नई राह बनाओ नई सुबह तुम्हारे स्वागत की तैयारियां कर रही है” रेखा ने काम्या का हाथ पकड़कर उसे उठाते हुए मुस्कुरा कर कहा। 

डॉ कंचन शुक्ला

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश 

#विश्वास की डोर 

3/7/2025

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