मेघना ! मेघना …… पापा फ़ोन कर रहे हैं, उनसे बात कर लो ।
ठीक है…. कहिए उनसे , अभी पाँच मिनट में बात करती हूँ । गमलों की मिट्टी बदल रही थी…बस हाथ धो रही हूँ ।
जैसे ही मेघना ने पति संजय के मुँह से सुना कि पापा का फ़ोन है तो उसने जल्दी- जल्दी हाथ धोने शुरू कर दिए । ज़्यादातर बेटियों की तरह मेघना को भी पापा की चिंता रहती थी । मम्मी के जाने के बाद तो , मेघना पापा को लेकर ऐसी चिंतित रहती थी जैसे कोई माँ अपने बच्चे के लिए ।
मम्मी के जाने के बाद एक साल बड़ी मुश्किल से उनका अपना घर खुला रहा क्योंकि दोनों ही भाई- बहन को अच्छा नहीं लगता था कि बच्चों के रहते पापा अकेले रहे । जैसे ही बरसी हुई, मेघना ने कहा —
मोहित , मैं पापा को अपने साथ ले जाती हूँ ।
नहीं- नहीं दीदी, आप क्यों ले जाएँगी? मैंने तो पापा की टिकट बुक करवा ली थी । मुझे तो कल जाना पड़ेगा, आप रुकोगी क्या कुछ दिन ?
हाँ… अभी मेरी और बच्चों की छुट्टियाँ हैं और वैसे भी अगर हम पापा के सामने ही घर का सामान समेटकर बंद करके चल पड़ेंगे तो उन्हें ज़्यादा दुख होगा इसलिए तुम उन्हें लेकर जाओ , मैं दो/ चार दिन बाद घर का सामान समेटकर चाबी अपने साथ ही लेकर जाऊँगी ।
बस उसके बाद पापा दो साल से मोहित के साथ ही हैदराबाद में रहते थे । मेघना बच्चों के साथ साल में दो बार पापा के पास रहने भी गई थी और पिछली दीवाली पर उसने पापा को अपने पास दिल्ली ही बुला लिया था ।
मेघना क़रीब दो महीने से महसूस कर रही थी कि पापा बात करते- करते भावुक हो जाते थे…अपने घर को …. शहर को बहुत याद करते हैं और बार-बार मेघना से पूछते थे—
मेघना ! संजय का ट्रांसफ़र पानीपत नहीं हो सकता क्या ?
हो तो सकता है पापा …. पर दिल्ली छोड़कर भला कौन जाना चाहता है? क्या बात है…. आपको कोई दिक़्क़त है क्या मोहित के पास ?
नहीं…. सब ठीक है ।
ये सब सोचते- सोचते मेघना ने हाथ पोंछे और पापा को फ़ोन मिलाया—-
हाँ पापा , वो गमलों के पौधों की कटाई- छँटाई में लगी थी बस … फ़ोन अंदर था । ….. हाँ- हाँ… संजय ने ही बताया आपके फ़ोन के बारे में…. आप कैसे हैं पापा ?
मेघना का इतना कहना था कि पापा का गला रुँध गया और उन्होंने फ़ोन रख दिया । मेघना की भी आँखें भर आई । उसने तुरंत मोहित को फ़ोन किया-
मोहित! कहाँ हो तुम ? पापा को क्या हुआ?
हम लोग तो दिव्या की बहन की बर्थडे पार्टी के लिए बाहर आए हैं….. पापा तो ठीक है । हम पंद्रह मिनट पहले ही तो घर से निकले हैं । दो- एक घंटे में पहुँच जाएँगे वापस …. पापा के पास चौकीदार को छोड़कर आएँ हैं , वो रहेगा तब तक ।
भाई की बात सुनकर मेघना को तसल्ली हो गई । थोड़ी देर में उसने फिर पापा को फ़ोन किया—-
पापा …. आप भी चले जाते ना बर्थडे पार्टी में…. मन बहल जाता ….
ना बेटा … एक तो दिव्या की बहन के ससुराल वालों की भाषा समझ नहीं आती फिर सब अपनी- अपनी कंपनी में मस्त हो जाते हैं ।
कह तो आप ठीक रहे हैं । चौकीदार चाचा हैं ना आपके पास ?
इस तरह मेघना आधा पौन घंटा पापा के साथ बात करती रही हालाँकि मन ही मन वह सोच रही थी कि कल सुबह ऑफिस भी जाना है…. नींद ना उचट जाए । फिर जब मेघना ने देखा कि पापा बातचीत करके हल्के हो गए तो उसने धीरे से सोने की इजाज़त माँगी ।
लेकिन दो दिन बाद ही मोहित के फ़ोन ने मेघना की नींद उड़ा दी—
दीदी, पता नहीं, पापा क़रीब एक महीने से अजीब सा व्यवहार कर रहे हैं…. आप प्लीज़ कुछ दिनों के लिए आ जाइए ना ।
और तीसरे ही दिन मेघना हैदराबाद पहुँच गई । वो तो भगवान की दया से संजय बहुत ही समझदार हैं वरना दोनों बच्चों की परीक्षा चल रही थी…
मोहित और दिव्या ने बताया कि पापा छोटी- छोटी बात पर रुठ जाते थे, पड़ोसियों के साथ बैठ कर इस तरह की बातें करते , जिन्हें सुनकर ऐसा लगता था कि उनका तो घर में कोई अस्तित्व ही नहीं है मानो बहू- बेटा उन पर बहुत ज़ुल्म कर रहे हो …. आदि- आदि ।
पापा तो बहुत ही सुलझे हुए इंसान थे …. आख़िर ऐसा क्या हो गया था? तुम दोनों चिंता मत करो , सब ठीक हो जाएगा । यह कहकर मेघना ने भाई- भाभी को हौसला दिया ।
अगले दिन सुबह ही पापा ने मेघना से कहा —- देखा तुमने …. मेरी क्या हैसियत है इस घर में …. सुबह अख़बार आते ही मोहित साहब का पढ़ना ज़रूरी है । मेरी तरफ़ तो रद्दी फेंकी जाती है…..
पा….पा….. आप कब से ऐसी नकारात्मक बातें करने लगे । उसे ऑफिस जाना है…. आप बाद में आराम से पढ़ लेना । चलिए…. उठिए…. कितना सुहाना मौसम है , पास में ही पार्क है , वहाँ का एक चक्कर लगा आइए ।
उस दिन मेघना पापा को अपने साथ लेकर पार्क चली गई । एक बार वहाँ पहुँच कर पापा पक्षियों की चहचहाहट में ऐसे खो गए कि उन्होंने उठने का नाम ही नहीं लिया । पूरे डेढ़ घंटे बाद जब मेघना पापा के साथ घर पहुँची तो मोहित और दिव्या ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे तथा बच्चे अपने- अपने स्कूल की ।
मेघना …. मेज़ पर फ़्लास्क में चाय पड़ी होगी , एक कप निकाल दे …बेटा और तू भी पी ले …. सब बिजी हैं, बस हमारे पास काम नहीं है ।
नहीं पापा , ऐसा क्यों कह रहे हैं । अपने समय में आपने भी खूब काम किया है । आपके कारण ही तो आज आपके बच्चे फल-फूल रहे हैं । अब आप उम्र के इस दौर का आनंद लीजिए ना ।
तीन/ चार दिन में ही मेघना समझ गई कि असली समस्या पापा के मन की भावनाएँ हैं । बढ़ती उम्र में उन्हें अकेलापन महसूस होता है….असुरक्षा का भाव है, उन्हें ऐसा लगने लगा कि अब उनकी कोई उपयोगिता नहीं रही , उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है……….मोहित- दिव्या और बच्चों की भी कोई गलती नहीं है क्योंकि उनके पास करने के लिए बहुत काम हैं ।
मेघना ने बारीकी से चीजों को समझा और भाई-भाभी तथा बच्चों के जाने के बाद बाद अपने पापा से बोली —-
पापा…. आपको याद है कि जब भी दादा हमारे पास पानीपत आते थे …. चार/ पाँच दिन में ही वापस चले जाते थे । उन्हें हमेशा यही शिकायत रहती थी कि पढ़- लिखके बेटे के पास बाप के लिए टाइम नहीं रहा । यहाँ तक कि वे आपको इस बात का भी उलाहना देते थे कि पानीपत का मकान बनाने में उन्होंने सहायता की, नहीं तो आप कभी मकान नहीं बना पाते और जब मम्मी उन्हें कोई छोटा- मोटा काम बता देती थी तो उन्हें ऐसा लगता था कि उनके साथ नौकरों जैसा बर्ताव हो रहा है…..
हाँ मेघना , बापू को यह बात समझ में नहीं आती थी कि मेरे सिर पर कितनी ज़िम्मेदारी थी । अरे …. अगर तेरी माँ कोई काम बता भी देती थी तो बढ़िया था ना …. ख़ाली बैठे- बैठे तो शरीर बेकार हो जाता है ।
पापा…मैं यही बात आपको समझाना चाहती हूँ कि अपने विचारों को अपने नियंत्रण में रखिए । अपने बच्चों की मजबूरी समझिए….आप क्यों सोचने लगे कि अब आपका महत्व नहीं रहा ….. कोई आपका ख़्याल नहीं रखता …. हम सब आपको प्यार करते हैं । पापा , ये तो आप भी जानते हैं कि परिवार में सबको समझौता तो करना ही पड़ता है और विचारों में तालमेल बनाकर चलना पड़ता है ।
स्कूल में पढ़ाते-पढ़ाते …. तू तो मेरी भी मास्टरनी बन गई मेघना ….
पापा , क्या आप नहीं चाहते कि आपके बच्चे भी आपकी तरह पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ सर्विस पूरी करके रिटायर हो?
मेघना पूरे बीस दिन अपने पापा के साथ रही और उनकी दिनचर्या व्यवस्थित करने में काफ़ी सहयोग किया ।उसने मोहित और दिव्या से भी कहा —
मोहित, केवल पापा को ही नहीं…. कुछ बातों का ध्यान रखने की तुम्हें भी ज़रूरत है । मैंने देखा है कि तुम अख़बार तो पढ़ते ही नहीं, केवल सरसरी नज़र डालकर …. बिना ठीक से तह किए फेंक देते हो …. अगर क़रीने से मेज़ पर रख दो तो पापा को वह रद्दी नहीं लगेगी । और अगर तुम पापा से कह दो कि हेडलाइन सुना दें तो उन्हें छोटी सी बात से कितनी ख़ुशी मिलेगी ।
दिव्या, अगर ऑफिस की तैयारी करते- करते तुम , प्यार से फ़्लास्क से चाय निकालकर पीने के लिए कह दोगी तो उनका मन बेकार की बातों की तरफ़ नहीं जाएगा ।
दीदी… सुबह हज़ारों काम होते हैं और शाम को थक कर आते हैं, घर आकर कहाँ मन करता है बातें करने का ?
और जो इंसान पूरा दिन घर में अकेला बैठा इस इंतज़ार में रहता है कि शाम को उसके बच्चे आकर बातें करेंगे पर तुम सब अपने कमरों में घुस जाते हो तो उसकी मानसिक स्थिति कैसी हो जाएगी…. ये कभी मत भूलो कि उम्र के इस दौर से तुम्हें भी गुजरना है ।
बाक़ी तुम दोनों को ही सोच- समझकर चलना है । मैं तो केवल इतना कह सकती हूँ कि तुम एक – दो महीने मेरी सलाह मानकर देख लो वरना मैं पापा को अपने साथ ले जाऊँगी क्योंकि बच्चों के होते हुए पापा इस उम्र में अकेलेपन को नहीं झेलेंगे । वैसे मैंने पापा से भी बात की है, लेकिन उनसे इस उम्र में अधिक बदलाव की उम्मीद मत रखना ।
अगले दिन मेघना वापस लौट आई और हर रोज़ कभी पापा से , कभी मोहित से तथा कभी दिव्या से बातचीत करके खोजखबर लेती रही । हाँ…. इस बार उसने यह भी नियम बना लिया था कि संडे को पूरा परिवार एक साथ वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग करता , एक दूसरे को छेड़ते, शाबाशी देते और बच्चे भी अपने अनुभव साझा करते ।
धीरे-धीरे छह महीने गुज़र गए और एक दिन मेघना ने पापा से कहा —
पापा, मोहित और दिव्या आपका ध्यान तो रखते हैं ना ? कोई परेशानी तो नहीं?
नहीं बेटा …. परेशानी कोई नहीं… कभी-कभी वे दोनों कुछ भूल भी जाते हैं तो मैं याद दिला देता हूँ । उनके ऊपर भी कई ज़िम्मेदारी है । और मास्टरनी , तू कब चक्कर लगाएगी?
पापा , अगले महीने मेरी छुट्टियाँ है…. मैं आपकी टिकट बुक करवा रही हूँ । हम इस बार की छुट्टियाँ पानीपत वाले घर में गुज़ारेंगे ।
वाह ! और सुन , मैं मोहित तथा दिव्या को भी साथ चलने के लिए कहूँगा, मोहित भले ही मना कर दे पर दिव्या मेरी बात कभी नहीं टालेगी ।
अपने पापा के मुँह से इन शब्दों को सुनकर मेघना समझ गई कि दिव्या इस गूढ़ सच्चाई को अच्छी तरह से समझ गई है कि प्रकृति के चक्र से हर किसी को गुजरना पड़ता है ।
लेखिका : करुणा मलिक
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