“ मैडम जी, प्लीज मेरा रूम बदल दें, मुझे संगीत के साथ नहीं रहना, सिर्फ नाम की संगीत है, एक भी सुर सीधा नहीं निकलता”।वेदा ने कालिज आफिस में आकर कहा
“ क्यों क्या हो गया, हरलीन मैडम ने चशमा उपर करते हुए कहा”।
मैडम संगीत और मैं रूम मेट है, अब एक कमरे में रहना है तो कुछ तो एडजस्टमैंट करनी होगी। उसके साथ रहना बहुत ही मुशकिल है। बात बात पर चिल्लाती है। जरा सी रात को लाईट जला लो या सामान रखने की बात हो, मतलब कुछ भी, अब ये घर तो है नहीं, पता नहीं कैसा मिजाज है, जब भी मुँह खोलती है, मानो अंगारे उगलती है। प्लीज , मुझे या उसे किसी दूसरे कमरे में शिफ्ट कर दें।
“ चलो देखती हूं” कह कर हरलीन मैडम ने वेदा को क्लास में जाने को कह दिया लेकिन खुद सोच में डूब गई।वेदा ठीक कह रही थी। संगीत सचमुच ही बहुत गर्म मिजाज थी। इसमें उस बच्ची का कसूर नहीं, उसका पालन पोषण ही ऐसे हालात में हुआ।
एडमिशन के समय जब उसकी ममी आई थी तो उसने कुछ बातें उससे साझां की थी। होस्टल वार्डन होने के नाते हरलीन को हर बच्ची की जानकारी होनी जरूरी थी। विशेषतौर पर अगर कुछ विशेष बात हो। संगीत की माँ माधवी ने बताया कि पांचवी क्लास से ही वो होस्टल में रह रही है। माधवी और उसके पति यानि कि संगीत के मां बाप की आपस में कभी नहीं बनी।
शादी के बंधन में तो बंध गए लेकिन दोनों में छतीस का आकड़ा रहा। शादी के साल बाद ही संगीत का जन्म हो गया। दोनो नौकरी करते थे तो संगीत आया के हाथों ही पली। माधवी और उसके पति की रोज लड़ाई होती , कभी कभी तो नौबत मारपीट और बर्तन तोड़ने तक भी आ जाती, तो ऐसे वातावरण में पलने वाला बच्चा कैसा होगा।
माधवी को यह बात जब समझ में आई तो बहुत देर हो चुकी थी। पांचवी में पढ़ती माधवी को होस्टल में भेज दिया तो वह बहुत रोई चिल्लाई और उसका मिजाज ऐसा हो गया।परिवार के समझाने पर आपसी सहमति से दोनों का तलाक हो चुका है। संगीत के पापा तो विदेश सैटल हो चुके है। पैसे की कोई कमी नहीं, माधवी भी बहुत पढ़ी लिखी और मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती है। काम के सिलसिले में वो अक्सर देश विदेश के टूर पर रहती है।
छुट्टियों में भी संगीत घर पर कम ही आती थी क्योंकि माधवी का तो कोई ठिकाना नहीं था। समझ आने पर संगीत को घर के नाम से ही चिढ़ हो गई थी। पढ़ाई में बहुत अच्छी थी, पंरतु जिस वातावरण में वो पली उससे उसका स्वभाव चिड़चिड़ा, तुनकमिजाज और तेज हो गया। जल्दी ही आपे से बाहर हो जाती। सहनशक्ति तो थी ही नहीं।
वेदा की बात तो ठीक थी। वैसे संगीत की मां ने तो कहा था कि संगीत को अलग कमरा दे दिया जाए, लेकिन अभी ऐसा संभव भी नहीं था और कालिजों के कुछ नियम भी होते हैं।
प्रिसिपंल तक भी बात पहुंच चुकी थी, कोई और होती तो शायद अब तक कालिज से निकाल दी गई होती लेकिन माधवी ने मोटी डोनेशन देकर मुंह बंद कर दिया था।
दो महीने हो चुके थे। संगीत को हरलीन ने कई बार समझाया और वो समझ भी गई, माफी भी मांगी लोकिन फिर वहीं लड़ना और मानों अंगारे उगलना। शायद उसके बस में नहीं था। होस्टल में एक कमरा खाली हो गया तो उसको वहां शिफ्ट करने की प्रमिशन मिल गई। इससे पहले कि वो शिफ्ट करती, रात को जब वो अपने कमरे में जाने के लिए सीढ़िया चढ़ रही थी तो उँची एड़ी के सैंडल के टेढ़ा होने से उसका पैर मुड़ गया और वो धड़ाम से लुढ़कती हुई नीचे आ गिरी।
पूरा पैर लहूलुहान हो गया, जल्दी से उसे हस्पताल ले जाया गया। सिर पर भी चोट लगी, पैर पर पलास्टर और वो तीन दिन तक बेसुध रही। उसकी मां को संदेश भिजवाया तो वो दुबई टूर पर थी। अगले दिन वो आई, उसके होश में आने पर बुझे मन से उसे जाना पड़ा। नौकरी की मजबूरी थी।
संगीत मां की मजबूरी भी समझती थी लेकिन आखिर तो बच्ची थी। उसे डाक्टर ने बैड रैस्ट के लिए कहा और रूम में शिफ्ट कर दिया गया। अब तक वेदा का जाना भी टल रहा था। इन दिनों दोनों की बातचीत बहुत कम हुई थी। संगीत चुपचाप बिस्तर पर लेटी रहती।
कालिज की और से उसका पूरा ध्यान रखा जाता, नर्स समय पर आकर उसे दवाई वगैरह देने के इलावा और भी जरूरते पूरी करवा जाती। लेकिन उसके मिजाज के चलते कोई उसकी सहेली नहीं बनी थी।
वेदा ने फिर भी उसका ख्याल रखा और हर रोज के लैक्चर के नोटस भी उसे देती ।अब संगीत का प्लास्टर खुल चुका था। वेदा ने अपना सामान पैक कर लिया तो संगीत जो अब तक चुपचाप बैठी थी, उसके दोनों हाथ पकड़कर बोली,” क्या अपनी बहन को छोड़कर चली जाओगी, उसे माफ करके सुधरने का मौका नहीं दोगी”।
वेदा उसकी और देख कर कुछ कहने ही लगी थी कि संगीत कान पकड़ कर अत्यंत मासूमियत से बोली , “ प्लीज, प्लीज, एक मौका दो”। मुझे पता चल गया अपनी गल्तियों का, अब मैं सच में अंगारे नहीं उगुलूगीं, मीठा बोलो, मिश्री घोलो, मान जाओ ना बहना।
वेदा भी संगीत को जान गई थी कि वो दिल की बुरी नहीं, हालात की मारी है, और दोनों गले लग गई।
जिस घर में मां बाप की लड़ाई होती है, वहां बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
मुहावरा- अंगारे उगलना