मनोज के चेहरे पर उड़ती हुई हवाइयों को देख घर में सबको बड़ी हैरानी सी हो रही थी और साथ हीं साथ किसी अनहोनी की आशंका से मन विचलित भी हो रहा था…
कल तक घर के हर सदस्य के साथ हंसी-ठिठोली करने वाले मनोज को आज क्या हो गया है??
हर आहट पर कुछ ऐसे चौंक पड़ता है जैसे किसी ने उसकी चोरी पकड़ ली हो…
घर के जनाना हिस्से से लेकर पुरूषों के दालान तक आने जाने की छूट बस मनोज को हीं थी..
बाकि पुरूष समय समय पर हीं घर आया करते थे..
अपनी चाची ताई भाभी सबकी चोरी चुपके चिटि्ठयां पहुंचाने से लेकर उनके लिए हलवाई के यहां से चीजें छुपा कर लाने तक का सारा कार्य वहीं किया करता था..
घर के पुरूषों से अधिक तो महिलाएं मनोज की इस हालत को लेकर चिंतित थी..
मनोज की मां ने दालान में खबर भिजवाया और अपने ज्येष्ठ जी को बुलाकर पर्दे की ओट से बोली- भाई साहब देखिए ना कर तक इतना हंसने बोलने वाला हमारा बड़का आज बिल्कुल हीं गुमसुम सा हो गैल है?? जाने कवन दुःख उसके कलेजा को चीरत रहे कुछ नाही समझ आए रहे..
आप हीं कुछ पूछिए ना…
बड़े ताऊजी जिन्हें लोग बड़ी इज्जत और सम्मान देते हैं पूरे गांव में..
उन्होंने कहा कि,, हां मनोज के माई हम देखें हैं बबुआ कुछ गुमसुम सा कुछ डरा सहमा सा लग रहा है…
हम पूछते हैं क्या मामला है??
बड़े ताऊजी ने मनोज को पूरे घर में ढूंढ लिया मगर वो कहीं भी नहीं दिखा…
कभी यहां तो कभी वहां …
पूरे घर में वो बड़ी हीं विचलित अवस्था में बस घूमे जा रहा है..
ताऊजी समझ गये कि अभी मनोज कहां हो सकता है…
मनोज का जब भी मन विचलित होता है वो दादी के पुराने घर में जाकर बैठ जाता था…
ताऊजी जैसे हीं पुराने घर में पहुंचे मनोज सच में उन्हें वहीं मिल गया…
बड़े ताऊजी ने जैसे हीं मनोज के कंधे पर हाथ रखा…
अपने विचारों में खोया हुआ मनोज चौंक उठा और कांपते स्वर में बोल पड़ा…
नहीं नहीं…
मैंने कुछ नहीं किया…
मैं मैं कुछ नहीं जानता….
छोड़ दो…..
छोड़ दो….
मुझे….
ताऊजी मनोज की ये हालत देख
आश्चर्यचकित रह गए…
और झट से मनोज को अपने गले से लगाते हुए बोले- क्या हुआ बबुआ??
तू ठीक तो है??
अरे मैं हूं मैं…
मैं तुम्हें पकड़ने नहीं आया हूं..
देख… देख मुझे..
और बिना डर के मुझे सारी बातें बता…
मनोज को काटो तो खून नहीं..
भय से चेहरा पीला पड़ रहा था..
कभी इधर तो कभी उधर देखते हुए मानो किसी से स्वयं को बचाने कि प्रयत्न कर रहा था..
भय से कांपते हुए गले से आवाज भी नहीं आ रही थी…
डरते डरते बस इतना हीं कह पाया वो..
ताऊजी.. वो सुशील की बहू…
वो… वो…
ताऊजी ने पास रखें मटके से पानी निकाल कर मनोज को पिलाया फिर बोले- हमें पूरी बात बताओ..
क्या हुआ सुशील की बहू को??
मनोज तो जैसे कहीं अंतरिक्ष में पहुंच गया था..
एक अजीब सी आवाज में बोलता जा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर से आत्मा निकल कर कहीं दूर जा बैठी है..
ताऊजी वो जल गई..
उसे जला दिया..
मार दिया… मार दिया…
इतना कहते-कहते वो वहीं बेहोश हो गया..
अपने पुत्र की हालत देख मनोज की मां तो जैसे मृतप्राय सी हो गई थी..
भरी हुई आंखों से बस अपने पुत्र को देखे जा रही थी…
आनन-फानन में वैद्य जी को बुलाया गया।
वैद्य जी ने नब्ज देखी और मनोज को होश में लाया और एक नींद की दवा देते हुए बोले- अभी बच्चे को जी भर कर सोने दीजिए..
अभी इसे गहरा सदमा लगा है..
किसी अप्रिय घटना का इसके उपर बहुत हीं बुरा असर हुआ है..
क्या आप में से कोई हमें बता सकता है कि मनोज कल कहां गया था…
मनोज की मां ने कहा – वैद्य जी हमरा बबुआ तो रोज हीं गाड़ी लेकर जात रहे,कल भी गवा रहे लेकिन जबसे लौट के आए रहे हमरा बबुआ के इस दशा….
मनोज की मां फूट-फूटकर रो पड़ी..
मनोज के पिता ने तुरंत संभाल लिया उसे और बोले- हिम्मत से काम लो वसुंधरा हमारा मनोज ठीक हो जाएगा…
जाने किस पापी ने क्या किया इसके साथ..
और ये बार बार सुशील की बहू का नाम क्यों ले रहा है…
हमें पता करना चाहिए कि मामला क्या है???
ताऊजी बोले – हां तुम बिल्कुल सही कह रहे हो छोटे हमें सुशील के घर चलना चाहिए कि आखिर क्यों हमारा मनोज बार बार उसकी बहू का नाम लिए जा रहा है,उन लोगों ने आखिरकार क्या किया है??
जिसका इतना बुरा प्रभाव पड़ा है हमारे बबुआ पर….
अभी हमें मनोज को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए,अभी वो भयभीत हैं उसे अपनत्व और सहयोग की आवश्यकता है…
मनोज की मां तुम सभी घर की महिलाओं को एकत्रित कर के मनोज के साथ हीं रहो..
वैद्य जी ने नींद की दवाई दी है शायद इसे चैन मिले…
इतना कहकर ताऊजी सुशील के घर को चल पड़े…
अपने भय और यथार्थ के बीच झूलते हुए मनोज पर,नींद की दवा भी बेअसर रही..
जैसे हीं सोने का उपक्रम करने लगता बीते दिन की वो भयावह घटना किसी चलचित्र की भांति बंद आंखों के सामने चलने लगती..
सुशील की बहू धू धू कर जलती हुई..
बचाओ बचाओ…
कोई.. कोई तो पानी दे दो..
मुझे बचा लो..
मनोज जैसे हीं आगे बढ़ा उसे दो लोगों ने थाम लिया…
खबरदार जो उसे बचाने गये..
और…
वो अधजली स्त्री
चीथड़ों में बंटी हुई..
रक्त और मांस के साथ
अस्थियां भी अस्त-व्यस्त..
उसे जालिमों ने बोरे में भर दिया…
घुट-घुट कर चलती हुई सांसे
चाहकर भी बंद नहीं हो पा रही थी…
मुंह में एक जला हुआ कपड़ा ठूंस कर उससे कराहने तक का भी अधिकार छीन लेने वाले..
कैसे कहेंगे स्वयं को मानव…
पुआल से भरे गाड़ी में भर कर…
चल दिए उसका अंतिम संस्कार करने..
एक अधमरी हुई स्त्री
जो कि गर्भवती थी…
जिसे मरने तक का भी हक नहीं मिला उन लोगों से जिनके घर बहू बनकर आई थी वो…
मनोज ने जब गाड़ी चलाने से मना कर दिया तो उसे भी धमकाया गया कि चल चुपचाप नहीं तो..
और खबरदार जो इस घटना का जिक्र किसी के सामने किया तो…
कैसे बहाने से बुलाया था उसे उसके हीं मित्र ने और वो भी अपनी ट्रेक्टर के साथ…
बोरे से निकली वो स्त्री
हां कौन कह सकता था कि वो स्त्री है…
मांस के चीथड़ा थी वो..
आज मानवता शर्मशार हो रही थी कहीं कोने में..
चले थे वो फिर से उसे जलाने जो
जल कर भी अभी जल हीं रही थी…
और ये क्या…
ये कैसा दृश्य था..
पत्थरों का भी कलेजा कांप उठे
ऐसा..
मरते मरते भी मां होने का कर्ज चुका गई…
अपनी ममता का फर्ज निभा दिया उसने…
सुशील की बहू की अधजली सी कोख अचानक से फट पड़ी,
और उसकी कोख से जला हुआ नवजात शिशु बाहर आ गया..
अपने हिस्से की समूची बदनसीबी लिए हुए..
भयावह दृश्य अब तो और भी भयावह हो उठा..
अधजला सा वो मासुम जैसे इस पूरी सृष्टि पर अट्टहास कर रहा था..
मनोज का तो कलेजा कांप उठा वो बच्चा बढ़ते हुए उसके बेहद नजदीक आ गया और उसकी आंखों में अपनी आधी जली आंखें डालकर बोला – बता तुम्हारी मां के साथ कोई ऐसा करता तो तुम्हें कैसा लगता???
ये दृश्य इतना डरावना था कि मनोज तुरंत आंखें खोल कर चीख पड़ा..
नहीं…
उसकी चीख सुनकर सभी घरवाले दौड़ पड़े..
मनोज अपने मन की कसक को कैसे कहे, किससे कहें कुछ भी सोचने और समझने के योग्य नहीं था वो…
जैसे तैसे रात बीती सुबह की पहली किरण के साथ ताऊजी अपनी गाड़ी में जाने कहां जाने की तैयारी कर रहे थे…
उनके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे वो किसी महा समर पर जा रहे हों..
उनके हाव-भाव देख किसी में हिम्मत नहीं हुई कोई प्रश्न करने की….
दोपहर के समय पूरे लाव-लश्कर समेत ताऊजी सुशील के घर पहुंचे..
इतने सारे पुलिस वालों को देख उनके चेहरे का रंग हीं उड़ गया…
मनोज को सरकारी गवाह बना कर सभी अपराधियों को कारागार में डाल दिया गया..
आज कचहरी में बहुत हीं गहमा-गहमी का माहौल है सभी अपराधियों का आज फैसला आने वाला है..
आखिरकार वो घड़ी भी आ गई जब सुशील की बहू के गुनहगारों को फांसी की सजा सुनाई गई..
आज मनोज के मन की कसक सदा सदा के लिए खत्म हो गई..
घर वाले अपने बच्चे के लौट आने की खुशी में झूम उठे और मनोज ने अपनी कल्पनाओं में देखा…
सुशील की बहू के चेहरे पर एक शुकून भरी मुस्कान…
डोली पाठक
पटना बिहार