मेरी भाभी – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral Stories in Hindi

ग्रेजुएशन के लिए जब मैं 12वीं के बाद कॉलेज में आई तो पहले ही दिन सुगंधा ने मुस्कुराते हुए मुझे मेरे सामने अपने हाथ फैला कर कहा “मैं सुगंधा और तुम?”

“ नेहा !”मैं ने अपना परिचय देते हुए कहा।

उसकी मुस्कुराहट बड़ी ही प्यारी लगी थी।मैं थोड़ा घबराई हुई थी क्योंकि स्कूल से निकलकर पहली बार कॉलेज में गई थी और वह भी कोएड में,जहां लड़के भी पढ़ते थे।

शुरू से रूढ़िवादी परिवार की सोच रखने वाला मेरा परिवार, मैं मन ही मन घबरा रही थी क्योंकि बड़े पापा से लेकर छोटे पापा बुआ, मौसी, मामा सभी लोगों ने मुझे इतनी ज्यादा हिदायत दे दिया था वहां लड़के भी पढ़ते हैं। अपने कदम रोक कर रखना। कोई ऊंच-नीच ना हो जाए!”

“ उंच नीच!” मैं कई बार अपने मन में इस बात को दोहराती रहती,।

 फिल्मों की लव स्टोरी देखकर जो मेरा मन कभी खुशी से बावला हो जाता था ।वह अब डर से घबरा रहा था कि

 न जाने मुझे कभी प्यार हो गया तो मेरा परिवार कभी भी मुझे आगे पढ़ने नहीं देगा लेकिन कॉलेज में आते ही सुगंधा से दोस्ती होते ही मेरा मन बदल गया।

“नेहा चलो हिस्ट्री का क्लास रूम नंबर 2 में है। मैं तुम्हें ले चलती हूं।”

“ तुम यहां पहले से पढ़ती हो?”

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“ हमारे स्कूल में 12वीं के क्लासेस नहीं होते थे इसलिए मैं शुरू से यहां पढ़ रही हूं।“

“वाह अच्छी बात है।” उसे कॉलेज के सारी चीजों के बारे में पता था बल्कि एक-एक लड़के -लड़कियों के नाम तक।

वह मुझे हिदायत देती रहती थी। इससे बात मत करो, उससे बात मत करो ।

मगर हां एक बात थी उसने मुझसे कहा था “दो साल मेरी पढ़ाई रुक गई थी क्योंकि एकाएक मेरे पिता का देहांत हो गया था और मैं सदमें मैं चली गई थी।

 जिसके कारण मैं दो साल पढ़ाई से ब्रेक ले लिया था।”

कालेज में अब मैं नॉर्मल हो गई थी। मुझे सुगंधा ने सारे लड़कों के बारे में लगभग बता दिया था।

उनसे मैं बस हाय हेलो तक ही सीमित रहती थी।

अचानक ही साल बीता होगा अचानक ही गौरव नाम का लड़का कॉलेज आने जाने लगा।

“ मैंने तो उसे कभी नहीं देखा?”

“ लगता है न्यू एडमिशन है।”

 सुगंधा ने कहा ।

“मुझे भी ऐसे ही लग रहा है ।”

कमाल की पर्सनालिटी थी उसकी। जितना लंबा उतना ही पतला,क्लास का होनहार लड़का। हर कार्यक्रम में पार्टिसिपेट करता और जीतता भी।

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चाहे वह पढ़ाई से रिलेटेड हो या कोई भी एक्टिविटी। 

जब एक बार मंच में अपने गायन का परफॉर्मेंस दे रहा था तो मेरे मैंने अपना सुध-बुध खो दिया ना।

न जाने कब मैं उससे प्यार करने लगी थी मुझे पता भी नहीं चला।

अब हम अक्सर मिलते कैंटीन में, कभी पेड़ के पीछे। सुगंधा ढूंढती फिरती।

“ नेहा, उसके पीछे क्यों भाग रही हो?”

वह कई बार यह सवाल करती।” तुम्हारे माता-पिता मान जाएंगे? यह गलत है ना।

जब हमें माता-पिता भरोसा कर पढ़ने के लिए भेजते हैं तो हमें उनका भरोसा नहीं तोड़ना चाहिए।”

“ सुगंधा तुम बिल्कुल सही कह रही हो मगर मैं क्या करूं ? मैं गौरव से प्यार करने लगी हूं।”

ग्रेजुएशन के दूसरे साल आते-जाते मैं और गौरव एक दूसरे से बहुत सारे वादे कर लिए थे ।

अब मैं किसी और को अपने लिए सोच भी नहीं सकती थी ।

सुगंधा मुझे समझाया करती तो मेरी आंखों से आंसू आ जाते ।

मैं उससे रो कर कहती “क्या करूं मुझे प्यार हो गया है ।”

“मगर इसका भविष्य क्या होगा?”

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“ पता नहीं!’ मैं आसमान की तरफ ताकती हुई कहती।

अगर घर में किसी को शक भी हो जाता तो शायद मेरी पढ़ाई खत्म भी कर दी जाती और मुझे पता नहीं क्या सजा भी दी जाती।

 कुछ दिनों बाद ग्रेजुएशन की फाइनल परीक्षा हो गई थी।कॉलेज बंद हो गया था।

अब हमारा मिलना जुलना बंद हो गया। सुगंधा से बातचीत होती रहती लेकिन सिर्फ पढ़ाई के संबंध में।

कुछ दिनों बाद उसने कहा “नेहा मेरी शादी की बात चल रही है !”

“वाह बधाई हो ।”

इधर मेरे घर में भी मेरे भाई की शादी की बात चल रही थी।

एक दिन मां ने मुझसे कहा “मैं लड़की देख आई हूं ।

मुझे पसंद है और पंकज( यानी मेरा भाई) उसे कोई आपत्ति नहीं है,।

 तू जाकर कपड़े देख ले खरीद ले ।हम बहुत ही सादगी से सगाई करेंगे। किसी का खर्चा क्यों करना ।

सारी कसर शादी में निकाल लेंगे।”

“ ठीक है मैं पैसे लेकर कपड़े लेने चली गई।

जब हम लोग इंगेजमेंट के लिए मंदिर पहुंचे तो वहां साड़ी में सुगंधा को देखकर मैं हैरान रह गई।

सुगंधा भी मुझे देखकर हैरान हो गई।

 “अरे मैं तेरी भाभी बनने वाली हूं।” हम दोनों पहले एक दूसरे को देखकर हंसने लगे और फिर उसने मुझे गले से लगा लिया।

उसे इस रूप में देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई लेकिन मेरे दिल के कोने में एक डर ने जन्म ले लिया था “कहीं सुगंधा ने गौरव वाली बात भैया को बता दिया तो?”

डरते डरते आखिर वह दिन भी आ गया जब सुगंधा मेरे घर की बहू बन भैया का हाथ पकड़े घर में आ गई।

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मैं बड़ी संदिग्ध नजरों से उसकी और देखा करती थी।

कभी मौका भी नहीं मिल रहा था कि पूछ लूं।

अकेले पड़ते ही उसने मुझे मुझसे पूछा “तू मुझसे कटी कटी क्यों रहती है? तुझे मैं पसंद नहीं हूं क्या?”

“ कैसी बात कर रही है तू सुगंधा। बस मुझे डर लग रहा था कि तुम गौरव की बात तो नहीं कर दोगी?”

“ कैसे बात करती हो पगली! मैं ऐसा क्यों करूंगी।

हां अगर तुम दोनों का प्यार सच्चा है ना तो देखना मैं तुम दोनों को जरूर मिलवाऊंगी।”

“सच्ची!” मेरी आंखों में आंसू आ गए ।

एक दिन गौरव ने मुझे फोन कर कहा ,उसने रेलवे की परीक्षा निकाल लिया है ।वह इंटरव्यू देने दिल्ली जा रहा है।

“ बड़ी अच्छी खबर सुनाया तुमने गौरव।गुड लक!”

“क्या बात हो रही है नेहा?”

 मैंने उसे सारी बातें बता दी।

“अच्छी बात है। अब सारा काम मेरे ऊपर छोड़ दो।”

उसने गौरव को फोन किया और सारे मामला समझाया ।

कुछ दिनों के लिए वह मायके चली गई। वहां से उसने मां को फोन किया और कहा “मैंने एक बहुत अच्छा लड़का देखा है ,नेहा के लिए अगर आप लोगों को पसंद है तो मैं बात चलाऊं ?”

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“हां ठीक है लेकिन नेहा को भी तो पसंद होना चाहिए!”मां ने कहा तो यह सुनकर सुगंधा जोरों से हंसने लगी फिर उसने बात संभालते हुए कहा 

“मां मेरी पसंद और नेहा के पसंद एक जैसी है ।”

कुछ दिनों बाद सुगंधा ने  पैरवी कर गौरव के माता-पिता को मना लिया।

और !!!आज गौरव अपने परिवार के साथ मेरे घर आने वाला था वो भी सगाई के लिए।

इसकी सारी तैयारी सुगंधा ने अकेले ही किया था

ब्यूटी पार्लर ले जाकर मेरा फेशियल कराना ,मेकअप से लेकर मेरे बालों का हेयर स्टाइल, लहंगे का डिजाइन सब सुगंधा ने ही तय किया था ।

“मेरी ननद आज सबसे सुंदर लगेगी !”

गौरव ने सगाई की अंगूठी मेरे हाथों में डाल दिया था और मैंने उसके हाथों में ।

मेरा प्यार मुझे मिल गया था।

खुशी मेरे चेहरे से झलक रही थी ।

“नेहा खुश हो ना!” सुगंधा ने मुझसे पूछा तो मैं भावुक हो गई

“थैंक यू सो मच सुगंधा।भाभी हो तो तुम्हारे जैसी!”

“ और भैया भी मेरे जैसे !”पंकज भैया मुझे देखते ही मुस्कुरा उठे, तुम्हारी भाभी ने मुझे सब कुछ बता दिया था नेहा मगर मैं इंतजार कर रहा था कि गौरव की नौकरी हो जाए।”

“ ओ ,,भैया थैंक यू !भाभी थैंक यू सो मच!’

मेरी आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। 

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प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय 

#भाभी

पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के लिए

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