“अरे अमन! आज लंच नहीं करना है क्या?”
“लगता है आज घर से बहुत खा कर आया है!”
“हां हां, कुंभकरण की तरह!”
“इसलिए कुंभकरण की तरह घोड़े बेचकर सो रहा है!”
अपने सहपाठियों की ये टिप्पणियां सुनकर अमन गुस्से में उठा और अपनी बांह चढ़ा ली।
“मैं कुंभकरण हूं ना! अब दिखाता हूं तुम्हें कुंभकरण की ताकत।” अमन ताबड़तोड़ अपने सहपाठियों को मारने-पीटने लगा।
उसके सहपाठी कहते रहे, “यार, हम तो मजाक कर रहे थे। रिसेस हो गई और तू सो रहा था। तुझे लंच के लिए जगा रहे थे। आपस में इतना हंसी-मजाक तो चलता है।”
बात-बात पर बांह चढ़ा लेने वाले अमन को अपनी ताकत पर बड़ा घमंड था। सब कुछ अनसुना कर वह तो बस सबको धुन रहा था।
तभी रमेश सर उनकी कक्षा में आए। वे स्कूल की NSS यूनिट के इंचार्ज थे। वे NSS के सदस्य छात्रों को यह बताने आए थे कि आज स्कूल की छुट्टी के बाद 4:00 बजे वे सब विद्यालय प्रांगण में एकत्र होंगे और सब मिलकर बाढ़ ग्रस्त इलाके की ओर रवाना होंगे।
लेकिन वे कक्षा का यह दृश्य देखकर हैरान रह गए। उन्होंने एकदम से लड़ाई रोकने का आदेश दिया। जैसे ही उन्होंने सारी वस्तुस्थिति को समझा, तो उन्होंने महसूस किया कि अमन को प्यार से समझाने की आवश्यकता है।
उन्होंने अमन से कहा, “बेटा, अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए मारपीट करना अच्छी बात नहीं है। मजाक में कही गई बातों पर बांह चढ़ा लेने से आगे चलकर तुम्हें ही पछतावा होगा। आज तुम हम सबके साथ चलो। तुम्हें पता है ना कि हमारे पड़ोसी इलाके में बाढ़ का पानी बढ़ता जा रहा है। हम सब मिलकर पूरी ताकत से इस चुनौती का मुकाबला करेंगे और प्रभावित लोगों की हर संभव सहायता करेंगे।”
रमेश सर और अन्य सहपाठियों के साथ अमन जैसे ही बाढ़ग्रस्त इलाके में पहुंचा, लोगों की दुर्दशा देखकर उसका मन द्रवित हो गया। उसने अपनी दोनों बाहें चढ़ा लीं। उसे समझ आ गया था कि बांह चढ़ाने का असली अर्थ है जीवन में आई चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार रहना।
रमेश सर ने अमन की ऊर्जा को सही दिशा दे दी थी और समाज को संदेश भी कि बच्चे ऊर्जा से भरपूर होते हैं। हम उनका मार्गदर्शन कर उन्हें सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं।
-सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)
#मुहावरा प्रतियोगिता
विषय: #बांह चढ़ाना
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