बनारसिया – खेराज प्रजापत : Moral Stories in Hindi

बरसात की शाम थी,और हल्की हल्की बूंदाबांदी हो रही थी।व्योम अपने फ्लैट वाली बिल्डिंग के सबसे ऊपर छत पर विचलित बैठा था।उसके दिमाग मे उथल पुतल मची हुई थी।दूर से कही गाने की आवाज आ रही रही थी-आज मौसम बड़ा बईमान है,आने वाला कोई तूफान है,ओ आज मौसम,।।।।।।।।।।

वाकई व्योम की जिंदगी में तूफान आने वाला था,वो न चाहते हुए भी शराब से अपना गम भुलाना चाहता था,उसे मालूम था कि थोड़ी देर बाद पुलिस आने वाली ही है।

उसने खड़े होकर चारो ओर देखा ,दूर दूर तक ऊंची ऊंची इमारतों के अलावा उसे कुछ भी नजर नही आया।नीचे से गाड़ियो की आवाज और दूर दूर तक फैला धुंआ उसे अपनी जिंदगी में फैले धुंए से कम नजर आया।दिल्ली शहर में चारो और धुंआ ही धुंआ आम बात थी।

शराब भी व्योम के दिमाग से उथल पुथल नही मिटा सकी।आज उसे दिल्ली की ऊंची इमारतों के बीच घुटन होने लगी ,मन तो करता पंछी बन उड़कर अपने शहर बनारस चला जाऊं।आज उसे अपने शहर ,अपने बचपन की बहुत याद आ रही थी।उसे वो गंगा का घाट,शाम की आरती,मंदिर की घण्टी,बनारस की गलियां,मां, बाबुजी,सब कुछ आंखों के सामने चित्रित होने लगे,लेकिन धीरे धीरे चित्र धुंधले होने लगे क्योंकि उसकी आँखों में आसु आ गए।

तभी उसे नीचे पुलिस का सायरन सुनाई दिया।वह चाहता तो भाग सकता था लेकिन उसने ऐसा नही किया ।उसे कल ही उसके किसी जानकार ने बताया कि तेरे ससुराल वालों ने तुझ पर देहज प्रताड़ना,मानसिक प्रताड़ना और तेरी पत्नी ने जो खुदकुशी की कोशिश की ,उसका तेरे को ज़िम्मेदार मानते हुए fir दर्ज करवाई है।

उसे एक बार तो विश्वास भी नही हुआ कि वो और ख़ुदकुशी, जरूर यह ससुराल वालों की चाल है ।उसे फ़साना चाहते है। 

वो धीरे धीरे नीचे उतरा ,पुलिस उसके फ्लैट के सामने खड़ी थी।उसने फ्लैट को ताला लगाया और पुलिस के साथ चल पड़ा। पूरी बिल्डिंग वाले बालकोनी में आकर उसे ले जाते देख रहे थे,पर कोई कुछ नही बोले।

पुलिस ने व्योम को ले जाकर लॉकअप में बंद कर दिया।जाते ही थानेदार ने पूछा- अरे व्योम वर्मा तुम ही हो,क्या करोगे पैसे का का,तेरे ससुर ने बताया कि तूने उनसे पांच लाख रुपयों की डिमांड की है,और उसकी बेटी को प्रताड़ित भी किया है,जिससे उसने ख़ुदकुशी की कोशिश की है।

व्योम क्या बोलता??? उसने कुछ ना बोलने में ही अपनी भलाई समझी।आज रात व्योम को पुलिस थाने में रहना था कल कोर्ट के लिये उसे वकील करने का वक्त मिलेगा ,उसके बाद आगे की कार्यवाही होगी।

धीरे धीरे बाहर अंधेरा बढ़ता जा रहा था।रात हो चुकी थी।एक पुलिस वाले ने उसे खाना लाकर दिया,उसने कुछ ही कौर निगले,लेकिन आगे के कौर उसके गले मे ही अटक गए।उसने खाना बीच मे ही छोड़ दिया।पानी पीकर वो एक कोने में लेट गया।

वह बेसुध से कोने में पड़ा, जैसे शरीर मे कोई शक्ति ही नही बची है।रात के 11 बज चुके थे।बाहर थोड़ा वातावरण शांत हो चुका था, थाने में भी रात की ड्यूटी के अलावा बाकी हवलदार जा चुके थे।व्योम की आंखों से नींद कोसो दूर थी।उसके आंखों के सामने अपनी पुरानी यादें चित्रित होने लगी…..

व्योम वर्मा,यही नाम था उसका ,दिल्ली की भीड़भाड़ में जैसे नाम ही खो गया उसका।गंगा के घाट से थोड़ी ही दूर पर घर,कमलकांत वर्मा,लिपिक बनारस जलदाय विभाग।यही थे व्योम के बाबुजी,जिसे देखे हुए व्योम को एक साल हो गया।तीन भाइयों व दो बहनों में तीसरी संतान था व्योम।बनारस के उसी घर मे व्योम का जन्म हुआ।

घर की दहलीज को पार करते ही,मतलब जीवन के सबसे सुनहरा भाग बचपन मे, व्योम ने स्वयं को बनारस की गलियों, मंदिरों की घण्टियों, गंगा के घाट के बीच पाया।बचपन मे व्योम बहुत शरारती था,काश मैं बड़ा ही नही होता तो आज बनारस की गलियों में डमरू बजाता, बेवजह गलियों में डमरू बजाते हुए दोस्तो के साथ भागना,पुजारी जी को छेड़ने के लिये बार बार मंदिर की घंटी बजाना,गंगा घाट पर लोगो के कपड़े छुपा देना आदि शरारतों से उसे बहुत आनंद मिलता था।

जब घर शिकायत आती तो मां डाँटती थी ,पर बाबुजी हर बार बचा लेते,कहते थे- बच्चे है अभी शरारत नही करेंगे तो कब करेंगे।वाकई बाबुजी सही कहते थे,यंहा दिल्ली की भीड़भाड़ में वो खुद से ही शरारत करना भूल गया।।।।

शरारत के साथ साथ व्योम पढ़ाई में भी होशियार था,बनारस से हाइस्कूल के बाद बाबुजी को लोगो ने उसे दिल्ली पढ़ाने का सुझाव दिया।व्योम इसके लिये बिल्कुल तैयार नही था,वो तो यही बनारस की गलियों और गंगा के घाट के बीच रहना चाहता था।पर चाहने से क्या होता है।

व्योम का दिल्ली के एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन हो गया। सभी बस्ती वालो ने बाबुजी को बहुत बधाइयाँ दी,पर व्योम का दिल बनारस को छोड़ने को तैयार नही था,दिल्ली का नाम लेकर ही उसका दिल बैठ जाता।

खेर दिल्ली तो उसे जाना ही था,बाबुजी ने अपना अंतिम फैसला सुना दिया।विदाई के वक्त वो बहुत उदास था।बनारस की गलियों से उसका मोह ही नही छूट रहा था।

आखिर वो दिल्ली आ ही गया ।बाबुजी के एक दोस्त ने उसके लिये कमरे की व्यवस्था कर दी।

दिल्ली की भीड़भाड़ में भी वो बहुत दिनों तक स्वयं को अकेला पाता।रात को सपने में भी वो खुद को बनारस की गलियां और गंगा का घाट के बीच पाता।सपने में वो एक ऊंचे झूले पर दोस्तो के साथ झूले झूलता,अचानक झूला टूट जाता।वो एकदम झझक कर नींद से उठ जाता ,उसका पूरा शरीर पसीने से तर हो जाता।

धीरे धीरे समय बीतता गया,उसे दिल्ली आए एक साल हो गया।अब वो बनारस की यादे भूल गया।कॉलेज में उसके काफी दोस्त हो गए।कॉलेज में सब उसे बनारसिया कहते थे।उसे स्वयं को बनारसिया कहलाने में कभी भी शर्म महसूस नही होती।वो खुद को गौरवांवित महसूस करता कि मैं बनारस का हूँ और किसी।द्वारा मुझे बनारसिया कहने पर मुझे कोई आपत्ति नही है।

कॉलेज में पढ़ते हुए उसे दो साल हो गए।अब वो धीरे धीरे दिल्ली की भीड़ में रम सा गया ।उसे अब बनारस की याद भी नही आती थी।बनारस तो केवल छुटियो में ही आता था।

दिल्ली जैसे शहर में रहे और प्रेमरोग न हो।जनाब को तीसरे साल जाते जाते किसी से प्रेम हो गया।आकांक्षा यही नाम था उसका,कॉलेज तो दूसरा था उसका,पर व्योम के सामने वाले घर मे रहती थी। रामप्रकाश ,आकांक्षा के पिता ,जो दिल्ली के किसी बैंक में नोकरी करते थे ।घर मे केवल माँ,बाबुजी ,आकांक्षा और उसका एक भाई था।

व्योम केवल आकांक्षा से प्यार ही करता था,दो साल हो गए उसे अपनी दिल की बात अभी तक नही बता पाया।दिल्ली आए उसे पांच साल हो गए।व्योम की पढ़ाई भी पुरी हो चुकी थी।एक दिन व्योम ने हिम्मत करके अपने दिल की बात आकांक्षा को बता ही दी।उस दिन आकांक्षा ने कोई जबाब नही दिया,लेकिन धीरे धीरे दोनो के बीच नजदीकिया बढ़ गई।

एक साल बीत गया।एक दिन व्योम खुशी से भागता हुआ आकांक्षा के पास आया।

आकांक्षा तुम्हे एक बात बतानी है।

क्या बात है आज बहुत खुश लग रहे हो।

बात ही ऐसी है,आकांक्षा

अब बताओ भी क्या बात है।

आकांक्षा मुझे नौकरी मिल गयी।।।।

क्या……..

सच मे आकांक्षा आज मुझे जॉब मिल गई।

आज व्योम बहुत खुश था,आकांक्षा भी क्योंकि अब घरवाले भी शादी के लिये मना नही करेंगे।

व्योम को दिल्ली के किसी सरकारी दफ्तर में नौकरी मिली थी।ज्यादा तो नही पर ठीकठाक सैलेरी थी।व्योम ने अपने घर भी खबर भेज दी,लेकिन आकांक्षा वाली बात उसने अब भी घरवालो से नही बताई।

घरवाले बहुत खुश हुए कि चलो छोड़ो एक जिम्मेदारी पूरी हो गई,अब कोई अच्छी सी लड़की देखकर व्योम की शादी करवा देंगे।इधर व्योम और आकांक्षा का प्यार भी बढ़ता जा रहा था।आकांक्षा के पिता को भी कोई आपत्ति नही थी,उसे तो नौकरी वाला दामाद बिना खोजे ही मिल रहा है।

आफिस में व्योम को सब बनारसिया की जगह बनारसी बाबू कहने लगे।आकांक्षा भी उसे प्यार से बनारसी बाबू ही कहती थी।

व्योम ने अब बनारस जाना भी कम कर दिया,नौकरी मिले एक साल हो गया।अब तक वो केवल दो बार ही बनारस गया।एक दिन शाम को व्योम के पिताजी ने फ़ोन करके अगले रविवार को जरूर आने को बोला।व्योम अब तक भी अनजान था कि वो एक सामाजिक प्राणी है और उसकी भी घरवाले शादी करवाएंगे।

व्योम अगले रविवार बनारस पहुंच गया।दूसरे दिन बाबुजी ने बताया- बेटा तेरे लिये हमने एक लड़की देखी है,बहुत सुशील,सूंदर और अच्छे खानदान से है।हम सब घरवालो ने देख ली है।मैंने बात लगभग पक्की कर ली है।अब केवल तुझे लड़की देखने जाना है।मुझे पूर्ण विश्वास है कि लड़की तुझे जरूर पसंद आएगी।

व्योम को जैसे चक्कर सा आ गया,उसके पैरों तले जमीन खिसकने लगी।वो क्या बताता कि उसने दिल्ली में किसी से शादी का वादा करके आया है।

वह कुछ भी नही बोला।बाबुजी ने सोचा शायद शर्म के मारे नही बोला था है।व्योम ने अंदर जाकर अपनी भाभी को सारी बात बता दी।सुबह भैया ने बाबुजी को धीरे धीरे बताया- बाबुजी व्योम उस लड़की को देखने नही चल रहा है,उसे दिल्ली में किसी से प्यार है वो उससे शादी करेगा।

क्या??????

हां बाबुजी

दिल्ली में किसी लड़की से शादी करेगा।अभी उठने दे उसे ,सारे भुत उतारता हु प्यार के।

बाबुजी अब वो बच्चा नही है,जो आप उसको मारेगे।

तो क्या करूँ???उनको क्या जबाब दु कि मेरा बेटा बहुत संस्कारी है ,वो आपकी बेटी से शादी नही कर सकता,अपने लिये दिल्ली से बहु लाएगा।क्या इज्जत रह जायेगी मेरी समाज मे।

घर मे बहुत हंगामा हुआ,व्योम उठकर बाहर चला गया।शाम को घर लौटा ,घर मे बहुत शांति पसरी हुई थी।पिताजी का फैसला था कि उसकी इस घर मे शादी होगी तो उस लड़की से वरना नही।

व्योम दूसरे दिन दिल्ली चला आया।यंहा आकर उसने बिना बाबुजी को बताए आकांक्षा से कोर्ट में शादी कर ली। 

बनारस से जैसे उसका नाता ही टूट गया ,सभी घरवाले उससे नाराज थे कि उसने बिना बताए शादी जो कर ली।शादी को एक साल हो गया वो अभी तक बनारस नही गया।

एक साल तक सब कुछ ठीकठाक चलता रहा,लेकिन धीरे धीरे व्योम और आकांक्षा के बीच छोटी छोटी बातों को लेकर अनबन रहने लगी।व्योम का दिल्ली में अपना कोई घर नही था।उसने एक फ्लैट किराये पर लिया ले लिया था।आकांक्षा के खर्चे ज्यादा थे,किराया भाड़ा सब कुछ होने के कारण व्योम की सैलेरी कम पड़ने लगी।

यही सब झगड़े की जड़ थी आंकाक्षा बात बात पर उसे ताने देती।कोई चीज की जरूरत होती तो व्योम को अपने पिता यानी व्योम के ससुर से मांगकर लाने को कहती।यही बात व्योम को सबसे ज्यादा चुभती।क्योंकि उसके ससुर का दिल्ली में खुद का घर था,और आमदनी भी ज्यादा इसलिये वो सक्षम है।

उसने आकांक्षा को भी समझाया कि धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा।लेकिन उनके बीच कुछ भी सामान्य नही हुआ।तनाव की वजह से व्योम कभी कभी शराब भी पीने लगा।

एक साल और बीत गया,उसकी शादी को दो साल हो गए।व्योम बनारस को तो जैसे भूल ही गया।घरवाले से व्योम का कोई संपर्क नही रहा लेकिन फिर भी एक बार बाबुजी आये थे ।क्योंकि वो पिता थे।उसे तो अपने बेटों का ख्याल हमेशा रहता है।वो एक दिन ही रुके ,आकांक्षा का व्यवहार उनसे भी नही छुपा।

बाबुजी दूसरे दिन चले गए उसने व्योम को कुछ नही कहा,उसने व्योम को भूल जाना ही बेहतर समझा।बाबुजी के सामने खराब व्यवहार करने को लेकर व्योम और आकांक्षा के बीच दूरियां और भी बढ़ गयी।

बात बात पर उसके मा,बाबूजी ओर भाई का आना और उल्टा उसे ही दोषी ठहराना।उसे अपनी बेटी की बातों को मनाने का व्योम पर दबाब बनाना।यह सब कुछ उनकी दूरिया बढ़ाते गए।रोज रोज की कलह को लेकर बिल्डिंग वाले ने उनसे फ्लैट खाली करवा दिया।

व्योम की जिंदगी इन सब के बीच उलझ कर रह गई । उसे अब कभी कभी बनारस की बहुत याद आती,वो डमरू बजाता हुआ बच्चा।। वो गंगा की आरती ,मेले के झूले ,मां, बाबुजी,दोस्त सबकुछ।।।।।।।

आकांक्षा अपने बाबुजी के घर चली गई।व्योम को भी बहुत कहा लेकिन उसने मना कर दिया ।वो पंद्रह दिन तक अपने दोस्त के पास रहा।फिर दूसरा फ्लैट ले लिया।

व्योम आकांक्षा को लेकर वापस नए फ्लैट में रहना शुरू कर दिया।लेकिन यंहा भी उनके बीच सबकुछ ठीक नही था।नया फ्लैट आकांक्षा को पसंद नही था।इसलिए वो व्योम पर घर जवाई बन कर रहने का दबाब बनाने लगी,जो व्योम को कतई ही पसंद नही था।।।।

अब आकांक्षा ने अपनी बात मनवाने का नया पैंतरा आजमाया वो रूठकर अपने बाबुजी के घर चली गई।बहुत मनाने के बाद भी उसने अपना जिद नही छोड़ा।

छः माह बीत गए लेकिन आकांक्षा नही आई।उसके घरवाले भी व्योम पर ही दबाव बनाते कि यंहा आने में कोनसी तेरा कद घट रहा है,तेरा खर्च भी बच जाएगा।

व्योम अपना आत्मसम्मान खोना नही चाहता ओर आकांक्षा अपना जिद छोड़ना नही चाहती।

आखिर परेशान व्योम ने उसे तलाक के लिए बोल दिया,जिसका नतीजा आज सबके सामने था,उसके ससुराल वालों ने झूठा ख़ुदकुशी का नाटक रचकर उसके खिलाफ fir करवा दी।

अचानक थाने का सायरन बज चुका, व्योम की तंद्रा भंग हुई।वो वर्तमान में लौट चुका ।तीन बजे चूके थे उसे अभी तक नींद नही आयी। सोचते सोचते उसे अब पलके भारी लगने लगी,उसे नींद आ गईं।

सुबह के छः बज चुके थे,थाने में पुनः चहल पहल शुरू हो चुकी थी।देर से सोने के कारण व्योम अब तक सो रहा था।

उसे आज पुनः वो झूले वाला सपना आया,वो दोस्तो के साथ झूले झूल रहा था,दूर से बनारस की गलियों से बाबुजी आ रहे थे।।अचानक झूल टूट गया ,बाबुजी जोर से चिलाये……व्योम……….

उसकी अचानक नींद टूट गयी वो हड़बड़ा कर उठ गया।आज उस झूले वाले सपने का मतलब समझ आ गया।बाबुजी को सपने में देख कर उसे रोना आ गया। उसे पूरे शरीर मे थकान महसूस हो रही थी।हवलदार उसे चाय का कप पकड़ा के चला गया।

दस बज चुके थे ,तभी उसे अपना दोस्त एक वकील के साथ आते दिखा।आते ही मजाकिया अन्दाज़ में बोला।।

अरे व्योम ,साले बताया भी नही,अकेला अकेला ससुराल चला आया।

विनोद व्योम का बहुत अच्छा दोस्त था,लेकिन व्योम ने उसे भी नही बताया ।जैसें सुबह विनोद को मालूम हुआ वो वकील के साथ आ धमका।

कंहा खोये हो जनाब- यार एक फोन कॉल कर देता,क्या सारी जिंदगी यंही रहने का इरादा है। बिना वकील तुझे यंहा से कौन बाहर लाएगा।

विनोद तू मेरा सच्चा यार है,लेकिन मुझे वकील की जरूरत नही है,अदालत जो सजा मुझे देगी ,मैं उसके लिये तैयार हूं।

तू पागल हो गया व्योम,बिना अपराध किये अपराध को कबूलना उससे भी बड़ा जुर्म है।

तो क्या करूँ,आकांक्षा को तो मालूम है कि मैंने कुछ नही किया। 

उसे मालूम होने से कुछ नही होगा व्योम,अब उसके और तेरे बीच कोई रिश्ता नही रहा।अगर वो तुझे अपना समझती तो ऐसा करती तेरे साथ।FIR………

मैं तेरे बाबुजी को बुला रहा हू…

नही विनोद तुझे मेरी कसम तू बाबुजी को मत बुलाना,मुझे उनसे नजर मिलाने की हिम्मत नही है। मैं खुद तो दुःखी हु ,मैं बाबुजी को दुःखी नही देख सकता।बनारस में सबको यही पता था कि व्योम दिल्ली में अपनी पत्नी सहित रहकर नौकरी कर रहा है।

छः माह की कार्यवाही के बाद आखिर विनोद की मेहनत रंग लायी। विनोद ने अपने दोस्त को बचाने में कोई कमी नही छोड़ी।आकांक्षा के पिता पैसों के बल पर व्योम को झुकाना चाहते थे ,लेकिन विनोद के सामने उनकी एक भी तरकीब काम नही आई।उन्होंने अदालत के सामने ऐसे ऐसे ठोस गवाह पेश किए जिससे वो केस जीत गए। 

व्योम जेल से बाहर आ गया।आकांक्षा से उसने तलाक ले लिया।अब तो शायद उन्हें भी गलती का अहसास हो गया लेकिन अब तक बहुत देर हो चुकी थी।।।।

व्योम की नौकरी चली गई।छः माह जेल में रहने के कारण वह नौकरी से निलंबित हो चुका था,अब वह चाहता तो पुनः नौकरी जॉइन कर सकता लेकिन दिल्ली में अब उस घुटन होने लगी।अब वो यंहा नही रहना चाहता।विनोद ने बहुत समझाया कि वो नौकरी को नही छोड़े पर व्योम ने ठान लिया कि वो अब दिल्ली में नही रहेगा।

पांच दिन हो गए ।व्योम विनोद के पास ही रहता था,उसने इन पांच दिनो में बनारस आने की सारी तैयारी कर ली।दूसरे दिन उसने अपना सारा सामान एक गाड़ी में लाद दिया और बाबुजी को फ़ोन लगाया- बाबुजी मैं व्योम,कैसे हो।

ठीक हु बेटा ,आज बहुत दिनों बाबुजी की याद आयी।।।

बाबूजी आपकी शिकायत जायज है,जो कहना है वो मुझे वंहा आने के बाद कह देना।मेरा सामान आज घर आने वाला है।आप उसे रिसीव कर लेना कृपया।मैं कल सुबह आऊँगा।

क्या…..कौनसा सामान????

बाबुजी मैं बनारस आ रहा हु,हमेशा हमेशा के लिये।

क्या ….कह रहे हो,तू बनारस आ रहा है,क्या तेरा ट्रांसफर हो गया है,बहु भी साथ आ रही है ना।

आज व्योम को बाबुजी बहुत खुश लग रहे थे।काश मैने बाबुजी को दुःखी नही किया होता।

बाबुजी मैं वंहा आकर सब बताता हूं।

ठीक है बेटा।

व्योम की शाम की ट्रेन थी।व्योम विनोद के पास बैठा वापस बनारस जाने की खुशी में खोया हुआ था,आज फिर उस गंगा के घाट पर चैन की सांस ले सकूँगा।

व्योम कंहा खोये हो,एक बार फिर सोच लो कंही तुम्हारा कदम गलत हो नही है।

विनोद मेरा कदम बिलकुल भी गलत नही है,मुझे अब इस भीड़भाड़ की दुनिया से नफरत हो गई।अब मुझे वापस मां बाबुजी और गंगा की गोद मे जाना है।वैसे कंही भी रहू दोस्त तेरा अहसान जिंदगी भर नही भुलूँगा।।।

यह अहसास वहसान की बात मत किया कर,मुझे शर्मिंदगी होती है।मैं तुम्हे नही रोकता,जी ले अपनी जिंदगी पंख लगाकर।।।

व्योम रात की ट्रेन से बनारस की और चल पड़ा ।विनोद उसे स्टेशन तक छोड़ने आया था।विनोद से विदा होते समय व्योम बहुत उदास हो गया।इस भीड़भाड़ की जिंदगी में कितना सच्चा यार था उसका।

सुबह व्योम पहुंच चुका था,बाबुजी उसे स्टेशन पर लेने आये थे।व्योम बाबूजी से मिलकर बहुत खुश हुआ।बाबुजी की नजरे पीछे किसी को ढूंढ रही थी।

बेटा बहु नही आई।

बाबुजी वो कभी नही आएगी,व्योम ने बाबुजी को सारी बात बता दी।

बेटा तूने नौकरी छोड़……….दी,बाबुजी ओर भी कुछ कहते।लेकिन व्योम बीच मे ही बोल पड़ा।

बाबुजी वादा करो – आज के बाद आप मुझे इसके बारे में कुछ नही पुछगे, मेरी पीछे की सारी जिंदगी भूल जाइए ,जैसे मैं भूल गया,अब मैं आप और मां की गोद मे रहना आया हु।क्या आप मुझे इजाजत देते है////////

बेटा वादा रहा तुझसे,आज के बाद तेरी पिछली जिंदगी को कभी नही याद दिलाएंगे मानो हम सब कुछ भूल गए।

व्योम ओर बाबुजी बस्ती में आ चुके थे।रिक्शे से उत्तर कर दोनों पैदल घर की तरफ चल पड़े।सुबह के नौ बज चुके थे ।व्योम को अपनी बस्ती में आकर ऐसा अनुभव हुआ जैसे कई वर्षों से पिंजरे में रहकर पंछी आजाद हुआ है।उसे आज ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे उसका पुनर्जन्म हुआ है।

तभी सामने एक छोटा बच्चा हाथ मे डमरू लिए अपने दोस्तों के संग भागता हुआ आ रहा था।व्योम को अपने बचपन की तस्वीर आंखों के सामने नाचने लगी।

व्योम ने बच्चे को आवाज लगाई-अरे ओ बनारसिया, डमरू इधर दे ला,हमे भी थोड़ा डमरू बजाना है।बच्चे ने डमरू व्योम को दे दी।

व्योम डमरू लेकर शरारती बच्चे की तरह बजाते हुए घर की तरफ भागने लगा,पीछे पिछे बच्चे भागने लगे।

व्योम के बाबुजी हँसते हुए घर की तरफ बढ़ने लगे………. … .।।।।।।।।

लेखक : खेराज प्रजापत

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