सत्यवती जी का घर हमेशा स्नेह और प्रेम से भरा रहता था। उनका परिवार संयुक्त था और आपस में एकता की मिसाल था। उनके दो बेटे थे, और दोनों ही अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ साथ में रहते थे। बड़ी बहू का नाम सुनीता था और छोटी बहू का नाम राधा। सुनीता शांत और सुलझी हुई स्वभाव की थी, जो परिवार के हर काम में हाथ बँटाती थी। राधा पढ़ाई में होशियार थी और उसे शिक्षक बनने का सपना था। उसके बीएड के एग्जाम पास थे, इसलिए वह दिन-रात मेहनत कर रही थी।
एक दिन जब सत्यवती जी दरवाजे पर बैठी कुछ काम कर रही थीं, तभी डोरबेल बज उठी। दरवाजा खोलने पर सामने उनकी पड़ोसन, दया ताई खड़ी थीं। दया ताई गाँव की चटपटी खबरें लाने वाली महिला थीं, जिन्हें दूसरों के घर के मामलों में टांग अड़ाने में बड़ा आनंद आता था। सत्यवती जी ने मुस्कुराते हुए उन्हें अंदर बुलाया, “अरे, आओ दया ताई, कैसी हो? आज अचानक कैसे आना हुआ?”
दया ताई ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे, आंवला नवमी का प्रसाद देने आई हूँ। बस तुम लोगों की याद आई तो सोचा मिलती चलूँ।” उन्होंने एक डब्बा सत्यवती जी को थमाया और चारों ओर नजरें घुमाते हुए कहा, “वैसे छोटी बहू नहीं दिख रही। कहां है वह?”
सत्यवती जी ने सहजता से जवाब दिया, “राधा अपने बीएड के एग्जाम की तैयारी में लगी हुई है। अगले हफ्ते से उसके पेपर शुरू हो रहे हैं।”
तभी सुनीता, जो रसोई में चाय और नाश्ता तैयार कर रही थी, दया ताई को चाय का कप और कुछ नाश्ता देते हुए बोली, “हां ताईजी, राधा पढ़ाई में व्यस्त है।”
दया ताई ने तुरंत अपनी आदत के अनुसार ताना मारा, “अरे वाह, सास और जेठानी घर का सारा काम संभालें और छोटी बहू पढ़ाई का बहाना बनाकर आराम फरमाए! ये तो उल्टी गंगा बह रही है तेरे यहाँ, सत्यवती!”
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दया ताई की इस बात पर सत्यवती जी के कुछ कहने से पहले ही सुनीता ने शांत स्वर में जवाब दिया, “ताईजी, मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं, लेकिन पढ़ाई का महत्व समझती हूं। मेरी देवरानी में पढ़ने और कुछ बनने की चाहत है, और यह उसका सपना है। हम सबका फर्ज है कि उसे पूरा करने में उसका साथ दें। जब उसे हमारी सबसे ज्यादा जरूरत है, तो मैं और मम्मी जी उसका पूरा साथ देंगे।”
सुनीता की बात सुनकर दया ताई का चेहरा उतर गया। उनकी मंशा थी कि परिवार में आग लगाकर तमाशा देख सकें, लेकिन सुनीता और सत्यवती जी की एकता ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। सत्यवती जी ने मुस्कुराते हुए सुनीता की बात पर हामी भरी, “बिल्कुल सही कहा बहू, परिवार में एक-दूसरे का साथ देने से ही खुशहाली आती है। राधा की मेहनत हमारे परिवार का गर्व है। हम सब उसका समर्थन करेंगे।”
दया ताई खिसियाई-सी हो गईं और जल्दी से वहाँ से विदा लेकर चली गईं। उनके जाते ही राधा, जो अपनी पढ़ाई के बीच में यह सारी बातें सुन रही थी, अपने कमरे से बाहर आई। उसने देखा कि सुनीता अपनी सास के साथ चाय के बर्तन समेट रही थीं। राधा की आँखों में कृतज्ञता के आँसू भर आए। वह भागकर अपनी जेठानी और सासू माँ के पास गई और दोनों को गले से लगा लिया। उसकी आवाज भरी हुई थी, “दीदी, माँजी, आपने हमेशा मेरा साथ दिया है। मुझे नहीं पता कि बिना आपके यह सब कैसे कर पाती।”
सुनीता ने मुस्कुराकर कहा, “अरे, इसमें कौन सी बड़ी बात है? परिवार का मतलब ही यही है, एक-दूसरे का सहारा बनना। अब तुम बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और अपने सपने पूरे करो। जब तुम सफल होगी, तो हमें भी गर्व महसूस होगा।”
राधा की आँखों में आँसू थे। उसे महसूस हुआ कि वह कितने खुशनसीब परिवार का हिस्सा है। उसने अपने दिल में ठान लिया कि वह अपनी मेहनत से परिवार का मान बढ़ाएगी।
सत्यवती जी ने दोनों बहुओं को आशीर्वाद दिया। वह जानती थीं कि परिवार की सच्ची ताकत आपसी प्रेम और सम्मान में ही है। उन्होंने खुद अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया था, लेकिन परिवार की एकता से हर मुसीबत का हल निकलता है।
उस दिन के बाद, राधा अपनी पढ़ाई में और भी मन लगाकर जुट गई। सुनीता ने हर काम को अपनी जिम्मेदारी समझकर और भी लगन से करना शुरू कर दिया। सत्यवती जी अपनी बहुओं पर गर्व करती थीं और जानती थीं कि उनके बेटे भले ही अपनी नौकरी में व्यस्त हों, लेकिन घर की जिम्मेदारी इन दो मजबूत स्तंभों के कंधों पर सुरक्षित है।
समय बीतता गया। राधा ने अपने बीएड की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की। जब वह शिक्षक बनी और स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगी, तो उसे अपने परिवार का पूरा समर्थन और आशीर्वाद मिला। सुनीता ने उसे एक दिन कहा, “तुमने जो सपना देखा था, उसे पूरा करने में हम सभी को गर्व है। हमेशा यूं ही आगे बढ़ती रहो।”
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राधा ने सुनीता का हाथ थामकर कहा, “आपके बिना मैं यह सब नहीं कर पाती, दीदी। आपने मुझे अपनी बहन की तरह संभाला। इस प्यार और सहयोग के लिए मैं हमेशा शुक्रगुजार रहूंगी।”
इस तरह, एक साधारण से घर में रहने वाले ये लोग दूसरों के लिए मिसाल बन गए कि सच्चे रिश्ते और पारिवारिक सहयोग से हर मुश्किल को हल किया जा सकता है। उनके बीच का प्यार और एकता ही उनकी असली दौलत थी।
मूल रचना
कविता भड़ाना