बचपन के दिन कितने अच्छे थे जब भी सोचती हूँ एक अलग ही दुनिया में गोते लगाने लगती हूँ।आम के बगीचे में परिवार के बच्चों के साथ मस्ती करते दिन कब बीत जाते थे पता ही नहीं चलता था। मैं घर में सबसे छोटी और सबकी लाडली थी।खेलते कूदते बचपन से गुजरते स्कूल का सफर शुरू हुआ।
सबकुछ वैसे ही होता था जैसे मैं चाहती थी।जिस चीज की जरूरत होती मम्मी पापा बिना कोई सवाल किए पूरा करते थे और जिस बात के लिए नहीं मानते थे उसके लिए रूठकर मना लिया करती थी।दसवीं तक पहुँचते पहुँचते दुनिया की काफी समझ आ गई थी।लड़को में सबसे अच्छा दोस्त या यूँ कहिए तो मेरा हमराज दोस्त जिससे हर बात खुलकर बोल सकती थी वो मेरे छोटे भैया थे।बड़े भैया थोड़े अलग मिजाज के थे इसीलिए उनसे कम बनती थी लेकिन छोटे भैया के साथ लड़ने खेलने पढ़ने से लेकर घूमने तक का सफर तय करने में बहुत मजा आता था।
मन ये सोचकर झूम उठता था कि मेरा सपनो का राजकुमार काफी हैंडसम होगा,मेरी हर ख्वाहिश पूरी करेगा,मुझे अच्छी अच्छी जगह घुमाने लेकर जाएगा।
एक सुंदर सा परिवार होगा।तब तक मैं 12th पास कर चुकी थी।अब एक ही सपना था पुलिस बनने का।उसके लिए तैयारी करती लेकिन मम्मी पापा इस पक्ष में नहीं थे सिर्फ छोटे भैया हमेशा ढाल बनकर साथ खड़े रहते थे जैसे पिता की छांव में बच्चा खुद को महफूज समझता है वैसे ही छोटे भैया के साथ मैं अनुभव करती थी।दोस्तों की शादी पार्टी में जाने से लेकर रिश्तेदारों के यहाँ या फिर एक शब्द में कहूँ तो ज्यादातर सफर भैया के साथ ही तय होता था।गाँव में कॉलेज नहीं था ,लड़कियों का साथ भी नहीं था की रोज कॉलेज जा पाती।
प्राइवेट कॉलेज में B Sc में एडमिशन लिया। इन दिनों घर मेरी शादी की भी चर्चा चलने लगी थी।लड़की अब सयानी हो रही है कोई अच्छा सा लड़का देखकर शादी कर दीजिए मम्मी को पापा से ये बोलते मैं सुनी।एक जगह लड़का देखने छोटे भैया और पापा गए।वहाँ सबकुछ ठीक था।लड़का पढ़ने में काफी अच्छा था।इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था।वो लोग देखने आए,मैं पसंद कर ली गई।कुछदिन सब ठीक रहा लेकिन उसके बाद दहेज की बात चलने लगी।मैं जैसे ही दहेज की बात सुनी,माथा ठनक गया और साफ साफ बोली-मुझे उस लड़के से शादी नहीं करनी जिसे दहेज चाहिए। वो बात वही खत्म हो गई,मामला कुछ दिन में शांत हो गया।
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कुछ दिन बाद रिश्तेदारी में ही एक परिवार की जानकारी मिली।उनका लड़का भी शादी करने लायक था, हर जगह चर्चा हो रही थी।रिश्तेदारी में आने की वजह से उन्हें मेरे बारे में पहले से ही जानकारी थी।सुनने में आया उन्हें सिर्फ अच्छी लड़की की तलाश है बाकी भगवान की कृपा से घर में सबकुछ है,दजेह की कोई माँग नहीं थी।
भैया पापा देखने गए पसंद भी कर लिया।लड़का पढ़ लिखकर खुद का बिज़नेस संभाल रहा था।राजीव से बातों का सिलसिला शुरू हुआ।काफी केयरिंग थे वो,समझदार भी थे।उनमें वो हर गुण समझ आता था जो मैं अपने राजकुमार में चाहती थी।सगाई हुई फिर शादी के बाद जब पहली बार ससुराल आई तो ऐसा लगा जैसे जन्नत मिल गई।बड़ी मानकारी होती थी।सब तारीफ करते नहीं थकते थे।मैं खुद को सबके रंग में ढालने लगी।
किसी भी तरह की शिकायत का मौका किसी को न मिले इसी की जद्दोजहद में हमेशा रहती थी।
घर की याद बहुत आती थी क्योंकि वहाँ देर तक निश्चिंत सोने को मिलता था उसके अलावा ऐसी कोई जबाबदारी भी नहीं थी।मायका आखिर मायका ही होता है । खुला आसमान था जैसे चाहो वैसी उड़ान भरो।मगर यहाँ सबकी फरमाइशें पूरी करते करते इतना बदल गई कि खुद का खयाल न रहा। एक बार राजीव से बोली मुझे पुलिस की ख्वाहिश पढ़ाई के समय से थी तुम कहो तो मैं तैयारी करूँ।मगर राजीव ने यह कहते हुए मना कर दिया कि हमारे पास सबकुछ है तुम इस सब फालतू मामलों में न पड़ो।मैं मन मसोस कर रह गई।
किताबों में पढ़ी थी गिरगिट का रंग बदलना।अब उस वाक्य से साक्षात्कार हो रहा था।यही राजीव थे जो शादी से पहले जाने क्या क्या वादे किए थे।तुम जो कुछ करना चाहती हो वो सब यहाँ से कर सकती हो।मैं पूरा सहयोग करूँगा और अब मेरी बातें इन्हें फालतू लगती हैं।उन्हें किसी के सपनो की कोई परवाह नहीं थी,बस परवाह थी तो इस बात की कि घर का काम कौन करेगा।इसीलिए कहीं नौकरी नहीं करने देना चाहते।कुछ दिन ऐसे ही बीता । B Sc की डिग्री किसी तरह पूरी हुई।एक दिन मैं फिर राजीव से बोली मुझे कंप्यूटर सीखना है।
एडमिशन करवा दीजिये।राजीव ने जबाब दिया-कुछ सीखने की जरूरत नहीं है।तम कंप्यूटर सीखोगी तो घर का काम कौन करेगा।मैं किसी तरह लड़ झगड़कर pgdca में एडमिशन ली लेकिन किसी का सपोर्ट नहीं मिला।हाँ छोटे भैया हमेशा की तरह अब भी मेरे सहयोगी बन हौसला बढ़ाते थे लेकिन पति का साथ परिवार में न मिले तो ऐसा लगता है जैसे गाड़ी का एक पहिया काम करना बंद कर दिया जिसकी वजह से जीवन रूपी गाड़ी संतुलित रहती है।पढ़ने को समय नहीं मिलता था सिर्फ कॉलेज में दाखिला ले लेने से कुछ नहीं होता।
हालांकि राजीव के पास अपना लैपटॉप था वो चाहते तो कॉलेज न जाने पर भी घर में सिखा सकते थे लेकिन उन्होंने कभी ऑन करने की भी इजाजत नहीं दी।नतीजा यह हुआ कि मैं फैल हो गई।फिर ATKT का फॉर्म भारी परीक्षा देकर किसी तरह पास हुई,अगले सेमेस्टर में भी राजीव का व्यवहार ज्यों का त्यों बना रहा।
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घर के काम में उलझी मैं सबकी ख्वाहिशें पूरी करते करते अपने अरमानों का गला घोट बैठी।दूसरे सेमेस्टर में भी फैल हुई और इस बार परीक्षा देने का कोई विचार ही नहीं आया। सबकुछ राजीव पर छोड़ दिया उन्हें जो सही लगे वही करें।तबसे कॉलेज का मुँह तक नहीं देखी,न राजीव गए न मैं ही कभी मार्कशीट लेने गई।शादी तो शहर में हुई है पर मजाल है कभी किसी होटल में खाना भी खिलाने ले गए हों।घर ऐसा जान पड़ता जैसे कोई कैदखाना हो।
मायके जाना भूल ही गई,किसी भी त्योहार में जाने की इजाजत नहीं ।अगर कभी इजाजत मिली भी तो राजीव साथ जाते और साथ आते कभी एक दिन से अधिक रुकने का मौका न देते।बोलते थे रिश्तेदारी में इतना ही रुकना चाहिए।अपने ससुराल में ध्यान दो मायके की जबाबदारी तुमने जीवन भर के लिए नहीं ले रखी।इसी बीच रक्षाबंधन का त्यौहार आया।राजीव बोले ठीक है रक्षाबंधन के दिन चली जाना लेकिन अंत में उनका फैसला बदल गया बोले भैया को ही यहाँ बुला लो।ऐसा व्यवहार देखकर मेरी आँखें भर आईं।ऐसा लग रहा था
जैसे प्यास से भटकते भटकते समुंदर किनारे तक पहुँच गए लेकिन मुझे देखते ही समुंदर सूख गया।जब किसी के अरमानों का गला घोटा जाता है तब ऐसा लगता है जैसे जीते जी मर गए।मुझे लगता है “adjust” शब्द हम जैसों के लिए ही बनाया गया है ।सारी लाइफ एडजस्ट करते करते गुजार दो।रक्षाबंधन बीता उसके बाद आने वाले त्यौहार बीते।कभी कभी बहुत दुःख होता है ये सोचकर कि क्या शादी के बाद माँ बाप भाई बहन का कोई हक नहीं रहता लड़की पर,क्या पति द्वारा लिया गया हर निर्णय सही होता है।सामने वाले के जज्बात की कोई कद्र नहीं।
होली से पाँच दिन पाँच दिन पहले माँ को कॉल की।
राजीव के साथ मैं आ रही हूँ।मम्मी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था उनकी बातों से ही समझ आ रहा था।
मैं भी बहुत खुश थी कि इस बार कम से कम पाँच दिन तो रहने को मिलेगा।इस बार होली गाँव में मनाऊँगी।
घर पहुँची मम्मी पापा बहुत खुश थे क्योंकि घर मे अब वो अकेले हैं।दोनो भैया बाहर नौकरी करते हैं।दीदी भी ससुराल में हैं।ऐसे में मेरा आना ऐसे लग रहा था जैसे वीराने में जोरदार बारिश हुई हो।राजीव मुझे छोड़कर हस्र लौट गए।मेरा परिवार काफी बड़ा है । कई बेटियाँ इस बार होली मनाने गाँव आई थी।मैं सबसे मिली । चारों तरफ खुशियों का माहौल था।चौथे दिन राजीव का कॉल आया बोले तुम तैयार रहो मैं लेने आ रहा हूँ।बड़े भैया नौकरी से घर आ रहे हैं ।राजीव के बड़े भैया यानी मेरे जेठ जी आर्मी ऑफिसर हैं।
मुझ पर तो जैसे काटो तो खून नहीं।भौचक्की राह गई।कितनी खुश थी कि इस बार होली करने का मौका मिल रहा है पर मेरी किस्मत इतनी अच्छी कहाँ थी। मम्मी पापा को भी पता चला तो बोले-जब उन्हें खुद समझ नहीं आता तो हम क्या कर सकते हैं।हम रोक थोड़ी पाएंगे वो आ रहे हैं तो जाओ।कुछ देर बाद राजीव आये और मैं उनके साथ फिर ससुराल आ गई।आज होलिका दहन है।सब लोग अपने कष्टों को दहन करेंगे लेकिन मेरे सपने मेरी ख्वाहिशें तो जाने कबकी खाक हो चुकी।आज राजीव अपनी बहन को बुलाने गए हैं।
लेखक : जौहरी