“क्या बताऊँ मम्मी, आजकल तो बासी कढ़ी में भी उबाल आया हुआ है| जबसे पापा जी रिटायर हुए हैं दोनों लोग फिल्मी हीरो हीरोइन की तरह दिन भर अपने बगीचे में ही झूले पर विराजमान रहते हैं| न अपने बालों की सफेदी का लिहाज है न बहू बेटे का, इस उम्र में दोनों मेरी और नवीन की बराबरी कर रहे हैं|”
तब तक चाय पीने के लिये सोनम को पूछने प्रभाजी उसके कमरे की तरफ बढ़ीं पर उदास मन से रसोई में दाखिल हुईं| उन्होंने सुन सब लिया था पर नज़रअंदाज़ करते हुए खामोशी से चाय बनाकर ले गयीं और सोनम को भी उसी के कमरे में दे दी|
उन्हें अशोक जी के लिए चाय ले जाते देख, उनकी बहू सोनम के चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान तैर गयी| पर वह नज़र अंदाज़ कर सिर झुकाए निकल गईं| पति के रिटायर होने के बाद कुछ दिन से उनकी यही दिनचर्या हो गयी थी|
अशोक जी की इच्छानुसार अच्छे से तैयार होकर अपने घर के सबसे खूबसूरत हिस्से अपने पेड़ पौधों के साथ बैठना| क्योंकि सारी उम्र तो उनकी बच्चों के लिये जीने में निकल गयी थी|
तो जीवन सन्ध्या में दोनों लोग साथ समय भी गुजारते वहाँ पड़ी मेज चार कुर्सी उस भाग को और मोहक बना देतीं और दिन भर के बहुत से कार्य वहाँ आसानी ने निपट जाते|
पाण्डेय विला…दोमंजिला कोठीनुमा घर अशोक और प्रभा का जीवन भर का सपना था, बड़ा खूबसूरत लगता देखने में उस पर वातावरण भी बेहद सुरम्य |
बीस बाई बीस गज़ की कच्ची जगह भी थी उस घर में, बाहर जहाँ था प्रभा के सपनोँ का बगीचा| बेला के पौधे, हरसिंगार का घनेरा पेड़,अंगारो सा दहकता गुड़हल का पेड़ और छोटा सा टैंक जिसमें कमल के फूल खिले रहते|
इस कहानी को भी पढ़ें:
जाड़े में तो रँग बिरंगे फूल डहेलिया, गुलाब, पैंजी और तमाम किचन गार्डन की सब्जियां चार चाँद लगा देतीं देखने वाले की आँखों में और रसोईघर में भी ताज़े धनिया, पोदीना मेंथी की बहार रहती|
हर मौसम में घर खुशबू और सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर रहता,उस पर वहाँ पड़ा झूला जो भी वहाँ बैठ जाता तो उठने की इच्छा ही न होती उसकी|
जाड़ों में वहीँ तसले में आग जलती और भुने आलू,शकरकन्द के मज़े लिये जाते तो बरसात में सुलगते कोयलों पर सिंकते भुट्टे स्वर्ग के आनन्द की अनुभूति करवाते|
अशोक जी ने वह जगह छुड़वाई तो प्रभा और अपने लिये कमरे के लिये | लेकिन संयोग ऐसा बना कि ज़िम्मेदारी ने उन्हें उस जगह का इस्तेमाल ही न करने दिया|
ऐसे में प्रभा ने अपने खाली समय और उस ख़ाली जगह का इस्तेमाल इस बुद्धिमत्ता से किया कि वह कोना घर की जान बन गया| उनका पूरा खाली समय वहीँ बीत जाता| अब उन्हें उस जगह कमरा न बन पाने का मलाल भी न था|
पर प्रभा को अरमान था घर में झूला हो तो अशोक जी ने उसे वहाँ ज़रूर लगवा दिया| पेड़ों से लगाव कुछ ऐसा हो गया कि फिर दोनों में से किसी की इच्छा उनके स्थान पर कमरा बनवाने की हुई ही नहीँ|
पर वह और अशोक कभी एक साथ उस जगह कम ही बैठ पाते,कभी प्रभा अनमनी होतीं तो अशोक बड़े ज़िंदादिल शब्दों में कहते, “पार्टनर रिटायरमेंट के बाद दोनों इसी झूले पर साथ बैठेंगे और खाना भी साथ में ही खायेंगे| हर शिकायत दूर कर देँगे| फ़िलहाल हमें बच्चों के लिये जीना है|
बच्चों के कैरियर पर सब कुछ बलिदान हो गया,अब बेटा भी अच्छी नौकरी में था और बेटी भी अपने घर की हो चुकी थी |
रिटायरमेंट के बाद घर में थोड़ी रौनक रहने लगी थी,अशोक जी को भी घर में रहना अच्छा लग रहा था| बड़े पद पर थे तो कभी उनके कदम घर में टिके ही नहीँ|
इस कहानी को भी पढ़ें:
गाँव से आकर शहर में बसेरा बनाना आसान न था, लेकिन किसी तरह चार सौ गज़ ज़मीन कर ली| सहधर्मिणी प्रभा जी भी सहयोगी महिला थीं तो मन्ज़िल और आसान हो गयी|
अब दोनों पति पत्नी आराम के पलों को सँजो लेना चाहते थे उनके घर में ज़रूरी सब सुविधाएं भी थीँ फिर भी बहू सोनम को न जाने क्योँ वह कोना सबसे ज़्यादा खटकता था|
क्योंकि कोई भी बन्धन न होने पर भी अशोक जी के घर में रहने से उसे घर का काम बढ़ा महसूस होता| दिन भर उसके साथ लगी रहने वाली प्रभा का अब थोड़ा समय अपने पति को देना उसे अखरने लगा था|
अक्सर वह नवीन को उसके माता पिता के लिये ताने देने का कोई मौका न छोड़ती| उसने उस कोने से छुटकारा पाने के लिये नवीन को एक रास्ता सुझाते हुए कहा,”क्योँ न हम बड़ी कार खरीद लें…नवीन”|
“आईडिया तो अच्छा है पर रखेंगे कहाँ एक कार रखने की ही तो जगह है घर में”,नवीन थोड़ा चिंतित स्वर में बोला|
“जगह तो है न, वो गार्डन तुम्हारा..जहाँ आजकल दोनों लव बर्ड्स बैठते हैं”सोनम थोड़े तीखे स्वर में बोली|
थोड़ा तमीज़ से बात करो,नवीन क्रोध से बोला ज़रूर पर उसने भी अशोक जी से बात करने का मन बना लिया था|
अगले दिन वह कुछ कार की तस्वीरों के साथ शाम को अपने पिता के पास गया और बोला,” पापा !मैं और सोनम एक बड़ी गाड़ी खरीदना चाहते हैं| “
पर बेटा बड़ी गाड़ी तो घर में पहले ही है, फिर उसे रखेंगे भी कहाँ?अशोक जी ने प्रश्न किया|
ये जो बगीचा है यहीँ गैराज बनवा लेंगे वैसे भी सोनम से तो इनकी देखभाल होने से रही और मम्मी कब तक करेंगी? इन पेड़ों को कटवाना ही ठीक रहेगा| वैसे भी ये सब जड़े मज़बूत कर घर की दीवारें कमज़ोर कर रहें है|
प्रभा तो वहीँ कुर्सी पर सीना पकड़ कर बैठ गईं,अशोक जी ने क्रोध को काबू में करते हुए कहा, मुझे तुम्हारी माँ से भी बात करके थोड़ा सोचने का मौका दो|
इस कहानी को भी पढ़ें:
क्या पापा… मम्मी से क्या पूछना ..वैसे भी इस जगह का इस्तेमाल भी क्या है नवीन थोड़ा चिड़चिड़ा कर बोला|
“आप दोनों दिन भर इस जगह बगैर कुछ सोचे समझे,चार लोगों का लिहाज किये बग़ैर साथ बैठे रहते हैं| कोई बच्चे तो हैं नहीं आप दोनों और अब घर में सोनम भी है छोटे बच्चे भी है |
पर आप दोनों ने दिन भर झूले पर साथ बैठे रहने का रिवाज बना लिया है और ये भी नहीँ सोचते कि चार लोग क्या कहेंगे|
इस उम्र में मम्मी के साथ बैठने की बजाय अपनी उम्र के लोगों में उठा बैठी करेंगे तो वो ज़्यादा अच्छा लगेगा न कि ये सब और वह दनदनाते हुए अंदर चला गया|
अंदर सोनम की बड़बड़ाहट भी ज़ारी थी,अशोक जी भी एहसास कर रहे थे प्रभा के साथ अपनी ज़्यादती का| जब कभी पत्नी ने अपने मन की कही तो उन्होंने उन्हें ही सामन्जस्य बिठाने की सीख दी|
पर आज की बात से तो उनके साथ प्रभा जी भी सन्न रह गईं,अपने बेटे के मुँह से ऐसी बातें सुनकर|
रिटायरमेंट को अभी कुछ ही समय हुआ था उनके, ज़िन्दगी तो भागमभाग में ही निकल गयी थी बच्चों के लिए सुख साधन जुटाने में|
नवीन और सोनम ने उस शाम खाना बाहर से ऑर्डर कर दिया पर प्रभा से न खाना खाया गया और न उन्हें नींद आयी| नींद तो अशोक को भी नहीँ आ रही थी और वो प्रभा की मनोस्थिति भी समझ रहे थे |
किसी ट्रैफिक सिग्नल पर खड़े सिपाही जैसी जिससे हर रिश्ता बस अपनी ही तवज्जोह चाह रहा था| पर सोचते सोचते सुबह, कुछ सोचकर उनके होंठों पर मुस्कान तैर गयी|
अगले दिन जब सोकर वह उठे तो देखा प्रभा जी सो रहीं थी पर बेचैनी चेहरे पर दिख रही थी| वह रसोई में गये और खुद चाय बनाई | कमरे में आकर पहला कप प्रभा को उठा कर पकड़ाया और दूसरा खुद पीने लगे|
आपने क्या सोचा?प्रभा ने रोआंसे लहज़े में पूछा|
मैं सब ठीक कर दूँगा बस तुम धीरज रखो,अशोक बोले|
इस कहानी को भी पढ़ें:
पर हद से ज़्यादा निराश प्रभा उस दिन पौधों में पानी देने भी न निकलीं,और न ही किसी से कोई बात की|
दिन भर सब सामान्य रहा,लेकिन शाम को अपने घर के बाहर To Let का बोर्ड टँगा देख नवीन ने भौंचक्के स्वर में अशोक से प्रश्न किया,”पापा माना कि घर बड़ा है पर ये To Let का बोर्ड किसलिए”?
” अगले महीने मेरे स्टाफ के मिस्टर गुप्ता रिटायर हो रहें है,तो वो इसी घर में रहेँगे”,उन्होंने शान्ति पूर्ण तरीके से उत्तर दिया| हैरान नवीन बोला,”पर कहाँ?”
“तुम्हारे पोर्शन में”,अशोक जी ने सामान्य स्वर में उत्तर दिया|
नवीन का स्वर अब हकलाने लगा था,”और हम लोग “
“तुम्हे इस लायक बना दिया है दो तीन महीने में कोई फ्लैट देख लेना या कम्पनी के फ्लैट में रह लेना,अपनी उम्र के लोगों के साथ | “अशोक एक- एक शब्द चबाते हुए बोले|
हम दोनों भी अपनी उम्र के लोगों में उठे बैठेंगे,सारी उम्र तुम्हारी माँ की सबका लिहाज़ करने में निकल गयी| कभी बुजुर्ग तो कभी बच्चे| अब लिहाज़ की सीख तुम सबसे लेना बाकी रह गया था|
“पापा मेरा वो मतलब नहीँ था”,नवीन सिर झुकाकर बोला|
नहीँ बेटा तुम्हारी पीढ़ी ने हमें भी प्रैक्टिकल बनने का सबक दे दिया,जब हम तुम दोनों को साथ देखकर खुश हो सकते है तो तुम लोगों को हम लोगों से दिक्कत क्योँ है| “?
इस मकान को घर तुम्हारी माँ ने बनाया, ये पेड़ और इनके फूल तुम्हारे लिए माँगी गयी न जाने कितनी मनौतियों के साक्षी हैं,तो उसका कोना मैं किसी को छीनने का अधिकार नहीं दूँगा|
पापा आप तो सीरियस हो गये, नवीन के स्वर अब नम्र हो चले थे|
न बेटा… तुम्हारी मां ने जाने कितने कष्ट सहकर, कितने त्याग कर के मेरा साथ दिया आज इसी के सहयोग से मेरे सिर पर कोई कर्ज़ नहीँ है| इसलिये सिर्फ ये कोना ही नहीं पूरा घर तुम्हारी माँ का ऋणी है| घर तुम दोनों से पहले उसका है, क्योंकि जीभ पहले आती है, न कि दाँत|
औलाद होने का हमसे लाभ उठाओ पर जब मंदिर में ईश्वर जोड़े में अच्छा लगता है तो मां बाप साथ में बुरे क्योँ लगते हैं? ज़िन्दगी हमें भी तो एक ही बार मिली है|
लेखिका : सुमिता शर्मा