“सिर्फ बहू से बेटी बनने की उम्मीद क्यों – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

बहू सुन रही हो , खाना बना की नही? जल्दी काम खतम करो सब लोग आते होंगे | जी मम्मी सब काम हो गया है  | आज घर में मम्मी जी की  किटी पार्टी थी | इस लिए मम्मी जी कुछ ज्यादा ही खुश थी |

सब लोग आ गए थे | फिर क्या था मम्मी जी खूब मज़े कर रही थीं | मैं भी चाय नाश्ता दे के अपने कमरे में चली गई | सभी के हसी ठहाके के आवाज आ रही थी | अचानक से आवाज कुछ धीमी आने लगी | मैंने सोचा क्या हुआ ? मुझ से रहा नही गया मैं धीरे से कमरे के बाहर से उनकी आवाज सुन ने लगी | 

हे भगवान ; इतनी खुशी के माहौल में भी बहू के बुराई किए बिना ये लोग नही रह सकती | 

आज का पूरा दिन जिनलोगो के स्वागत करने में लगा दिया, उनसे अपने बारे में इस तरह की बाते सुन बहुत बुरा लगा  |

खैर, सब लोग चले गए  ,| मम्मी जी बहुत उदास लग रही थीं | हमसे रहा नही गया, मैंने पूछ ही लिया क्या हुआ मम्मी जी? आप बहुत दुखी है क्या? 

उन्होंने गुस्से से बोला , तुमने कैसा खाना बनाया था, किसी को  तुम्हारे हाथ का खाना पसंद नही आया | सब बोल रही थी खाना बिल्कुल भी  चटपटा नही बना है| 

रेखा ने तो यहां तक बोला के जब तक तुम्हारी बेटी थी तब तक तुम कितनी स्वस्थ दिखती थीं, बहू के आने के बाद से कमजोर दिखती हो |

इतने में ही मेरे पति अमन आ गए, उन्होंने अपनी मां को गुस्से में देखते ही बोला , क्या कर दिया तुमने की मां इतना उदास है ? 

मेरी मां का ध्यान ठीक से रखा करो जैसे मेरी दीदी रखती थी,इस घर में आए तुमको पांच साल हो गए, तुम मेरी मां को अपनी मां के जैसे प्यार किया करो, बहू नही बेटी बन के रहा करो | समझी ? जाओ मेरे लिए पानी ले के आओ,

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मैं अंदर आ गई | और पानी ले के गई, मैने पूछा अमन कुछ बात करनी है तुमसे,अभी है क्या समय तुम्हारे पास ? हा  बोलो |

मैने बोला तुमको याद है ? कुछ दिन पहले मरी मां  बीमार थी, हा बिल्कुल याद है , क्यों क्या हुआ? ऐसे क्यों पूछ रही हो? नही नही बस ऐसे ही , मेरी मां पूरे सात दिन एडमिट थी,,| तुमने कितनी बार मेरी मां हाल चाल पूछा था? या हॉस्पिटल देखने गए थे? बोलो? चलो हॉस्पिटल नही गए कोई बात नही | तुम्हारे ऑफिस के रास्ते मे ही तो मेरा घर है, कभी मेरी मां को आते जाते भी ! नही मिल के आए | क्यों मेरी मां भी तो तुम्हारी मां ही है ना? कुछ बोलोगे नही? क्यों मां जी मैने सही कहा की नही?? 

दोनो लोगो को साप सूंघ गया हो मानो , मैं वहा से उठी और चल दी | 

आखों में आसू थे और चेहरे पे हसी,  | कैसी मानसिकता के लोग होते जा रहे है ,| 

सिर्फ बहू से ही बेटी बनने की उम्मीद क्यों? क्या बहू का अपने ससुराल वालो से कोई उम्मीद करने का अधिकार नही !!!! 

 

रंजीता पाण्डेय

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