पारुल एक मध्यमवर्गीय परिवार से एक कुशल ग्रहणी थी।
उसकी शादी 18 वर्ष पहले राजेश से हुई थी। जो मारुति की ऑथोरिएस्ड डिलरशिप में हेड ऑफ द ब्रांच के पद पर कार्यरत था। दो बेटे थे। घर में एक सास थी। कुल मिला के सब ठीक ठाक ही था।
बस उसकी सास का रवैया उसके साथ सख्त था। हर वक्त एक ही चीज दोहराती थी। तुम इस घर में बहू बनके रहोगी तो मैं तुम्हे सख्त सास ही नजर आऊंगी लेकिन बेटी बनके रहो तो मेरी बातें इतनी बुरी नही लगेंगी। लेकिन तेज बेटी बनो तब न!!
पारुल उनकी इन बातों का कोई जवाब नही देती थी क्योंकि वो जानती थी की सास को भी तो बेटी मानना आना चाहिए बहु को। लेकिन सारी उम्मीद बहु से ही होती है।
एक दिन की बात है पारुल की छोटी ननद सविता का आना हुआ और पारुल के चेहरे पर उदासी सी छा गई। क्योंकि दोनों मां बेटी जब मिलती थी तो पारुल पर तानों की बौछार शुरू हो जाती थी।
सावित्री जी पारुल के किए हर काम की तुलना ननद सविता से करने लगती जो की पारुल को बुरी लगती
पर चाह के भी कुछ कह नहीं पाती नही तो सावित्री जी घर में कोहराम मचा देती। ऐसे ही एक दिन सावित्री जी ने कहा छोले बटूरे कोई सविता से सीखे सुनती हो पारुल तुम्हारी मां ने तो तुम्हें कुछ सिखाया नही
काम से कम मेरी प्यारी बिटिया आई हैं तो उसी से सीख ले । जबकि पारुल ने ही सविता को छोले भटूरे बनाने सिखाए थे। लेकिन सावित्री जी सब जानते हुए भी ताना देने लगी।
पारुल सब से लेती थी लेकिन मायके के ऊपर किया कटाक्ष नहीं। इस बार वो बोल पड़ी मांजी आपको हमेशा से मुझसे शिकायत रही है
की बेटी बनना तो सीखो लेकिन क्या आपने कभी सास से आगे मेरी मां बनने की कोशिश की। जब आपकी बेटी से कभी गलतियां हुए होंगी
इस कहानी को भी पढ़ें:
तब क्या आपने उसे हमेशा ताने देकर कुछ भी सिखाया होगा? नहीं ना फिर मेरे साथ यह भेद भाव क्यों? क्योंकि मैं दूसरे घर से आई हूं? क्या आप मुझे यह बातें प्यार से नही बोल सकती थी?
सावित्री जी का मुंह शर्म से नीचे हो गया। पारुल फिर बोली एक बहु बेटी बनके तभी रह सकती हैं जब उसे ससुराल में मायके वाला वातावरण मिले। आपको जैसे मेरे से उम्मीद हैं वैसे ही
मुझे भी आपसे कुछ उम्मीदें हैं। जब सविता जीजी के ससुराल में उनके साथ यहीं व्यवहार होता हैं तो आप दुखी होती है, लेकिन आप भूल जाती हैं की स्वयं भी आप वहीं गलती दोहरा रही है।
सावित्री जी ने पारुल का हाथ पकड़ लिया और उससे प्यार से बोली आज पारुल तुमने मेरी आंखें खोल दी मैं तुमसे क्षमा चाहती हूं
हो सके तो मेरे किए के लिए मुझे माफ कर दो आगे से में ऐसा कोई शब्द नहीं कहूंगी जो मेरी प्यारी इकलौती बहु को दुखी करें।
इतना सुनते ही पारुल खुशी से चहक उठी और बोली मांजी बड़ों के हाथ आशीर्वाद देते अच्छे लगते हैं माफी मांगते हुए नहीं और दोनो सास बहू गले लग गई।
सच में दोस्तों अगर बहू को ससुराल में वहीं प्यार और सम्मान मिले जी उसे मायके में मिलता था तो कैसे एक बहु अपने आपको बेटी बनने से रोक पाएगी। सोचिए जरा।
पारुल रावत