राधिका ने कमरे के कोने में रखी चुप्पी के बीच अपने हाथों को घुटनों पर रखा और गहरी सांस ली।
घर में जैसे एक सन्नाटा पसरा हुआ था, और उसकी सास, मीना देवी, एक कोने में बैठी टीवी देख रही थीं। राधिका ने महसूस किया कि बीते कुछ महीनों से घर का माहौल एकदम ठंडा हो गया था। राधिका की शादी को सात साल हो गए थे, और इन सालों में उसने रिश्तों की कड़वाहट और मिठास दोनों देखी थी। सास-ससुर, पति, और ननद सभी को उसने अपना माना, लेकिन हर बार कोई न कोई दीवार खड़ी हो जाती।
उसे लगता कि कोई उसे समझने को तैयार नहीं। उसकी हर कोशिश को, हर त्याग को एक अनकहा कर्ज़ समझा गया, एक जिम्मेदारी के रूप में, जबकि उसका दिल किसी अपनेपन की उम्मीद करता रहा। इसी दौरान, एक दिन दोपहर को उसके पति, रवि, काम से घर आए। वे थके हुए दिख रहे थे, और आते ही बोले, “राधिका, ज़रा चाय बना दो। सिर बहुत भारी हो रहा है।” राधिका ने बिना कुछ कहे रसोई का रुख किया
और चाय बनाने लगी। रवि कुर्सी पर बैठते ही अपनी मां की ओर देख कर बोले, “मां, आजकल राधिका बहुत चुप रहने लगी है। सब ठीक है न?” मीना देवी ने नाराज़गी से कहा, “सब ठीक? तुम पूछ रहे हो कि सब ठीक है? तुम्हारी बीवी दिन-रात सिर्फ अपने मायके की बातें करती है। उसे यहां कोई अपनापन महसूस ही नहीं होता। सबकुछ हमारे लिए किया, फिर भी उसकी शिकायतें खत्म नहीं होतीं
।” राधिका चाय के कप लेकर आई और दोनों के सामने रख दिए। उसने मीना देवी की बातों को अनसुना करने की कोशिश की, लेकिन दिल में टीस उठी। वह बोली, “मां, मैंने कब कहा कि मुझे यहां अपनापन नहीं लगता? मैं बस इतना चाहती हूं कि मुझे भी अपने घर का हिस्सा समझा जाए।” मीना देवी ने आंखें घुमा कर कहा, “अपने-पराए की बातें छोड़ो, ये सब मोह माया है। अपना पराया तो बस कहने की बात है।
रिश्ते निभाने होते हैं, और वो भी बिना किसी अपेक्षा के। तुम्हारे मायके में क्या कोई पूछता है तुम्हारे पति को? फिर यहां इतनी शिकायते क्यों?” राधिका ने एक लंबी सांस ली। उसका मन छलनी हो चुका था। रवि चुपचाप दोनों की बातें सुन रहा था, लेकिन कुछ कह नहीं रहा था। राधिका ने रवि की ओर देखा, उसकी आंखों में एक उम्मीद थी कि वह कुछ बोलेगा, उसका साथ देगा। पर रवि सिर्फ चाय पीने में व्यस्त था।
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राधिका को समझ आ गया कि आज फिर उसे अकेले ही इस दर्द को सहना पड़ेगा। मीना देवी ने फिर कहा, “देखो, राधिका, घर में सबको खुश रखना ही औरत का धर्म है। जब मैंने शादी की थी, तब भी बहुत सारी मुश्किलें आईं, पर मैंने कभी शिकायत नहीं की।” राधिका की आंखों में आंसू थे, लेकिन वह खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी। उसने धीरे से कहा, “मां, मैं समझती हूं कि आपने बहुत सहा होगा।
लेकिन हर व्यक्ति का संघर्ष अलग होता है। मैं सिर्फ यह चाहती हूं कि मुझे इस घर का हिस्सा समझा जाए, न कि कोई बाहरी व्यक्ति।” रवि ने आखिरकार चुप्पी तोड़ी, “राधिका, मां सही कह रही हैं। ये सब मोह माया है। रिश्ते सिर्फ नाम के होते हैं, असल में तो हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना होता है।” राधिका ने उसकी बात सुनी और फिर एक पल को सोचा। वह बोली, “रवि, अगर रिश्ते सिर्फ कर्तव्यों तक सीमित हैं,
तो फिर वो अपनापन कहां गया जिसके बारे में तुमने शादी से पहले बातें की थीं? क्या मैंने इस घर में अपना सबकुछ नहीं दिया? अगर अपनापन सिर्फ कहने की बात है, तो क्या प्यार और सम्मान भी बस कहने की बातें हैं?” मीना देवी को अब और सहन नहीं हुआ। वे गुस्से में बोलीं, “राधिका, अब तुम ये सारी बातें हमारे ऊपर क्यों थोप रही हो? हमने तुम्हें कभी किसी चीज़ की कमी नहीं दी। तुम बस खुद को ही बड़ा समझती हो।
” राधिका अब चुप नहीं रह सकती थी। वह दृढ़ता से बोली, “मां, मैं खुद को बड़ा नहीं समझती, बस इतना चाहती हूं कि मेरे दर्द और मेरे त्याग को भी समझा जाए। मैं जानती हूं कि आप अपने अनुभवों के आधार पर बात कर रही हैं, लेकिन हर समय, हर पीढ़ी का संघर्ष अलग होता है। और रवि, अगर ये सब मोह माया है, तो फिर मैं यहां क्यों हूं? क्यों रिश्तों को इतने सालों से निभा रही हूं?” रवि ने चुपचाप सिर झुका लिया।
वह जानता था कि राधिका सही कह रही है, पर उस पर पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ भी था। राधिका ने एक गहरी सांस ली और कहा, “मैंने इस घर को हमेशा अपना माना, मां। पर आज ऐसा लग रहा है कि शायद मैं खुद को ही धोखा देती आई हूं। अपनापन और परायापन, ये सब बस हमारे दिमाग की उपज हैं। लेकिन सच यह है कि हम सभी इंसान हैं, और हमें समझने की जरूरत होती है। प्यार और सम्मान के बिना,
ये रिश्ते सिर्फ दिखावा हैं।”
मीना देवी ने कोई जवाब नहीं दिया। पूरे घर में एक अजीब खामोशी छा गई थी।
रवि ने हिम्मत जुटाई और राधिका की ओर देखते हुए कहा, “शायद तुम सही कह रही हो, राधिका। मैंने कभी तुम्हारे संघर्ष को इस नजर से देखा ही नहीं। पर अब लगता है कि हमें अपने रिश्तों को एक नए तरीके से देखने की जरूरत है।”
मीना देवी ने भी थोड़ा नरम होते हुए कहा, “शायद मैं भी कुछ ज्यादा ही कठोर हो गई थी। मुझे समझना चाहिए था कि हर किसी का संघर्ष अलग होता है।”
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राधिका ने आंखों में आंसू के साथ मुस्कुराते हुए कहा, “यही जीवन का सच है। अपना पराया तो बस कहने की बात है, लेकिन अगर हम दिल से एक-दूसरे को समझें और सम्मान दें, तो ये मोह माया भी हमें खुशी दे सकती है।”
दोस्तों, रिश्तों में अपनापन और परायापन केवल शब्द हैं। असली मूल्य प्यार, समझदारी और सम्मान में छिपा होता है। जब हम मोह माया को सही नजर से देखते हैं, तो हमें जीवन की सच्चाई समझ में आती है, और यही सच्चाई हमें वास्तविक खुशी देती है।
आपकी सखी
पूनम