भयंकर गर्मी का दिन था।अपराह्न का समय था। अक्सर इस समय लोग दोपहर के भोजन के बाद घरों में आराम फरमाते हैं।
सुनसान गली में कुछ लड़के एक लड़की को खींच कर ले जाने की कोशिश कर रहे थे।
लड़की मदद के लिए चिल्ला रही थी। पिता जी को चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। पिता जी ने स्क्रीन पर देखा तो घबरा गए। बाहर की ओर दोड़े। गेट खोला और लड़कों को जोर से डांट लगाई।
लड़के सुनने को तैयार नहीं थे। पिता जी के हाथ डंडा आ गया। अब पिता जी उनकी तरफ बढ़े। वे लड़के लड़की को छोड़कर भाग गए।
घर की सुरक्षा के लिए लगवाए गए कैमरों ने और पिता जी की हिम्मत ने एक लड़की के जीवन की सुरक्षा करने में मदद की।
पिता जी ने लड़की के पिता जी की मदद करने के लिए कैमरे के फुटेज भी उनको दे दिए। वह न तो लड़कों को जानते थे और न ही
लड़की और उसके परिवार को। लड़की के पिता ने पिता जी से बात किए बिना ही उन्हें इस घटना की गवाही देने के लिए गवाह बना दिया।
पिता जी ने ब्यान में सारी जानकारी दी और बताया कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है। इसलिए वह बार-बार थाने में नहीं आ सकते।
पर फिर भी उन्हें बार-बार फोन करके परेशान किया जाता है। सच में कभी कभी तो ऐसा लगता है कि कैमरे के फुटेज देकर उन्होंने मुसीबत को मोल ले लिया है।पता नहीं इस से कब पीछा छूटेगा।
लड़की को बचाना जरूरी था, बचा दिया। कैमरे के फुटेज इसलिए दिए ताकि लड़कों को पकड़ने में सफलता मिल सके। पर ऐसा करने से पिता जी ने अंगारे सिर पर धर लिए। असल में उन्हें मदद का ईनाम मिला था।
स्वरचित और मौलिक रचना
डॉ हरदीप कौर (दीप)