इस रिश्ते को चला पाना अब सुमेधा के लिए नामुमकिन नजर आ रहा था। पति सुयश के बारे में सोच सोच कर वो अपने बढ़ते कदमों को रोक लेती थी। और सब की तरह उसके ससुराल में भी वोही सब बातें की तू दहेज कम लाई, हम तो ठग गए, तेरी जैसी मेरे लड़के के आगे पीछे छत्तीस घूमती थी, हए कितने अच्छे अच्छे रिश्ते ठुकरा दिए और भी अनगिनत बातें। सुयश अपने माता पिता के सामने उनकी कही गलत बातों पर बोलते तो
जोरू के गुलाम की पदवी से नवाज दिया जाता। ज्यादा होने पर घर से निकाल देने की धमकी दी जाती। ऐसा नहीं था की सुयश को अपना और सुमेधा का आत्म सम्मान प्यारा नही था। जब जब अपना सामान उठाते की अब इस घर में नही रहना तो उनकी माता जी भावुक कर देती की तुझे इतने कष्टों से पैदा किया , इतने जतनो से पाला पोसा और तू इस कल की आई के लिए हम सब को छोड़ कर जा रहा है। कुछ दिन बात शांत रहती।
और फिर वोही सब ड्रामा शुरू हो जाता की तू खुद हमारे साथ नही रहना चाहती , तुझे आजादी चाहिए, घर के कामों से बचना चाहती है और न जाने कितने अनगिनत अनसुने इल्जाम।
सुयश भी लाचार था की मां को रोक नहीं सकता और बीवी पर होता मानसिक प्रहार सहन नही कर पाता। प्यारी सी बेटी के आने के बाद भी उन दोनो की जिंदगी यूंही चलती रही। सुयश पूरी कोशिश करते की उनकी वजह से सुमेधा को कोई चोट या दुख न पहुंचे। मगर जहां पूरा वक्त बिताना पड़े, सुबह से शुरू हुआ अनचाहा कलेश जो शुरू होता तो रात भर चलता। इस बीच दो बार सुयश ने सुमेधा के साथ
अपनी गृहस्थी अलग रह कर भी बसाई, मगर फिर वापिस आने के लिए मजबूर कर साथ रहने की मिन्नत की जाती। सुमेधा खुद नही चाहती थी की बेटा अपनी मां से दूर रहे। मगर सुयश की माताजी को बेटे से इतना लगाव था की उन्हे सुमेधा का सुयश के साथ होना अच्छा नही लगता था। हां दिन भर सुमेधा अपने कर्तव्य पूरे करती रहे, घर को घर समझे और बड़े छोटे को प्यार और सम्मान दे यह सब करवाना उन्हें बखूबी पता था ।
इंसान कितना भी नजर अंदाज कर ले , मगर रोज रोज के कलेश वातावरण को इतना खराब कर देते है की इंसान का जी ऊब जाता है, जीने की भी इच्छा नहीं करती। अब वोही हाल सुमेधा का था । कोई भी उसकी हालत नही समझ पा रहा था, मां कहती बेटा यह सब तो चलता रहता है । पति से कुछ कह नहीं पाती की उन्हे क्या परेशान करना।
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रोज रोज के सास के तानों से तंग आकर मरने की इच्छा करती । मगर बेटी और सुयश और अपने माता पिता की सोच पीछे हट जाती। कितने मानसिक तनाव से वो ग्रस्त थी यह सिर्फ सुयश और सुमेधा ही जानते थे। उसका मन में आया की मरने से हल नहीं निकलेगा मगर ऐसे घुट घुट के जीने से अच्छा है की वो सुयश से तलाक लेकर कहीं दूर अपनी बेटी के साथ चैन की जिन्दगी जिए। मन की यह बात भी एक दिन कलेश में मुंह पर
आ गई । सुयश को तो काटो तो खून नहीं की मां सही कहती थी इसे मुझसे भी कोई प्यार नहीं। सुमेधा ने कितने आसानी से कह दिया की वो उस से अलग होना चाहती है। तकरार बढ़ी और उस दिन उन दोनो में भी जम कर कलेश हुआ। रात में ही सुमेधा ने घर छोड़ दिया और मायके आ गई।
इधर सुयश यह मान बैठा की मेरे इतने प्यार और साथ के बाद भी अगर सुमेधा उसके साथ नही रह पाई तो उसको आजाद कर देने में ही भलाई है। सास की तो मनचाही मुराद पूरी हो गई। अब जल्दी जल्दी दूसरी शादी की बात चलने लगी। तलाक हुआ नही था और उन्हें नई बहू लाने की हसरत जोर मार रही थी, जिसे सुयश ने एक झटके में यह कहकर धाराशाई कर दिया
की अब वो किसी दूसरी लड़की की जिंदगी बर्बाद नही करेगा, सुमेधा जो बिना किसी गलती के आपकी आंखों में चुभती रही , क्या भरोसा है की दूसरी लड़की नही चुभेगी। और फिर शायद तीसरी और चौथी शादी करवाई जायेगी।
सुयश ने बाहरी लोगों से मिलना जुलना कम कर दिया था, उसका किसी काम में मन नहीं लगता था । धीरे धीरे सुयश ने बाहर निकलना बंद कर दिया था। यहां तक कि घर में अपने कमरे में भी नही जाता। वहां उसे अपनी बेटी और सुमेधा की यादें सताती। बहुत हाथ पैर मार लेने के बाद भी जब सुयश ने कई महीने निकाल दिए तो उसकी माता जी को समझते देर न लगी की उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी जिसकी भरपाई अब शायद सुमेधा को घर वापिस लाकर ही करी जा सकती है।
मरती क्या न करती, दो चार झूठे सच्चे आंसू बहा और सुयश का वास्ता दे सुयश की माताजी , सुमेधा और पोती दोनो को घर ले आई। अब न चाहते हुए भी उन्हें अपना मुंह बंद रखना पड़ता। धीरे धीरे समय सब जख्म भर देता है। उम्र के साथ जब सुयश की माताजी का शरीर बैठने लग गया तो अब वो हर छोटे बड़े काम के लिए सुमेधा पर निर्भर रहने लगीं। सुमेधा और बहुओं की तरह नही थीं, सास के सारे छोटे बड़े काम चुपचाप कर दिया करती , चाहे वो उनके मलमूत्र के कपड़े हो या उनको नहलाना धुलाना हो। वक्त के साथ साथ अपने किए कर्मो के लिए पल पल पछताती बस बिस्तर पर पड़े पड़े दिन रात दुआएं देती रहती।
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अपना अपना हिस्सा लेकर और बेटे बहु अपनी गृहस्थियां बसा चुके थे। मकान सुयश और सुमेधा के नाम आया जो की उनकी माताजी के लिए फायदे का सौदा रहा। दिन रात बदलते रहे। अब वोही सास है जो बिस्तर पर पड़ी रहती थी और अब वॉकर की मदद से चलने फिरने लगी थी और जितना थोड़ा बहुत ही सही सुमेधा को छोटे मोटे कामों में मदद कर देती। व्यवहार बदल रहा था जो सुमेधा भी महसूस कर रही थी। परिवार का माहौल खुशनुमा था। अब कोई सास बहू नही , अब वहां इंसान बसते थे। जहां सुमेधा का दम घुंटता था , अब उस घर के कोने कोने
को वो अपने हुनर से महकाती थी। जब परिवार में हसियां खुशियां बसती हैं तो वहां समृद्धि भी वास करती हैं। सुमेधा जब बीते दिन याद करती तो बस यही निकलता की भगवान जैसे तुमने मेरा परिवार टूटने से बचाया ऐसे ही हर लड़की का घर बचाना। जिंदगी और परिवार सुख और दुख का संगम है। आज अगर दुख है तो कल सुख भी आएगा। बस घबराना नहीं चाहिए। सास के प्यार भरे स्पर्श से सुमेधा वापिस आज में लौट आई तो देखा की बिटिया भी ऑफिस से आकर मां और दादी के साथ चाय लेकर चली आ रही है। सब की दिन भर की चुहलबाजियों ने घर को रोशन कर दिया है। आज सुमेधा और सुयश जीवन के अनमोल प्यारे पलों को भर भर कर जी रहे है।
सोनिया अग्रवाल
VM