जीवन एक नदी की तरह है, जो कभी शांत और सुखमय होती है, तो कभी उसमें दुख और संघर्ष की लहरें उठती हैं। जैसे नदी अपने गंतव्य की ओर बिना रुके बहती रहती है, वैसे ही जीवन भी अपनी गति से चलता रहता है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। सुख और दुख, दोनों जीवन के अभिन्न अंग हैं। ये दोनों हमें जीवन की गहराइयों का एहसास कराते हैं और हमें सिखाते हैं कि कैसे संतुलित रहकर हम अपने जीवन की यात्रा को सफल बना सकते हैं।
रामेश्वर, एक साधारण किसान, ने अपने जीवन में सुख और दुख के अनगिनत रंग देखे थे। उसकी एक छोटी-सी जमीन थी, जिस पर वह अपने परिवार के साथ मेहनत करता था। सालों से मेहनत करते-करते जब उसकी फसलें अच्छी होने लगीं, तो उसने सोचा कि अब उसका परिवार सुखी रहेगा। उस साल की फसल उसकी उम्मीदों से भी बेहतर थी। उसके चेहरे पर खुशी थी, उसकी पत्नी और बच्चे भी उस फसल की बरकत को देखकर प्रसन्न थे।
लेकिन कहते हैं ना कि जीवन हमेशा एक जैसा नहीं रहता। एक दिन अचानक भारी बारिश आई और उसके सारे खेत बर्बाद हो गए। जिस खेत को उसने अपने पसीने और मेहनत से सींचा था, वह अब कीचड़ में तब्दील हो चुका था। रामेश्वर के लिए यह एक गहरा आघात था। उसकी आँखों में आँसू थे, दिल में निराशा।
उसे लगा कि अब उसका जीवन बर्बाद हो गया है। वह दुख के सागर में डूब गया, लेकिन कुछ ही समय बाद उसकी माँ ने उसे एक पुरानी सीख दी, “बेटा, जैसे सुख हमेशा नहीं रहता, वैसे ही दुख भी हमेशा नहीं रहेगा। ये जीवन का चक्र है, जो चलता रहता है। हमें दुख को भी उतनी ही धैर्यता से सहन करना चाहिए
जितना हम सुख को गले लगाते हैं।” रामेश्वर ने अपनी माँ की बातों को दिल से लगाया और सोचने लगा कि जब सुख उसे संतोष और खुशी दे सकता है, तो दुख उसे धैर्य और साहस क्यों नहीं दे सकता? वह उठ खड़ा हुआ और फिर से खेतों को संवारने लगा। समय के साथ फसलें फिर से हरी-भरी हो गईं।
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यह अनुभव उसे सिखा गया कि जीवन में केवल सुख की ही नहीं, बल्कि दुख की भी एक भूमिका होती है। सुख हमें जीवन की मिठास का अहसास कराता है, जबकि दुख हमें संघर्ष करना सिखाता है और हमें और भी मजबूत बनाता है।
कई सालों बाद, जब रामेश्वर बूढ़ा हो गया, तो उसने अपने पोते-पोतियों को एक दिन यह बात समझाई, “बच्चों, जीवन में सुख और दुख दोनों का अपना महत्व है। सुख हमें जीने का आनंद देता है और दुख हमें सहनशीलता और साहस की शिक्षा देता है। अगर हमारे जीवन में केवल सुख ही हो, तो हम आलसी और आत्मसंतुष्ट हो जाएंगे।
और अगर केवल दुख ही हो, तो हम टूट जाएंगे। इसलिए जीवन में दोनों का संतुलन आवश्यक है। सुख और दुख जीवन के दो पहिए हैं, जिनसे हमारा जीवन चलता है।” रामेश्वर की बातों से उसके पोते-पोतियाँ भी यह सीख गए कि जीवन में आने वाले हर सुख और दुख को हमें खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि यही जीवन का असली सार है।
लेखिका
आरती द्विवेदी