ग्रेजुएशन। – कामनी गुप्ता*** : Moral Stories in Hindi

बारहवीं की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। रोहन बेसब्री से नतीजे का इंतज़ार कर रहा था। घरवाले भी रोहन की मेहनत से बाकिफ़ थे। सबको रोहन से बहुत उम्मीदें थी। रिश्तेदारों में भी यही बात थी कि अपना रोहन घर का और सबका नाम रोशन करेगा। खैर वो दिन भी आ जाता है। रोहन उम्मीद पर खरा उतरता है। घर में खूब मिठाइयां आती हैं।

सभी रिशतेदार खुशी खुशी रोहन को तोहफे और ढेर सारा आशीर्वाद भी देते हैं। रोहन और घरवाले काफी खुश होते हैं। देखते देखते हफ्ता दस दिन निकल जाते हैं। बधाइयों का सिलसिला अभी चल रहा होता है आखिर रोहन पूरे खानदान में सबसे अच्छे नंबरों से जो उत्तीर्ण हुआ था।

पर अब घर में आगे के लिए माथापच्ची शुरू हो जाती है । रोहन को सभी रिशतेदार, दोस्त  अपने अपने सुझाव देते हैं। भाई इतने नंबर लाया है और ” सिर्फ ग्रेजुएशन” … न बाबा न। आपका दिमाग खराब है?? इतने होनहार बच्चे को घर में रखोगे ?? और…”सिर्फ ग्रेजुएशन करवाओगे”?

घरवाले भी बहुत गर्वान्वित महसूस करते हैं। कहते हैं… न जी , रोहन जो कहेगा,  जहाँ कहेगा हम इसे भेजेंगे। रोहन ने तो बस यही सोचा था कि वो ग्रेजुएशन करके पापा के व्यवसाय में साथ देगा और उसे आगे बढ़ाएगा। उसका कोई कम्पीटीशन इग्ज़ाम या बाहर से कोई कोर्स करने का कोई इरादा नहीं था।

न ही उसने कोई फार्म भरा था। पर रिशतेदार और दोस्त रोहन को और उनके घरवालों को यही कहते हैं कि इतने अच्छे नंबर लाया है  , इसे बड़े शहर में  या कहीं बाहर भेजो। अरे हमारे बच्चे इतने नंबर लाते तो हम विदेश पढ़ने भेज देते। आपके पास पैसे की भी कमी नहीं है। फिर इतना क्यों सोच रहे हैं??

रोहन और उनके घरवाले सच में सोचने लगते हैं, बात तो सही है । सब लोग अपने बच्चे बाहर भेजते हैं। हम भी ग्रेजुएशन बाहर के कालेज से कराएंगे। रोहन के पापा जल्दी ही किसी कालेज में ढेर सारा पैसा खर्च करके एडमिशन करा देते हैं और उसे घर से  कोसों दूर होस्टल में छोड़ आते हैं। एक ही बेटा

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और भी घर से हज़ारों किलोमीटर दूर हो गया।  सभी रिशतेदार भी अब बधाई दे चुके थे। वो भी न आते थे, दोस्त भी ,जब रोहन ही नहीं था तो कौन आता। घर में उदासी छा जाती है। न मम्मी, पापा का खाने का मन करता  न कुछ बनाने का। अब इतनी दूर तो आना भी जल्दी नहीं हो सकता था। पापा के

बिजनेस में अकेले काम की वजह से वो भी  जल्दी नहीं मिल सकते थे। मम्मी और पापा बस रोहन का सामान देख, उसके कमरे में कदम रखते ही रो पड़ते थे। बस फोन, वो भी जब रोहन कालेज न हो तब। दोनों का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था। उधर रोहन भी जिसे घर से दूर रहने की आदत नहीं थी, वो भी तंग आ गया था।

कहाँ घर में आराम, मनमर्जी का खाना, सोना रहना। कहाँ होस्टल की ज़िन्दगी। रोहन भी उदास हो गया था घर से बाहर जाकर। उसने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं घर से दूर जाऊंगा। पर पता नहीं जोश में और सबकी बातों में आकर रोहन बिना किसी सोच विचार और प्लैंनिग के आ तो गया था। अब पछतावा हो रहा था। बाकी ज्यादातर बच्चे खुश थे कि इतने अच्छे रैंक वाला कालेज तो मुश्किल से मिलता है। शुक्र मना रहे थे।

पर रोहन का ये सपना नहीं था। वो सिर्फ ग्रेजुएशन करके पापा का बिजनेस संभालना चाहता था। अच्छे नंबर लाना उसका शौक था बस। आखिर एक महीने का समय मुश्किल से काट कर वो बीच में पढ़ाई छोड़ कर घर वापसी कर लेता है। घरवाले भी खुश हो जाते हैं रोहन को देखकर। घर हरा भरा दिखता है, रौनक लौट आती है घर की। रोहन पहले तो परवाह करता है कि सभी मेरा मज़ाक बनाएंगे, घरवाले भी गुस्सा करेंगे।

पर ऐसा कुछ नहीं होता। कुछ लोग बातें करते हैं, पर घरवाले बहुत खुश होते हैं। फिर रोहन अपने दिल की बात कहता है कि वो क्या चाहता है। पछता तो घरवाले भी रहे थे कि सबकी बातों में आकर हमने भेज तो दिया था पर एक एक दिन काटना दुष्कर हो रहा था। खैर फिर रोहन अपने शहर में ही कालेज में लेट एडमिशन करवा लेता है। और खुशी खुशी रोज़ कालेज जाता है। 

कामनी गुप्ता***

जम्मू।

घर वापसी

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