मैने देखा है कि सब दरवाजे बंद हो जाते है तो इंसान आखिर में ईश्वर की शरण में जाता है फिर शुरु होता है मन्नतों ,धागों
का दौर या कहो आस्था पर विश्वास का दौर।
सुनीता के हाथ पर लाल डोरा बंधा देखकर जब मीनू ने पूछा –
ये सब क्या है ? ये विश्वास के धागे होते है, उम्मीद जगाते हैं कि सब ठीक हो जाएगा। सुनीता ने जब ऐसा कहा तो मीनू को बहुत हँसी आई?क्या सुनीता तू भी न इन चक्करों में पड़ती है। कहा भी गया है कि जिसका दर्द वही जाने।
आज बैठे हुए मीनू को सुनीता की सब बातें याद आ रही थी।
भाई की ड्यूटी तब कश्मीर के कूपवाडा में थी। और हम श्रीनगर में थे। उस समय वहाँ हालात ठीक नहीं थे। मेरी जिद देखकर भाई ने कहा डाक के लिए गाडी आती हैं तू उसमें आ जाना। मैं बहुत खुश हुई करीब 10 साल बाद भाई की कलाई पर राखी बाँधूँगी। जब से बी आर ओ ज्वाईन की भाई ने , कभी भी प्रत्यक्ष में राखी नहीं बाँध पाई मैं।
भाई को कभी छुट्टियाँ ही नहीं मिली। अब प्रश्न उठा राखी कहाँ से लाए ? सरे आम जाकर सीधे हम बाजार से सामान नहीं ला सकते थे? हाई सिक्योरिटी के साथ जाना पड़ता था।
और कैंटीन में उस समय तक राखियाँ भी नहीं आई थी। खैर।
मैनै धागे की गट्टी ली और कूँ कूँ हल्दी लगाकर करीब 5 -6 लेपेटे करकर भाई को राखी बाँधी। हम दोनों की आँखो में आँसूँ थे खुशी के भी दुख के भी, वो क्षण आज भी बहुत याद आते है क्योकि उस राखी के बाद 15 साल बीत गए की मैं राखी बाँध नहीं पाई कारण वही।यहाँ तक की कितनी भी कोशिश कर लो समय पर राखी मिलती ही नहीं है उसे डाक से ।ये राज बाद में खुला।
पिछले साल किसी कारण मै राखी नहीं भेज पाई बाद में माफी मांगते हुए राखी भेजी और कहा बाँध लेना तो चुटकी लेते हुए भाई ने कहा तेरी राखी समय पर मिली ही कहाँ?
मैं तो हर साल वही राखी बाँधता हूँ जो तूने मुझे कूपवाडा में बाँधी थी। मेरा रक्षा कवच हमेशा मेरे साथ रहता है। ये है आस्था, विश्वास। बहुत भावुक हो गई सुनकर।
मैं सलाम करती हूँ उन बहनों को जो राखी बांधने बार्डर जाती है और राखी बांधकर भाइयोंको थोडी सी खुशी देती हैं।
पता नहीं कैसा योग है मेरा की मैं 10/15 साल में एक बार ही प्रत्यक्ष मे भाई की कलाई पर राखी बाँधती हूँ।
इस बार भी कोरोना के कारण मैंने राखी नहीं खरीदी, और वही रक्षा सूत्र कलाई पर सजाई जिसमें है मेरा प्यार
और भाई का विश्वास है।
सीमा धुलेकर
#बहन