बहन – रवीन्द्र हट्टेवार : Moral Stories in Hindi

यह कहानी दो बहनों, आरती और प्रिया, के अटूट प्रेम और समर्पण की है। वे दोनों एक छोटे से गांव में रहती थीं। आरती बड़ी बहन थी, जबकि प्रिया उससे चार साल छोटी थी। दोनों बहनें एक दूसरे के बिना अधूरी थीं। बचपन से ही वे एक दूसरे का ख्याल रखतीं और साथ में हर खुशी और दुख बांटतीं।

आरती बचपन से ही बहुत जिम्मेदार थी। मां-बाप के जल्दी ही गुजर जाने के बाद उसने ही घर की ज़िम्मेदारी संभाली। प्रिया के लिए उसने मां-बाप दोनों की भूमिका निभाई। आरती चाहती थी कि उसकी छोटी बहन पढ़-लिखकर बड़ी आदमी बने, इसलिए वह दिन-रात मेहनत करती, घर के काम-काज से लेकर खेतों में काम करने तक। आरती का एक ही सपना था कि प्रिया पढ़-लिखकर कुछ बड़ा करे।

प्रिया को भी अपनी बड़ी बहन से बहुत लगाव था। वह देखती थी कि आरती कैसे बिना किसी शिकायत के उसकी हर जरूरत पूरी करती है। प्रिया पढ़ाई में बहुत होशियार थी। वह स्कूल में हमेशा अव्वल आती। उसकी सफलता देखकर आरती का चेहरा खिल उठता। दोनों बहनों के बीच यह प्यार और समर्पण हर किसी के लिए मिसाल था।

एक दिन आरती ने महसूस किया कि प्रिया को पढ़ाई के लिए शहर जाना चाहिए। गांव में अच्छी शिक्षा के साधन नहीं थे। आरती ने बिना समय गवांए यह निर्णय लिया कि वह प्रिया को शहर भेजेगी। लेकिन इसके लिए उसे बहुत पैसे चाहिए थे। आरती ने अपनी सारी बचत इकट्ठा की, लेकिन फिर भी पैसे कम पड़ रहे थे। उसने अपने गहने तक बेच दिए ताकि प्रिया की शिक्षा में कोई रुकावट न आए।

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प्रिया ने जब यह सुना तो वह बहुत दुखी हुई। वह अपनी बहन को इस तरह तकलीफ में नहीं देख सकती थी। उसने आरती से कहा, “दीदी, मुझे शहर नहीं जाना है। मैं यहीं रहकर पढ़ाई करूंगी। आप मेरे लिए इतना बलिदान मत करो।” 

आरती ने प्रिया को समझाया, “देख प्रिया, यह सब तेरे भविष्य के लिए है। मैं चाहती हूं कि तू बड़े होकर अपने सपनों को पूरा कर सके। अगर मुझे कुछ त्याग करना पड़े, तो मैं खुशी-खुशी करूंगी। तेरा सपना मेरा सपना है।”

प्रिया ने आरती के आंसुओं में छिपी ममता को समझा और आखिरकार शहर जाने के लिए तैयार हो गई। शहर में आकर प्रिया ने दिन-रात एक कर पढ़ाई की। उसकी मेहनत रंग लाई और कुछ सालों बाद वह एक बड़ी अधिकारी बन गई। प्रिया ने अपनी पहली तनख्वाह से सबसे पहले आरती के लिए एक सुंदर साड़ी खरीदी और उसे पत्र लिखकर धन्यवाद कहा।

पत्र में लिखा था, “दीदी, आज जो कुछ भी मैं हूं, वह सब आपकी वजह से हूं। आपने मेरे लिए जो त्याग किए, उनका ऋण मैं कभी नहीं चुका पाऊंगी। आप मेरी प्रेरणा हो, मेरी दुनिया हो। मैंने जो भी सफलता हासिल की है, वह सिर्फ आपकी बदौलत है। अब मुझे मौका दो कि मैं भी आपकी खुशियों का कारण बन सकूं।”

जब आरती ने प्रिया का पत्र पढ़ा, उसकी आंखों से आंसू बह निकले। उसे गर्व था कि उसकी बहन ने उसकी मेहनत को व्यर्थ नहीं जाने दिया। लेकिन उसे खुशी इस बात की थी कि प्रिया ने उसका सपना पूरा कर दिया था। 

प्रिया ने बाद में आरती को शहर बुला लिया। वह चाहती थी कि आरती भी अब आराम से जिए, जिस तरह से उसने बचपन से सबके लिए बलिदान किया। दोनों बहनें अब एक साथ रहतीं, एक-दूसरे के साथ अपने सपनों को जीतीं।

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इस तरह, आरती और प्रिया की कहानी ने यह साबित किया कि बहन का प्यार और त्याग किसी भी रिश्ते से बढ़कर होता है। दोनों बहनों के बीच का यह बंधन जीवन की कठिनाइयों में भी अटूट रहा। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चे रिश्तों में समर्पण और प्यार ही सबसे बड़ी ताकत होती है। 

आरती और प्रिया के इस प्यार और समर्पण ने उनके जीवन को सफलता और खुशियों से भर दिया। यही बहन का रिश्ता होता है—अटूट, अमूल्य और सबसे प्यारा।

रवीन्द्र हट्टेवार 

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