उनके शरीर को एक छुअन सी महसूस हुई…
उन्होंने गौरीशंकर को बताना उचित न समझा और आंखे बंद करके कुछ मंत्र का जाप करने लगे …..
गौरीशंकर को लगा जैसे बाबा गृहस्थ घर में प्रवेश कर रहे हो इसलिए उसके लिए कोई मंत्र पढ़ रहे है.
उन्होंने दरवाजे के नीचे के जमीन को देखा …और अंदर प्रवेश कर गए उनके घर में प्रवेश करते ही घर के अलग अलग हिस्सों में बैठी हुई बिल्लियां घर से बाहर भाग गई..
महाराज जी ने घर को बड़े गौर से देखा तो उन्हें पूरे घर में काली आत्माओं का घेरा दिखाई दिया…
गौरीशंकर एक बार जरा मुझे अपने पूरे घर को दिखाओ…
जी महाराज (गौरीशंकर ने कहा)
गौरीशंकर ने पहले महाराज जी को अपने कमरे वाले हिस्से में ले जाने लगा तभी उमा सामने से आकर महाराज के चरण छूती है..
अखंड सौभाग्यवती भव: पुत्री
कहकर महाराज जी आगे बढ़ते है और गौरीशंकर के कमरे पे प्रवेश करते है ..
उस कमरे में उन्हें कुछ भी नही दिखा…
फिर गौरीशंकर उनको बच्चों वाले कमरे में लेकर गए ..
जैसे ही वो दरवाजे पर पहुंचते है ..
उन्हे दो बच्चे दिखते है और दरवाजे के नीचे ध्यान लगाकर देखने लगते है तभी
महाराज जी … ये मेरा पुत्र विष्णु
और मेंरी पुत्री अपूर्वा है..
महाराज जी मुस्कुराते है और आंगन की तरफ बढ़ते है तो आंगन में उन्हें तुलसी का पौधा सुखा दिखता है साथ ही आंगन से पूरी आत्माओं की दुर्गंध सी आ रही थी
बस गौरीशंकर
अब मेरे लिए भोजन लगाओ
गौरीशंकर ने महाराज के लिए आसान लगाया और पानी लाकर दिया
महाराज जी ने हाथ मुंह धोकर आसन ग्रहण किया और हाथ में जल लेकर आंख बंद करके उन्होंने जो देखा उससे उनको गौरीशंकर तथा उमा के लिए बड़ा दुख हुआ फिर भी उन्होंने भगवान शंकर को याद करके मन ही मन बोले
प्रभु अब समझ आया मुझे की मेरे मन में ऐसी भावना क्यों बनी थी की मैं भोजन या तो सन्यासी या फिर शिवभक्त के घर ही करूंगा क्योंकि आपका एक भक्त इस समय घनघोर संकट में है और मेरा ये प्रण गौरीशंकर के लिए कुछ सहायता तो जरूर करें
धन्य है भोलेनाथ आप धन्य है
उसके बाद उन्होंने खाना शुरू किया और खाने के बाद बाद उन्होंने कहा…
गौरीशंकर मैं आया तो एक दिन के लिए था तुम्हारे गांव में वो भी अखंड की शुरुआत करने लेकिन तुम्हारी सेवा से मैं प्रसन्न होकर पूरे 9 दिन मैं इसी गांव में रहूंगा और मेरे रहने का प्रबंध तुम अपने ही घर के बाहर कर देना 10 वे दिन मैं चला जाऊंगा।
गौरीशंकर के मानो लौटरी लग गई हो वो बहुत खुश हुआ और बोला महाराज ये तो मेरा सौभाग्य होगा जो मुझे आपकी सेवा करने का अवसर मिलेगा..
तुम्हे नहीं गौरीशंकर तुम्हारे बच्चे और तुम्हारी पत्नी को क्योंकि कल से अखंड की शुरुआत है और अब तुम पूरे नौ दिन पूजा पे बैठोगे क्योंकि वहां के पंडित तुम्ही हो इसलिए तुम्हारा घर आना वर्जित होगा
इसलिए मैने सोचा की तुम्हारी इतनी सेवा का कुछ तो फल चुका के जाऊं। तो इसी बहाने मैं पूरे नौ दिन तक अखंड में भी रह लूंगा और रात के समय तुम्हारे घर को एक चौकीदार भी मिल जायेगा….( हा हा हा महाराज जी हंस पड़े)
कैसी बात करते है महाराज जी आप को चौकीदार बनाने का मैं सोच भी नही सकता..
अच्छा अब चलो मुझे रहने के जगह पर छोड़ आओ और हां जहां मैं रहना शुरू करता हूं उस जगह को एक दिन पहले ही मैं सिद्ध मंत्र द्वारा बांध देता हूं ताकि मुझे कोई परेशानी न हो
इसलिए जरा एक लोटे में जल लेकर आओ जरा मैं उसे अभिमंत्रित करके इस जगह को अपने कब्जे में ले लूं..
जी महाराज ( गौरीशंकर घर से पानी ले आया)
महाराज जी लोटा लेकर उस जल को शक्तिशाली मंत्रों से अभिमंत्रित करके घर के चारों ओर जल से घेरा लगा दिया
जैसे ही घेरा लगा उधर चंद्रिका अपने उफान पर आ गई और उसने बहुत कोशिश वही से बैठे बैठे करी लेकिन वो कुछ न कर सकी उसका मन और शक्ति गौरीशंकर के घर के चारों ओर लगे घेरे को भेद ही नहीं पा रही थी उसने कई प्रयास किया लेकिन असफल रही उसने तुरंत अपनी शक्तियों से घर के आसपास मुआयना किया तो देखा एक सिद्ध
योगी ने गौरीशंकर के घर को चारो तरफ से अभिमंत्रित कर दिया है तथा उसके द्वारा भेजे गए सभी बिल्लियां मंत्रों की शक्ति से कही लुप्त हो गई है लेकिन उसने यह भी देखा की अपूर्वा और विष्णु भी अभिमंत्रित हो गया है …..
वो चिल्ला उठी ..
रात की सन्नाटे को चीरते हुए वो आवाज साधना मनुष्य को तो सुनाई नही दिया लेकिन अखंड के लिए पहुंचे कई सिद्ध योगियों को वो आवाज सिहरा कर चली गई…
श्री महालबलेश्वर जी जब से गौरीशंकर के घर से आए थे उन्होंने ध्यान लगाकर देखना शुरू कर दिया था की वो कौन है जो इस भोले भाले ब्राह्मण को तंग कर रहा है …
जैसे ही वो आवाज महाराज जी कानो तक पहुंची इन्होंने अपने मन को उस आवाज के पीछे छोड़ दिया और जैसे ही इनका मन उस आवाज के मुख्य श्रोत तक पहुंचा …
महाराज जी को सारा माजरा समझ में आ गया
ऐ योगी
तू यहां तक पहुंच गया…….( चंद्रिका ने महाराज जी के मन को अपने पास भांप कर कहा)
मन तो कही भी पहुंच सकता है , इसकी गति तो अनंत है पर तू बता….तुम उस निर्धन गरीब ब्राह्मण के घर कैसे पहुंच गई?…..(महाराज जी ने पूछा)
हा हा हा हा …….. योगी तुम तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे तुमने मूझपर अधिकार कर लिया हो
अधिकार तो नही लेकिन एक शिव भक्त होने के कारण दूसरे शिव भक्त के साथ अगर कुछ बुरा हो रहा होगा तो ये मेरा कर्तव्य बनता है की मैं उसकी जितनी हो सके भोलेनाथ की कृपा से मदद कर सकूं…( महाराज जी ने कहा)
और तुझे लगता है की तुम मुझसे उसको छुटकारा दिलवा पाओगे…….हा हा हा हा ( एक भयंकर हसी चंद्रिका के मुख पर आई)
योगी …अभी तुमने मुझे जाना कहां है की किस तरह की बला हूं
तुम मेरे रास्ते में मत आओ इसी में तुम्हारी भलाई होगी वरना….
वरना क्या कर लोगे तुम ?…(महाराज जी ने गुस्से में बोला)
वरना तुम सब को ऐसी मौत दूंगी की अगली सातों पुस्ते जन्म लेने से पहले ही जन्म के बाद होने वाले हश्न को सोचकर ही मौत के मुंह में समा जायेगी …( चंद्रिका ने एक कुटिल मुस्कान के साथ धमकी दी)
जो जन्म मरण के मोह से छुटकारा पाने के लिए भोलेनाथ के शरण में चला गाय है उसे तुम मौत की धमकी देते हो…..
चलो अब अपने ये नखड़े अलग रख कर बताना शुरू करो की तुमने गौरीशंकर के घर में प्रवेश कैसे लिया?
नही बताऊंगी बुढ्ढे जो कर सकते हो कर लो….( चंद्रिका बोली)
मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं चंद्रिका तुम बताती हो या मैं अपनी शक्ति का प्रयोग करूं?
नही बताऊंगी नही बताऊंगी नही बताऊंगी….
तो ठीक है मैं तुम्हारे दोनो बच्चे के ऊपर अपनी शक्ति का पहला प्रयोग करता हूं क्यूंकि मैंने अपनी शक्तियों से ये देख लिया था की गौरीशंकर जिसे अपना पुत्र और पुत्री समझ रहा है असल में वे वो दोनो है ही नही….
वो तो तुम्हारे बच्चे हैं
है ना चंद्रिका?……( महाराज जी ने जैसे उसके परत छिल कर रख दिए हो उसके सामने)
तुझे कैसे पता चला योगी? ..( चंद्रिका गुर्राई)
तुझे क्या लगा मैं कोई ढोंगी और केवल भूत भगाने वाला बाबा हूं, अगर तुम मायावी शक्तियों को अपने पास रख रखी हो तो मैं भी थोड़ा बहुत भोलेनाथ की कृपा से तुम जैसे बुरी आत्माओं को वश में करने का शक्ति तो रखता ही हूं…
और ऐसा कहकर महाराज जी ने एक मंत्र पढ़ और उसे हवा में छोड़कर महाराज जी ने चंद्रिका से कहा ….
लो चंद्रिका अब मैं तुमसे कुछ नही पूछूंगा लेकिन अब से नौ दिनों तक जब तक गौरीशंकर इस गांव में अखंड के लिए पुरोहित बना रहेगा तुम अपने दोनो बच्चों से मिलने उसके घर तो क्या उसके आसपास भी अगर फटकने की कोशिश करोगे तो तुम्हारे बच्चे सदा सदा के लिए लुप्त हो जाएंगे और तुम अपनी किसी शक्तियों के माध्यम से उससे मिल नही पाओगी..
तब तक वो दोनो विष्णु और अपूर्वा के रूप में ही रहेंगे …
अब मैं खुद पता लगा लूंगा की आखिर तुम वहां तक पहुंची कैसे?
और महाराज जी अपने मन के माध्यम से अपने शरीर में आ गए
उधर चंद्रिका ….
नही योगी ..नही योगी
मैं बताती हूं
कहा गए तुम…
चिल्लाए जा रही थी
लेकिन अब कोई फायदा नही था महाराज जी ने अपनी आंखे खोल दी थी…
अगली सुबह
पूरे गांव में उत्सव सा माहौल बना हुआ था ..
आज अखंड की शुरुआत होने वाली थी और सभी लोग जोर शोर से उसके लिए तैयारियों में लगे हुए थे और एक समय वो भी आया जब अखंड की शुरुआत होने वाली थी तभी महाराज जी ने गौरीशंकर से कहा …
देखो गौरीशंकर मैं जानता हूं तुम इस अखंड के लिए एक संपन्न पुरोहित हो जो तनिक भी गलती नही करेंगे लेकिन एक बात ध्यान रखना जब भी इंसान कुछ अच्छा करने के कोशिश करना शुरू करता है कुछ बुरे सोच वाले उसका अहित साधे बैठे रहते है इसलिए तुम्हे कितनी भी विपत्तियों के बारे में पता चले अपने आसन को तबतक मत छोड़ना जब तक की कार्य संपन्न न हो जाए इस बात की तुम गांठ बांध लो…
जी महाराज मैं ध्यान रखूंगा आपकी बात को….( गौरीशंकर ने महाराज जी को आश्वस्त किया और पूजा पर बैठा गया)
इधर उमा अपने बच्चों पर ध्यान रख रही थी
उधर चंद्रिका अपने बच्चों के लिए तड़प रही थी
महाराज जी अपनी योग के माध्यम से हर जगह नजर बनाए हुए थे की कहिं कोई अनहोनी न हो जाए……
तभी अखंड के दूसरे ही दिन विष्णु और अपूर्वा अपने दोस्तों के साथ बेर तोड़ने के लिए जाने की जिद अपनी मां से कर बैठा……
क्या होगा आगे ?
महाराज जी क्या करेंगे ?
किस तरह की अनहोनी घटने वाली है ?
जानने के लिए पढ़ते रहिए …..आगे
शशिकान्त कुमार
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