” समय की सीख ” – शशि कांत कुमार   : Moral Stories in Hindi

एक बात कान खोलकर सुन लीजिए मां जी अगर आपने दोबारा रजनी को इस घर में बुलाया तो मुझसे बुरा कोई नही होगा कह देती हूं।

लेकिन बहु , रजनी मेरी बेटी है कोई गैर थोड़े ना है जो इस घर में नही आ सकती

बेटी होगी आपकी इसलिए अगर आपको अपनी ममता दिखानी है तो उसे अपने घर में बुलाइए मेरे घर में बुलाने की कोई जरूरत नहीं है , समझ गई आप?

क्या कहा बहु… तेरा घर?

हां हां हां

मेरा घर … और जोर से बोलूं?

बहु ….

मोहन मेरा बेटा भी है और ये घर मोहन ने खरीदा है इसलिए मैं मां होने के नाते इस घर में कुछ तो हक रख ही सकती हुं न 

आ हा हा हा

बड़ी आई घर पर हक रखने वाली 

सुनिए सासू मां शादी होने के बाद किसी भी लड़के के लिए उसके जीवन में  उसके किसी भी परिवार के सदस्यों से ज्यादा उसकी पत्नी की महत्ता होती है इसलिए ज्यादा चा चुपड़ ना ही करे तो अच्छा है और इस बूढ़ी होते शरीर को दो रोटी मुफ्त में बैठे बैठे मिल रही यही कम नही है।

रश्मि की बातें सुनकर आज शिला जी का दिल भारी हो गया था ।

शिला जी के दो बच्चे थे एक मोहन और एक रजनी। रजनी मोहन से पांच साल छोटी थी और जब मोहन सात वर्ष का रहा होगा उसी समय उसके पिताजी की मृत्यु सड़क हादसे में हो जाती है।

शिला जी एक अच्छे परिवार की बहु थी लेकिन कहते है न जब संकट आती है तो चारो तरफ से एक बार ही आती है ।

शिला जी के साथ भी यही हुआ

उनके ससुराल वालों ने बेईमानी करके बच्चों सहित घर से निकाल दिया और पूरी संपति हड़प ली। शिला जी अपने बेटे मोहन और बेटी रजनी को गोद में लिए हुए अपने भाई के घर जाकर रहने लगी लेकिन वहां भी भाभी के बार बार सामने से मिलती ताने की वजह से एक दिन घर छोड़कर चली गई ।

अब शिला जी के सामने दोनो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई जिसे पूरा करने के लिए शिला जी ने एक ढाबे पर जूठन धोने का काम पकड़ लिया । समय पर पैसे और दोनो टाइम भोजन ढाबे की तरफ से दिया जाने लगा ।

शिला जी ने इतने कष्टों में भी मोहन को स्कूल भेजना नही छोड़ा था और मोहन भी अपनी मां को जूठन धोते देख अंदर ही अंदर घुटता रहता था लेकिन वो कर भी क्या सकता था ।

एक दिन ढाबे पर काम करने वाले एक कर्मचारी ने बदनीयती से शिला जी को अकेला पाकर उनसे जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा लेकिन शिला जी चीख पुकार के कारण वहां से गुजर रहे कुछ लोगो ने उनकी मदद की और उस कर्मचारी की जमकर पिटाई करके पुलिस के हवाले कर दिया था।

मोहन को ये बात पता चल गया लेकिन मोहन की अभी उम्र नही थी की कमा सके ।

धीरे धीर समय बीतता गया और मोहन के साथ साथ रजनी भी स्कूल जाने लगी थी । मोहन स्कूल पास करके कॉलेज चला गया और साथ में कुछ बच्चों को घर घर जाकर ट्यूशन भी पढ़ाना शुरू कर दिया तथा उसकी बहन ने अपने घर जो की मोहन ने किराए पर एक झुग्गी में ले रखा था उसी में छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दी और शिला जी ने सिलाई का काम घर पर शुरू कर दिया था ।

कुल मिलाकर जिंदगी सुधरने की ओर कदम बढ़ा चुकी थी ।

एक दिन शिला जी ने मोहन से कहा 

मोहन बेटा ..

हां मां..क्या हुआ?

बेटा ध्यान से सुनो…. रजनी अब बड़ी हो गई है उसने इंटरमीडिएट भी पास कर लिया है इसलिए मैं चाहती हूं की किसी तरह से इसके हाथ पीले कर दूं।

मोहन भी अपनी मां के इच्छा के साथ था इसलिए उसने अपनी बहन की शादी एक लड़का जिसका नाम दीपक था  देखकर कर दिया जो अभी पढ़ाई ही कर रहा था ।

अपनी बहन की शादी करने के एक साल बाद ही मोहन की सरकारी नौकरी एक अच्छे पोस्ट पर लग गई  और वह झुग्गी से निकलकर एक अच्छा सा जगह देखकर वहां किराए पर दो कमरों का एक घर लेकर अपनी मां को वहां शिफ्ट करके खुद अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने चला जाता है ।

धीरे धीरे  समय बीतता है और मोहन अपना खुद का मकान खरीद लेता है ।

मकान खरीदने के बाद मोहन की शादी रश्मि से हो गई थी। शुरू शुरू रश्मि ने घर को अच्छे से संभाला लेकिन इधर कुछ दिनों से रश्मि को अपने पति की कमाई पर घमंड होने लगा था जिसे वो अपने सिवा किसी पर खर्च नहीं करना  चाहती थी।

रजनी अपनी मां और भाभी से मिलने आ जाया करती थी तो शिला जी उसे जाते समय कुछ न कुछ से दिया करती थी क्योंकि रजनी के पास अभी भी सीमित आय थी जो वो खुद से ट्यूशन पढ़ा कर जमा करती वहीं उसका पति अभी भी नौकरी के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा था।

आज फिर रजनी का अपनी मां के घर आना हुआ था तो मां का रश्मि को विदा करते समय झोला भरकर समान देना रश्मि को खटक गया था इसलिए रश्मि शिला जी से बदतमीजी कर बैठी थी।

कुछ देर उदास बैठे रहने के बाद शिला जी ने रश्मि के बार बार किए जा रहे इस तरह के बर्ताव से छुटकारा पाने के लिए एक निर्णय लिया और एक थैले में अपनी जरूरत की समान लेकर बिना रश्मि को बताए घर से निकाल गईं।

इधर रश्मि शाम तक अपनी सास को घर न आता देख बड़बड़ाती है 

पता नही ये बुढिया कहा जाकर मर गई अभी तक आई नही

समय बीतता गया  और शिला जी को घर से गए आज 10 दिन से ऊपर हो गए थे तभी घर में बिना बताए उनका बेटा मोहन छुट्टी पर आता है और घर के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ उपहार लेकर आता है जिसमे उसकी बहन तथा  बहन के पति के लिए भी कुछ रहता है और साथ ही रश्मि के लिए भी।

कुछ देर बीत जाने के बाद मोहन रश्मि से पूछता है ..

रश्मि मां कहां है?

मुझे क्या पता …(रश्मि का जवाब आता है)

इसका क्या मतलब है रश्मि मां घर से बाहर गई है तो तुझे नहीं पता होगा तो किसे पता होगा

वो पिछले 10 दिनो से घर नहीं आई है…..( रश्मि बोली)

क्या….?

ये क्या बकवास कर रही हो रश्मि ( मोहन गुस्से में चिल्लाया)

हां.. हां 

मैं बकवास नही कर रही 

10 दिन पहले मैंने रजनि को घर बुलाने के लिए मना किया था क्योंकि वो जब भी आती थी मां घर से कुछ न कुछ सामान निकालकर रजनी को दे देती थी इसलिए  मैंने मना किया था तो मुझे बिना बताए घर से बाहर निकल गई ..

अरे बेवकूफ औरत और तुमने मुझे बताना उचित भी नहीं समझा ( मोहन ने रश्मि को बीच में टोकते हुए कहा)

मैं नहीं चाहती थी की किसी की वजह से आप बेवजह परेशान हो

किसी की वजह से ……

अरे वो मां है मेरी समझ आया तुझे  (मोहन गुस्से में जल रहा था)

अगर मेरी मां नही मिली तो मैं तुझे भी कहीं का नही छोडूंगा..

कहता हुआ मोहन घर से निकल गया और सीधे अपनी बहन के घर पहुंचा जिसे देखकर रजनी बहुत खुश हुई लेकिन तभी मोहन रोते हुए पूछता है …

रजनी , क्या मां तेरे पास आई है?

नही भैया

लेकिन मां गई कहां भैया 

मुझे नहीं पता …..

मोहन और दीपक( रजनी के पति) मिलकर जहां तक संभव हो सकता था ढूंढने का प्रयास कर लिया लेकिन शिला जी का कही पता नहीं चला …

कुछ दिनों बाद कुछ लोग रश्मि के घर आए और रश्मि को घर के कागज दिखा कर घर खाली करवा लिया क्योंकि मोहन ने रश्मि को बताए बिना घर बेच दिया और खुद अपनी पोस्टिंग दूसरे जगह करवा लिया 

सालों बीत गए थे लेकिन मोहन को विश्वास था की एक न एक दिन मां जरूर मिल जायेगी इसलिए मोहन अपनी बहन से संपर्क में रहता था और दीपक जिसका अब हेल्थ इंस्पेक्टर के पद पर सरकारी नौकरी लग गई थी उसे भी मां को ढूंढने का प्रयास करने के लिए बोल रखा था  ताकि कही मां दिख जाए तो पता लगे

इधर रश्मि के बुरे दिन शुरू हो गए अपने ही घर से निकलने के बाद अपने भाई के घर में भी ज्यादा दिन पनाह नही मिली उसे 

इसलिए उसने सिलाई का काम पकड़ लिया और अपने खर्चे खुद निकालने लगी और एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया ..

आज रश्मि को अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा था उसके थोड़े पैसे के लालच में उसका पूरा परिवार तबाह हो गया था ।

वो कभी कभी रजनी के घर चली जाती थी की कही से मां और मोहन की जानकारी मिल सके लेकिन रजनी ने कभी मोहन के बारे में जिक्र तक नहीं किया था क्योंकि मोहन सख्त हिदायत दे रखी थी रजनी को ।

एक दिन सिलाई पर काम करते करते रश्मि बेहोश हो गई और वो दो दिन तक अपने कमरे में सिलाई मशीन के पास वैसे ही बेहोश पड़ी रही जब तक की एक ग्राहक जिसने कुछ सिलने के लिए दी थी , नही आ गई ।

लोगों की मदद से उसे सरकारी हॉस्पिटल में दाखिल कर दिया लेकिन उसके पास रहने के लिए अपना कोई परिवार नही था ।

डॉक्टर ने कुछ चेकअप करके उसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल में रेफर कर दिया और एक सेवा संस्था की मदद से उसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती कराकर उसकी मदद के लिए संस्था की तरफ से एक महिला सदस्य को वहां पहुंचा दिया गया था ।

अब संस्था की देखरेख में रश्मि का इलाज चलने लगा  लेकिन कोई सुधार न होता देख संस्था ने उसका दाखिला एक प्राइवेट हॉस्पिटल में करा दिया ।

संस्था की तरफ से आई महिला दिन रात उसकी सेवा करती । एक दिन  उस हॉस्पिटल में अचानक उस वक्त अफरा तफरी मच गई जब हेल्थ डिपार्टमेंट की तरफ से मेडिसिन डिपार्टमेंट में रेड डाल दी गई थी।

मेडिसिन डिपार्टमेंट में एक एक दवाइयों को चेक किया जा रहा था तभी वहां सेवा संस्था वाली महिला रश्मि की कुछ खतम हुई दवाइयों के लिए वहां पहुंची । संयोग से हेल्थ इंस्पेक्टर दीपक ही रेड मारने आया था । अचानक अपनी सास को देखकर

मां जी …. आप यहां

शिला जी अपने दामाद को देखकर फफक कर रो पड़ी और दीपक ने अपनी सास को गले से लगा लिया और पूछा मां जी आप यहां क्या कर रही है?

भइया ने आपको कहां कहां नही ढूंढा … यहां तक की गुस्से में अपना घर बेचकर रश्मि भाभी को छोड़कर चले गए…

और आप.. ये दवा  किसके लिए ले रहे है?

( पर्चा अपने हाथो में लेकर देखने लगा)

कैंसर की दवा

किसके लिए ?

शिला जी अपने दामाद का हाथ पकड़कर रश्मि के पास ले गए जो अभी भी लगभग बेहोशी के हालत में थी

रश्मि भाभी…

हां बेटा …( शिला जी रोते हुए )

मैं एक सेवा संस्था में काम करने लग गई थी जहां से मुझे रश्मि की देखरेख की जिम्मेदारी मिली थी, शायद भगवान भी यही चाहते थे

दीपक तुरंत रजनी को फोन करता है और रजनी अपने भाई को फोन करके हॉस्पिटल आने को कहता है।

इधर दीपक ने रेड बंद करवा दी जिससे खुश होकर हॉस्पिटल के मालिक ने सब कुछ जानने के बाद रश्मि के लिए स्पेशल ट्रीटमेंट  शुरू करवा दिया ।

दीपक जी अगर और कोई सेवा चाहिए तो जरूर बताइएगा।

आज दीपक कुछ बोल नहीं पाया

कुछ ही देर में रजनी हॉस्पिटल पहुंच गई और और मां के गले लिपटकर रोने लगी , शाम तक भाई भी वहां आ पहुंचा और मां से लिपटकर ऐसा रोया जैसे कोई बच्चा रोता हो।

मां चलो अब घर चलते है …( मोहन ने कहा )

नही बेटा 

रश्मि को साथ लेकर जाएंगे 

मां तुम अभी भी उसके लिए सोच रही हो…( मोहन बोला)

हां मैं सोच रही हूं क्योंकि उसे उसके कीए की सजा मिल गई है बेटा और मैं उसके लिए कोई गिला शिकवा अपने मन में नही रख रखी हूं।

और देख उसके साथ उसका कोई परिवार नही है न बाप न भाई कोई नही…. अकेली है बेचारी तीन चार दिनों से बेहोश

तू सोच मोहन 

जब मुझे घर से बेघर कर दिया गया था तब मेरे साथकम से कम मेरा बेटा और मेरी बेटी थी 

लेकिन आज इस बेचारी के साथ कोई नही है…

मोहन के आंखों में आंसू आ गए थे ..

जा बेटा एक बार जाकर देख आ…..

और मोहन दौड़ पड़ा रश्मि की ओर …

कुछ महीनो के इलाज के बाद रश्मि बिलकुल स्वस्थ होकर वापस अपने और अपने सास के घर मोहन के साथ दुलहन बन कर आई जिसकी पहली आरती रजनी ने उतारी जिसके गले लगकर रश्मि फफक पड़ी, तभी दूसरी आरती लेकर उसकी सास अपनी बहु की आरती उतारने को तैयार थी तभी

” बहु आंखो में आंसू भर अपने सास के पांव पर झुक गई “

उठ जा मेरी बच्ची तेरी जगह यहां नही बल्कि मेरी बाहों में है कहकर शिला जी ने रश्मि को गले लगा लिया उसके बाद सभी ने एक साथ मिलकर मां को चारो तरफ से गले लगा लिया।

  समाप्त

शशि कांत कुमार

” बहु आंखो में आंसू भर अपनी सास के पांव पर झुक गई ” 

VM

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