मेरे मोहल्लें में मेरा और रवि का घर आपने सामने था।हम दोनों के परिवार में आपसी भाईचारा का नामों निशान तक नहीं था।
मैं मुस्लिम परिवार से और वो हिंदू परिवार से। हालाँकि मेरे घर वालों को उनसे कोई दिक़्क़त नहीं थी
पर रवि के घर वालों को मेरे परिवार से यही दिक़्क़त थी कि हम मुसलमान है।
जब हम यहाँ नये नये रहने आये थे तो हम दोनों के परिवार में बहुत प्रेम था,
मुस्लिम होते हुए भी मांस मदिरा का सेवन हमारे परिवार में कोई नहीं करता था, रवि के घर वालें इसी बात से खुश रहते थे ।
एक दिन की बात है अख़बार में एक खबर आई कि एक मुस्लिम , लड़की को अपने प्रेम जाल में फ़साँ के उसे घर से भगा ले गया
और कुछ समय बात अपने कई दोस्तों के साथ उसका शोषण कर उसके टुकड़े कर फ़ेक दिये ।
मेरे घर वालों को न जाने क्या हो गया , उनको लगने लगा कि मुस्लिम सब ऐसे ही होते है
और धीरे धीरे बात भी कम होने लगी और दोनों परिवार एक दूसरे के सामने आना भी पसंद नहीं करते ।
मेरे पिता जी नें मुझसे पहले ही कह दिया था बेटा नजमा, जीवन में जो अपना मन हो वो करना किसी भी सीमाओं में तुझें नहीं बांधा जाएगा।
मैं और रवि दोनों ही एक ही कॉलेज में थे और घर पर दोनों एक दूसरे को देख भी नहीं सकते थे
परन्तु कॉलेज में हम दोनों का अक्सर मिलना हो जाता था और दोनों का लक्ष्य भी एक था सिविल सेवा। धीरे धीरे हम दोनों एक दूसरे के क़रीब आने लगे,
घरों की सीमाओं को लांघ अलग से मिलना , पढ़ाई को लेकर ढेरों बातें करना
और कभी कभी लाइब्रेरी में बैठ एक दूसरे से टॉपिक समझना और भी बहुत कुछ ।
ऐसे ही देखते देखते हमारी कॉलेज पूरी हो गई और हम दोनों को पहले प्रयास में ही सफलता मिल गई ।
जीवन भी न जाने किस ओर ले जाता हे कह नहीं सकतें। दोनों को फिर से एक ही जगह ट्रेनिंग में जाना था
और फिर से वही जीवन जीना, सपना सच होने जैसा था ।
एक दिन रवि ने मुझे पूरे बैच के सामने प्रपोज़ कर दिया और मेरा मन उसके लिए कब से हाँ कह ही रहा था
वो कहते है दुनिया में सब जगह क़ाबू पाया जा सकता पर दिल पर कोई ज़ोर नहीं चलता।
थोड़े दिन बाद मैंने घर में बताया कि मेरी ट्रेनिंग पूरी हो गई कुछ दिन बाद पोस्टिंग मिलेगी और मैं घर रहने आई,
उसी दिन फ़ोन आया पापा का ऐसिडेंट हो गया। हॉस्पिटल गये तो मैंने देखा उसके पापा को बचाने के चक्कर में मेरे पापा का एक्सीडेंट हो गया ।
थोड़ी देर बाद होश आने पर उसके पापा ने हाथ जोड़ माफ़ी माँगी और कहा मेरी बला
आपने आपके ऊपर ले ली। मैं गलत था सब एक जैसे नहीं होते। घर आने पर हम दोनों नें एक दूसरे के साथ शादी के बंधन में बंध जाने को कहाँ
और पापा ने कहा बेटा ये दिल है, दिल पर किसी का ज़ोर नहीं चलता
हम कैसे रोक सकते है। उस दिन दो दिल के साथ दो परिवार भी एक हो गए। धर्मों से परे मानवता फिर जिंदा हो गई।
भावना पंवार
प्रकाशित लेखिका
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