रंगहीन से रंगीन – सुनीता संधू : Moral Stories in Hindi

घंटी की आवाज सुनकर राधा रसोई से बाहर आई। तौलिए से हाथ पोंछकर वह दरवाजे तक गई। उसने देखा बाहर पोस्टमैन खड़ा था। उसने उसे एक निमंत्रण पत्र दिया। दरवाजा बंद कर अंदर आते हुए वह उसे ध्यान से देखने लगी। यह उसकी मासी के बेटे रवि के विवाह का निमंत्रण पत्र था। आने वाली 15 तारीख को उसका विवाह था।

लिफाफा खोलकर वह वहीं बैठ गई और ध्यान से उसे देखने लगी। 25 बरस के गबरू जवान रवि का चेहरा उसकी कल्पना में आ गया और कब वह चेहरा 10 साल के बच्चे के चेहरे में बदल गया उसे पता ही नहीं चला। 

   हां तब रवि दस साल का ही था जब वह अपनी सबसे छोटी मौसी के घर रवि के दसवें जन्मदिन के उपलक्ष में रखी जा रही पार्टी में उनके शहर कानपुर गई थी। तब वह 18 साल की मासूम सी किशोरी थी। 

   यह वह उम्र होती है जब मन बड़े रंगीन सपने बुन रहा होता है। अनेक मीठी लहरियां हर वक्त दिल में उठती रहती हैं। किसी का अपनी तरफ ध्यान से देखना दिल में एक मीठी कसक पैदा कर देता है। उसकी उम्र का भी वही दौर था जब वह अपनी मौसी के घर मां बाबूजी के साथ गई थी। 

   उन पलों की याद आते ही आज भी राधा के आंखों में नमी सी आ जाती है। उसने उस कार्ड को संभाल कर रख दिया और अपने काम में लग गई। उसके पति प्रकाश के आने का समय था। उन्हें शाम को जल्दी खाना खाने की आदत है। कुछ ही देर में प्रकाश ने  घर में प्रवेश किया। कुछ देर बच्चों से बतियाने के बाद प्रकाश उसके पास आए।

धीरे से उसे कंधों से पकड़कर अपने पास बिठाते हुए बोले,” क्या बात है राधा, देख रहा हूं तुम आज बड़ी चुप- चुप हो। तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारे चेहरे को हमेशा हंसता  खिलखिलाता देखना चाहता हूं। आज ये मायूसी कैसी?” राधा ने घबराकर मुंह घुमा लिया। “कुछ खास नहीं, बस आज कुछ तबीयत ठीक नहीं। ,”

उसने धीरे से कहा। “कितनी बार तुमसे कहा है कि कोई काम वाली बाई ढूंढ लो। तुम्हें कुछ मदद मिल जाएगी। मगर तुम मानती नहीं।“ “अरे ऐसा कुछ नहीं। चलो आप हाथ मुंह धोकर आओ। मैं खाना लगाती हूं।” 

   रात को सब काम खत्म कर सोने के लिए वह बिस्तर पर लेटी। लेकिन नींद का दूर – दूर तक कोई निशान न था। आंखों के आगे फिर वही आज से 15 साल पुरानी सुहानी शाम घूमने लगी। वह अपने मां बाबूजी के साथ मौसी के घर उनके बेटे रवि के जन्मदिन के उपलक्ष में किये जा रहे भोज पर गई थी। 

     वे लोग दोपहर में ही पहुंच गए। जन्मदिन की पार्टी तो रात को थी। मौसी की बेटी मेधा उसकी  मौसेरी बहन होने के साथ उसकी पक्की सहेली भी थी। दोनों सहेलियां हंसते बतियाते छत पर जा चड़ीं। छत पर से ही वे सामने मैदान में रात की पार्टी के लिए हो रही तैयारी देखने लगी। दोनों खूब हंस रही थीं तथा

अपनी आयु की लड़कियों की तरह अपने-अपने घर और कॉलेज की बातें बता रही थी। तभी राधा की नजर सामने मैदान में लग रहे टेंट के पास खड़े एक उसके हमउम्र लड़के की तरफ गई, जो उसे बड़े ध्यान से देख रहा था। राधा को लगा कि यह उसका वहम है शायद। वह लड़का मैदान में शामियाने लगा रहे

व्यक्तियों को भी निर्देश दे रहा था। लेकिन नहीं, राधा ने देखा कि वह उसका वहम नहीं था। वह लड़का उसकी तरफ ही बार-बार देख रहा था। फिर उसने अपना हाथ हिलाया। जिसे देखकर राधा का कलेजा तो मुंह  को आ गया। क्योंकि यह वह जमाना था जब लड़के लड़की का आपस में बातें करना लोगों की कानाफूसी का कारण बन जाता था।

लेकिन तब  राधा को यह देखकर राहत मिली  जब मेधा ने भी उसे देखकर हाथ हिलाया। वह कुछ पूछती उससे पहले ही मेधा ने उसे बताया कि यह राघव भैया हैं। उसके ताया जी के बेटे। यही पास में ही इनका घर तथा दुकान है। 

   राधा ने देखा कि राघव बार-बार उसकी तरफ देख रहा था। वह भी मेधा की नजर बचाकर उसकी और देख लेती। उससे नजर मिलते ही उसके मन में एक मीठी सी हिलोर उठती और वह झट से अपनी निगाहें झुका लेती। अब उसका पूरा ध्यान राघव की ओर था। नजरें मेधा की तरफ थीं, जो उससे बातें कर रही थी।

लेकिन उसकी बातों की तरफ उसका कोई ध्यान न था। उसका मन तो कोई और ही सपना बुन रहा था। राघव का उसे देखना उसे बहुत अच्छा लग रहा था। राघव था भी बहुत आकर्षक, गोरा चिट्टा सुंदर बांका नौजवान। 

       शाम के कार्यक्रम के लिए वह बहुत मन से तैयार हुई। अपने साथ लाए गुलाबी रंग के सूट सलवार को पहनकर उसने बालों की लंबी ढीली सी चोटी बनाई। हल्का सा मेकअप करके जब वह तैयार होकर बाहर आई तो हर किसी की आंख उस पर टिक रही थी। उम्र के 18वें साल का दौर ही कुछ ऐसा होता है जब प्राकृतिक तौर पर चेहरे पर कुछ अलग ही नूर होता है। उस पर अगर भगवान ने खूबसूरती भी दी हो तो बात ही कुछ और होती है। 

       उसकी मौसी ने उसके पास आकर  एक काजल का काला टीका उसके कान के पीछे लगा दिया और प्यार से उसका माथा चूम लिया। मौसी बचपन से ही उसे मेधा की तरह ही प्यार करती थी। उसे भी उनसे बहुत  लगाव था। 

   शाम की पार्टी में जब खाने के दौर के साथ ही नाचने का कार्यक्रम शुरू हुआ तो मेधा उसका हाथ खींचकर उधर ले गई जहां सब नाच रहे थे। उसने भी धीरे-धीरे नाचना शुरू किया। तभी उसे झटका लगा और वह पीछे किसी से टकरा गई। उसने घूम कर देखा तो उसके होश ही उड़ गए। वह राघव था। राघव ने भी उसे देखा और उसे गिरने से पहले ही बाहों में थाम लिया। वह अपना दुपट्टा संभालती हुई भाग खड़ी हुई। उसके दिल की धड़कन बहुत तेज हो गई। चेहरा ऐसे लाल हो गया मानो शरीर का सारा रक्त गालों में उतर आया हो।

तब मेधा वहां आ गई। उसने भी उस दृश्य को देख लिया और शायद उसकी मनोदशा को भांप लिया। फिर वे दोनों खाना खाने चली गईं। अपना खाना प्लेट में लेकर मेधा उसका हाथ पकड़कर उसे पंडाल में एक तरफ लगी कुर्सियों की ओर ले गई। वहां बैठते ही राधा ने देखा कि राघव भी वहां एक कुर्सी पर बैठा था

। मेधा उसे वहां जानबूझकर लाई थी और उसकी तरफ शरारती नजरों से देखते हुए मुस्कुरा रही थी। उसने बनावटी गुस्से से उसकी तरफ देखा और आंखें झुकाकर खाना खाने लगी। राघव भी उसके पास आकर बैठ गया और मेधा से बातें करने लगा। लेकिन उसका पूरा ध्यान राधा की तरफ था। तभी मेधा उठकर खड़ी हो गई

और पानी लाने के बहाने वहां से चली गई। यह इतना अचानक हुआ कि राधा घबरा गई और वहां से उठने लगी। मेधा ने उसे वहीं बैठने को कहा और चली गई। तब राघव के सामने यह चुपचाप बैठकर खाना खाने लगी। घबराहट में बार-बार चम्मच उसके हाथ से फिसल रहा था। 

“क्या नाम है तुम्हारा?” राघव ने धीरे से पूछा। 

“राधा” धीरे से बोलकर राधा ने निगाहें झुका लीं। 

“बहुत सुंदर नाम है तुम्हारा। तुम मेधा की बड़ी मौसी की बेटी हो ना।“ राघव ने पूछा। 

 उसने हां मैं गर्दन हिला दी। “बहुत सुंदर हो तुम। मेरे तो दिल में ही बस गई हो।“ राघव के ऐसा बोलते ही राधा वहां और नहीं बैठ सकी और उठकर वहां से जाने लगी। राघव ने धीरे से उसका हाथ पकड़ कर उससे कहा, ”मेरे बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है। तुम्हारी घबराहट कह रही है कि तुम भी मुझे प्यार करने लगी हो।“

कहकर राघव ने धीरे से उसके हाथ को चूम लिया। अपना हाथ छुड़ाकर वहां से भाग गई और फिर पूरे कार्यक्रम में किसी को नजर नहीं आई। मेधा को साथ लेकर वह अंदर कमरे में जाकर बैठ गई। 

   मेधा उससे राघव के बारे में बातें करती रही और वह उसके स्पर्श को याद करके मीठे दर्द के एहसास में डूबती उतरती रही। मेधा से ही उसे पता चला कि राघव अपने माता-पिता की इकलौती औलाद है। पढ़ाई-लिखाई में उसका ध्यान नहीं था। दसवीं तक पढ़ाई करके अपने पिता की दुकान चलाने लगा। अब उसके ताया जी

उसके विवाह के लिए प्रयासरत हैं और कोई सुशील कन्या देख रहे हैं। बोलते बोलते मेधा नींद के समुद्र में डूब गई। लेकिन राधा की आंखों में नींद का नामोनिशान न था। वह राघव की दुल्हन बनने का ख्वाब खुली आंखों से देखने लगी। 

   सुबह उनकी वापसी के समय उसने देखा राघव अपने घर के दरवाजे पर खड़ा उसे देख रहा था। उसकी उदास आंखें उसे कुछ कहने का प्रयास कर रही थीं। मगर वह निगाहें झुकाकर वहां से निकल गई। वास्तव में वह अपनी आंखों में आए आंसुओं को छुपाने का प्रयास कर रही थी। 

   घर पहुंचकर भी राघव की याद रह रहकर उसे सताती रहती और वह तड़प तड़प जाती। इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए वह पढ़ाई में स्वयं को व्यस्त कर लेती। लेकिन उसकी यह कोशिश नाकाम रहती। कई बार अकेले में वह उसे याद कर रोती थी। उसका वह वाक्य कि तुम मेरे दिल में बस गई हो उसके सीने में नश्तर चुभो जाता। 

      देखते ही देखते 2 वर्ष बीत गए। उसकी ग्रेजुएशन पूरी होने वाली थी। उसके मां बाबूजी उसके लिए कोई योग्य वर तलाश  रहे थे। वह कई बार सोचती कि राघव ने क्यों नहीं उसके बारे में अपने माता-पिता से बात की। क्या वह उसे भूल गया। 

   एक दिन उसकी मां ने उसे बताया कि उसकी मौसी मेधा की शादी का कार्ड देने आने वाली है और मेधा भी उनके साथ आएगी। यह सुनकर राधा एक नए उत्साह से भर गई और मेधा का बेसब्री से इंतजार करने लगी। उनके आने पर अवसर पाकर उसने बातों ही बातों में राघव के बारे में मेधा से पूछा। मेधा ने उसे बताया

कि रवि के जन्मदिन के कार्यक्रम के कुछ दिन बाद उसने अपनी मां से राघव और राधा के बारे में बात करनी चाही तो मां ने उसे बुरी तरह से झिड़क दिया और बोली कि खबरदार तुमने राधा का नाम राघव से जोड़ने की कोशिश भी की। इस बारे में कभी राघव से बात की तो मुझसे बुरा कोई ना होगा। बस उसके बाद उसने इस बात को ही भुला दिया।  

    यह सुनकर राधा के दिल को बड़ी ठेस लगी। उसे लगा कि मौसी ही उसके और राघव के बीच वह कड़ी थी जो उन्हें जोड़ सकती थी। लेकिन उन्होंने तो इस बारे में बात ही खत्म कर दी। वह मौसी के प्रति गुस्से से भर गई। उसने मौसी के घर कभी न जाने का निश्चय कर लिया। उसने दो महीने बाद आने वाली अपनी परीक्षा का बहाना लगाकर मेधा की शादी में जाने से भी इंकार कर दिया। 

    कुछ समय उपरांत उसे मेधा के फोन से राघव के विवाह के बारे में पता लगा और उसकी रही सही आस भी टूट गई। उन्हीं दिनों उसके लिए प्रकाश का रिश्ता आया। पढ़ा लिखा बैंक में अच्छी नौकरी कर रहा प्रकाश देखने में भी आकर्षक था। लेकिन मेधा को उसमें कोई रुचि न थी। उसने बुझे मन से इस रिश्ते को अपनी स्वीकृति दे दी। उसके विवाह के अवसर पर मौसी भी उसके घर आई। उसके अपने प्रति रूखे व्यवहार को देखकर मौसी ने कई बार उससे बात करने की कोशिश की, लेकिन वह मौसी के ज्यादा नजदीक नहीं गई। 

   वह विदा होकर प्रकाश के घर आ गई। प्रारंभ में उसे लगा कि प्रकाश के साथ उसका जीवन रंगहीन होगा। लेकिन प्रकाश ने अपने सौम्य तथा प्रेम से भरे स्वभाव से उसके मन में ऐसे रंगो का प्रकाश भर दिया कि उसका जीवन ही रंगीन होता गया। समय पंख लगाकर उड़ने लगा। दो प्यारे प्यारे बच्चों ने उनके जीवन को और रंगीन बना दिया। लेकिन कभी किसी मोड़ पर जब उसे राघव की याद आती तो उसका दिल अजीब सी उदासी से भर जाता। परंतु प्रकाश की प्यार भरी नजरें उसकी उदासी को दूर भगा देतीं। वह अपने जीवन में पूरी तरह संतुष्ट थी।

मगर मन के एक कोने में आज भी राघव बसा था। लेकिन आज आए इस निमंत्रण पत्र ने उसके जीवन में उथल-पुथल मचा दी। मौसी ने इसमें एक छोटा सा कागज भी डाला था, जिसमें प्रकाश से प्रेम भरा निवेदन किया था कि वह राधा को लेकर जरूर शादी में आए। राधा ने सोचा कि वह नहीं जाएगी। लेकिन वह कार्ड प्रकाश के हाथ लग गया। उसने राधा से चलने की तैयारी करने को कहा। राधा के मना करने पर उसने कारण जानना चाहा तो वह कोई जवाब ना दे सकी और उसे जाने के लिए तैयार होना पड़ा। 

   मौसी के घर पहुंचकर वह सबसे खुशी से मिली। उसने सभी पुरानी बातें भूल कर मौसी को प्रेम से गले लगाया। मेधा व उसके पति से भी मिली। सबके साथ मिलकर उसने रवि के विवाह का भरपूर आनंद उठाया। प्रकाश के व्यवहार ने तो सब का मन मोह लिया। प्रत्येक व्यक्ति राधा के भाग्य की सराहना कर रहा था कि उसे प्रकाश जैसा पति मिला। राधा का मन गर्व से भर उठा। 

    अगले दिन जब विवाह समापन के बाद वे घर वापसी की तैयारी करने लगे तो मौसी ने प्रकाश से एक-दो दिन और रहने का प्रेम भरा आग्रह किया, जिसे प्रकाश ने मान लिया। राधा स्वयं भी वहां रहना चाहती थी। पूरे विवाह उत्सव में उसकी नज़रें राघव को ढूंढती रहीं लेकिन वह उसे कहीं नजर नहीं आया। वह किसी से पूछ भी नहीं सकती थी। वह राघव के बारे में और जानना चाहती थी लेकिन किससे पूछे।  

   शाम के समय जब ज्यादातर रिश्तेदार जा चुके थे। बाकी जो रह गए थे वह सब आराम कर रहे थे, तब मौसी ने मेधा से कहा कि वह सामने बाजार से उसके लिए कुछ सामान लेकर आए। मेधा जब जाने लगी तो मौसी के इशारा करने पर उसने राधा से भी साथ चलने को कहा। राधा तो स्वयं जाना चाहती थी क्योंकि वह एक बार राघव को देखना चाहती थी। बाजार में ही राघव की दुकान थी। वह रोमांचभरे उत्साह के साथ मेधा के साथ जाने को तैयार हो गई। 

      मेधा बाजार में उसे सीधा एक दुकान पर ले गई। वहां पहुंचकर उसने राधा को बताया कि यह राघव भैया की दुकान है। यह सुनकर राधा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वहां जाकर उसने देखा कि वहां कहीं राघव दिखाई नहीं दे रहा था। दुकान पर एक औरत एक बालक के साथ खड़ी थी। उस महिला की आंखों का सूनापन, उसके साधारण से भी निम्न कपड़े  और उलझे बिखरे बाल उसकी दयनीय हालत का वर्णन कर रहे थे। उसने हैरान होकर मेधा से उसके बारे में पूछा। मेधा ने उसे रुकने का इशारा करके उस औरत को नमस्ते कहा। उसके बच्चों के हाल-चाल के बारे में पूछा। उस महिला ने मुंह से कोई जवाब न देकर एक फीकी मुस्कान के साथ सिर हिला दिया। मेधा ने उसे सामान की लिस्ट दी। वह महिला सामान निकालने लगी और वह  बालक उसकी मदद करने लगा। राधा ने हैरानी से मेधा की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। मेधा ने उसे धीरे से बताया कि यह महिमा भाभी है। राघव भैया की पत्नी और यह बालक उनका बेटा है। “फिर राघव कहां है?” राधा यह पूछने से स्वयं को रोक नहीं  पाई। 

   “अरे कहां होंगे?  शराब के अड्डे पर अपने दारूबाज दोस्तों के साथ बैठे होंगे। दिन भर वहीं बैठे रहते हैं। घर की तथा बीवी बच्चों की कोई फिक्र नहीं। गलत कामों में पैसा बर्बाद करते हैं। घर की हालत बुरी हो गई। मजबूर होकर महिमा भाभी और उनके बेटे को दुकान पर बैठना पड़ा। इस चक्कर में बेटे की पढ़ाई भी छूट गई। भाभी के साथ भी वे घर में बुरा व्यवहार करते हैं। लोगों के साथ गाली-गलौच, लड़ाई झगड़ा तो उनका रोज का काम है। दिन भर शराब में टुन होकर इधर-उधर घूमना, मोहल्ले की औरतों से छेड़छाड़ उनके प्रिय काम है।

अब तो रिश्तेदार भी उनसे कन्नी काटने लगे हैं। इसलिए हमने भी रवि की शादी में इन्हें नहीं बुलाया।“ तभी महिमा वहां आ गई और उसने उन्हें सामान पकड़ाया। उसके चेहरे तथा कपड़ों का उड़ा रंग उसकी रंगहीन जिंदगी की दास्तां बयां कर रहा था।  

   यह सब सुनकर राधा तो दंग रह गई। रास्ते में मेधा ने उसे शराब की दुकान पर बैठे राघव की तरफ इशारा करके दिखाया। राधा ने देखा तो वह राघव को पहचान ही नहीं पाई। कहां उसके ख्वाबों ख्यालों में बसा खूबसूरत बांका नौजवान राघव और कहां उड़े बालों और आगे निकले पेट वाला शराब के अड्डे पर बैठकर आती जाती औरतों पर फब्बतियां कसने वाला राघव। एक पल को राधा को लगा कि उसके ख्यालों में खेलने वाले सारे रंग गड़मड़ होकर आपस में मिलकर स्याह काले रंग के हो गए हैं। राघव ने लौलुप नजरों से उसकी ओर देखा।

वह राधा को तो पहचान नहीं पाया मगर मेधा को देखकर खिसिया गया। उसने दूसरी ओर मुंह घुमा लिया। राधा यह सोचकर दंग रह गई कि क्या यही उसका पहला प्यार था जिसके लिए उसने इतने साल मां जैसी मौसी से दूरी बनाकर रखी। अपने सर्वगुण संपन्न पति प्रकाश को अपने पूरे दिल में जगह देने की बजाय एक कोना राघव के लिए संभाल कर रखा। 

   उसने चेहरा घूमाकर मेधा की आंखों में देखा। उसे उनमें एक सच्चाई नजर आई। वह समझ गई कि मेधा उसे जानबूझकर यहां लाई है या फिर मौसी ने उसे उसके साथ इसलिए भेजा ताकि वह अपने चारों तरफ बुने हुए जाल से बाहर निकल सके। मौसी के लिए उसके मन में कृतज्ञता तथा प्रेम भर गया। इसका मतलब मौसी पहले से ही राघव की सच्चाई जानती थी और उन्होंने इसीलिए उसका विवाह राघव से नहीं होने दिया। मेधा ने उसे बताया कि राघव भैया शुरू से ही ऐसे हैं। मां-बाप की इकलौती संतान होने के कारण शुरू से ही बिगड़ैल हो गए।

बुरी संगति में आकर पढ़ाई छोड़ दी। बाप की दुकान पर बैठने लगे। पर बैठते कम आवारागर्दी ज्यादा करते थे। राधा उसकी बातों से समझ गई कि जिसे वह राघव का प्यार समझ रही थी, वह वास्तव में प्यार नहीं था। राघव का स्वभाव ही ऐसा था कि वह हर खूबसूरत लड़की पर फिदा हो जाता और उसे अपनी बातों से बहका देता। ना जाने कितनी लड़कियां उसकी जिंदगी में आईं और गईं। राधा ने सोचा कि गलती उसकी भी थी जो वह उसकी नजरों के आकर्षण को प्यार समझ बैठी। उसे तो मौसी का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिन्होंने उसके जीवन को महिमा की तरह रंगहीन होने से बचा लिया।  

   वे दोनों जैसे ही घर वापस पहुंची, सामने प्रकाश को सबके साथ हंसते बतियाते देखकर उसका मन प्रकाश के प्रति प्यार से भर उठा। वह भाग कर सीधा रसोई में गई, जहां मौसी काम कर रही थी। वह भाग कर मौसी के गले लग गई और धीरे से बोली “धन्यवाद मौसी, आपने मुझे बचा लिया।“ पहले तो मौसी अचकचा कर उसे देखने लगी, पर जैसे ही उसने पीछे खड़ी मेधा की आंखों में देखा तो वह सब समझ गई। उसने राधा को जोर से भींच कर गले से लगाया। फिर बोली, “मुझे तो पता  ही था कि एक दिन तुम मुझे समझ जाओगी। राधा मौसी के गले लगी तथा प्यार के नए रंगों में डूबती चली गई। 

  (   रंगहीन से रंगीन )

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