तड़ाक…. – सुनीता उपाध्याय : Moral Stories in Hindi

एक जोर का थप्पड़ पड़ा अनिता के गाल पर।

इससे पहले की वह कुछ समझ पाती,उसका पति उसे उसके हाल पर छोड़कर घर से बाहर जा चुका था।

अनिता को कुछ समझ नहीं आया कि विकास ने ऐसा क्यों किया?

अनिता कुछ समय तक वहीं जड़वत खड़ी रही और उसका मन अतित के गलियारों मे खो गया….

अनिता और विकास की शादी को आठ साल हो गये थे।दो बच्चे(बेटी-4साल की और बेटा-2साल )थे।

अनिता और विकास की शादी दोनो परिवारों के सदस्य की सहमति से हुई थी।

अनिता एक पढ़ी-लिखी समझदार लड़की थी।उसके परिवार मे माता-पिता के अलावा उसकी एक बड़ी बहन और एक छोटा भाई था।बड़ी बहन की शादी के बाद पिताजी ने सबकुछ देखभाल कर विकास के साथ अनिता का रिश्ता तय किया।

विकास का परिवार उन्हें अपनी बेटी के लिए सही लगा।विकास भी अच्छा कमाता था।

अनिता ने हमेशा से एक खुशहाल और प्यारे से परिवार की कल्पना की थी।उसके सपने बहुत बड़े नहीं थे।हमेशा से उसने ईश्वर से बस इतना ही मांगा कि उसका होने पति भले बहुत पैसै ना कमाता हो,लेकिन उसकी छोटी-छोटी खुशियों का ख्याल रखे।

अपने आँखो मे आने वाली ज़िन्दगी के हजारो सपने लिए अनिता विकास की दुल्हन बन कर आ गई।

अनिता के ससुराल मे उसके पति के अलाव सास,ससुर,एक जेठ और एक शादीशुदा ननद थी।

शादी के दो साल बाद दिल का दौरा पड़ने से ससुर जी का स्वर्गवास हो गया।

जेठ अपने परिवार के साथ दुसरे शहर मे रहते थे।माँ का हाल-चाल फोन पर पुछकर पति-पत्नि अपने फर्ज की खानापुर्ती कर लेते थे।

सास के प्रति अनिता अपनी हर जिम्मेदारी मन से निभाती थी लेकिन जाने क्यों सास का व्यवहार अनिता के प्रति कभी अच्छा नहीं रहा।

बेटे का अपनी पत्नि के प्रति लगाव उन्हे खटकता था।उन्हें ऐसा डर था कि कहीं विकास भी अपनी पत्नि और बच्चों के साथ अलग न रहने लगे।

इसलिए वह हमेशा बेटे को अनिता के खिलाफ भड़काती रहती थी।

ननद का ससुराल भी उसी शहर मे था,जिससे उनका मायके मे हमेशा आना लगा रहता था।

दोनो हमेशा किसी न किसी बहाने से विकास को अनिता के खिलाफ भड़कातीं रहती थी।

विकास अनिता से बहुत प्यार करता था और दिल से उसकी इज्जत भी करता था।

पहले तो विकास ने अपनी माँ और बहन की बातों को अनदेखा किया लेकिन कहतें हैं न कि बार-बार झूठी बात भी दोहराई जाय या किसी भी बात को हमेशा बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाय तो वह बात असर जरुर करती है।

यही बात विकास के साथ भी हुई,धीरे-धीरे माँ और बहन की बातों ने अपना असर दिखाना शुरु कर दिया।

माँ छोटी सी बात को भी इतना बढ़ा देती कि नौबत कहासुनी से झगड़े तक पहूंच जाती थी।

माँ की झूठी आँसुओं के बहकावे मे आकर विकास कई बार अनिता को गाली भी दे देता।

अब तो ये हर दूसरे दिन का किस्सा हो गया था।अनिता सबकुछ देखती ,समझती पर जाने क्यों उसने कभी इन सभी बातों का विरोध नहीं किया।सबकुछ सहती रही। बस मन ही मन सोचती रहती कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है??

शायद वह अपने बच्चों के बारे मे सोचकर चुप रह जाती थी।

आज भी कुछ ऐसा ही हुआ,छोटी सी बात पर मां ने बेटे के सामने ऐसे रोना रोया कि विकास ने बिना पूरी बात को जाने ही अनिता पर पहली बार गुस्से मे हाथ उठा दिया।

“मम्मी भूख लगी है।खाना दो न प्लीज़।”

बेटे की आवाज सुनकर अनिता वर्तमान मे लौट आई।

उसने बच्चों को खाना खिलाया और सुला दिया।

आज पहली बार अनिता को अपने बच्चों के भविष्य को लेकर फिक्र होने लगी।

पिता का ऐसा रूप देखकर बच्चे क्या सीखेंगे??

उसने आज खुद से एक वचन लिया कि आगे से वह गलत बात को सहन नहीं करेगी।

क्योंकि जब तक खुद वह अपने लिए आवाज नहीं उठाएगी ऐसा ही चलता रहेगा।

अनिता यह बात अच्छे से जानती थी कि हालात एक दिन मे नही सुधरने वाले लेकिन उसने हालात को बदलने और स्वयं की अहमियत सबको समझाने का जिम्मा आज स्वयं को दिया था।

सबकुछ यथावत् चल रहा था,राखी का त्यौहार था,अनिता की ननद विकास को राखी बांधने के लिए घर आई थी।अनिता ने सभी तैयारियां बहुत अच्छे से की थी,लेकिन कहते हैं न कि कुछ लोगों का जन्म इस धरती पर दुसरों की कमी निकालने के लिए होता है,ऐसा ही हाल अनिता की ननद का था।

राखी के नेग को लेकर ननद ने फिर अनिता को ताना सुना दिया,

लेकिन हमेशा की तरह अनिता चुप न रही,उसने सीधे शब्दों मे कहा—

“इस घर के हर छोटे बड़े फैसले आपकी माँ और भाई करते हैं,मुझे तो बस बता दिया जाता है।

इसलिए आपको जो भी कहना सुनना हो,इनसे कहें,मुझसे नहीं।”

उसका नया रूप देखकर सभी हैरान जरूर थे,मगर धीरे-धीरे सभी समझ गए थे कि अब अनिता गलत बात को सहन नहीं करेगी।

स्वरचित एवं मौलिक 

सुनीता उपाध्याय

गोरखपुर 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!