सवि विवाह कर ससुराल पहुँची तो उसकी सास नन्दों ने उसका बहुत शानदार स्वागत किया। उसकी सास अपनी बेटियों को कह रही थीं, “तुम्हारी इकलौती भाभी है उसे हमेशा बहुरानी बना कर रखूँगी और तुम दोनों भी ध्यान दो कि उसे क्या चाहिए और मायके की याद कर के वह रोये नहीं।”
सवि इतना प्यारा ससुराल एवं सात्विक जैसा सुंदर व होनहार पति पाकर बहुत खुश थी।ससुर जी भी उसे बहुत स्नेह करते और उसकी इच्छाओं का ध्यान रखते।
विवाह के दो वर्षों बाद उसने ख़ुशख़बरी दी तो घर में ख़ुशियों की लहर दौड़ गई। सब रिश्तेदार भी उसे आशीष देते दूधों नहाओ पूतों फलो उसकी सास भी कहतीं,”हाँ पहले एक बेटा तो होना चाहिये।”वे उसका बहुत ख़्याल रखतीं।
निश्चित समय पर सवि ने एक कन्या को जन्म दिया ।सात्विक और सवि माँ-बाप बनकर फूले नहीं समाये तथा सात्विक के पापा तो दादाजी बन मानो सातवें असमान पर उड़ रहे थे। बच्ची को घर लाए सबने स्वागत किया और मिठाई बाँटी गयी। कुछ वर्षों बाद सवि ने फिर एक बेटी को जन्म दिया तो उसकी सास ने बड़े ठंडे मन से उसका स्वागत किया।
अब वे उसपर फिर माँ बनने के लिए ज़ोर डाल रही थीं क्योंकि उन्हें विश्वास था कि अब उनकी तरह तीसरा बच्चा लड़का ही होगा। उसे हैरानी तो इस बात की हुई कि उसके पति भी यही चाहते थे और फिर अब वह तीसरी बार माँ बनने जा रही थी ।उसके सास ससुर भी
अब बुढ़ापे की तरफ़ जा रहे थे। ससुर जी बीमार रहने लगे तो सास उनकी देखभाल में व्यस्त रहती थीं। सात्विक भी कार्यालय में अधिक ज़िम्मदारियों के कारण देर से घर आता था। बेचारी सवि दोनों बेटियों की देखभाल करते हुए घर का भी सब काम करती,
अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने का उसे समय ही न मिलता। तभी एक रात उसके ससुरजी की मृत्यु हो गयी अब तो उसकी सास और भी दुखी रहतीं तथा अपनी पोतियों पर भी ध्यान नहीं देती थी सवि के ससुर जी का अंकुश न रहने से वे अब सवि को भी कुछ भी सुना देती थीं।
एक रात सवि अस्पताल गई और कमजोरी के कारण बेहोश हो गई उसने बच्चे को जन्म दिया।होश आने पर बच्चे के बारे में पूछा तो नर्स ने बताया कि उसने एक प्यारी बेटी को जन्म दिया है। यह जानकर वह खुश होने की जगह दुखी हो गयी।
वह रोते-रोते अपनी क़िस्मत को कोसे जा रही थी क्योंकि उसे अपनी सास का डर था। वे तो बच्ची को देखने भी नहीं आयीं और जब सात्विक उसे घर लाया तो वे चिल्लाने लगीं कि हाय अब मेरा वंश कैसे आगे बढ़ेगा अब तो सात्विक तू इसे तलाक दे दे मैं तेरी दूसरी शादी करूँगी।
सवि ने अब रो रोकर अपने पापा को फ़ोन पर सब बात बतायी। वे बोले,”तू चिन्ता नहीं कर मैं तुझे आज ही लेने आता हूँ मेरी बेटी और उसकी बच्चियाँ मुझ पर बोझ नहीं हैं।”
सवि को मायके आकर माँ बाप से बात कर कुछ हिम्मत आयी।वह पढ़ी-लिखी तो थी ही, उसने पास के विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी कर ली तथा बड़ी दोनों बेटियों को भी वहीं दाखिला दिला दिया। सवि की माँ ने छोटी बेटी को सीमा नाम दिया, जब सवि विद्यालय जाती तो वे उसे संभाल लेती थीं। उसके पापा भी तीनों बच्चियों के साथ खेलते-खेलते बच्चा बन जाते। एक वर्ष में उसका तलाक़ भी हो गया।समय हँसी-ख़ुशी बीतने लगा।
आज एन ई ई टी का परिणाम आया जिसमें सीमा का बहुत अच्छा रैंक आया है अब मनचाहे कॉलेज में दाख़िला लेकर वह डॉक्टर बन जाएगी बड़ी दोनों बेटियों को सवि ने इंजीनियर बनाया है। सभी उसे बधाईयाँ दे रहे हैं परंतु उसने धन्यवाद देते हुए कहा इस बधाई के सच्चे अधिकारी तो उसके माता पिता हैं जिन्होंने समय पर सही निर्णय लेकर उसका पूरा साथ दिया।
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रचयिता
सुषमा सुनील कुलश्रेष्ठ