अब तक आपने पढ़ा कि शेखर रिक्की के जाल में फंस चुका था।अपने नाजुक मन और एक गलती के कारण वह ऐसे मोड़ पर खड़ा था जहाँ पर कोई भी मंजिल उसे नजर नहीं आ रही थी।
अब पढ़ते हैं आगे-
“पागल हो तुम! तुम मुझसे धंधा कराने.. आर यू मैड…तुमने सोच कैसे लिया मैं ऐसा कुछ करूंगा!”
“ओके…मत करो।सिम्पल ऑफर था।अब तुम मना कर रहे हो तो मैं भी मजबूर हूँ यह वीडियो मैं खुद तुम्हारी बीवी के पास भेज दूंगी सोशल मीडिया हैशटैग के साथ।” रिक्की कुटिलता से बोली।
शेखर की जुबान तालु से चिपक गई वह कैसे जाल में फंस गया था वह खुद नहीं जानता था लेकिन उसे निकलने का रास्ता भी नजर नहीं आ रहा था।
रिक्की की बनाई दलदल में वह धंसता चला गया।हर दिन किसी न किसी अमीरजादी के बिस्तर को गर्म करने जाना उसकी मजबूरी बन गई।दौलत के ढेर में रोज वह ऐसी औरतों से मिलने लगा जिनके पास दौलत तो है लेकिन प्यार नहीं।बिस्तर पर प्यार तलाशती इन औरतों को प्यार का मतलब भी कहाँ पता था।
शेखर के चेहरे से रौनक गायब हो गई।वह पूरी कोशिश करता तृप्ति के सामने सामान्य रहने की लेकिन थका मन और जिस्म उसकी जैसी चुगली कर देता।तृप्ति उसका और ख्याल रखने लगी और फिक्रमन्द दिखाई देती।उसके कपड़ों से लेकर उसके लुक्स तक की चिंता करती तृप्ति जाने कौन सी दुनिया में थी।
तृप्ति की मासूमियत देख शेखर पल पल मर रहा था।न जाने कितनी ही बार तृप्ति को बताने की कोशिश की लेकिन डर से उसके मुँह से शब्द नहीं निकलते।यह अपराधबोध उसे निगल ही लेता यदि उस रात तृप्ति का वह सच शेखर के सामने न आता।
उस रात शेखर की जिंदगी जहन्नुम बन गई।नरक में तो था ही लेकिन तृप्ति की वफा उसे जिंदा रखे थी वरना कब का मुर्दे में तब्दील हो गया होता।वफा का चेहरा जब नंगा हो शेखर के सामने खड़ा हो गया तो जैसे मौत ने उसे छुआ और थूक कर चली गयी।उस रात की काली स्याही धीरे धीरे उसके मन पर असर दिखाने लगी। उस रात……
अलमारी से मिले नोटों के बंडल शेखर के दिमाग को हिला गए।उन बंडलों को उठा वह तृप्ति को आवाज़ मारने लगा,
“तृप्ति…तृप्ति…यह पैसे कहाँ से आए…तृप्ति कहाँ हो तुम?”
“क्या हुआ शेखर क्यों चिल्ला रहे हो?” दरवाजे पर खड़ी हो तृप्ति बोली।
“यह पैसे कहाँ से आए?” शेखर ने पूछा।
“बचत है मेरी, तुम इन्हें वापस रख दो।” उसके हाथों से नोटों के बंडल छीनकर तृप्ति बोली।
“बचत! इतनी तनख्वाह नहीं है मेरी जो तुम बचत कर वह भी इतनी!कम से कम एक लाख रुपए हैं ये।” शेखर सख्ती से बोला।
“दिमाग मत खाओ,मुझे कोई जवाब नहीं देना।” तृप्ति ने पैसे अलमारी में रखकर कहा।
“क्यों जवाब नहीं देना?तुम्हारा पति हूँ मैं।अधिकार है मुझे जानने का।पैसे कहाँ से आए तृप्ति? कहीं तुम कुछ गलत काम तो नहीं कर रही!” शंका से शेखर का रुआं काँप गया।
“पति! पति होने का मतलब भी पता है!कौन से कद्दू पर तीर मार दिया पति बनकर।तुम्हारी पैंतीस हजार रुपल्ली की तनख्वाह में कौन सा सुख दे दिया मुझे!” तृप्ति अलग ही अंदाज में बोली।
उसके इस रूप को देखकर शेखर की आँखों में हैरानी फैल गयी।
“यह क्या कह रही हो तृप्ति! तुम मेरे साथ खुश नहीं हो…तुम यह पैसे कहाँ से लाई बस इतना बता दो।” शेखर बेचैनी से बोला।
“रिक्की ने दिए हैं।तुम्हारी कीमत।” इतना बोल तृप्ति बेशर्मी से उसके गले में बाँहें डाल देती है।
“मेरी कीमत! मतलब तुम्हें सब पता था।तुम मिली हुई थी.. तुम मेरी पत्नी होकर!दूर हो जाओ मुझसे।” शेखर ने तृप्ति को धक्का दिया।शेखर के पैरों से शक्ति जैसे निकल सी गई।वह लड़खड़ा कर बिस्तर पर गिर पड़ा।आँखों से पानी की धार बह निकली।
“,देखो शेखर, इतना ओवर रियेक्ट न करो।समझो यार यह हमारे लिए मौका है पैसा कमाने का।वैसे भी उन अमीरजादियों को तुम थोड़ा प्यार देकर कोई गुनाह नहीं कर रहे।” तृप्ति उसके करीब जाकर बोली।
“दूर रहो मुझसे।मुझे घिन आ रही है तुमसे।कैसी औरत हो तुम! अपने पति को दूसरी औरतें के बिस्तर पर…छी..छी।” वितृष्णा से शेखर अपने सिर को पीटने लगा।
“मर्द चार औरतों के साथ भी लेट जाए तो गंदा नहीं होता।वैसे भी तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हें रोज नया टेस्ट मिल रहा है।” तृप्ति बेशर्मी से बोली और हँस पड़ी।
“मेरी जान,जब तक इन बुड्डियों के पास पैसा है खींच लो।इसमें तुम्हारा जा क्या रहा है!” तृप्ति शेखर को समझाते हुए बोली।
अगला भाग
तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -11)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi
(क्या शेखर तृप्ति की बात पर सहमति जताएगा?क्या वह रिक्की और तृप्ति के साथ इस दुनिया का हिस्सा बनेगा या फिर इस जाल से निकल जायेगा।पढ़ते हैं अगले एपिसोड में)
दिव्या शर्मा