जीवन की आपाधापी में ख्वाबों का संसार सजाना बहुत ही जतन भरा काम है।
अपने इसी स्वप्न नीड़ को सजाने निकले निशा और राजीव अपने नीड़ को संजोने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे। लेकीन कुछ पाने के लिए वक्त के इम्तिहानों से दो चार होना ही पड़ता है….
ये कहानी है एक ऐसे पति पत्नि की जिन्होंने अपनी उच्च शिक्षा समय रहते पूर्ण की ओर दोनों ने ही अच्छी कम्पनी में नौकरी भी प्राप्त कर ली……
काम करते करते वे दोनों वहीं एक दूसरे के सम्पर्क में आए।
वक़्त ने उनके इस सम्पर्क को पहले दोस्ती फिर प्रेम और अंततः विवाह की मंज़िल पर पहुंचा ही दिया।
दिन पंख लगा कर उड़ रहे थे….
एक दूसरे का साथ उन्हें ख़ुशी से सराबोर कर देता था।
एक ही कंपनी में काम करते थे तो एक साथ ही आते और एक साथ ही अपने घर पहुंच जाते।
मिलकर दोनों अपने घर को संभालते….
निशा जब तक खाना बनाती राजीव घर के कई छोटे मोटे काम कर दिया करता था…
इस कहानी को भी पढ़ें:
कभी कभी तो देर होने पर दोनों ही बाहर से खाना खाकर भी आ जाते थे….
दोनों ही एक दूसरे को हमसफर के रुप में पाकर बहुत खुश थे…
जीवन एक सुंदर सुखद सपने की तरह बीत रहा था कि अचानक ही कोरोना जैसी महामारी के चलते कंपनी में छंटनी ने उनकी नौकरियों पर संकट के बादल बिखेर दिये….
यहीं से शुरू हुआ इम्तिहानों का सिलसिला…..
अब निशा और राजीव दोनों जीवन के उस पड़ाव पर आकर खड़े हो गए जहां उन्हें बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा था।
सच ही है जमा पूंजी से कितने दिन चलाया जा सकता है…..
और थककर बैठने का तो प्रश्न ही नहीं था….
बहुत सोच विचार किया लेकीन कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा था…
जीवन की गाड़ी को निर्बाध रूप से कैसे आगे बढ़ाया जाए?
निशा की रुचि बचपन से ही आर्ट एंड क्राफ्ट में रही किन्तु पढ़ाई ने रुचि को जारी रखने का वक़्त नहीं दिया….
निशा ने आज अपनी रुचि को ही अपना व्यवसाय बनाने का निश्चय किया।
लॉक डाउन के समय में ऑनलाइन माध्यम से निशा ने अपनी हॉबी क्लासेस शुरू की।
इस कहानी को भी पढ़ें:
जिसे लोगों ने हाथों हाथ लिया।कुछ ही समय में उसकी क्लासेस चल निकलीं और वो दिन रात व्यस्त रहने लगी।
और यहीं से शुरू हुआ एक और परीक्षा का दौर…
राजीव ने शुरुआत में तो निशा का साथ दिया लेकिन धीरे धीरे वह डिप्रेशन का शिकार होने लगा……
निशा ने देखा कि राजीव अब बहुत ही गुमसुम रहने लगा था।
घन्टो आसमान को ताकता रहता।
हरदम ऊर्जा से लबरेज रहने वाला राजीव मुरझा गया था…
कुछ कहो तो जवाब देने की सुध भी उसे नहीं रहती।
सच कहो तो वह उदासी में घिर गया था….
निशा मन ही मन बहुत दुःखी रहती लेकिन विपरीत परिस्थितियों में कुछ भी न कर पाती।
अपने हमसफर का उदास चेहरा उसे भी परेशान किए रहता था…..
ऐसे ही एक दिन राजीव को अकेले बैठा देख अचानक निशा को ख्याल आया कि राजीव ने अपनी शिक्षा मैनेजमेंट विषय को लेकर पूर्ण की थी।
आशा की एक उजली किरण उसकी आंखों में चमक उठी……
उसने महसूस किया कि लॉक डाउन के दौर में लोंगो की दिनचर्या से प्रबन्धन दूर हो रहा है और वे अव्यवस्थित दिनचर्या का शिकार होते जा रहे हैं…
निशा के दिमाग में बिजली की गति से एक विचार कौंधा।
उसने राजीव की एक प्रोफ़ाइल तैयार की और वोकेशनल मैनेजमेंट की क्लासेस का विज्ञापन अपनी हॉबी क्लासेस और अन्य परिचितों को भेज दिया……
इस कहानी को भी पढ़ें:
कुछ ही समय में लोगों का रिस्पॉन्स आना शुरू हो गया बस अब क्या था …….
लोगों के जीवन में प्रबंधन लाते लाते राजीव ने पुनः अपनी खोई हुई ऊर्जा भी प्राप्त की…..
राजीव की क्लासेस भी बहुत ही अच्छी चलने लगीं।अब राजीव भी अपना खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः प्राप्त कर बहुत खुश था….
हाथों में कॉफी के दो मग लिए खड़ी निशा जब राजीव की ओर बढ़ी तो खिड़की से आसमान को ताकते राजीव को देखते हुए उसके मन में एक ही भाव था—-
—-आजा पिया तोहे प्यार दूं।।
हमसफर की यही तो पहचान होती है कि कठिन से कठिन हालात में भी वो अपने साथी को हारने नहीं देता…..
बल्कि एक मजबूत आसरा बनकर खड़ा हो जाता है….
और यही हमारे देश की सांस्कृतिक परंपरा की भी पहचान है….
हिमांशु जैन मीत
#हमसफर