अपनी नज़रें झुंका और अंगुठे की नाखुन को कुरेद खुद को सहज दिखाने का असफल प्रयास करते हुए सुमित बोला- मेरा एक दस साल का बेटा है और मेरी शादी को ग्यारह वर्ष होने को आये। पर…..!!
“पर….क्या सुमित जी? आप बोलते-बोलते रुक क्यूं गए! आपका खिला चेहरा अचानक से यूं मुर्झा क्यूं गया? मुझे बताइए। मुझे सारी बातें जाननी हैं।” सुमित के झुंके चेहरे पर नज़रें टिकाए नमिता ने सहानुभूति से पुछा। सुमित के चेहरे पर यूं अचानक से छायी उदासी देख वह चिंतित हो गई थी।
“मेरी शादीशुदा ज़िंदगी कभी सुखी नहीं रही। बहुत प्रयास किया सबकुछ सम्भालने का। फिर भी फेल हो गया। अब हमदोनों के बीच तलाक हो चुका है। मेरा एक दस साल का बेटा भी है- शौमित। अपनी माँ के साथ रहता है। पर वह उसकी पढ़ाई-लिखाई का बिल्कुल ध्यान नहीं रखती। अब मैं ठहरा अकेला, सो उसे अपने पास भी नहीं रख सकता। इसीलिए उसकी माँ से रजामंदी लेकर बेटे को कोलकाता के पास ही एक बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया। कल सुबह जब बेटे से फोन पर बात हुई तो वह भी मेरे साथ यहाँ आने के लिए बहुत ज़िद्द कर रहा था।”- सुमित ने नमिता को अपने ज़िंदगी के बुरे अतीत से रूबरू कराया। फिर इंतज़ार करने लगा कि औरों की भांति वह भी उसपर ही अपने परिवार के टूटने का सारा दोष मढ़ेगी और बेटे के खातिर चुपचाप सारा जहर पीकर अपनी शादी बचा लेने का ताना मारेगी।
सुमित की पूरी बात सुन नमिता की आँखें नम हो आयी। फिर उसकी आँखों में झाँकते हुए शिकायत भरे अंदाज़ में कहा- “आप मर्दो की न यही बात मुझे पसंद नहीं आती! बच्चों के मन को जरा भी पढ़ने नहीं आता! उसका भी तो मन करता होगा… अपने पापा के साथ घूमने का, ठहलने का! आपने गलत किया सुमित जी। आपको उसे अपने साथ लेकर आना चाहिए था।” नमिता ने सुमित को झिड़कते हुए कहा। पर उसकी बातों में एक अजीब-सा अपनापन था।
“आप एक काम करिए! शौमित को भी यहीं बुला लीजिए।”- अपनी आँखें फैलाते हुए नमिता बोली। तभी पक्षियों के एक झुंड ने उड़ने के लिए अपने पंख फैलाए और दूर आकाश में लहराती दिखी, जिनपर अपनी निगाह टिकाए सुमित ने कहा- “पर वह आएगा कैसे? मैं तो यहाँ हूँ! कौन लेकर आएगा उसे?”
“आप उसकी परवाह न करें!! मेरा छोटा भाई कोलकाता में ही रहता है। मैं उसे फोन कर देती हूँ। वो शौमित को साथ लेकर यहाँ आ जाएगा। आप केवल इतना करिए कि शौमित के स्कूल में एक अथॉरिटी लेटर मेल कर दीजिए ताकि उसे मेरे भाई के साथ आने की अनुमति मिल जाये। फिर दोपहर तक वह उसे यहाँ लेकर आ जाएगा।” – उलझन में पड़े सुमित को उससे उबारते हुए नमिता ने कहा। फिर बड़ी-बड़ी आँखें फैलाकर सुमित को अंगुली दिखाते हुए बड़े अधिकार से बोली- “और मैं आपकी कोई भी बहानेबाजी नहीं सुनने वाली! आप बिल्कुल भी मना नहीं करेंगे!”
भारी मन से सुमित की आंखें नमिता को निहारती रही। फिर सर हिलाकर उसने अपनी हामी भर दी और शौमित के स्कूल प्रिंसिपल से बात कर उनसे अनुमति भी ले ली। नमिता ने भी अपने भाई को फोन कर शौमित को उसके हॉस्टल से लेकर आने को बोल दिया।
सुमित की कृतज्ञ आँखे नमिता को झांक रही थी और उसे अपनी ही कही बात कि “हर कर्ज़ चुकाए नहीं जाते! कुछ की अदायगी समय करता है।” कानों में गूंज रहे थे। नमिता की निगाहें सोनाझुरी की उन हरी-भरी वादियों को निहार रही थी, जिसकी छंटा अब और भी मनोरम हो चुकी थी मानो उसने अभी-अभी मुरझाए पौधों पर पानी की कुछ बूंदें डालकर उन्हे फिर से हरा कर दिया हो।
तभी कुछ गाड़ियां एक कतार में आकर वहाँ खड़ी हुई। सुमित की कौतूहल भरी निगाहें उधर ही टिक गई।
“शायद ये लोग किसी गाने की शूटिंग करने आए हैं।”- नमिता ने उन खड़ी गाड़ियों की तरफ देखकर कहा, जिससे कुछ लोग कैमरा और शूटिंग के अन्य सामान निकाल रहे थे। जबकि रंग-बिरंगे परिधान में खड़े कुछ स्त्री-पुरुष अपने चेहरे पर मेक-अप चढ़ा रहे थे।
“ह्म्म…”- सुमित ने अपना सिर हिलाया।
“सोनाझुरी की इन सुंदर वादियों में आये दिनों शूटिंग होती रहती है। कई मुवीज़ की शूटिंग यहाँ हुई है।”- नमिता ने बताया।
“मैंने सौमित्र चटर्जी और स्वातिलेखा सेनगुप्ता की “बेलाशेष” देखी है। उसकी शूटिंग भी यहीं सोनाझुरी में ही हुई थी।”- सुमित ने नमिता की तरफ देखकर कहा। फिर बोला – “चलिए, वापस रिसॉर्ट चलते हैं। बहुत देर हो गई।”
कदम से कदम मिलाते दोनों वापस रिसॉर्ट की तरफ बढने लगे। रास्ते में पड़े छोटे-छोटे कंकड़ों को पैरों से हटाते हुये नमिता के होठों पर रबींद्रसंगीत की पंक्तियां थी जिन्हे वह गुनगुना रही थी और सोनाझुरी पेडों की डालियों पर बैठे पक्षी चहकते हुए मानो उसके सुर में सुर मिला रहे थे।
वने जोदि फुटलो कुसुम
नेई केनो सेई पाखी नेई केनो
नेई केनो सेई पाखी
कोन सूदूरेर आकाश हाटे आनबो
आनबो तारे डाकि
रबींद्रसंगीत की पंक्तियों में डूबे दोनों वापस रिसॉर्ट पहुंचे और अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगे। पर उनके कदम जैसे उनका साथ नहीं दे रहे थे। मन के भीतर से भी यही आवाज आ रही थी कि काश यह पल यहीं ठहर जाता और वे दोनों थोड़ी देर और एक-दूसरे के साथ समय गुजार पाते। उनके शब्द गौण थे, पर निगाहें मन की चुगली कर रही थी।
दमकते चेहरे और होंठो पर कोई प्रेमगीत गुनगुनाते नमिता अपने कमरे की तरफ बढ़ी आ रही थी, जिसे दूर से ही उसकी सहेलियों ने देख लिया था और दरवाजे पर खड़ी वे सब उसे घूर रही थीं।
“ओह हो….! जरा मैडम के खिले चेहरे को तो देखो! कैसे टमाटर के जैसे लाल हुआ जा रहा है!!”- दरवाजे पर खड़ी नबनिता ने मुस्कुराते हुए अपने पास खड़ी आशा से कहा। चेहरे पर दबी-सी मुस्कान लिए नमिता उनकी तरफ बढ़ी चली आ रही थी।
“अकेली क्यूं आयी!!” – आशा ने अपनी हंसी भीतर ही रोकते हुए कहा।
“क्या अकेली?? अकेली गयी थी तो आयी भी अकेली!”- नमित ने अपने भौवें सिकोडते हुए कहा।
“मैं दिल की बात कर रही हूँ। उसे कहाँ छोड़ आयी?”- आशा ने कहा और पास खड़ी नबनिता को केहूनी मारी।
“अरे अपना दिल छोड़ आयी तो किसी का दिल साथ भी तो लायी होगी न! तभी तो इसका चेहरा इतना खिला हुआ है!” – नबनिता ने मुस्कुराते हुए कहा।…
“मारुंगी तुझे! सुबह-सुबह क्या भांग खा रखा है!!”- नमिता ने कहा और उन्हे हटाकर कमरे के भीतर प्रवेश कर गई।
“नशे में तो थे हम अब तलक, उनसे नज़रें क्या मिली होश में आ गये!” – आशा ने बिस्तर पर लेटते हुए एक क़ाफिया पढ़ा और मुस्कुराती हुई नमिता को निहारने लगी। फिर एक सवाल मारा– “अच्छा बता, सुमित जी से और क्या-क्या बातें हुई!”
“धत्त…पागल!”- नमिता ने कहा और पास पड़े तकिये को आशा की तरफ उछाला।
तभी रिसॉर्ट के एक स्टाफ ने दरवाजे पर दस्तक दी।
“मैडम, ब्रेकफास्ट रेडी है। आपलोग तैयार होकर रेस्टुरेंट में आ जायें नहीं तो पर्यटकों की भीड़ बढनी शुरू हो जाएगी। आज शनिवार है न…सोनाझुरी हाट का दिन।”
“ठीक है। आप जाइए। हमलोग तैयार होकर आते हैं।”- नमिता ने कहा और कमरे का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया। फिर पलटी और हाथों में हाथ बांधे बिस्तर पर बैठी आशा और नबनिता की तरफ देख शिकायत भरे लहजे में बोली- “ह्म्म… अब यहाँ बैठे-बैठे डायलोग ही मारेगी या तैयार भी होना है। चल फुट यहाँ से और मुझे भी तैयार होने दे!”
“हाँ, जाती हूँ बाबा! भगा क्यूं रही है!”- आशा ने मुंह बनाते हुए कहा।
“ताकि अकेले में फिर किसी की यादों में गुम हो जाये!”- बिस्तर पर बैठी नबनिता ने कनखी से नमिता की तरफ देखकर कहा।
“रुक तू जरा.. अभी खबर लेती हूँ तेरी! नबनिता की बच्ची..! रुक!! भागती कहाँ है!!”- नमिता तेज़ी से नबनिता की तरफ लपकी।…
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सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 4) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi
written by Shwet Kumar Sinha
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