बन्धन सिर्फ इंसानो का नहीं होता या जन्म से नहीं होता यह किसी से भी हो सकता है बस जरूरत होती है भावों को समझने की। युवा सिराज को घोड़े बहुत पसन्द थे उनकी पसन्द को देखते हुये उनके भाई ने उनके जन्मदिन पर एक घोड़ा उपहार में दिया। सिराज ने अपने घोडे़ का नाम बंटी रखा। लेकिन अक्सर उसे प्यार से बेटा बोलते थे।
जमींदार परिवार के सिराज अक्सर घोड़े पर बैठकर अपने खेतों और बागों का चक्कर लगाते। फुर्सत के लम्हों में वह बंटी को काफी लाड़ लडाते बंटी भी अपने मुंह को सिराज के कंधो पर रगड़ कर अपने प्यार का इजहार करता। बंटी का लाड़ इतना ज्यादा था कि किसी अन्जान को वह अपने ऊपर सवारी नहीं करने देता था अगर कोई जबरदस्ती करने की कोशिश करता तो उसे किसी न किसी तरह गिरा देता।
एक दिन शाम के वक्त सिराज घोडे़ पर बैठ कर खेतों की ओर निकल गये। गोधूलि की बेला होने लगी थी मगर सिराज और बंटी अभी तक लौटे नहीं थे। सभी लोग परेशान हो रहे थे किसी ने बताया कि दोनों को दूर वाले गांव की ओर जाते देखा था। तभी देखा गया कि बंटी अपने ऊपर सिराज को लादे हुये घर के मैदान में खड़ा है बंटी और सिराज दोनो बहुत बुरी तरह से घायल हैं। पहले तो कोहराम मच गया घरवालों को लगा कि शायद बंटी ने ही सिराज को चोट लगाई है।
सिराज की हालत कुछ भी बोलने बताने लायक नहीं थी। तुरन्त ही दोनो के लिये डाक्टर को बुलाया गया लेकिन बंटी को बहुत बाते सुनाई गई कि उसकी वजह से ही सिराज को चोटे आई हैं। बंटी भले ही बोल न पा रहा हो लेकिन समझ सब कुछ रहा था उसकी आखों से लगातार आंसू बह रह रहे थे। मगर अब बंटी को सिराज से दूर अलग बांध दिया गया था उसकी भी मरहम पट्टी करके दाना दे दिया था।
अगले दिन तक सिराज को कोई होश नहीं था आस पास के गांव वाले उनको देखने आ रहे थे। जिन्होंने भी उनको देखा था यही बता रहा था कि बंटी इतनी तेज भाग रहा था कि उसको सम्भालना मुश्किल था। अब सभी का शक यकींन में बदल गया था कि बंटी की वजह से सिराज को चोटें आई हैं।
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अगले दिन सिराज को होश आया सबसे पहले उन्होंने बंटी को पूछा। सारे लोग उनकी खैरियत जानने को परेशान थे मगर वह बंटी के पास जाने को उतावले। किसी तरह वह बंटी के पास पहुचे दोनों ने एक दूसरे का बहुत ही लाड़ किया। बंटी की आंखो से लगातार आंसू आ रहे थे देखा गया तो पिछले दिन से बंटी ने कुछ भी नहीं खाया था तब सिराज ने उसके सिर पर हाथ फिराते हुये कहा सब ठीक है बेटा अब कुछ खा ले तो बंटी ने भी खाने को मुंह लगाया।
अब सभी लोग पिछले दिन क्या हुआ था जानने के लिये सिराज को घेर कर बैठ गये। सिराज ने बताया कि ‘पिछले दिन वह रोज की तरह खेत की तरफ गये हुये थे। धुंघलका सा हो रहा था अचानक उन्हें एक और कुछ अजीब सी आवाज और धूल का बवंडर सा महसूस हुआ। वह कुछ समझ पाते उससे पहले ही बंटी ने उस जगह से पूरी रफ्तार से घर की ओर दौड़ लगा दी। काफी आगे आ जाने पर नहर की बाड़ मे बंटी का पैर उलझ गया जिससे बंटी सड़क पर गिरा और रफ्तार तेज होने के कारण काफी दूर तक रगड़ गया और रोडी़ से उसका पूरा शरीर छिल गया मैं भी शायद सड़क पर गिरता लेकिन इसने मेरे नीचे अपना सिर लगाने की कोशिश की जिससे मैं नहर की मिट्टी में गिरा इसलिये चोटें कम आई। काफी देर तक हम दोनो एसे ही पडे़ रहे अंधेरा बढ़ रहा था उस तरफ लोगों के आने की सम्भावनायें कम थी मेरे भी शरीर में इतनी हिम्मत नहीं थी कि खडे़ हो कर नहर से निकल सकूं कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूं।‘
‘तभी ऊपर से बंटी ने नीचे देखा और हिनहिनाया। यह एक इशारा था कि ऊपर आ जाओ। मैने हाथ ऊपर किया और कहा कि बेटा कैसे आऊॅ, काफी ज्यादा चोट के बाद भी बंटी ने अपने अगले दोनो पैरों को मोड़ कर झुकते हुये लगाम मेरे हाथ तक पहुंचाई जिसे पकड़ कर मै ऊपर तो आ गया लेकिन मेरे इतनी ताकत नहीं थी कि मैं इसकी सवारी कर सकूं इसलिये इसने मुझे पास की मेड़ से इतना सहारा दिया जिससे कि मैं इसके ऊपर लद सा गया। वहां से घर तक इतनी धीमी रफ्तार से लाया कि मुझे एक भी झटका तक नहीं महसूस हुआ।‘
]बाकी जो भी हुआ आप सभी जानते हैं। आप सबने मेरे बंटी को बहुत कुछ कहा लेकिन यह तो बेजुबान है सिर्फ सुनकर आंसू बहा रहा है। हमारा एसा रिश्ता है कि इतने बडे हादसे से बंटी मुझे बचा लाया।‘
#अटूट बन्धन
नोट- यह सत्य घटना है।
डा इरफाना बेगम
नई दिल्ली