राकेश ने फोन पर अपनी भाभी को उलाहना दिया,” अक्षय की शादी तय कर दी आपने और हमें बताया भी नहीं, भाभी।”
“भैया, सब जल्दी जल्दी में हो गया। आपको आज फोन करने ही वाली थी।” सीमा ने बेचारगी से कहा
” बस बस भाभी! बातें नहीं बनाओ। वो तो अक्षय का दोस्त सुधांशु मिल गया आज बाज़ार में। उसने बताया तो घरवालों को पता भी चल गया वरना तो भैया की मृत्यु के बाद से आपने हमें पराया ही कर दिया।” राकेश तुनक कर बोला
मोबाइल उसने अपनी पत्नी रानी को पकड़ा दिया। उसने भी उसी लहज़े में सीमा से बात की। बात तो क्या की , शिकायत की।
सीमा ने बहुत समझाया , माफ़ी तक मांगी। तब जाकर वे बोले कि कोई काम हों तो बताना। साथ ही यह बोलना नहीं भूलें कि चाचा-चाची का स्थान और हक शादी में सबसे बढ़कर है तो लड़कीवालों को अच्छा व्यवहार देने के लिए बोल दें। मिलनी में चाची के लिए सोने का जेवर होना चाहिए और चाचा के लिए सोने की अंगूठी और गर्म सूट व बच्चों के लिए रेडिमेड ब्रांडेड कपड़े होने चाहिए।बाकी अपनी तरफ से भी बढ़िया देना, नाक ना कटाना। और भी जाने क्या क्या देवर देवरानी बताते रहे। लम्बी फरमाइशों की लिस्ट के बाद एहसान जताते हुए फोन रखा गया कि शुक्र मानो बड़े होने के नाम पर चाचा-चाची आ रहें हैं शादी में वरना अनाथ की तरह बिना किसी बड़े की छत्रछाया के शादी करनी पड़ती।
फोन रखकर सीमा यादों में खो गई। उसे वो दिन याद आ गए। दस वर्ष पहले उसने छत्तीस साल में ही अपने पति रमेश को खो दिया। रमेश को एक रात अस्थमा का पैनिक अटैक आया और अस्पताल ले जाते जाते उनके प्राण निकल गए। तब देवर देवरानी सभी घर में मौजूद थे। संयुक्त परिवार में रहते थे। सास-ससुर के साथ सब रहते थे। कितना दरवाजा पीटा, देवर का पर वे बाहर नहीं आए। अंदर से ही कह दिया, बाम लगा लो सीने पर आराम आ जाएगा। सास-ससुर बुजुर्ग थे। अकेले ही एंबुलेंस में अस्पताल लाई थी सीमा परंतु पति को नहीं बचा पाई।
रमेश की मृत्यु के थोड़े दिनों बाद ही देवर-देवरानी ने सास-ससुर को न जाने क्या पटृटी पढ़ाई कि उन्होंने सीमा को दो बच्चों के साथ घर से निकाल दिया। पंद्रह साल के अक्षय और छह साल की अक्षरा के साथ सीमा ने बहुत मुश्किल से एक घर किराए पर लिया। रमेश सरकार में अच्छी पोस्ट पर थे। उनकी मृत्यु के बाद सीमा को अनुकंपा नियुक्ति क्लर्क की दी गई थी।
नौकरी लगने की खबर सुनकर सास और ससुर एक बार उसके पास आये थे कि घर चलो और परिवार के साथ हिलमिलकर रहो। देवर और देवरानी को और उनके बच्चों को अपना मानो। अपनी बड़ी बहु होने का दायित्व सम्भालो।
हालाँकि इसमें भी देवर ने एक चाल के तहत सास और ससुर को उसके पास भेजा था और स्वयं भी साथ आये थे सीमा के देवर कि ये तीनो, सीमा और उसके दोनों बच्चे पीछे वाले एक कमरे में पड़े रहेंगे , घर में काम भी कर दिया करेंगे और भाभी को जो नौकरी मिली है उसकी सैलेरी दबा लेंगे। एहसान जताकर रखेंगे वो अलग। नौकरानी और पैसा दोनों मिल जायेंगे।
सीमा को सब याद है आज भी कि कैसे सास और ससुर के साथ देवर भी आये थे तो सामने सास और ससुर यही बोले कि घर वापिस चलो पर सास को वाशरूम जाना था तब अकेले में उन्होंने सीमा से कहा,”बहू, तुम यही रहो मैं और तुम्हारे पिताजी यही चाहते हैं। वहां तुम्हारी कोई कदर नहीं होगी। तुम मना कर दो जाने से। हमारी दुआएं और आशीर्वाद तुम्हारे और बच्चों के साथ हैं और हमेशा रहेगा। पहले भी राकेश ने दबाव डालकर तुम्हे वहां से निकलवा दिया था। हमसे कुछ ना पूछो बहू। हम तब भी मज़बूर थे और आज भी मज़बूर हैं बहू। ” ऐसा कहकर उन्होंने हाथ जोड़ लिए थे और उनकी आँखें भर आई थी।
सीमा ने उनका हाथ थामकर उन्हें कहा था कि वह वैसा ही करेगी जैसा माॅ॑जी चाहती हैं।
फिर क्या था सीमा ने साथ जाने से मना कर दिया। देवर इतना भड़क गया था कि उसे बड़ा छोटा कुछ याद नहीं रहा और अपने माता-पिता के सामने ही बदतमीज़ी से सीमा से अहंकार मिश्रित आवाज़ में उसने कहा कि अब उस घर में कभी मत फटकना। मैं तो एहसान कर रहा था कि बड़े भाई की विधवा है और दो रोटी दे देंगे पर अब मरो या जिओ हमें मतलब नहीं रहेगा।
देवर की बातों से खीझ साफ़ झलक रही थी कि खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे। खैर देवर, सास और ससुर को गुस्से में लेकर चले गए। सास ससुर ने ज़रूर जाते हर उन सभी को आशीर्वाद दिया तो देवर नफरत से बोले थे कि चलो यहां से इनसे कोई रिश्ता नहीं है हमारा। सीमा की सास ने आँखों आँखों में उसे जता दिया कि उसने सही किया।
उसके बाद सीमा ने कैसे दो बच्चों को पाला और समाज से बचते हुए पढ़ाया, वही जानती है। सास ससुर एक एक कर दो साल में ही काल कवलित हो गए। सीमा तब गई थी परन्तु देवर देवरानी ने उसे घर में पांव तक नहीं रखने दिया। उन्हें डर था कि सीमा पुश्तैनी मकान में अपना हिस्सा न मांग लें। सीमा तो दस साल पहले ही सब मोह माया त्याग कर उस घर से आई थी।
वर्तमान में अक्षरा ग्यारहवीं में पढ़ रही है। अक्षय इंजीनियरिंग कर एक मल्टीनेशनल में काम कर रहा है। उसके साथ की कुलीग सौम्या से उसने माॅ॑ से मिलवाया। सीमा को भी सौम्या अच्छी लगी। अपने जैसे घर की स्नेहमयी लड़की है, सौम्या। इस तरह से अक्षय की शादी तय हो गई।
एक ही शहर में दस साल से रहते हुए जिन देवर- देवरानी ने भाई के बच्चों और भाभी का दायित्व उठाना तो दूर कभी हाल तक नहीं पूछा। वे आज सगे संबंधी और घरवाले बनकर अपना हक जताने आ गए। हदी में अपनी अहमियत गिनवा रहे हैं। सीमा को उसका दायित्व याद दिला रहे हैं कि घर की शादी में चाचा-चाची की पूछ करे।
सीमा की समझ में नहीं आ रहा था कि देवर देवरानी आज अचानक से सगे कैसे बन गए? बच्चों से बात की तो उन्होंने चाचा-चाची को बुलाने से साफ मना कर दिया।
दोनों बच्चों ने एक स्वर में कहा,”जब भाई की फैमिली को सपोर्ट की जरूरत थी तब चाचा-चाची ने कभी दायित्व उठाने की ज़हमत नहीं ली तो अब शादी में उनकी हमें कोई जरूरत नहीं है! हमें ऐसे दिखावे के रिश्तेदार जो सिर्फ हक जताना जानते हैं, उनकी कोई आवश्यकता नहीं है। मम्मी, ऐसे मतलबी घरवालों की हमें आवश्यकता नहीं है!”
सीमा ने भी आज पहली बार अपने को इन फालतू के बंधनों से मुक्त पाया। शादी की आगे की तैयारी के लिए सीमा रूपरेखा बनाने लगी।
इति।।
लेखिका की कलम से
दोस्तों, मेरा यही सवाल है कि बताइए सीमा ने सही किया या नहीं? क्या ऐसे तथाकथित रिश्तेदारों की सच में पूछ होनी चाहिए ? आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा। यदि आपको मेरी यह कहानी पसंद आई है तो कृपया लाइक शेयर एवं कमेंट अवश्य कीजिए।
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धन्यवाद।
प्रियंका सक्सेना
( मौलिक व स्वरचित)
#दायित्व
Sahi kiya
अगर वैवाहिक कार्यक्रम पर आमंत्रण भी न देवें जिससे शुभ कार्य भली भांति संपन्न हो जाए तो और भी उत्तम।
परिवार के दायित्वों से किनारा करने वाले और सिर्फ अपने बारे में सोचने वाले रिश्तेदारों को अनदेखा करना ही श्रेयस्कर होता है !
उनकी उपेक्षा करके और उनकी स्वार्थपरता का आइना दिखाना एक सर्वथा उचित कदम है !!
बिलकुल सही,निर्णय ऐसे लोगों बुला कर अपना काम कर खराब करना
गुड डिसीजन
Bilkul thik kiya.