Moral Stories in Hindi : अम्मा बोली तो कुछ नहीं पर उन्हें गुस्सा आ गया है यह उनके देखने के अंदाज से पता चल रहा था। नाराजगी वाले माहौल में ही बबली का जन्म दिन और जगराता निपट गया।जब सब काम खतम हो गया तब अम्मा ने सोमेश से पैसे मांगे और सोमेश ने खुशी से दे दिए पर सिर्फ बीस हजार देखकर अम्मा और भाभी दोनों को गुस्सा आ गया और दोनों ने सोनी और सोमेश को खुब खरी-खोटी सुनाना शुरू कर दिया
भैया ने समझाने की कोशिश भी की पर दोनों ने उन्हें चुप करा दिया, आखिर में जब सोमेश ने उन्हें कहा कि हमें घर लेना है और साथ ही हमारे नए मेहमान के लिए भी कुछ बचाना पड़ेगा और जैसा आपको लगता है वैसा नहीं है बंबई मंहगा शहर है और वहां खर्चा भी ज्यादा है
हम दोनों के कमाने के बाद भी हम घर नहीं खरीद पा रहे हैं ।पर अम्मा और भाभी तो जैसे इस दिन का ही इंतजार कर रही थी उन दोनों ने इतनी बातें सुनाई कि सोमेश उसी समय वापस बंबई के लिए निकल पड़े, भैया ने बहुत समझाया पर सोमेश बोले जब मन में इतना जहर भरा हो तो रुकने का कोई फायदा नहीं है।
रात के दस बज रहे थे । सोमेश सोनी बस स्टैंड पर आ कर बैठ गए,एक बस रात ग्यारह बजे निकलती थी दोनों उसी से वापस जाने वाले थे। सोनी दिन भर काम करके थक चुकी थी और खाना भी ठीक से नहीं खाया था । सोमेश को उसकी चिंता हो गई। उसने पास की दुकान से पानी की बाटल खरीदी और बिस्कुट भी खरीद लाया, सोनी के हाथ में देकर बोला तुम खाओ में तब तक टिकट ले कर आता हूं।
सोनी बैंच पर सिर टिकाकर आज के घटनाक्रम के बारे में सोचने लगी उसे बहुत बुरा लग रहा था, उसने सोचा था जब मां सोमेश के पिता बनने की खबर लगेगी तब वो आसमान सर पर उठा लेंगी और कभी भी लाड़ ना करने वाली अब मेरे थोड़े बहुत लाड़ जरुर करेंगी पर वैसा कुछ ना हुआ उल्टा उन्हें ये खबर सुनकर कोई भी खुशी ना हुई हो ऐसा लग रहा था।
अभी भी उन्हें इस हालत में मेरा वापस बंबई जाना भी कोई चिंता का विषय नहीं लगा और उन्होंने एक बार भी रुकने को नहीं कहा। क्या पैसा इतना जरुरी था कि आप इंसानियत ही भूल जाओ। फिर उसे बाबा जी याद आए,वो हमारे बारे में इतना कैसे जानते हैं। कौन हैं , कहां से आए थे,ये सब सोच ही रही थी कि सोमेश की आवाज आई ,टिकट मिल गया है
पर तुम चल पाओगी,।कहो तो हम रात किसी लाज में गुजार लेते हैं।पर सोनी अब तक रिलेक्स हो चुकी थी वो बोली नहीं हम अभी जाएगे और अब अपने छोटे से घरौंदे में ही जाकर आराम करेंगे उसने प्यार से सोमेश को देखा। सोमेश अपनी शरारती मुस्कान से एक आंख दबा कर बोला,जो हुकुम मेरे आका, और फिर दोनों हंस दिए।
बस अपने समय पर आई दोनों की आंखें अपनों का रास्ता देख रही थीं कि शायद भैया भाभी एक बार मिलने आ जाएं और डांटकर कहें चलो घर वापस, ऐसे आधी रात बिना गोद भराई कोई जाता है भला ।पर कोई नहीं आया।
सोनी थकी हुई थी जल्दी ही सोमेश के कंधे से टिककर सो गई,पर सोमेश की आंखों से नींद कोसों दूर थी,आज जो भी हुआ, उससे उसका विश्वास ही डोल गया, मां जिन्हें वो हरदम खुश रखने के हर वो चीज लाता था जिसकी शायद उन्हें जरूरत नहीं होती थी जितनी उनकी बेटियों को होती थी।अगर कभी मां भाभी से छुपाकर पैसे मांगती थी तो अपने पास के सारे पैसे उन्हें पकड़ा देता था।
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निगाहें (भाग 3)
निगाहें (भाग 1)
सीमा बाकरे
स्वरचित रचना
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