समाज सेविका नलिनी को एक अनाथाश्रम का फीता काटने को बुलाया । फीता कटाने के बाद उनसे दो शब्द बोलने को कहा गया।
” भाइयो और बहनो तथा सभी प्यारे बच्चो मेरा जीवन तो गरीबो को समर्पित है । जब देखती हूँ किसी गरीब बच्चे को भूख से व्याकुल होते , या किसी छोटू को ढाबे पर या किसी बच्ची को घरो मे काम करते या फिर सडक किनारे भीख मांगते तो मन करता है सबको अपने घर ले आऊं उनकी शिक्षा की व्यवस्था करूँ । पर ऐसा संभव नही हो पाता क्योकि मेरे पास भी सिमित साधन है । इसलिए मैने एक ट्रस्ट बना रखी है आप उसमे ज्यादा से ज्यादा सहयोग कीजिये जिससे मैं ज्यादा से ज्यादा लोगो के काम आ सकूँ। उसी ट्रस्ट मे से मैं इस अनाथाश्रम मे भी मदद करती रहूंगी !” नलिनी ने भाषण दिया । सबने खूब तालियां बजाई। थोड़ी देर बाद नलिनी अपनी बड़ी सी गाडी मे निकल गई ।
” ये कौन लोग है ?” अपने घर के बाहर कुछ लोगो को खड़े देख नलिनी ने चौकीदार से पूछा ।
” मैडम चंदा माँगने आये है गरीब कन्याओ के विवाह के लिए !” चौकीदार बोला।
” भगाओ इन्हे यहां से मेरे पास कोई खजाना नही है पता नही कहा कहा से आ जाते है भिखारी !” नलिनी बोली और गाडी आगे बढ़ा दी।
” तुम्हारी मालकिन समाज सेवा की बड़ी बड़ी बाते करती है किन्तु किसी को कुछ देने मे इनकी जान निकलती है । सही है थोथा चना ही घना बजता है । अपनी मैडम को बोल देना हम भिखारी नही है उनका नाम सुना था तो आ गये । और हां ये जिस जगह शादी होनी वहाँ का पता है अपनी मैडम से बोल देना खाना खाने आ जाये फ्री मे !” चंदा माँगने आये एक व्यक्ति ने कहा और सभी वहाँ से चलते बने।
इधर नलिनी गुस्से मे अंदर आ अपनी बारह वर्षीय घरेलू सहायिका को पानी के लिए आवाज़ देने लगी जिसे वो इसलिए लाई थी उसके गरीब माँ बाप से कि इसकी शिक्षा का प्रबंध कर पैरो पर खड़ा करूंगी।
संगीता अग्रवाल