अनजाने रास्ते (भाग-9) – अंशु श्री सक्सेना : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

फिर उसका ध्यान वैदेही पर गया। वह नीलिमा जी से पूछ रही थी,

“आपने वसु की कोई तस्वीर बाहर क्यों नहीं रखी है? दराज़ में, अल्बम में क्यों ?”

“बेटा, कुहू की वजह से…वह इतनी छोटी है कि वह अपनी माँ को देखने और मिलने के लिए ज़िद करेगी…अभी उसको यह समझाना बेहद मुश्किल है कि उसकी माँ इस दुनिया में नहीं, वह जब भी अपनी माँ के लिए पूछती है, हम उससे यही कहते हैं कि उसकी माँ किसी दूसरे शहर में नौकरी करती है”

कहते हुए नीलिमा जी ने आँसू पोंछे।

“और अब तो वसु की तस्वीरें कुहू को बिलकुल भी नहीं दिखा सकते, वरना वह आपको ही अपनी माँ समझ बैठेगी”

यह अबीर था, जिसकी आवाज़ का दर्द, तल्ख़ी और कटाक्ष एक साथ वैदेही के कानों तक आकर लावे की तरह पिघल गया।

पार्टी से घर लौटने तक अयान और वैदेही दोनों गुमसुम ही रहे। दोनों अपने आप में भरे हुए, आत्ममंथन करते हुए, आज जो हुआ उसकी अपने अपने पहलुओं को केन्द्र में रख, विवेचना करते हुए।

समय का पहिया मंथर गति से घूम रहा था।दिन रात की कड़ी मेहनत के बाद वैदेही की थीसिस जमा होकर वायवा हो चुका था। अयान की भी थीसिस जमा हो चुकी थी, परन्तु वायवा अभी बाक़ी था।

कभी कभी वैदेही प्रोफ़ेसर दिनकर बैनर्जी के घर चली जाया करती। अब कुहू बड़ी हो रही थी और वैदेही के साथ खूब घुलमिल गई थी।

प्रोफ़ेसर साहब के घर कई बार वैदेही और अबीर की मुलाक़ातें भी हो जातीं। अब उन दोनों के बीच भी पहले जैसी तल्ख़ी नहीं रही थी। बल्कि उन दोनों में भी औपचारिक बातें हो जाया करतीं।

अब सर्दियाँ उतार पर थीं, दिल्ली में मौसम सुहाना हो चला था। इधर नजमा का अयान के घर आना बढ़ गया था बल्कि अब तो वह कई बार वैदेही की अनुपस्थिति में भी आ जाती।

चाय के जूठे प्यालों या खाने पीने की बिखरी चीज़ों को देखकर वैदेही को पता चलता कि आज नजमा घर आई थी।

इसी बीच दिल्ली यूनिवर्सिटी में लेक्चरार की पोस्ट के लिए रिक्ति (वैकेन्सी) निकली जिसमें अयान और वैदेही दोनों ने ही आवेदन पत्र भरा। वैदेही की क़ाबलियत को देखते हुए प्रोफ़ेसर दिनकर बैनर्जी को पूरा विश्वास था कि यह पोस्ट वैदेही को ही मिलेगी, लेकिन साथ साथ उन्हें यह डर भी था कि कहीं अयान को मुस्लिम होने का फ़ायदा न मिल जाए।

परिणाम वैदेही के पक्ष में ही आया। उस दिन वैदेही बहुत ख़ुश थी। इस परिणाम के पीछे, पिछले तीन सालों की कड़ी मेहनत, हिम्मत और लगन थी जिसने वैदेही को फौलाद सी मज़बूत *लेक्चरार वैदेही* बना दिया था। आज उसका बचपन का सपना पूरा हुआ था। अब वह प्रतिष्ठित दिल्ली यूनिवर्सिटी में लेक्चरार थी।

दिन भर उसे बधाई देने वालों का ताँता लगा रहा इसलिए वैदेही को डिपार्टमेंट से घर के लिए निकलने में देर हो गई। बाहर स्टैंड में अयान की बाइक न देखकर उसे लगा कि अयान शायद जल्दी घर चला गया होगा। वैदेही ने सोचा,

“अयान को पता तो चल ही गया होगा कि मेरा सेलेक्शन हो गया है, परन्तु उसने अभी तक मुझे बधाई नहीं दी, हो सकता है वह घर पर मेरे लिए सरप्राइज़ पार्टी प्लान कर रहा हो”

यह विचार आते ही उसके चेहरे पर एक मासूम सी मुस्कुराहट बिखर गई। उसने घर जाने के लिए ऑटो लिया। अयान के मनपसंद पनीर कटलेट बनाने के लिए रास्ते में रुक कर पनीर ख़रीदा और फिर घर पहुँची।

जैसे ही वह घर के दरवाज़े पर पहुँची, अन्दर से हँसने खिलखिलाने की आवाज़ें आ रही थीं।

“लगता है नजमा आई है” वैदेही ने सोचा और डुप्लीकेट चाबी से घर का दरवाज़ा खोल दिया।

सामने का दृश्य देख, जैसे वैदेही के हाथों से तोते उड़ गये। सामने काउच पर अस्त-व्यस्त हालत में अयान और नजमा को देखकर वैदेही की ज़ुबान तालू से चिपक गई। अयान और नजमा को भी अचानक वैदेही को सामने देखकर सम्भलने का मौक़ा नहीं मिला।

“ये…ये…सब क्या है अयान ? यह सब कबसे चल रहा है? तुम्हें अपनी ही बहन के साथ रंगरेलियाँ मनाते शर्म नहीं आती ?

क्रोध में काँपते हुए वैदेही ने एक साथ कई प्रश्न कर डाले।

नजमा अपने कपड़े ठीक करती हुई बेशर्मी से बोली,

“भाई-बहन? नहीं…नहीं, मैंने तो बचपन से ही अयान को प्रेमी के रूप में देखा, बचपन से ही इसकी दुल्हन बनने के ख़्वाब सजाए, अयान तो मेरा था, है और रहेगा…वो तो तुम बीच में कबाब में हड्डी की तरह आ गईं…ये तो तुम्हारे नसीब अच्छे हैं कि तुम्हें मेरी उतरन मिली…खैर ! जो होना था वो तो हो चुका, मेरे पास एक आइडिया है, क्यों न अयान मेरे साथ भी निकाह कर ले फिर हम तीनों साथ साथ रहें…मुझे तुम्हारे साथ अयान को बाँटने में कोई आपत्ति नहीं, क्यों तुम्हारा क्या ख़्याल है अयान? हमारा तो धर्म भी हमें इसकी इजाज़त देता है”

“चुप रहो नजमा और तुरन्त मेरे घर से दफ़ा हो जाओ…दोबारा हमें अपनी मनहूस शक्ल मत दिखाना, मैंने तुम्हें अपनी बहन की तरह स्नेह दिया और तुमने मुझे ही धोखा दिया”

वैदेही ग़ुस्से में चिल्लाई। अब तक अयान भी सम्भल चुका था। उसने नजमा को अपने बाँहों के घेरे में लिया और वैदेही के सामने ही उसके माथे पर चुम्बन अंकित करते हुए बोला,

“अभी तुम जाओ नजमा, मैं कल तुमसे मिलता हूँ”

वैदेही को लगा कि काश धरती फट जाए और वह धरती में समा जाए या फिर वह बेशर्म अयान और नजमा दोनों के मुँह नोच ले।

नजमा ने अपना बैग उठाया और पाँव पटकती हुई फ़्लैट के बाहर चली गई।

नजमा के जाने के बाद वैदेही ने अयान की शर्ट का कॉलर पकड़ लिया…

“तुम्हें किसी और के साथ रंगरेलियाँ मनाते शर्म नहीं आई अयान ? क्या कमी रह गई थी मेरे प्यार में ? मैंने तुम्हारे लिए अपनी माँ, अपने पापा, अपने भाई सबको छोड़ दिया…बदले में तुमने मुझे ऐसा धोखा दिया”

कहते कहते वैदेही बिलख बिलख कर रो पड़ी। अयान उसे दो पल को देखता रहा फिर बोला,

“यह सब तुमने मेरे लिए नहीं छोड़ा, अपने ईगो के लिए छोड़ा…तुम अपने माँ बाप को यह प्रूव करना चाहती थीं कि तुम उनके बिना जी सकती हो…क्या तुमने अपना घर छोड़ने जैसा बड़ा क़दम उठाने से पहले एक बार भी मुझसे पूछा ? सच तो यह है कि तुमने मेरा इस्तेमाल किया…अपने घर से निकलने के बाद दो वक़्त की रोटी के लिए…अलीगढ़ से दिल्ली आने के लिए…और देखो न, आज तुम्हारा उद्देश्य पूरा हो गया है, तुम दिल्ली जैसी प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में लेक्चरार बन गई हो…कल को रीडर बनोगी और परसों प्रोफ़ेसर, हज़ारों लाखों कमाओगी…यही तो तुम्हारा सपना था न…अब तुम्हारे इस सपने में मैं कहाँ हूँ?”

“यह तुम नहीं तुम्हारा इनफ़ीरियार्टी कॉम्प्लेक्स बोल रहा है अयान…दरअसल तुम्हारा मेल ईगो यह बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहा कि तुम्हारी बीवी तुमसे आगे कैसे निकल सकती है ? कहाँ तो मैं यह सोच कर आई थी कि आज हम सेलिब्रेट करेंगे, मैं पनीर कटलेट बनाऊँगी…परन्तु आज तो तुमने…अब मैं तुम्हारे लिए नहीं रोऊँगी”

कह कर उसने अपने आँसू पोंछे और कपड़े बदलने बेडरूम में चली गई। बेडरूम में पहुँचते ही वह ज़ोर से चिल्लाई,

“यह सब क्या है अयान?”

उसकी कपड़ों की अलमारी खुली हुई थी। अलमारी का सारा सामान बाहर बिखरा हुआ था…उसके कपड़े, उसकी साड़ियाँ, उसकी आर्टीफिशियल ज्वैलरी, उसका मेकअप का सामान… सबकुछ।

अयान अन्दर आया और धीरे से बोला,

“वो…नजमा…”

“ओह ! नजमा यहाँ आकर मेरे कपड़े पहनती है, यानी कि मैं उसकी उतरन पहनती रही और मुझे अभी तक पता भी न चला, नजमा ठीक कहती है, ज़िन्दगी में भी तो मैं उसकी उतरन ही हूँ”

वैदेही को अपने ही कपड़ों से घिन आने लगी। अयान वहीं बेड के कोने पर बैठ गया और बोला,

“मुझे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लेक्चरारशिप मिल गई है, कल ही अपॉइंटमेंट लेटर आया है, चलो हम अलीगढ़ वापस चलते हैं…छोड़ देते हैं दिल्ली की चकाचौंध भरी दुनिया”

“तुमने ए. एम. यू में कब अप्लाई किया? मुझे बताया भी नहीं”

वैदेही ने आश्चर्य से पूछा।

“मैं जानता था कि तुम्हारे रहते यहाँ मेरे सेलेक्शन को चांसेज़ बहुत कम हैं…इसीलिए मैंने वहाँ अप्लाई कर दिया…चलो हम अलीगढ़ चलते हैं वैदेही प्लीज़”

अयान ने फिर इसरार किया।

“तुम यह सोच भी कैसे सकते हो कि तुमने मेरे साथ जो विश्वासघात किया उसके बाद भी मैं तुम्हारे साथ रहूँगी…फिर मैं अलीगढ़ क्यों चलूँ जब मेरी नौकरी यहाँ पर है, तुम चाहते हो कि अलीगढ़ जाकर फिर मैं तुम्हारे टुकड़ों पर पलूँ, तुम्हारी ग़ुलामी करूँ…हरगिज़ नहीं…तुम्हें जहाँ जाना है जाओ, जहाँ रहना है रहो, पर अब मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो, मैं तुम्हारे साथ एक पल को भी नहीं रह सकती”

वैदेही ने दृढ़ स्वर में कहा।

“ऐसा मत कहो यार…यह सच है कि मैं नजमा के साथ ख़ुद को अधिक कम्फ़र्टेबल महसूस करता हूँ, वो इसलिए कि हम बचपन से साथ बड़े हुए हैं, पर मैं तुमसे भी प्यार करता हूँ”

अयान ने वैदेही को आगे बढ़कर अपनी बाँहों में लेना चाहा।

“डोन्ट टच मी, जस्ट लीव…क्योंकि यदि मैं भी अपना कम्फ़र्ट ज़ोन ढूँढने निकली न…तब तुम्हारी कितनी बदनामी होगी सोच लो, मुझे तुम्हारे साथ अब नहीं रहना, वैसे भी इस्लाम में तीन बार तलाक़ कहने से तलाक़ हो जाता है न…तुम भी तीन बार तलाक़ बोलो और मेरे घर से बाहर निकलो”

वैदेही घर के बाहर आकर खड़ी हो गई।

“ये…ये तुम क्या कह रही हो? होश में तो हो? हमने निकाह किया है…तुमने सबके सामने ‘क़ुबूल है’ कहा था, निकाह ऐसे नहीं टूटा करते”

अयान ने वैदेही को समझाना चाहा।

“तुम मुझे तलाक़ दे रहे हो या नहीं, यदि नहीं तो मैं अभी डिपार्टमेंट जाकर तुम्हारी करतूतों के बारे में सबको चिल्ला चिल्ला कर बताऊँगी”

वैदेही ग़ुस्से में कहती रही,

“तुम समझते क्या हो अपने आपको ? एक ओर तो मुझसे बेवफ़ाई, दूसरी ओर मुझपर ही प्यार ? मैं अब तुम्हारी बातों में नहीं आने वाली…तुम अभी तीन बार तलाक़ बोलो, मैं बैनर्जी सर से सब बता दूँगी और तुम्हारी अलीगढ़ वाली नौकरी भी हाथ से जाएगी”

“तुम यही चाहती हो तो यही सही…”

कहकर अयान ने तलाक़ की रस्म निभाई और अपने कपड़े और सामान समेटने लगा।

क्रमश:

अंशु श्री सक्सेना

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